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Friday, 16 April 2021

Makar rashi ke anya rashi walo se vivah sambandh kaise rahenge / मकर राशि के अन्य राशि वालो से विवाह संबंध कैसे रहेंगें ? जानिए इस लेख में

Posted by Dr.Nishant Pareek

Makar rashi ke anya rashi walo se vivah sambandh kaise rahenge


मकर राशि के अन्य राशि वालो से विवाह संबंध कैसे रहेंगें ? जानिए इस लेख में

मकर - मेष:- 

अग्नि और पृथ्वी तत्व का यह योग तनावपूर्ण रहने की संभावना है। मेष का स्वामी मंगल अधीर और जोशीला ग्रह है। जबकि मकर का स्वामी शनि सावधान, शांत व मंद। मकर भविष्य की योजना बनाकर चलना चाहता है और इसके लिये प्रतीक्षा भी कर सकता है। मेष को तत्काल परिणाम चाहिये। प्रतीक्षा से उसे घृणा है। इस योग में लाभ कम और हानि ज्यादा है। 

यदि पति मेष है और पत्नी मकर है तो प्रारंभ में पति के पहली भेंट में ही बोले गये प्रेम के दो बोल पत्नी को अभिभूत कर देंगे। वह उसकी किसी पागलपन से भरी धनकमाउ योजना के प्रति भी आकर्षित होगी। किंतु पति को फिर शीघ्र उसकी सहज बुद्धि और निराशावाद का सामना करना होगा। मेष पति यह नहीं समझ पाता कि उसकी मकर पत्नी जगह जगह धन छिपाकर क्यों रखती है। वह उसे छेडता है। पत्नी पति को दुनिया का सबसे बडा अपव्ययी समझती है। दोनों की पटरी बैठना असंभव है और पति अन्यत्र सुख की खोज कर सकता है। 

सामाजिक दृष्टि से मकर पत्नी को इस संबंध से लाभ हो सकता है। मेष पति अपनी बहिर्मुखी प्रवृत्तियों में उसे भी शामिल करता है और मकर पत्नी की समझ में आने लगता है कि जीवन में काम के अतिरिक्त और भी कुछ है। लेकिन उसके अन्य पुरूषों के संसर्ग में आने से मेष पति के मन में ईष्र्या जन्म ले सकती है। उनके यौन जीवन में गंभीर समस्याएं नहीं आनी चाहिये। जो आती है, वे पत्नी के निराशावादी मूड के कारण आती है। 

यदि पत्नी मेष है और पति मकर है तो मेष स्त्री कभी कभी व्यावहारिकता के दौर पडने पर मकर जातक की ओर आकर्षित हो सकती है। मेष पति के महत्वकांक्षी विचार उसे अच्छे लग सकते है। उसके स्वतंत्रता प्रेम से भी उसकी पटरी बैठ जाती है। उधर मकर पति को मेष पत्नी की शक्ति और चरित्र की दृढता पा सकती है। लेकिन अधिक समय तक साथ साथ रहने पर पति के अपने काम में व्यस्त रहने पर पत्नी के मन में ईष्र्या भाव पैदा हो सकता है। बुनियादी तौर पर मकर पति बहुत सीधा सादा व्यक्ति होता है और मेष पत्नी उसके लिये बहुत भारी पड सकती है। दोनों के स्वभाव में भारी अंतर होता है। कभी कभी पत्नी पति को उसके निराशा के मूड से बाहर निकाल लेती है। लेकिन इससे उनके बीच तीव्र झडपें नहीं रूकती है। 

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यौन संबंधों में मकर पति अधिक कामी नहीं होता। किंतु थोथे बहाने कर उसके प्रस्ताव को अस्वीकार कर देने पर वह शीघ्र बुरा मान जाता है। उसकी निराशा भी उसके यौन जीवन को प्रभावित करती है। इस दौर में पत्नी को साध्वी का जीवन बिताने के लिये तैयार रहना चाहिये। 

मकर - वृषः-

पृथ्वी तत्व और पृथ्वी तत्व का यह मेल अच्छा रहेगा। सुरक्षा भावी वृष जातक को मकर जातक का व्यावहारिक दृष्टिकोण और धैर्यपूर्वक काम करने की प्रवृति रास आयेगी। दोनों परंपरावादी और उत्तरदायित्व निभाने वाले है। बाहरी भोगों को उनमें से कोई वास्तविक महत्व प्रदान नहीं करता। अतः जीवन कभी कभी उनके लिये काफी गंभीर हो उठेगा। 

यदि पत्नी वृष है और पति मकर है तो दोनों के बीच सहज अनुभूति विद्यमान रहती है। जिससे वे एक दूसरे की भावनाओं को आशा - निराशाओं को और परिहास भावना को समझ सकते है। दोनों स्थायी, सुरक्षित और प्रेमपूर्ण गृहस्थ जीवन पसंद करते है। प्रारंभ में मकर पति अपने को ठीक से व्यक्त नहीं कर पाता। किन्तु कालांतर में वृष पत्नी समझ लेती है कि उसकी भावनाओं को उसके कार्यों से समझना चाहिये, चिकनी चुपडी बातों से नहीं। 

पति की संभोग इच्छा में बहुत उतार चढाव आता रहता है। एक दिन उसमें प्रबल संभोग का वेग रहता है तो दूसरे दिन वह एकदम निढाल हो जाता है। उसके यौन संबंधों पर बाहरी तनावों का भारी प्रभाव पडता है। वृष पत्नी को चाहिये कि उसके तनाव की अनुभूति कर उसके साथ चर्चा करे। इससे उसमें कमी होगी। इस जोडी का जीवन ठीक तरह निभाने की काफी संभावना है। यही बात उस अवस्था में होगी जब पति वृष हो और पत्नी मकर हो। शारीरिक आकर्षण उनके व्यक्तित्व के अंतर को कम कर देगा। दोनों एक दूसरे की रूचियों में दिलचस्पी लेना सीखेंगे। वे पुरातत्व की वस्तुएं एकत्र कर सकते है। क्योंकि दोनों की अतीत में कुछ न कुछ दिलचस्पी होगी। बागवानी में या घर से बाहर छुट्टियां बिताने में भी उनकी रूचि हो सकती है। खतरा यही है कि वे घर में इतने बंध जायेंगे कि बाहरी दुनिया से बिल्कुल कट जायेंगे। 

यौन संबंधों में यह मकर स्त्री के लिये सर्वोत्तम रहेगा। मकर पति अन्य राशि पतियों की अपेक्षा उसमें अधिक यौन भावना जगा सकता है और वह अपने पति को संतुष्ट करना सीख सकती है। 

मकर - मिथुनः-

वायु और पृथ्वी का कोई मेल नहीं है, फिर भी यदि इन दोनों राशियों के जातक चाहे तो वे एक दूसरे के अभावों की पूर्ति कर सकते है। मिथुन में यौवन का उत्साह है जबकि मकर में अनुभव का ज्ञान है। उन्हें अपने मतभेदों के साथ जीना भी सीखना होगा। मिथुन जातक प्रायः दिशा बदलते रहते है। जबकि मकर जातक अपना लक्ष्य प्राप्त किए बिना शांति से नहीं बैठते। वास्तव में इतनी भिन्नता लिए अन्य दो चरित्र मिलना कठिन है। 

यदि पत्नी मिथुन है और पति मकर है तो पत्नी को बातूनी होते हुये भी पति की बात सुननी होगी। इसी प्रकार वह उसके मन के तनाव को कम कर सकती है। बदले में पति पत्नी के अंदर की बेचैनी को शांत कर सकता है। पति को पत्नी की स्वचंछदता पर आपत्ति नहीं होगी। किन्तु जीवन के कलापक्ष में दोनों समान रूप से दिलचस्पी ले सकते है। मकर पति में भविष्य के लिये बचत करने की बलवती भावना रहती है। मिथुन पत्नी तात्कालिक आवश्यकताओं से आगे की बात नहीं सोच सकती। इस अंतर को समझना चाहिये। यौन संबंधों में पत्नी को सीखना होगा कि पति का ध्यान उसकी व्यावहारिक समस्याओं से कैसे हटाया जाये। उसके लिये यह एक नया अनुभव होगा। इससे उसके अहम् को चोट पहुंच सकती है और अपनी संतुष्टि के लिये किसी और पुरूष की खोज कर सकती है। यही समस्या तब आयेगी जब पति मिथुन हो और पत्नी मकर हो। उनके विचारों में इतना अंतर होगा कि यह मेल कुछ सप्ताह ही चलने की संभावना है। इस मेल में पत्नी को आर्थिक मामलों में पहल अपने हाथ में लेने को तैयार रहना चाहिये। क्योंकि उसका मिथुन पति आमतौर पर सोच समझकर घर खर्च चलाने में असमर्थ होगा।

मकर पत्नी सामाजिक जीवन में मिथुन पति का साथ देती है तो उसके हरजाईपन के स्वभाव को देखते हुए उसके मन में ईष्र्या जन्म ले सकती है। इससे बडा संकट तब पैदा होगा, जब पति पत्नी के जीवन के प्रति गंभीर दृष्टिकोण को उबाउ समझने लगे। उनके यौन संबंधों में भी कठिनाइयां पैदा होने की संभावना है। दोनों एक दूसरे से उसका दृष्टिकोण बदलने की आशा करेंगे। इससे उनकी जिद और बढेगी। जब तक दोनों के बीच कोई समझौता न हो, जिसकी आशा बहुत कम है, इस जोडी की सफलता की आशा करना व्यर्थ है। 

मकर - कर्कः-

पानी का पृथ्वी से तालमेल बैठ जाता है, किन्तु राशिचक्र में ये दो राशियां आमने-सामने होने से न केवल वे एक-दूसरे की पूरक हो सकती हैं बरन् उनके बीच तीव्र प्रतियोगिता भी जन्म ले सकती है। जब मकर जातक अपनी महत्वाकांक्षा तथा सफलता को सर्वोपरि समझेगा तब कर्क जातक स्वयं को उपेक्षित या चोट खाया अनुभव करेगा। कर्क जातक मकर जातक में कर्तव्य और उत्तरदायित्व की भावना को सराह सकता है, किन्तु कभी-कभी मकर जातक में उन भावनाओं, हार्दिकता और प्यार का अभाव होता है, जिन्हें कर्क जातक अत्यन्त महत्वपूर्ण समझता है।

यदि पत्नी कर्क जातिका है और पति मकर जातक, तो उनके बीच आर्थिक समस्याएं पैदा होने की सम्भावना नहीं है। दोनों रुपए-पैसे को सोच-समझकर खर्च करने वाले हैं। लेकिन मकर पति का धंधा उनके यौन सम्बन्धों में हस्तक्षेप कर सकता है। उसे शैय्या पर भी अपने कागज-पत्र पढ़ना अच्छा लग सकता है। पत्नी यदि चतुर है तो वह ऐसे में पति के व्यावसायिक कागजों में कुछ उत्तेजक साहित्य भी छिपाकर रख देगी। पति इसका संकेत स्वयं समझ सकता है।

यदि पति कर्क जातक है और पत्नी मकर जातिका, तो पति पत्नी की महत्वाकांक्षी प्रवृत्तियों से परेशान हो उठेगा और अपने घेरे में बन्द हो जाएगा जिससे पत्नी उससे मन की बात न कह सके। पति के स्वप्नशील और रूमानी मन को पत्नी अयथार्थवादी कहकर उसे चोट पहुंचा सकती है। हां, दोनों के बीच आथिक समस्याएं पैदा होने की संभावना नहीं है। उनके पास कितना भी कम पसा हो, वे जन्म दिन जैसे अवसर मनाना नहीं भूलेंगे। यह पति-पत्नी के सम्बन्धों को अधिक घनिष्ठ कर सकता है।

यदि पत्नी यौन सम्बन्धों में पति को प्रसन्न रखना चाहती है तो उसे अपने अन्दर रूमानीपन पैदा करना होगा। उधर पत्नी के निराशा के दौर में उसकी उदासीनता पति को स्वीकारनी होगी। कर्क जातक अत्यन्त जिद के होते हैं और वे पत्नी को अपने से और दूर कर सकते हैं।

मकर - सिंहः-

दोनों राशियों के स्वामियों-सूर्य तथा शनि के स्वभाव में आकाश-पाताल का अन्तर है। सिंह जातक मकर जातक की वर्जनाओं से परेशान हो सकता है और मकर जातक सिंह जातक के खर्चीले तथा दिखाऊ स्वभाव से । सिंह जातक जीवन को पूरी तरह जीने में विश्वास करता है जबकि रूढ़िवादी मकर जातक भविष्य की योजना बनाकर चलना चाहता है। मकर जातक सिंह जातक की प्रेम के लिए तड़प को शायद ही समझ पाता हो।

यह बात तब और उभरकर सामने आती है जब पत्नी सिंह जातिका ही और पति मकर जातक।  ऐसा पति घर के बन्धन तोड़कर भाग जाना चाहता है। हो सकता है, किसी दिन पत्नी देखे कि उसका पति शैय्या से गायब है। फिर काफी ढिंढोरा पिट चुकने के बाद एक दिन वह स्वयं ही चुपचाप वापस भी आ सकता है। पत्नी की परेशानी को वह फिर भी अनुभव नहीं करेगा।

दोनों के दृष्टिकोणों में मौलिक अन्तर पाया जाता है। पति का ध्यान इस बात पर नहीं जाता कि उसकी पत्नी ने नए ढंग से बाल संवारे हैं या साड़ी पहनी है । उसे इस बात की चिन्ता भी नहीं होती कि पत्नी भद्दी लग रही है या बुढ़िया दिखाई देने लगी है।

यदि पति सिंह जातक हो और पत्नी मकर जातिका, तब भी दोनों के बीच पटरी बैठना कठिन है। इसके लिए किसी एक को तो झुकना ही होगा, लेकिन एक-दूसरे के प्रति उनका विद्रोह इसे असम्भव बना देगा।

मकर - कन्याः-

दोनों राशियां पृथ्वी तत्व वाली हैं । अतः दोनों जातकों के पांव धरती पर रहते हैं और वे जीवन तथा कार्य के व्यावहारिक पक्ष को समझ सकते हैं । दोनों में कर्तव्य तथा उत्तरदायित्व की भावना विद्यमान रहती है, किन्तु उन्हें मनोरंजन के बिना काम ही काम वाले ढर्रे से बचना चाहिए। कन्या के स्वामी बुध तथा मकर के स्वामी शनि की जोड़ी व्यापार तथा व्यावहारिक मामलों के लिए बहुत ठीक है, लेकिन उसमें प्रेम की भावनाओं तथा रूमानी चमक का अभाव हो सकता है।

वैसे कन्या पत्नी तथा मकर पति के बीच प्रबल शारीरिक आकर्षण विद्यमान रह सकता है । आर्थिक मामलों पर समान दृष्टिकोण इस बंधन को और पक्का कर सकता है। कन्या पत्नी इस बात को समझती है कि पति की वृत्ति दोनों के लिए सर्वोपरि महत्व की है । किन्तु कन्या पत्नी के मूड बदलते रह सकते हैं । कभी-कभी पति पर कई दिन तक निराशा की भावना छाई रहती है। पत्नी के विचार से उसे वह भावना निकाल बाहर करनी चाहिए। ऐसे में लानत मलामत से बचना चाहिए, क्योंकि इससे पति की मानसिक दशा और बिगड़ सकती है। वह आत्मघाती तक हो सकता है। वह दो-चार दिन के लिए घर छोड़कर भी जा सकता है। पत्नी को इस मूड की भनक पहले ही लग सकती है और वह जड़ पकडे इससे पहले ही अपनी सांत्वना तथा प्यार से उसे बढ़ने से रोक सकती है । 

पति पत्नी के बीच विवाद का मुख्य कारण पति के मित्र हो सकते हैं, जिनसे उसकी मित्रता पैसे या पद के कारण ही होती है । पत्नी इसे पसन्द नहीं कर सकती है।

यौन भावनाएं दोनों में प्रायः समान होती हैं । यौन सम्बन्धों को उनमें से कोई अधिक महत्व नहीं देता। पति की निराशा के समय उनमें कुछ सुधार हो सकता है क्योंकि तब वह पत्नी की इच्छाओं के अनुरूप स्वयं को ढालने की स्थिति में अधिक होता है।

कन्या जातक और मकर जातिका के बीच भी प्रेम के अंकूर शीघ्र पनपने की सम्भावना रहती है । कन्या जातक पर प्रायः रूखे व्यवहार का आरोप लगाया जाता है, किन्तु मकर जातिका के प्रति ऐसा नहीं होगा। उसकी वृत्ति में वह विशेषकर भारी रुचि प्रदर्शित करेगा और उसकी सहायता भी करेगा। आर्थिक मामलों में कन्या पति तथा मकर पत्नी के बीच पूर्ण सहमति रहने की सम्भावना है क्योंकि दोनों ही भविष्य के लिए रुपया-पैसा बचाने में विश्वास करते हैं । उनका सामाजिक जीवन जटिल रहने की सम्भावना नहीं है। किसी भोज में जाने के बजाय वे घूमना और किसी खेल आदि को देखना पसन्द करेंगे। अपने घर का उनके लिए भारी महत्व है। यह सम्बन्ध काम की अपेक्षा मित्रता तथा पारस्परिक हितों पर निर्भर रहने की सम्भावना अधिक है। यौन की भूख दोनों में लगभग समान होगी और उनके यौन सम्बन्ध सीधे-सादे रहेंगे।

मकर - तुलाः-

वायु का पृथ्वी से मेल सरलता से नहीं होता । मकर जातक में खुलकर अपना प्रेम प्रदर्शित करने का स्वभाव नहीं होता जबकि तुला जातक की यह आवश्यकता है । तुला जातक आराम और भोग-विलास का जीवन पसन्द करता है। मकर जातक जीवन को गम्भीरता और दायित्व से लेता है। मितव्ययिता उसके स्वभाव का अंग है।

यदि पत्नी तुला जातिका हो और पति मकर जातक तो कुछ समय तक पत्नी को पति के व्यावसायिक अतिथियों का स्वागत-सत्कार करने में प्रसन्नता होगी। पति भी पत्नी के इस गुण से प्रसन्न होगा। लेकिन आर्थिक मतभेद उनके जीवन को कठिन बना देंगे। पति योजना बनाकर चलता है और एक-एक पैसा बचाने में विश्वास करता है, जबकि आराम का जीवन पसन्द करने वाली पत्नी को उसका यह व्यवहार काटता-सा है। उसे यह बताते देर नहीं लगेगी। इस बारे में दोनों के बीच कोई समझौता नहीं हो सकता। काम के प्रति मकर जातक का दृष्टिकोण भी समस्याएं पैदा कर सकता है। पति का हर समय काम में व्यस्त रहना तुला पत्नी को पसन्द नहीं आएगा। उसे पति के मुंह से प्यार के बोल चाहिएं। कुछ समय वह धैर्य रख सकती है, किन्तु अन्ततः वह पति पर रूखा और भावनाहीन होने का आरोप लगाए बिना नहीं रह सकती।

उनके यौन जीवन से तनाव और बढ़ने की आशंका है। पति का दिमाग अपने धंधे की बातों में व्यस्त रहेगा और वह पत्नी का उतना ध्यान नहीं रख पाएगा। पत्नी उसे आकर्षित करने के लिए नारीगत गुणों से काम लेगी लेकिन पति उसके संकेतों को नहीं समझ पाएगा। यह बात तुला पत्नी को उससे विमुख कर सकती है।

यदि पति तुला जातक है और पत्नी मकर जातिका, तो पत्नी का सामाजिक जीवन में रुचि के अभाव से घबराने की बारी पति की है। पति में रंगीलापन बना रहता है जबकि पत्नी अपनी भावनाओं को बहुत गंभीरता से लेती है । गृह-कार्यों में पत्नी की कुशलता की ओर पति का ध्यान न जाना टकराव पैदा करेगा। पति अपनी समस्याओं की उपेक्षा कर बाहरी लोगों के लिये न्याय की लड़ाई लड़ रहा होगा।

यौनाचरण में पति को मानसिक भोजन चाहिए। विविधता के लिए उसकी खोज से पत्नी में रूखापन पैदा होगा। यह मेल बुद्धिमानी का नहीं होगा।

मकर - वृश्चिकः-

वृश्चिक का स्वामी मंगल और मकर का स्वामी शनि दोनों ही हठी ग्रह हैं, इसलिए इस योग में दोनों का मार्ग सरल और आनंददायक रहने की आशा नहीं है । महत्वपूर्ण लक्ष्यों के लिए दोनों लगन और दृढ़ता से कार्य करगे । यदि उनके लक्ष्य मिलते हैं, तो गम्भीर तथा व्यावहारिक मामलों के लिए यह एक अच्छा योग है । विवाद पैदा होने पर वे जानी दुश्मन भी हो सकते हैं। दोनों में से कोई एक-दूसरे के आगे झुकने को तैयार नहीं होगा और उनके गम्भीर मतभेद आसानी से नहीं सुलझ पाएंगे।

मकर - धनुः-

इस योग में अग्नि और पृथ्वी के विरोधी गुण स्पष्ट रूप से सामने आते हैं। मकर जातक सावधान, परम्परावादी, समझदार, गम्भीर और यदा-कदा निराशावादी होता है । धनु जातक उत्साही, आशावादी, आवेशी और खुले दिमाग वाला होता है। दोनों राशियों के स्वामी ग्रह भी एक दूसरे के विरोधी हैं। गुरु प्रसार का प्रतीक है जबकि शनि का सम्बन्ध संकोचन और सीमाबद्धता से है। स्वतंत्रताप्रिय धनु जातक मकर जातक के दबाव को पसंद नहीं करेगा, जबकि मकर जातक के लिए धनु जातक की आंतरिक इच्छाओं, उच्च आदर्शो, असम्भव सपनों को समझना असम्भव होगा।

पत्नी धनु जातिका और पति मकर जातक होने पर ऐसा हो सकता है कि एक दिन पत्नी खाने-पीने के लिए निर्धारित किए गए पति के पैसे को अपनी पसंद का तड़क-भड़क वाली पोशाक पर खर्च कर दे। इससे पति की त्यौरियां चढ़ना स्वाभाविक है। इसी प्रकार पत्नी किसी दिन प्यार के मूड में सेंट लगाकर तथा सजधजकर पति के स्वागत के लिए तैयार हो और पति उसकी ओर देखे बिना अपना ब्रीफकेस खोलकर काम के लिए बैठ जाए। उस समय पत्नी के कुढ़न की कल्पना ही की जा सकती है। निरंतर तनाव का उनके यौन-जावन पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है।

यदि पति धनु जातक है और पत्नी मकर जातिका, तो भी दोनों में निरंतर टकराव बना रहेगा। पति को हाथ में रखने के लिए पत्नी को उसे लम्बी ढील देनी होगी। धनु-पति की यौन-भूख काफी प्रबल होती है । प्रेम में निपुण होने के कारण वह पत्नी की भूख को बढ़ाने में भी सफल हो सकता है। फिर भी उसके केवल पत्नी से ही संतुष्ट रहे आने की सम्भावना बहुत कम है। इस यथार्थ को स्वीकार कर पत्नी अपनी मानसिक यातना को कुछ कम अवश्य कर सकती है।

मकर - मकर- 

पति पत्नी दोनों के ही मकर जातक होने से जीवन के प्रति उनकी फूंक-फूंक कर कदम रखने की प्रवृत्ति, परम्परावादी, यथार्थ दृष्टिकोण कई गुने बढ़ जाएंगे। दोनों जीवन को इतनी गम्भीरता से लेंगे कि उसका सारा आनंद ही जाता रहेगा। यदि दोनों के लक्ष्य समान हैं तो सफलता निश्चित है। किन्तु यदि एक ने दूसरे को अपने स्वार्थ का साधन बनाना चाहा तो इसका परिणाम कटुता और रोष में ही हो सकता है। मित्र-मंडली तथा परिचितों के लिए यह जोड़ी बहुत गम्भीर और औपचारिक रहेगी।

यह राशि निराशावादी भावना के लिए बदनाम है । यदि पति-पत्नी दोनों को ही निराशा ने एक साथ घेर लिया तो एक-दूसरे को आश्वासन तथा धैर्य बंधाने के बजाय वे और बिखर सकते हैं। लेकिन आर्थिक मामले उनकी समस्याओं में वृद्धि नहीं करेंगे।

मकर जातक की यौन-भूख प्रबल होती है। फिर भी दिलचस्पी के लिए कुछ तो हलका-फुलका होना ही चाहिए। ये दोनों अपने कामों में इतने व्यस्त रहेंगे कि इस ओर उनका बहुत कम ध्यान जा पाएगा। उनका जीवन काफी उबाऊ हैं जाएगा।

मकर - कुम्भ- 

पृथ्वी और वायु के बीच कोई तालमेल नहीं है । न मकर के स्वामी सतर्क शनि और कुम्भ के स्वामी गैर-परम्परावादी यूरेनस के बीच कोई समानता है। कुम्भ जातक निजी विचारों के बारे में स्वतंत्र तथा जिद्दी होता है। मकर जातक अपने लक्ष्यों तथा विश्वासों से चिपकने वाला होता है । मकर जातक यह बात कभी नहीं समझ पाएगा कि कुम्भ जातक कभी-कभी इतना रहस्यपूर्ण क्यों हैं

हो उठता है । उसके व्यवहार से मकर जातक की स्थायित्व तथा सुरक्षा की भावना को ठेस लगती है। कम्भ जातक परिणाम की चिन्ता किए बिना किस नए, रोमांचक परीक्षण का आनन्द उठाना चाहता है। मकर जातक के लिए यह एकदम अनावश्यक है।

दोनों में से यदि पत्नी मकर जातिका है और पति कुम्भ जातक, तो पत्नी निजी समस्याओं में व्यस्त रहना चाहेगी जबकि पति बाहरी समस्याओं में रुचि प्रदर्शित करेगा। जरूरतमंद मित्र हर समय घर में टपक सकते हैं । पति उनका आगे बढ़कर स्वागत करेगा जबकि पत्नी मौन रहकर उनकी घुसपैठ पर रोष दिखाएगी। कुम्भ पति नई-नई वृत्तियां अपनाएगा, जबकि मकर पत्नी चाहेगी कि वह एक ही स्थान पर बना रहकर ऊंचा पद प्राप्त करे। मकर पत्नी की आर्थिक सुरक्षा भावना कुम्भ पति की समझ में नहीं आ सकती। यह चिन्ता करना उसके लिए सम्भव

नहीं है।

यौन-व्यवहार में भी टकराव अनिवार्य है। पत्नी को निराशा का दौरा पड़ने पर जब प्यार चाहिए तब पति कहीं और किसी की समस्या सुलझाने में व्यस्त होता है । उसे खींचकर घर में बैठाना भी एक समस्या है। पत्नी अपने हाव-भावों से ऐसा कर पाएगी, इसका भी भरोसा नहीं किया जा सकता।

दूसरी ओर, पति मकर जातक और पत्नी कुम्भ जातिका होने पर यह भूमिका उलट जाएगी। पत्नी के पति के काम में दिलचस्पी न दिखाने पर उनके बीच तेज झड़पों को जन्म मिलेगा। पत्नी पति के अतीत-प्रेम, भावनात्मकता तथा रूमानीपन से भी चिढ़ सकती है। वह प्रगतिशील और आधुनिका है। मकर पति को दूसरे लोगों से अधिक मिलना-जुलना पसंद नहीं होता। जब वह पत्नी के मित्रों को देर रात तक घर में बैठे देखता है तो कड़ी आपत्ति करता है । वह पत्नी से छिपा कर धन बचाने का प्रयास करेगा और पत्नी उस पर कंजूसी का आरोप लगाएगी। तब पति का क्रोध उबाल खा सकता है।

यौन की भूख दोनों में से किसी में प्रबल नहीं होती। वे अपनी बाहर की ही दिलचस्पियों में व्यस्त रहते हैं । अतः यौन के आनंद का उनके जीवन में विशष महत्व नहीं होता और न किसी को इसकी अधिक चिन्ता होती।

मकर - मीन- 

पानी का पृथ्वी से तालमेल है। इन दो राशियों के जातको में भारी अंतर होते हुए भी वे एक-दूसरे के पूरक हैं। मीन जातक को सुरक्षा चाहिए जो उसे मकर जातक से मिल सकती है। मीन जातक अत्यधिक सक शील, भावनात्मक, रूमानी और भावुक होता है । वह मकर जातक की।

चपड़ी बातों में आ सकता है। मकर जातक की महत्वाकांक्षाओं को भी मीन जातक से कोई खतरा नहीं दिखाई देता । मकर जातक की प्रबंध-कुशलता और व्यवहारबुद्धि से संवेदनशील मीन जातक को जीवन के कुछ कठोर यथार्थों मे नचत मिलेगी।

फिर भी मीन पति कभी अपने मूड में मकर पत्नी के उस पर हावी होने के प्रयासों के विरुद्ध विद्रोह का झंडा उठा सकता है। इस स्थिति में उसके मन का गुप्त पक्ष सामने आने लगेगा। वह कई-कई दिन के लिए मौन-व्रत धारण कर लेगा। मकर पत्नी लाख प्रयास करने पर भी अलगाव की इस दीवार को नहीं तोड़ पाएगी। आर्थिक मामलों में पत्नी को पहल अपने हाथों में लेनी होगी, क्योंकि मीन पति निर्णयों से अथवा जीवन के अरुचिकर पक्ष से परेशान होना पसंद नहीं करेगा।

उनके यौन सम्बन्ध गहरे रहने की सम्भावना है यद्यपि इसमें भी मूड आड़े आ सकते हैं । मीन पति अपनी समस्याओं से ध्यान हटा सकता है जबकि मकर पत्नी नहीं हटा सकती और पति को पत्नी का रूखापन अख र सकता है। लेकिन नैराश्यभावना से मुक्त होने पर वे खुलकर एक-दूसरे को प्यार कर सकेंगे । वस्तुतः उनके सम्बन्ध अत्यंत जटिल रहेंगे।

इससे उलट होने पर, अर्थात् जब पति मकर जातक हो और पत्नी मीन जातिका, तो पति के लिए पत्नी के अनिर्णय वाले और क्षण-क्षण बदलते स्वभाव को समझ पाना कठिन होगा। मूड बदलने के साथ-साथ पत्नी की इच्छाएं भी बदलेंगी। विशेषकर यौन-व्यवहार में पत्नी जब भावुक हो रही हो, पति अपनी पाशविक प्रवृत्तियों का प्रदर्शन कर सकता है। पति के व्यवहार से पत्नी में रोष और निराशा पैदा हो सकती है।


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Makar rashi ka sampurn parichay / मकर राशि का संपूर्ण परिचय जानने के लिये क्लिक करे।

Posted by Dr.Nishant Pareek

 Makar rashi ka sampurn parichay


मकर राशि का संपूर्ण परिचय

मकर राशि के अंतर्गत आने वाले नामाक्षर निम्न हैः- भो, जा, जी, खी, खू, खे, खो, गा, गी।

मकर राशिचक्र की दसवीं राशि है। दशम के अतिरिक्त इसके कुछ अन्य पर्याय इस प्रकार हैं- एण, ग्राह, नक्र, मृग, कुरंग, कुम्भीर, मृगास्य, वातायु, हरिण, आकोकेद, एणानन, करिकर, कुरंगास्य, मृगमुख, मृगवक्त्र, शार्गरव, शिशुमार, अजिनयोनि, झषविशेषभुक्। अंग्रेजी में इसे कैप्रीकार्न कहते हैं।

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मकर राशि का प्रतीक चिन्ह मगर और हरिण का मिला-जुला रूप है। नीचे का आधा भाग मगर है तथा ऊपर का मुख हरिण के सदृश है। पश्चिमी ज्योतिष में इसका प्रतीक पहाड़ी बकरा है। यह पृथ्वी तत्व वाली चर और स्त्री राशि है। इसका स्वामी शनि है। इसका विस्तार राशिचक्र के 270 अंश से 300 अंश तक है। इसके तीन द्रेष्काणों के स्वामी क्रमशः शनि, शुक्र तथा बुध हैं। इसके अन्तर्गत उत्तराषाढ़ नक्षत्र के द्वितीय, तृतीय तथा चतुर्थ चरण, श्रवण नक्षत्र के चारों चरण तथा धनिष्ठा नक्षत्र के प्रथम दो चरण आते हैं। इन चरणों के स्वामी इस प्रकार हैं:- उत्तराषाढ़ द्वितीय चरण के स्वामी सूर्य-शनि, तृतीय चरण के स्वामी सूर्य-शनि, चतुर्थ चरण के स्वामी सूर्य-गुरु। श्रवण प्रथम चरण के स्वामी चन्द्र-मंगल, द्वितीय चरण के स्वामी चन्द्रशुक्र, तृतीय चरण के स्वामी चन्द्र-बुध, चतुर्थ चरण के स्वामी चन्द्र-चन्द्र, धनिष्ठा प्रथम चरण के स्वामी मंगल-सूर्य, द्वितीय चरण के स्वामी मंगल-बुध । इन चरणों के नामाक्षर इस प्रकार हैं- भो जा जी खी खू खे खो गा गी।

त्रिशांश विभाजन में 0-5 शुक्र (वृष) के, 5-12 बुध (कन्या) के, 12-20 गुरु (मीन) के, 20-25 शनि (मकर) के, तथा 25-30 मंगल (वृश्चिक) के हैं।

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जिन व्यक्तियों के जन्म के समय निरयण चन्द्र मकर राशि में संचरण कर रहा होता है, उनकी जन्म राशि मकर मानी जाती है। उन्हें गोचर के अपने फलादेश इसी राशि के अनुसार देखने चाहिए। जन्म के समय लग्न मकर राशि में होने पर भी यह अपना प्रभाव दिखाती है। सायन सूर्य 22 दिसम्बर से 20 जनवरी तक मकर राशि में रहता है। यही अवधि शक सम्वत् के पौष मास का भी है । ज्योतिषियों के मतानुसार इन तिथियों में दो-एक दिन का हेरफेर हो सकता है । जिन व्यक्तियों की जन्म तिथि इस अवधि के बीच है, वे पश्चिमी ज्योतिष के आधार पर फलादेशों को मकर राशि के अनुसार देख सकते हैं । निरयण सूर्य लगभग 15 जनवरी से 13 फरवरी तक मकर राशि में रहता है।

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जिन व्यक्तियों के पास अपनी जन्म कुण्डली नहीं है अथवा वह नष्ट हो चुकी है तथा जिन्हें अपनी जन्म तिथि और जन्मकाल का भी पता नहीं है, वे अपने प्रसिद्ध नाम के प्रथम अक्षर के अनुसार अपनी राशि स्थिर कर सकते हैं। मकर राशि के नामाक्षर हैं - भो जा जी खी खू खे खो गा गी।

इस प्रकार मकर जातकों को भी हम चार वर्गों में बांट सकते है - चन्द्रमकर, लग्न-मकर, सूर्य-मकर, नाम-मकर । इन चारों वर्गों में मकर राशि की कुछ न कुछ प्रवृत्तियां अवश्य पाई जाती हैं।

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ग्रह-मैत्री चक्र के अनुसार मकर राशि शुक्र के लिए मित्र राशि, चन्द्र, मंगल, गुरु तथा बुध के लिए सम राशि और सूर्य के लिए शत्रु राशि है । इस राशि में मंगल अपनी उच्च स्थिति में होता है तथा गुरु नीच स्थिति में । चन्द्र के लिए यह अस्त राशि है।

प्रकृति और स्वभावः-

मकर राशि काल पुरुष की कुण्डली में शिरोबिन्दु पर स्थित है। फलस्वरूप यह मानव की उच्चतम आकांक्षाओं की प्रतीक है । मकर-जातकों का लक्ष्य सदा आगे बढ़ना और ऊपर चढ़ना रहता है और इसमें वे अपने आस-पास के व्यक्तियों के कन्धों पर चढ़कर ऐसा करने से भी नहीं चूकते । उनकी यह प्रवृत्ति उन्हें निर्मम और स्वार्थी बना सकती है।

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मकर जातकों के लिए निजी प्रतिष्ठा, सामाजिक स्थिति और पद का भारी महत्व होता है। वे प्रायः सतर्क और परम्परावादी होते हैं तथा मितव्ययिता, आत्मानुशासन, उत्तरदायित्व, सम्मान और गम्भीरता पर आवश्यकता से आधा बल देते हैं । हंसकर और मुसकराकर जीना तो जैसे वे जानते ही नहीं।

वे हर काम को पूरी सुचारुता से करने में विश्वास करते हैं। सोच समझकर कदम उठाने की प्रवृत्ति के कारण तत्काल कोई बड़ा जोखिम उठाने को तैयार नहीं होते । अपनी व्यवहार-बुद्धि तथा तर्को से वे अपनी भावनाओं और रूमानीपन का गला घोंट देते हैं। उनके प्रमुख गुण बुद्धिमत्ता, प्रौढ़ता, लगन तथा सुचारुता होते हैं । उनके अवगुण भावनाहीनता, नैराश्य, भय और स्वार्थ है ।

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दूसरे शब्दों में उनकी सफलता का मूल उनके स्वभाव के दो मुख्य अंग होते हैं-आत्मानुशासन और इच्छाशक्ति । वे अपना लक्ष्य निर्धारित करने में कुछ समय अवश्य लेते हैं। लेकिन एक बार निश्चय कर लेने पर फिर पीछे मुड़कर नहीं देखते। उन्हें इस बात का बहुत ध्यान रहता है कि दूसरे लोग उनके बारे में क्या कहते या सोचते हैं, फिर भी वे अधिक लोगों को अपने विश्वास में नहीं लेते। उनके इस संदेहशील स्वभाव के कारण उनके मित्रों की संख्या अधिक नहीं होती। किन्तु जो एक-दो मित्र होते हैं उन पर वे पूर्ण विश्वास करते हैं। इसमें भी वे दूसरों के पद और प्रतिष्ठा को पहले देखते हैं। उनके दोषों की उपेक्षा करने को भी तत्पर रहते हैं। इन लोगों को प्रायः सनकी और झक्की समझा जाता है ।

धार्मिक विश्वासों में मकर जातक या तो एकदम कट्टर होते हैं या एकदम अनास्थावादी। वे बुद्धि पूजक होते हैं और केवल तर्कसम्मत बात को ही स्वीकार करते हैं । उनके परम्परावादी विचारों और सत्ता के प्रति सम्मान को देखते हुए इसे विरोधाभास ही कहा जाएगा। वे हर काम में अगुआ बनना पसन्द करते हैं और किसी प्रकार के अंकुश या बंधन को पसन्द नहीं करते । दूसरों पर निर्भर रहने की कल्पना ही उनको भारी पीड़ा देती है। वे यह मानकर चलते हैं कि दूसरों के भाग्य का उत्तरदायित्व भी उन्हीं पर है। उनमें भारी ज्ञान-पिपासा होती है।

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मकर-जातकों में इतिहास और पुरा वस्तुओं के प्रति विशेष रुचि होती है । वे सदा जन्म-तिथियों और जयंतियों को याद रखते हैं और उन्हें मानते हैं। विवाहादि अवसरों पर विधि-विधानों को पूछने के लिए उनकी काफी खोज होती है।

मकर जातिकाओं की प्रतिभा में विवाह के बाद सबसे अधिक निखार आता है। वे सदा पति, बच्चों अथवा अपने हितों को आगे बढ़ाने की बात सोचती रहती हैं। उनकी रुचि का एक क्षेत्र विवाह के जोड़े मिलवाने का रहता है और कभी-कभी इसमें वह अनावश्यक रूप से अपनी टांगें अड़ाने का प्रयास करती हैं तथा बिना मांगे और अनचाही सलाह देने लगती हैं।

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आर्थिक गतिविधियां और कार्यकलापः-

अपने उद्यमशील स्वभाव, धैर्य, लगन, आगे बढ़ने की महत्वाकांक्षा आदि गुणों के कारण मकर जातक आर्थिक क्षेत्र में प्रायः सफल रहते हैं। सबसे अधिक सफलता उन्हें निर्माता, थोक कपड़ा व्यापारी, भवन-निर्माता, खनक या कृषक आदि के रूप में मिलती है। बुद्धिजीवी वर्ग के मकर जातक उत्तम शिक्षाविद्, जीव-शास्त्री, राजनीतिज्ञ, नेता तथा इतिहासवेत्ता बनते हैं। वे मितव्ययिता में और भविष्य के लिए योजनाबद्ध रूप से काम करने में विश्वास करते हैं। वे अपने परिश्रम से आगे बढ़ते हैं।

मैत्री, प्रेम, विवाह-सम्बन्धः-

अपने संदेहशील स्वभाव के कारण मकर जातक बहुत कम व्यक्तियों को अपना मित्र बना पाते हैं। जिन्हें मित्र बना पाते हैं उनके बारे में उनका पहला विचार यही होता है कि उनके लक्ष्यों की पूर्ति में वे कहां तक सहायक हो सकते हैं। इसलिए वे बड़े-बड़े लोगों से ही मित्रता करना पसन्द करते हैं। जिन्हें वे अपने से नीचा समझते हैं उनके प्रति उनका व्यवहार प्रायः रूखा ही होता हैं।

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यों मकर जातकों में आकर्षणशक्ति का अभाव नहीं होता, वे स्वयं विपरीत लिगियों की ओर आकर्षित होते हैं। उनके प्रेम में भी उनका व्यावहारिक स्वभाव आड़े आता है। वे तब तक प्रेम के चक्कर में नहीं पड़ते जब तक दूसरी ओर से भी उसके प्रतिदान का विश्वास न हो जाए। प्रेमाभिव्यक्ति में भी वे बहुत भौतिक होते हैं। जिन्हें प्यार करते हैं, उनके प्रति बहुत ईर्ष्यालु तथा अपेक्षावान रहते हैं । कभीकभी उनके प्रेम-प्रसंगों से उनका स्वभाव भी प्रभावित होता है, किन्तु यदि अभिमान को चोट पहुंचे तो फिर वे एकदम ठंडे हो जाते हैं।

वास्तविकता यह है कि मकर जातक के प्रेम-प्रसंग बड़े उलझनपूर्ण होते हैं और अपने घर तक सीमित नहीं रहते। लिंग-भेद के प्रति वे बहुत सचेत रहते है और विपरीत लिंगी को देखते ही आपे में नहीं रहते । उनसे भद्दे मजाक भी कर बैठते हैं। जवानी में उनका यह हरजाईपन बुढ़ापे में रक्षक या बुजुर्ग की भावना का रूप ले सकता है। धन का लोभ भी मकर जातकों के विवाह का एक उद्देश्य हो सकता है । विवाह प्रायः कम आयु में ही हो जाता है । मकर जातक यद्यपि पत्नी और बच्चों को प्यार करते हैं, तथापि अपने प्यार का बाह्य प्रदर्शन करना उनके लिए सम्भव नहीं होता।

स्वास्थ्य और खानपानः-

मकर जातकों का शरीर पतला-दुबला और कृश होता है । बचपन में उसका विकास बहुत धीरे-धीरे होता है। 16 वर्ष की आयु के बाद लम्बाई तेजी से बढ़ती है । आयु के साथ-साथ गठन में भी सुधार आता-जाता है। उनका चेहरा पतला और अंडाकार होता है। नासिका लम्बी, आंखें गोल और गड्ढे में घसी और बाल रूखे तथा काले होते हैं। उनके चेहरे से चिन्ता का भाव झलकता रहता है। मकर जातिकाओं का शरीर कुछ भारी होता है।

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मकर राशि कालपुरुष के घुटनों, हड्डियों तथा त्वचा का प्रतिनिधित्व करती है । शनि पर शुक्र की सुदृष्टि होने से त्वचा कोमल और सुन्दर होती है

किन्त मकर राशि अथवा शनि पर अन्य ग्रहों की कूदष्टि होने से जातक रोगों से दीर्घ काल तक ग्रस्त रहना पड़ता है। निराशा की प्रवृति के कारण प्रकोप, पित्ताशय में गड़बड़ी, आमाशय में घाव, पाचन अंगों में खराबी और आंतों में रुकावट की सम्भावना होती है। नम और ठंडे स्थानों पर रहने से दमा, श्वास रोग आदि की भी आशंका रहती है। गठिया, पैरों में दर्द और सूजन की भी प्रवृत्ति रहती है। एड़ियों, पांवों तथा टांगों में दुर्घटनाओं से सावधान रहना चाहिए।

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नैराश्य की प्रवृत्ति मकर जातकों में शराब पीने की प्रवृत्ति को भी जन्म देती है। दुनिया के सबसे अधिक छिपकर पीने वालों का सम्बन्ध इसी राशि से होता है । अतः भोजन पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।

द्रेष्काण, नक्षत्र, त्रिशांश:-

प्रथम द्रेष्काण में लग्न होने पर जातक में निराशा की प्रवृत्ति विशेष रूप से अधिक होती है। द्वितीय द्रेष्काण में शनि के साथ शुक्र का प्रभाव इस प्रवृत्ति को कम करता है और कलाओं में उसकी रुचि पैदा करता है । तृतीय द्रेष्काण में लग्न जातक को अधिक वाचाल बनाती है। उसे दूसरों की कटु आलोचना से यथासम्भव बचना चाहिए।

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चन्द्र अथवा नामाक्षर उत्तराषाढ़ नक्षत्र के द्वितीय चरण में होने पर जातक में स्वार्थ की भावना में वृद्धि होती है। तृतीय चरण में होने पर उसके चरित्र में विरोधाभास दिखाई देता है। चतुर्थ चरण में होने पर उसका मूड बदलता रह सकता है । श्रवण नक्षत्र का प्रथम चरण उसे अधिक आत्म-केन्द्रित बनाता है। द्वितीय चरण में उसमें अधिक महत्वाकांक्षा आती है। तृतीय चरण में उसकी महत्वाकांक्षाएं नई उड़ानें लेने लगती हैं जबकि चतुर्थ चरण में उसमें नैराश्यभावना के अधिक लक्षण प्रकट हो सकते हैं। धनिष्ठा का प्रथम चरण उसे दम्मी बनाता है, जबकि द्वितीय चरण उसे आलोचक तथा छिद्रान्वेषी करता है। उसे कटु बातें कहने से सावधान रहना चाहिए।

मकर जातिका की लग्न यदि शुक्र के त्रिशांश (0-5) में हो तो उसकी वन्ध्या होने की आशंका होती है। बुध के त्रिशांश (5-12) में होने पर वह अनेक विषयों की ज्ञाता होती है तथा अन्य पुरुषों से उसका सम्पर्क होता है । गुरु त्रिंशांश (12-20) में होने पर वह अपने परिवार के हित पर विशेष ध्यान वाली होती है। शनि के त्रिशांश (20-25) में होने पर वह भाग्यहीन हो से है। मंगल के त्रिशांश (25-30) में होने पर उसके जीवन पर शोक की छाया रह सकती है।

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अन्य ज्ञातव्य बातेंः-

भारतीय आचार्यों ने मकर राशि का वर्ण शबल (धब्बेदार अथवा चितकबरा) कहा है। इसके स्वामी शनि का वर्ण श्याम या काला है। शनि का रत्न नीलम है जिसे लोहे में धारण करना चाहिए। मकर राशि दक्षिण दिशा की द्योतक है। वारों में मकर राशि शनिवार का प्रतिनिधित्व करती है। इसके स्वामी शनि का मूलांक 8 है। यह अंक आकस्मिक दुर्भाग्य भी ला सकता है। मकर जातकों के जीवन में यह अंक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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मकर राशि निम्न वस्तुओं, स्थानों तथा व्यक्तियों की संकेतक हैः-

अचल सम्पत्ति, थोक व्यापार, नगर निगम तथा नगरपालिकाएं, भू-गर्भीय द्रव, पनडुब्बी, कृषि, पशु, जूते, लट्ठ, कफन, सीमेंट, ईंट, बर्फ, ठठरी आदि। भक्तगण, सैनिक, नपुंसक, राजमिस्त्री, भवन-निर्माता तथा इंजीनियर आदि। लाकर, कालकोठरी, छूत रोगों के अस्पताल, अनाथालय, जेल, श्मशान भूमि, मकबरे, गोशालाएं, निर्जन भूमि, विवर, घने बसे क्षेत्र, पुरानी इमारतें, तालाब, मंदिर, गुफा, घने जंगल, गंदी बस्तियां आदि ।


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Saturday, 18 January 2020

shani dev aarahe hai dhanu rashi se makar me . aapke liye kaisa rahega inka bhraman,/ शनिदेव आ रहे है धनु राशि से मकर में/ आपके लिए कैसा रहेगा इनका भ्रमण। जानिए विस्तार से।

Posted by Dr.Nishant Pareek
शनिदेव आ रहे है धनु राशि से मकर में/  आपके लिए कैसा रहेगा इनका भ्रमण। जानिए विस्तार से।



        ग्रहों में न्यायाधीश पद पर नियुक्त शनिदेव ३० साल के बाद २४ जनवरी को लगभग ९ बजकर ५६  मिनट पर धनु राशि से अपनी खुद की राशि मकर में आ रहे है। और यहाँ १७ जनवरी २०२३ तक रहेंगे। इसमें भी ११ मई २०२० को सुबह ९ बजकर ३९ मिनट पर वक्री हो जायेंगे। फिर २९ सितंबर सुबह १० बजकर ४२ मिनट पर मार्गी होंगे।
ज्ञातव्य है की शनि लगभग ढाई वर्ष में एक राशि बदलते है। यदि उस राशि में वक्री हो जाये तो समय ज्यादा भी लग जाता है।
  मंगल दोष कितने प्रकार के ?

साढ़े साती -
                     २४ जनवरी को शनि के राशि परिवर्तन से वृष और कन्या की ढय्या समाप्त हो जाएगी। वृश्चिक राशि की साढ़ेसाती समाप्त हो जाएगी। कुम्भ राशि की साढ़े साती शुरू हो जाएगी। इस तरह कुम्भ राशि पर साढ़े साती का पहला चरण शुरू  होगा। मकर राशि पर दूसरा चरण और धनु राशि पर तीसरा चरण शुरू होगा।

ढय्या -मिथुन और तुला राशि पर शनि का ढय्या शुरू हो जायेगा।  जो ढाई वर्ष तक चलेगा।

सारांशतः  मेष, वृष , कर्क , कन्या , और वृश्चिक राशि के लिए शनि का राशि परिवर्तन शुभ रहेगा। आइये देखते है की प्रत्येक राशि पर विस्तृत फल कैसा रहेगा -

बारहवें भाव में मंगल - मांगलिक योग
मेष :-
    इस अवधि में शनि चन्द्रमा से आपके दसवें भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह स्थिति कष्ट व मानसिक संताप की सूचक है । इससे आपको काम - धंधे व जीवन के अन्य क्षेत्रों में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है ।  व्यापारियों व व्यवसायियों को इस दौरान हानि झेलनी पड़ सकती है । यदि आप कृषि व्यवसाय से जुड़े हैं तो नुकसान से बचने के उपाय करें । आपमें से कुछ अपना व्यवसाय अथवा कार्य क्षेत्र बदलने के विषय में सोच सकते हैं । आपमें से कुछ को नौकरी मिल सकती है परन्तु इस विशेष समय में कार्य करने में कठिनाई आएगी । आप और आपके मालिक के बीच परस्पर विरुचि की भावना पनप सकती है । गुप्त शत्रुओं से सावधान रहें ।  आमदनी से अधिक व्यय आपको निर्धनता के कगार पर लाकर खड़ा कर सकता है । ऋण लेने से बचें ।  स्वास्थ्य की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है । अपने घुटनों व छाती की सही देखभाल करें । आपके माता - पिता बीमार हो सकते हैं । यहाँ तक कि जीवन खतरे में पड़ सकता है ।  घर पर आप व आपकी पत्नी / पति के बीच मानसिक वैमनस्य परस्पर घृणा का कारण बन सकता है । यात्रा का योग है ।  आपमें से कुछ में पाप प्रवृत्ति में लिप्त होने की तीव्र इच्छा पनप सकती है । समाज में अपना मान व प्रतिष्ठा बनाए रखें ।

वृष :-
      इस अवधि में शनि चन्द्रमा से आपके नवें भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह विपत्ति व व्यथा का सूचक है । आपके कार्यक्षेत्र के लिए यह समय कठिनाईपूर्ण है । आपका स्थानान्तरण हो सकता है व कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए अतिरिक्त परिश्रम करना पड़ सकता है । शत्रुओं व अपने नीचे काम करने वाले सहयोगियों से सावधान रहें क्योंकि वे आपको इस समय धोखा दे सकते हैं । किसी भी ऐसी बात से बचें जिसके कारण आपको अपनी कार्यस्थली अथवा समाज में बदनामी मिले। मनवांछित लाभ पाने में और सामान्य दिनों से अधिक समय लग सकता है ।  वित्त के प्रति भी सावधानी बरतनी पड़ेगी । इस दौरान आपके फिजूलखर्ची करने की संभावना है । आपमें से कुछ इसके लिए अतिरिक्त आय भी करेंगे परन्तु अनेक बाधाओं का सामना भी करना पड़ सकता है ।  मुकदमेबाजी, आपराधिक गतिविधियों व धर्मविरोधी कृत्यों से दूर रहें । आपमें से कुछ इस दौरान अपराध जगत फंदे में फँस सकते हैं ।  स्वास्थ्य की ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है । मानसिक रुप से आप पत्नी / पति व बच्चों के कारण व अन्य कारणों से भी अशान्त     व व्यथित रह सकते हैं । आपका पुत्र किसी जानलेवा रोग से ग्रस्त हो सकता है । आपमें से कुछ को किसी निकट सम्बन्धी के दाह - संस्कार में सम्मिलित होना पड़ सकता है । 

मिथुन :-
           इस अवधि में शनि चन्द्रमा से आपके आठवें भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह कठिन समय है । आपमें से अधिकांश को काम-काज, व्यवसाय, व्यापार व किसी भी कार्यक्षेत्र विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है । कई को तो अनेक कारणों से काम-काज से हाथ धोना पड़ सकता है । इस समय आप बुरी लत, जुआ व कुसंगति की ओर आकर्षित हो सकते हैं । यहाँ तक कि आपमें से कुछ को दुर्जन - दुष्ट संगत के चक्कर में पड़कर कारागृह भी जाना पड़ सकता है ।  समाज में आपका नाम व प्रतिष्ठा भी कलंकित हो सकती है । आपमें से कुछ संसार त्यागने का मानस भी बना सकते हैं ।  यात्रा का योग है । इस समय वित्त के प्रति सावधानी बरतें व व्यय पर लगाम कसें ।  स्वास्थ्य इन दिनों चिन्ता का कारण बन सकता है । आप किसी गम्भीर रोग से ग्रसित हो सकते हैं जिससे जीवन खतरे में पड़ सकता है ।  आपको परिवार को भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है । ग्रहों की परिवर्तनशीलता के कारण परिवार के सदस्यों को कठिनाईपूर्ण परिस्थितियों से गुजरना पड़ सकता है । आपमें से कुछ के किसी परिवार के सदस्य अथवा घरेलू पशु की मृत्यु हो सकती है । अपने निकट व अंतरंग व्यक्तियों से तर्क - वितर्क न करें क्योंकि परिवार में नए शत्रु बन सकते हैं ।

कर्क:-
       इस अवधि में शनि चन्द्रमा से आपके सातवें भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह जीवन में उदासी का सूचक है । जीवन के लगभग हर क्षेत्र, हर पहलू पर पहले से अधिक ध्यान केन्द्रित करना पड़ेगा । आमदनी सीमित रहेगी और उस पर भी छल - कपट व धोखाधड़ी से धन - हानि हो सकती है । जो भी हो, ऋण लेने से बचें क्योंकि इस ऋण से मुक्ति मिलने में अत्यधिक समय लग सकता है ।  काम - धंधे में भी अपनी ओर से और अधिक परिश्रम करना पडेगा । अपने गन्तव्य तक पहुँचने के लिए और अधिक दूरी तय करनी होगी । यदि आप साझेदारी में धंधा करते हैं तो छद्मवेशी धोखेबाजों से सावधान रहें ।  यदि सेवारत हैं या किसी पद पर हैं तो उसकी गरिमा बनाए रखें, ऐसा कुछ न करं जो वह छिन जाय ।  विद्यार्थियों को एकाग्रता से पढ़ाई करने में कठिनाई हो सकती है ।  आपमें से कुछ इस दौरान विदेश जाएँगे । वैसे यात्रा पर जाने से बचें क्योंकि आपमें से अधिकांश के लिए यह दु:खदायक सिद्ध होगी । यह समय इस बात का द्योतक है कि आपका अपना घर न रहने के कारण आपको विवश होकर अन्यत्र रहना पड़ेगा ।  स्वास्थ्य पर ध्यान देने की आवश्यकता है । परिवार के स्वास्थ्य का ध्यान रखें । आपमें से कुछ गुर्दे, यौन - अंग तथा मूत्र - नलिका से सम्बन्धित रोगों से ग्रस्त हो सकते हैं । अपनी पत्नी / पति व बच्चों की किसी स्वास्थ्य सम्बन्धी शिकायत हेतु लापरवाही न बरतें क्योंकि बाद में इससे जीवन खतरे में पड़ सकता है ।  घर पर शान्ति व सामन्जस्य बनाए रखना आवश्यक है । पहले जीवनसाथी की मृत्यु के कारण आपमें से कुछ पुनर्विवाह कर सकते हैं । मित्रता को पूर्णतया विकसित होने दें और मित्रों से अच्छा सामन्जस्य बनाए रखें । यदि सावधानी नहीं बरतेंगे तो आपके अंतरंग मित्र आपको त्याग देंगे ।  इस समय मानसिक संतुलन बनाए रखना कठिन है । आपमें से अधिकांश में निरंतर मानसिक क्लेश व अशान्ति की भावना की संभावना है ।  किसी भी प्रकार के मुकदमे आदि से दूर रहना बुद्धिमानी होगी । यह मुकदमा अथवा चुना लड़ने हेतु अच्छा समय नहीं है । 

सिंह:-
        इस अवधि में शनि चन्द्रमा से आपके छठे भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह मुख्य रुप से धन लाभ का सूचक है । इस दौरान आप समस्त बिल, ऋण व शुल्क आदि चुका देंगे । धन सरलता से और आशा से अधिक प्रचुर मात्रा में आएगा । आप भूखण्ड अथवा मकान क्रय कर सकते हैं । यदि आपके पास पहले से ही भूखण्ड है तो मकान बनाने के विषय में सोच सकते हैं । यह समय शत्रुओं को हराकर विजय प्राप्त करने का है । स्वास्थ्य अच्छा रहेगा और आप शान्ति अनुभव करेंगे। व्यावसायिक व सामाजिक दृष्टि से भी आपके लिए अच्छा समय है । आपमें से कुछ के अधिकारी विशेष रुप से आपका समर्थन करेंगे । मित्र भी अभूतपूर्व सहायता करेंगे व सहानुभूति दर्शाएँगे ।  विवाहित व्यक्तियों का दाम्पत्य जीवन सुखमय व प्रेममय होगा और प्रेमियों को परस्पर अनेक भावनात्मक क्षण व्यतीत करने को मिल सकते हैं जो शिशु की इच्छा रखते हैं उन्हें संभव है कि इस समय परिवार में नए सदस्य का स्वागत करने का सुअवसर मिले । आपको ग्रहों के परिवर्तन के कारण आपके सम्बन्धी भी सुखी रहेंगे ।

कन्या :-
        इस अवधि में शनि चन्द्रमा से आपके पाँचवें भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह अवसाद का द्योतक है । इस दौरान आप देखेंगे कि आप मूर्खतापूर्ण प्रक्रियाओं, अपने ही सगे सम्बन्धियों व अन्य लोगों से झगड़े - फसाद व विवाद में उलझ गए हैं । आपमें से कुछ परिवार के सदस्यों के साथ मुकदमेबाजी में भी लिप्त हो सकते हैं साथ ही विपरीत लिंग वालों के साथ आपकी नहीं बनेगी । अपने व्यवहार को संयत रखें क्योंकि उतावलापन समाज में आपकी मान मर्यादा को मिटा सकता है।  वित्तीय मामलों में सावधानी बरतें ।  कामकाज के भी सही संचालन की आवश्यकता है । व्यवसायी नया धंधा हाथ में न लें और हानि उठाने को तैयार रहें । यदि आप निवेश या शेयर बाजार में हैं तो वर्तमान स्थिति संतोषजनक नहीं है । कुछ भी नया आरम्भ न करें क्योंकि मनवांछित परिणाम मिलने की आशा नहीं है ।  आपकी पत्नी / पति व बच्चों के स्वास्थ्य को विशेष देखभाल की आवश्यकता है । अपने बच्चे की किसी भी स्वास्थ्य सम्बन्धी शिकायत के प्रति लापरवाही न बरतें । यह बाद में जानलेवा सिद्ध हो सकता है । यदि स्वास्थ्य सम्बन्धी सावधानियों की अनदेखी की गई तो आपकी पत्नी / पति बीमार पड़ सकती / सकते हैं । आपमें से अधिकांश के मानसिक संताप तथा अस्थिरता झेलने की संभावना है । यदि आप विवाहित हैं तो जीवन साथी के प्रति विमुखता उत्पन्न हो सकती है । घर में सुख - चैन बनाए रखने हेतु आपको कुछ प्रयास करना पड़ेगा । विद्यार्थियों को पढ़ाई अरुचिकर लगने की संभावना है

तुला :-
          इस अवधि में शनि चन्द्रमा से आपके चतुर्थ भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह कठिन समय है । जीवन के अन्य पत्तों के अतिरिक्त वित्त व्यवस्था सही ढ़ंग से सम्भालनी होगी । जितना सम्भव हो, ऋण व्यय व पैसे की बर्बादी से बचें । आप में काम - धंधे के प्रति उत्साहहीनता आ सकती है । आपमें से कुछ को अपने कामकाज के प्रति अरुचि के कारण अपने वरिष्ठ व उच्च अधिकारियों का क्रोध झेलना पड़ सकता है । आपमें से कुछ का इस दौरान अन्य जगह स्थानान्तरण भी हो सकता है ।  सामाजिक दृष्टि से भी यह अच्छा समय नहीं है । अपनी लोकप्रियता बनाए रखने के लिए विशेष प्रयत्नशील रहें । ऐसे क्रिया कलापों से बचें जिनमें अपमान होने का भय हो ।  स्वास्थ्य पर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है । आपमें से कुछ अकर्मण्यता, उदर रोग, बादी (वायु रोग) अथवा अन्य छोटी - मोटी व्याधियों से ग्रस्त हो सकते हैं ।  आपमें से कुछ मनोव्यथा, भय, मानसिक उलझन व चिन्ता से ग्रस्त हो सकते हैं । कुछ के मन में न्याय विरोधी विचार पनप सकते हैं जो मन में पापकर्म करने की तीव्र इच्छा जागृत कर सकते हैं ।  शत्रुओं के साथ विवाद से दूर रहें । आपमें से कुछ को मित्रों व शुभचिन्तकों से अलग होना पड़ सकता है ।  घर पर पत्नी व बच्चों के स्वास्थ्य पर ध्यान देना आवश्यक है क्योंकि बीमारी अथवा अन्य कारणों से जीवन जोखिम में पड़ने का खतरा है । आपमें से कुछ परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु के कारण शोकमग्न रहेंगे । अपने सम्बन्धियों व निकटतम प्रिय व्यक्तियों के साथ किसी अप्रिय स्थिति में पड़ने से बचें । इस दौरान संभव है अपने परिवार और सम्बन्धियों में आपके कुछ नए शत्रु बनें। इन दिनों छद्मवेशी शत्रुओं से सावधान रहें ।  फिर भी, आपमें से कुछ घर में नवजात शिशु के आने की आशा कर सकते हैं ।

वृश्चिक :-
           इस अवधि में शनि चन्द्रमा से आपके तृतीय भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह शुभ समय का संकेत है । यह आपके कार्य क्षेत्र के लिए व वित्त हेतु उत्तम समय है । आपमें से अधिकांश अनेक प्रकार से धनोपार्जन करेंगे । इन दिनों आरम्भ किया गया कोई भी व्यापार, परियोजना या काम - धंधा निश्चित रुप से सफल होगा ।  यदि आप मुर्गी पालन अथवा कृषि से जुड़े हुए हैं तो यह विशेष रुप से शुभ समय है तथा अपने अपने कार्य में आपको विशेष लाभ होगा ।  आपमें से कुछ इन दिनों भूमि अथवा अन्य अचल सम्पत्ति क्रय करने के विषय में सोच सकते हैं । कुल मिलाकर धन सम्बन्धी मामलों में यह अच्छा व शुभ समय है ।  यदि आप बेरोजगार हैं तो भाग्य आपका द्वार अवश्य खटखटाएगा और आपके सन्मुख कई लाभप्रद नौकरियों / कार्यों का प्रस्ताव होगा । जो सेवारत है उन्हें वेतन वृद्धि, उच्च पद व अधिकार मिल सकते हैं । आपकी समझ, योग्यता तथा प्रयास सभी का ध्यान आकृष्ट करेंगे ।  सामाजिक दृष्टि से भी यह शुभ समय है क्योंकि आप सामाजिक सफलता की सीढ़ी उत्तरोत्तर चढ़ते ही जाएँगे । आपमें से अधिकांश घर पर नौकरानी और कार्यालय में सहायक नियुक्त करेंगे जो काम-काज में मदद करें । जो भी हो, आप हर प्रकार के तक-वितर्क में अपना पक्ष इतने स्पष्ट रुप में सहजता से रखें कि आप ही विजयी होंगे ।  स्वास्थ्य अच्छा रहेगा और आपको लगेगा कि आपके पैरों में शक्ति व उत्साह के पंख लगे हुए हैं । यदि पूर्व में कोई रोग रहा भी हो तो आप उससे मुक्ति पाकर सुख - चैन अनुभव करेंगे ।  घर पर भी पूर्णतया सुख - चैन का वातावरण होगा । आपकी पत्नी / पति और अधिक प्रेममय व समर्पित रहेंगी / रहेंगे व आपको दाम्पत्य जीवन का पूर्ण आनन्द प्राप्त होगा । आपके भाई - बहनों व बच्चों का व्यवहार अच्छा होगा व वे कार्य में सहायक होंगे ।  शत्रुओं की पराजय होगी व आप पर भाग्यलक्ष्मी की कृपा होगी । आपमें से कुछ को यात्रा करनी पड़ सकती है ।

धनु :-
       इस अवधि में शनि चन्द्रमा से आपके द्वितीय भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह सामान्य रुप से आपके लिए कठिन समय है । आपमें से अधिकांश को अपने लक्ष्य व परियोजना के मनवांछित परिणाम नहीं मिलेंगे । यदि आप सेवारत हैं अथवा किसी व्यवसाय में हैं तो सावधानी से एक एक कदम बढ़ाएँ, छलाँग न लगाएँ क्योंकि समय अनुकूल नहीं है ।  यह समय वित्तीय दृष्टि से भी प्रतिकूल है । अपने खर्चों पर लगाम कसें व कारण खोजें कि आपका धन कहाँ जा रहा है घ् आपमें से कुछ अनेक स्त्रोतों से धन अर्जित कर सकते हैं परन्तु वह धन हाथ में रखना कठिन होगा । पैत्रिक सम्पत्ति से सम्बन्धित किसी भी प्रकार के विवाद से दूर ही रहें क्योंकि यह आपके सुखी जीवन व आत्मगौरव को ठेस पहुँचा सकते हैं । इस विशेष समय में आप व्यर्थ के झगड़ों में पड़कर नए शत्रु बना सकते हैं । आपमें से कुछ में नृशंसता / निर्दयता पनप सकती है और संभव है कि आप कोई अपराध कर बैंठे । आपमें से कुछ तो अपने परिवार में ही नए शत्रु बना सकते हैं ।  छोटी - छोटी बातों पर अपने पति / पत्नी को परेशान न करें । बच्चों का ध्यान रखें क्योंकि ग्रह - स्थिति परिवर्तन उनके लिए जोखिम बन सकता है ।  स्वास्थ्य का इस समय सही रुप से ध्यान रखें । आप स्वयं को दुर्बल व निस्तेज अनुभव कर सकते हैं । साथ ही शक्तिहीन भी हो सकते हैं । आपमें से अधिकांश थोड़ा कठिन काम करके ही थकान महसूस करेंगे । साथ ही अपने रुप रंग पर भी ध्यान दें ।  आपमें से कुछ इन दिनों विदेश जा सकते हैं जबकि कुछ के निरुद्देश्य इधर - उधर भटकने की संभावना है ।

मकर :-
          इस अवधि में शनि चन्द्रमा से आपके प्रथम भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह कठिन चुनौतीपूर्ण समय का सूचक है । वित्त न्यूनतम स्थिति में होगा । व्यर्थ के खर्चे व अनावश्यक ऋण से बचें क्योंकि यह और अधिक ह्रास का कारण बन सकता है ।  व्यक्तिगत रुप से आप निराशावादी हो सकते हैं व बाहर से आपका व्यक्तित्व अप्रियकर हो सकता है । आपमें से कुछ पूर्व निश्चित् उद्देश्यों को पूर्ण करने में कठिनाई महसूस कर सकते हैं । आपमें से कुछ को न्यायिक हिरासत में भी जाना पड़ सकता है ।  स्वास्थ्य की ओर ध्यान दें । अस्वस्थता का कारण रोग न होकर शस्त्र, विष, अग्नि, शारीरिक पीड़ा व थकान हो सकता है । इन वस्तुओं से स्वास्थ्य को खतरा है अत: दूर रहने की चेष्टा करें । आपकी पत्नी/पति को भी शारीरिक पीड़ा, दर्द अथवा बेचैनी हो सकती है अत: उनके स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें ।  आपमें से कुछ को सिर में दर्द हो सकता है या ऐसा भी लग सकता है कि शरीर की समस्त शक्ति व सत्र निकल गया है । इस समय काफी मानसिक व्यथाएँ भी हो सकती है ।  अपनी प्रतिष्ठा व मान बनाए रखने हेतु यह एक चुनौतीपूर्ण समय है अत: ऐसे क्रियाकलापों से बचें जो इन पर प्रभाव डाल सकते हैं ।  इन दिनों यात्रा करनी पड़ेगी । आपको सुदूर स्थानों पर जाना पड़ सकता है तथा आपका स्थानान्तरण विदेश में हो सकता है । परन्तु आपमें से अधिकांश के लिए अपने स्वजनों व प्रियजनों तथा घर की सुख-सुविधाओं से दूर रहना कोई सुखद अनुभव नहीं होगा । घर में सुख शान्ति बनाए रखिए । इस विशेष समय में आपके अपने भाई - बहनों व उनकी पत्नियों / पतियों से झगड़ा हो सकता है । अपनी पत्नी / पति व बच्चें से भी कोई अप्रिय बात न करें व उन्हें जीवन को खतरे में डालने वाली वस्तुओं से दूर रखें । आपको किसी निकटजन का अन्तिम संस्कार सम्पन्न करना पड़ सकता है । आपमें से कुछ को अचानक धोखाधड़ी का शिकार होना पड़ सकता है । मित्रता अमूल्य निधि है जिसे शनि की यह गति विपरीत रुप से प्रभावित कर सकती है अत: मित्रों व मित्रता को सुरक्षित रखें । स्वयं को सतर्क व चुस्त - दुरुस्त रखें क्योंकि इस समय विशेष में आप बुराइयों का शिकार हो सकते हैं ।

कुम्भ :-
      इस अवधि में शनि चन्द्रमा से आपके बारहवें भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह धन की कमी व वित्तीय रेखा के नीचे की ओर आने का द्योतक है । इस समय व्यर्थ के व्यय व धन बर्बाद करने का खतरा है । यदि आप कृषि अथवा कृषि उत्पादों से सम्बद्ध कार्य करते हैं तो विशेष सावधानी बरतें कि हानि न हो । भोजन - सामग्री भण्डार में संचित कर लें क्योंकि कठिनाई के समय इसकी आवश्यकता पड़ सकती है ।  स्वास्थ्य पर ध्यान देने की आवश्यकता है । किसी भी प्रकार की शारीरिक व्याधि की उपेक्षा न करें क्योंकि यह जानलेवा सिद्ध हो सकती है । आपके पैरों व नेत्रों को विशेष देखभाल की आवश्यकता है ।  काम - धंधे पर भी ध्यान दें । काम - काज में अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखने के प्रति सावधान रहें । आपमें से कुछ को अपने कार्य स्थल पर नेकनामी व पद बनाए रखने में कठिनाई आ सकती है । आपमें से कुछ को अपना धंधा या व्यापार बदलना पड़ सकता है ।  यात्रा का योग है । आपमें से अधिकांश को विदेश यात्रा करनी पड़ सकती है व परिवार से दूर रहना पड़ सकता है । परन्तु अधिकतर व्यक्तियों के लिए यह यात्रा महंगी पड़ेगी ।  घर में शान्ति बनाए रखना आवश्यक है क्योंकि आप स्वजनों से विवाद में पड़ सकते हैं । आपमें से कुछ में गहन चिन्ता, घुतिहीनता व जीवन के प्रति उत्साहहीनता की संभावना है ।  गंभीर निर्णय लेते समय यह असाधारण सावधानी बरतने का समय है । आपमें से कुछ बुद्धि व विचार शक्ति को अनदेखा कर सकते हैं । ऐसा कुछ न करें जिससे प्रतिष्ठा प्रभावित हो । 

मीन :-
          इस अवधि में शनि चन्द्रमा से आपके ग्यारहवें भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह आपके लिए शुभ समय है । वित्तीय रुप से समय बहुत अच्छा है । चाहे आप व्यापार में हों या किसी व्यवसाय में, आपको अप्रत्याशित लाभ होने की संभावना है । यह धन लाभ आपके लिए आनन्द व और अधिक लाभ प्राप्त करने के अवसर लेकर आएगा । आपके हर प्रकार के प्रयास सफल होंगे व परियोजना के मनवांछित परिणाम प्राप्त होंगे । इस समय विशेष में जायदाद प्राप्त होने की भी संभावना है । जो व्यक्ति गृह निर्माण सामग्री, कोयला, चमड़े आदि का व्यवसाय करते हैं, वे अपने - अपने व्यापार में और भी अधिक मुनाफे की आशा रख सकते हैं । यदि आप सेवारत हैं तो पदोन्नति की संभावना है । उच्च शिक्षा हेतु यह समय शुभ है । यह आपके सोच को और भी उद्यमशील बनाने का समय है ।  सामाजिक जीवन भी संतोष प्रद रहेगा । समाज में आपका मान, स्तर व प्रतिष्ठा बढ़ने की संभावना है । आपमें से कुछ को समाज द्वारा विशिष्ट पुरस्कार से सम्मानित किया जा सकता है ।  यदि आप विवाहेच्छुक हैं तो आपको मनपसन्द साथी मिल सकता है व विवाह हो सकता है । यदि आप एकल हैं तो विपरीत लिंग वाले मनोहारी व्यक्ति का साथ मिल सकता है । आपके मित्र आपके सहायक होंगे व नए मित्र बन सकते हैं । आपके मालिक व सहयोगियों का आपके प्रति व्यवहार सकारात्मक होगा । पत्नी / पति व बच्चे सुख प्राप्ति के स्त्रोत होंगे । आप परिवार की मनोकामना पूर्ण करने वाली वस्तुएँ प्राप्त करेंगे । स्वास्थ्य अच्छा रहेगा ।
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