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Friday, 7 February 2020

Dusre ghar me mangal ka shubh ashubh fal / दूसरे घर में मंगल का शुभ अशुभ फल

Posted by Dr.Nishant Pareek
कुंडली के दूसरे भाव में स्थित मंगल का शुभ अशुभ फल इस प्रकार है-



 शुभ फल : कुंडली के दूसरे भाव से धन, वाणी, कुटुंब आदि का विचार किया जाता है। जिस व्यक्ति की कुंडली के दूसरे भाव में मंगल बैठा हो तो वह व्यक्ति सहिष्णु, खेती करनेवाला, पतली देह तथा सदा सुखी रहता है। वह नित्यप्रवास, परदेशवासी होता है। विक्रयकुशल, उद्यमी, जातक धातुओं का व्यापारी होता है। सत्यवक्ता, तथा पुत्रवान् होता है। बिल्ंडिग के काम, मशीनों की सामग्री, पशुओं का व्यापार, खेती, लकड़ी तथा कोयले का व्यापार, वैद्यक, नाविक, इन व्यवसायों में धनप्राप्ति होती है।  

मंगल कर्क, वृश्चिक मीन राशि में होने से नैरोग्य-वैद्यक से लाभ होता है।  मंगल पर शुभग्रह की दृष्टि होने से या ग्रह बलवान होने से अच्छा धन लाभ होता है।  

अशुभफल : द्वितीय भाव में स्थित मंगल अनिष्टकर और अरिष्टकर होता है। द्वितीय स्थान मंगल होने से जातक कटुभाषी होता है। निर्धनता, पराजय, बुद्धि हीनता के कारण पारिवारिक पक्ष से क्लेश प्राप्त करता है। कुटुम्ब का सुख नहीं होता है। धन का सुख नहीं होता है। धन का दुरुपयोग कर नष्ट कर देता है। धनभावगत भौम हो तो जातक कुत्सित अन्नभोक्ता होता है। निकृष्टान्न भोजी होता है। द्वितीयभाव में मंगल होने से या तो चेहरा अच्छा न हो या बोलने में प्रवीण न हो। आंख और कान की बीमारियों की संभावना रहती है। रक्त विकार, शिर में पीड़ा मस्तक में किसी चीज से लगा निशान होता है। आंख वा मुख पर शस्त्रघातादि की सम्भावना रहती है। अपनी स्त्री के लिये घातक होता है तथा दूसरों की स्त्रियों में आसक्त रहा करता है। 

धनभाव में भौम होने से जातक निर्धन होता है। यवन के अनुसार जातक नित्य ही ऋणग्रस्त होता है। द्वितीय मंगल होने से जातक दुष्टों का वैरी, निर्दयी, क्रोधी होता है। असज्जनाश्रित, कुत्सित आदमियों की नौकरी में रहे। क्रिया कर्म में रुचि न रखनेवाला होता है। विलंब से काम करने वाला होता है। जातक नीच लोगों के साथ रहनेवाला और मूर्ख होता है। दूसरों से धन लेनेवाला, जुआरी होता है। विद्वत्ता नहीं होती है। द्वितीय भाव में मंगल ज्योतिषयों के लिए नेष्ट है। इनके कहे हुए बुरे फल जल्दी मिलेंगे, शुभ फलों का अनुभव शीघ्र नहीं होगा ।  
  
 मंगल के मकर या वृश्चिक में होने से आँख के रोग, दॉतों के रोग, राजा अग्नि तथा चोरों से भय, धनहानि, स्त्रीकष्ट ये फल मिलते हैंं। इसी योग में द्वितीय स्थानका स्वामी भी यदि पापग्रह हो तो स्त्रीप्राप्ति नहीं होती।  धनस्थान में क्रूरग्रह (मंगल) होने से तथा सौम्यग्रह की उस पर दृष्टि या युति न होने से मुख, आँख, दाहिना कन्धा, अथवा कान इन भागों पर जख्म होता है। स्त्रीराशि में मंगल होने के कारण जातक पुत्रहीन होता है।      मंगल स्वराशि(1,8) में या अग्निराशि(1,5,9) में होने से पत्नी की मृत्यु होती है। ऐसा युवावस्था में होता है। बच्चों के लिए, घर-गृहस्थी चलाने के लिए दूसरा ब्याह करना पड़ता है। 

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