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Friday, 14 February 2020

athve bhav me mangal ka shubh ashubh fal / आठवें भाव में मंगल का शुभ अशुभ फल

Posted by Dr.Nishant Pareek
आठवें भाव में स्थित मंगल के शुभ अशुभ फल:-
आठवें भाव का कारक शनि देव है। इस भाव से आयु, व्याधि, मरण, शत्रु, रोग, मृत्यु का कारण, आदि का विचार किया जाता है। 


शुभ फल : यदि मंगल शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो तो जातक के कपड़े सादे होते हैं। रत्नों का पारखी, धनवान् लोगों में प्रमुख होता है। सोना, चाँदी आदि धन प्राप्त होता है और भोगों का भोगने वाला होता है। जातक अच्छा परीक्षक होता है। अष्टमभावस्थ मंगल के अफसर बहुत रिश्वत खाते हैं किन्तु पकडे नहीं जाते।      
 मंगल शुभग्रहों से युक्त होने से नीरोग शरीर, दीर्घ आयु, तथा मनुष्यों आदि में वृद्धि तथा घर में समृद्धि होती है।      अष्टमभाव का स्वामी बलवान होने से पूर्ण आयु मिलती है।  

अशुभफल : पापग्रह से पीड़ित आठवें स्थान का मंगल व्यक्ति को शुभ फल नहीं देता। जातक के कार्य अधूरे रहते हैं, काम में रुकावटें आती हैं। बहुत प्रयास करने पर भी इच्छा पूरी नहीं होती । कार्यो के अनुकूल उद्योग करने पर भी सफल मनोरथ नहीं होता, प्रत्युत विघ्नों से पीडि़त हो जाता है। 

आठवें स्थान में मंगल होने से जातक मूर्ख, चुगलखोर, कठोरभाषी, शस्त्रचोर, अग्निभीरू तथा गुणहीन होता है। जातक सर्वदा अनुचित बोलने वाला, बुद्धिहीन होता है। जातक निर्दय, बुरे विचारों का बहुत ही निंदनीय होता है। लोग उसकी निदा करते हैं। जातक दुराचारी तथा शोकसन्तप्त होता है। जातक की आँखे अच्छी नहीं होती, कुरूप होता है। बुरे कामों की ओर प्रवृत्ति होती है। सज्जनों का निन्दक होता है। व्यसनी, मदिरापायी मद्यपायी होता है। जातक का शरीर दुबला होता है। 
आठवें भाव में मंगल होने से कई एक प्रबल रोग प्रादुर्भूत हो जाते हैं जिनकी चिकित्सा करने पर भी कोई लाभ नहीं होता है और ये रोग विघ्न हो जाते हैं। अष्टमस्थ मंगल का जातक बहुभोजी होता है। बहुत खाने की आदत 30 वर्ष तक बराबर बनी रहती है-अत: उत्तर आयु में अजीर्ण रोग के कारण मलेरिया, अर्धीगवायु, अनियमित ब्लडपै्रशर आदि रोग होते हैं। जातक को गुह्य रोग होते हैं। मुत्रकृच्छ से अधिक पीड़ा होती है। रुधिरविकार से दुर्बल शरीरवाला होता है। खून के रोग संग्रहणी आदि होते हैं। मंगल नीच का हो तो रक्तपित रोग होता है। आँखों के रोग, नेत्ररोगी, वातशूल इत्यादिरोग होते हैं। 

पापग्रह की राशि में या पापग्रह से युक्त या दृष्ट मंगल होने से वातक्षयादिक रोग होते हैं। जातक को कोढ़ हो सकता है। शस्त्रों के प्रहार से अवयवों को पीड़ा होती है। धनचिन्तायुक्त एवं आर्थिक दृष्टि से विपन्न होता है। निर्धनता होती है। चिन्ताग्रस्त रहता है। 

अष्टम भावस्थ मंगल के प्रभाव से प्रतिष्ठापूर्वक सम्मानित करते रहने पर भी मित्र शत्रुवत् आचारण करता है। अपने ही लोग शत्रु के समान होते हैं। जातक के भाई-बन्धु भी सहसा शत्रु हो जाते हैं। बांधवों के सुख से वंचित रहता है। स्त्रीसुख से रहित होता है। स्त्री से दु:खी होता है। विवाह से लाभ नहीं होता। पत्नी को कष्ट होता है। पुत्र चिन्तायुक्त होता हैं। पिता को अरिष्ट होता है। आयुष्य कम रहती है। मध्यम आयु होती है। मृत्युभाव का मंगल मृत्युकर होता है। जातक की शस्त्रों से, कोढ़ से, शरीर के अवयव सड़ने से, या जलकर मृत्यु होती है । अधोगति होती है। बंदूक की बारूद से मृत्यु होती है। 

अष्टमभाव में मंगल होने से शुभस्थानों में पड़े हुए बृहस्पति-शुक्र आदि शुभग्रह शुभफल नहीं दे सकते, क्योंकि मंगल स्वयं दुष्टफल दाता होकर शुभफल प्राप्ति में प्रतिबन्धक हो जाता है। शस्त्रों के प्रहार से जख़्मी होता है- तलवार के प्रहार से मौत होती है।  मंगल पुरुषराशि में हो तो संतति (पुत्र) बहुत थोड़ी होती है। अग्निराशि में हो तो आग में जलकर मृत्यु होती है।      दीवार से गिरने से मृत्यु होती है।

 वैद्यनाथ को छोड़कर अन्य सभी ग्रंथकारों ने अष्टम भावस्थ मंगल पुरुषराशियों में होने पर अशुभफल कहे हैं। यदि कर्क, वृश्चिक, धनु वा मीन लग्न हो और अष्टम का मंगल हो-ऐसे योग में यदि कोई हठ योग का अभ्यास करता है तो सफलता मिलती है। यदि लग्न मेष, सिंह या धनु राशि का हाो और अष्टम का मंगल हो तो जातक राजनीतिज्ञ होता है।

विशेष:- आठवें भाव का मंगल व्यक्ति को मांगलिक दोष से पीड़ित करता है। ऐसे व्यक्ति का विवाह बहुत सोच समझ कर करना चाहिए। 
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