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Wednesday, 26 August 2020

Manglik dosh se jude sabhi prashno ke shastrokt uttar / मांगलिक दोष से जुडे सभी प्रश्नों के शास्त्रोक्त और सैद्धान्तिक उत्तर।

Posted by Dr.Nishant Pareek

 Manglik dosh se jude sabhi prashno ke shastrokt uttar


मांगलिक दोष से जुडे सभी प्रश्नों के शास्त्रोक्त और सैद्धान्तिक उत्तर। 


मांगलिक दोष के विषय में समाज में अजीब तरह का भय व्याप्त है। कोई भी व्यक्ति अपने बच्चों के विषय में यह नहीं सुनना चाहता कि उसके बच्चे मांगलिक है। क्योंकि मांगलिक दोष के विषय में अनेक प्रकार की भ्रांतियां अथवा झूठा प्रचार फैलाकर तथाकथित पंडित अथवा ज्योतिष का काम करने वाले लोग आमजन को लूट रहे है। और सामान्य जनता जिसे ज्योतिष का ज्ञान नहीं होता, वे लोग आसानी से इन ठगों के चंगुल में फंस जाते है।

इन सभी बातों को ध्यान में रखकर इस गंभीर समस्या पर आज मैं आपके समक्ष मांगलिक दोष के विषय में एक शास्त्रोक्त और सैद्धान्तिक लेख प्रस्तुत कर रहा हूं। जिसमें आपको मांगलिक दोष से संबंधित सभी प्रश्नों का उत्तर सरल भाषा में मिलेगा। जैसे-

मांगलिक दोष कैसे बनता है ? क्या होता है ? कितने प्रकार का होता है ? इसके विषय में फैली भ्रांतियां और उनका निराकरण, एक, चार, सात, आठ, बारह भावों में बैठे मंगल के परिणाम, मांगलिक दोष की शांति के शास्त्रोक्त समाधान व सरल उपाय तथा प्रत्येक लग्न में स्थित मांगलिक दोष की शांति के सरल और सुलभ उपाय बताये गये है। जिनको अपनाकर आप अपने मंगलदोष को शांत कर सकते है।


कैसे बनता है कुंडली में मांगलिक योग, जानने के लिये क्लिक करें।

मांगलिक दोष कितने प्रकार के होते है। यहां क्लिक करके विस्तार से जानिये।


मांगलिक योग के बारे में फैले भ्रम और उसके शास्त्रोक्त सत्य को जानने के लिये क्लिक करे।




पहले भाव में मांगलिक दोष का शुभ अशुभ सामान्य फल जानने के लिये क्लिक करे



चैथे भाव में मांगलिक दोष का शुभ अशुभ सामान्य फल जानने के लिये क्लिक करे



सातवें भाव में मांगलिक दोष का शुभ अशुभ सामान्य फल जानने के लिये क्लिक करे।



आठवें भाव में मांगलिक दोष का शुभ अशुभ सामान्य फल जानने के लिये क्लिक करे।



बारहवें भाव में मांगलिक दोष का शुभ अशुभ सामान्य फल जानने के लिये क्लिक करे।



मांगलिक दोष के सैद्धान्तिक परिहार अथवा निवारण जानने के लिये क्लिक करे।



मांगलिक दोष की शांति के शास्त्रोक्त उपाय जानने के लिये क्लिक करे। 



मांगलिक दोष की शांति के सरल उपाय जानने के लिये क्लिक करे।



मेष, वृष तथा मिथुन लग्न में मांगलिक दोष की शांति के सरल उपाय जानने के लिये क्लिक करे।



कर्क, सिंह तथा कन्या लग्न में मांगलिक दोष की शांति के सरल उपाय जानने के लिये क्लिक करे। 



तुला, वृश्चिक तथा धनु लग्न में मांगलिक दोष की शांति के सरल उपाय जानने के लिये क्लिक करे। 



मकर, कुंभ तथा मीन लग्न में मांगलिक दोष की शांति के सरल उपाय जानने के लिये क्लिक करे। 


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Thursday, 6 February 2020

Pahle bhav me mangal ke shubh ashubh fal / पहले भाव में मंगल शुभ अशुभ फल जानिए इस लेख में

Posted by Dr.Nishant Pareek
कुंडली के पहले भाव में मंगल के शुभ अशुभ फल जानिए इस लेख में. ...... 


शुभ फल : कुण्डली में प्रथम भाव में मंगल होने से जातक साहसी, महत्वाकांक्षी, उत्कर्ष के लिए अति इच्छुक होता है। जातक सिंह के समान पराक्रमी होता है। अपना काम निकालने में निपुण होता है। अपनी ही बात कहकर-दूसरे की बिना सुने-सभाजित् बना रहता है। शरीर दृढ़ होता है। रिश्वत लेनेवाले अफसरों के लिए भी यह योग अच्छा है-क्योंकि इनकी पकड़ नहीं हो सकेगी। परन्तु ऐसा फल तब होता है जब मंगल के साथ शनि का योग होता है। बड़ी नाभि-लाल हाथ, तेजस्वी, बली होता है। 

लग्नस्थल मंगल मोटर, हवाई जहाज, रेलवे इंजिन ड्राइवरों के लिए विशेषतया अच्छा है। लोहार, बढ़ई, सुनार, मैकेनिकल इंजीनियर, टर्नर, तथा फिटर आदि लोगों के लिए भी यह योग बहुत अच्छा है। जमीन सर्वेयर का काम भी अच्छा रहता है। डाकटरों की कुंडली में लग्नस्थ मंगल होने से सर्जरी में विशेष सफलता मिलती है।  मंगल उच्च का होने से या स्वगृही होने से नीरोग, निर्भय, पुष्टदेह, राज्य में सत्कार पानेवाला और यशस्वी होता है। तथा दीर्घायु होता है। मेष, सिंह, कर्क, वुश्चिक, धनु राशियों का लग्नस्थ मंगल पुलिस इन्सपैक्टरों के लिए अच्छा है। 

 अशुभफल : प्रथम भाव में मंगल होने से जातक विवेकहीन, चपल, विचार-रहित, और क्रूर होता है। अतिअभिमानी और क्रोधी होता है। उग्र हठवाला, दुराग्रही होता है। अत्यन्त मति-विभ्रम से दु:खी होता है। भ्रमात्मक बुद्धिवाला होता है। क्रोधी और कलहप्रिय होता है। शत्रुओं से और अपने धर्म के लोगों से भी खूब झगड़ता है। जातक निरंकुश, लोभी, वितंडावादी, मिथ्याभाषी, होता है। मानस संताप होता है। शरीर में चोट लगती है। चिन्हयुक्त देहवाला, देह में घाव और व्रण होते हैं। जातक को लाठी, लोहा (हथकड़ी) और अग्नि से भय होता है। लौहास्त्र का प्रहार होता है। लोहा, लोहे की वस्तुए और आग से दूर रहना चाहिए। अग्नि-बाण-लाठी से प्रहार का भय होता है। कामी, लोभी, लड़ाई-झगडे़ और बहस में प्रबल पड़ने के कारण दु:सह हुआ करता है। 

वाल्यावस्था में उदर के तथा दॉतों के रोग, रक्तविकार होते हैं। गुप्तरोगी, एवं व्रणजन्य कष्ट से युक्त होता है। सिर और नेत्रपीड़ा होती है। शिरपीड़ा तथ नेत्रों में रोग होता है। जातक को गुदरोग, नाभि में खुजली या कोढ़, कमर में व्यंग होता है। मस्तक में वा गुह्यभाग में व्रण होता है। रक्तविकार के रोगों से पीडि़त, शरीर से दुर्बल होता है। जातक बन्धुहीन होता है। स्त्री को रोग होता है या स्त्री की मृत्यु होती है। स्त्री और संतान से कष्ट प्राप्त करता है। स्त्री-पुत्रों से अलग रहनेवाला होता है। परस्त्रीगामी होता है। फल विपाक में अर्थात् कार्यसिद्धि के समय सदा विघ्न पड़ जाते हैं-अर्थात् कार्यसिद्धि नहीं होती । 

यह जातक उद्यम तथा साहस में दूसरा सिंह ही क्यों न हो तो भी कष्ट ही पाता है अर्थात् असफल मनोरथ ही रहता है। रण में शरीर क्षत-विक्षत (छिन्न-भिन्न) होता है। भ्रमणशील होता है। इधर-उधर भटकता (घूमता-फिरता)घुमक्कड़ होता है - किसी स्थान में स्थायी न रहने से चित परेशान रहता है। थोड़ी सन्तान, वातशूलादि रोग और मुख देखने में खराब होता है। लग्नभाव में मंगल होने से जातक सभी व्यवसायों के प्रति आकृष्ट होता है - एक साथ ही सभी व्यवसाय करने की प्रवृत्ति होती है। 36 वें वर्ष के बाद किसी एक व्यवसाय में स्थिरता आती है। जातक को मिथ्या अभिमान होता है कि वह व्यवसाय में अत्यंत कुशल है और दूसरे निरेमूर्ख हैं। योग्यता के अभाव में भी दूसरों पर प्रभाव डालने का यत्न करता है।

 लग्नस्थ मंगल वकीलों के लिए विशेष अच्छा नहीं है। फौजदारी मुकदमें मिलते हैं अवश्य, परन्तु धनप्राप्ति विशेष नहीं होती । अदालत में विशेष प्रभाव अवश्य पड़ता है। कर्क, वृश्चिक तथा मीन में नाविक, पियक्कड़, चैनी, व्यभिचारी होता है। लग्नस्थ मंगल कर्क, वुश्चिक, कुंभ तथा मीन में होने से जातक किसी से जल्दी मित्रता नहीं करता है-किन्तु मित्रता हो जाने पर कभी भूलता नहीं है। जातक पैसे का स्वार्थी होता है-अच्छे बुरे उपायों का विचार नहीं करता है।

एक विशेष बात ये भी है कि पहले भाव का मंगल व्यक्ति को प्रबल मांगलिक बनाता है। यदि पहले भाव पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो व्यक्ति अपनी जिद में अपनी ही जिंदगी ख़राब कर लेता है।

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