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Thursday, 5 March 2020

pahle ghar me budh ka shubh ashubh fal / पहले घर में बुध का शुभ अशुभ सामान्य फल

Posted by Dr.Nishant Pareek
 पहले घर में बुध का शुभ अशुभ सामान्य फल




 शुभ फल : जन्म कुण्डली में प्रथम भाव में बैठा बुध शुभ फल प्रदान करता है। देह कमनीय होती है। शरीर तपे हुए सोने के तुल्य कान्तिमान तथा तेजस्वी रूपवान् होता है। शरीर पर तिल वा मस्सा होता है। शरीर बलवान् तथा चौकोर अर्थात् सुडौल होता है। जातक तरुण होने पर भी बच्चे जैसा दीखता है। जातक बहुत देश में घूमनेवाला, 27 वें वर्ष में तीर्थयात्रा होती है। जातक की बुद्धि प्रखर रहती है। ऐसा व्यक्ति सरल हृदय, घैर्यवान् और गुणी होता है। चतुर-कोमल तथा मघुरभाषी (मघुर और चतुर वाणी बोलनेवाला), और दाता होता है। जातक शांतस्वभाव-नीतिनिपुण, निष्पाप, बहुत दयालु होता है। गीत-नृत्य-वाद्य आदि कलाओं को जाननेवाला होता है। तपस्वी और अपने घर्म के अनुसार बर्ताव करनेवाला होता है। जातक शान्त-विनम्र-अत्यंत उदार, सदाचारी होता है। जातक दीर्घायु होता है।

 बुध अन्य ग्रहजन्य अरिष्टों का नाश करता है। घार्मिक कार्यो में अभिरुचि होती है। जीवन में उत्तरोत्तर उन्नति होती है।संसार में सभी के वीच अच्छी प्रतिष्ठा पाता है। लग्नस्थ बुध का जातक ज्योतिषशास्त्र को पढ़नेवाला, विद्वान् होता है। वैद्यकशास्त्र का ज्ञान होता है। काव्य, गणित एवं तर्कशास्त्र को जाननेवाला, सर्वशास्त्रों में विद्वान्, कलाओं का ज्ञाता तथा विद्याभ्यासी होता है। बहुत शास्त्रों को सुननेवाला होता है। यंत्र-मंत्र को जाननेवाला, भूत प्रेत को दूर करने में समर्थ, नानाप्रकार की विद्या जाननेवाला होता है। जातक शिल्पकार होता है। वाचन और लेखन से आजीविका करने वाला होता हैं। बड़ी फर्मो में नौकरी मिल जाती है। स्त्री से सुखी, विलासी-सर्व सुख से युक्त होता है। मध्य अवस्था में स्त्री सुख प्राप्ति होती है। 
  
लग्न में पुरुषराशियों में बुध विशेष शुभफल देता हैं। जातक की शिक्षा शीघ्र ही समाप्त होती है लेखक, प्रकाशक वा सम्पादक होते हैं।  पुरुषराशि के बुध में 36 वें वर्ष में लाभ होता है-लेखनकला से प्रसिद्धि प्राप्त होती है।       मिथुन-तुला या कुंभ में होने से जातक बहुत बुद्धिमान वक्ता होता है। 

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अशुभ फल : लग्नस्थ बुध के लोग कूटनीति में तथा कुटिलता में ऐसे निपुण होते हैं कि ये किसी के वशीभूत नहीं होते। शरीर में बातजन्य पीड़ा होती है-फोड़े-फुन्सी आदि रोगों से दु:ख होता है। गुल्म तथा पेट के रोग होते हैं। भूख कम हो जाती है। बीमार होने पर ये असाध्यरोगी हो जाते हैं। वंश नष्ट होता है। 'वंशक्षय होना' यह फल मिथुन-घनु और कुम्भ के बुध में अनुभव में आता है।    

  बुध के साथ पापग्रह बैठने या इसे देखने से, अथवा नीचराशि (मीन) में होने से नरकलोक जानेवाला होता है। और पलंग आदि सुख से रहित, और क्षुद्र देवता की उपासना करनेवाला होता है। बुध के साथ शनि आदि पापग्रह बैठने से बाएं नेत्र की हानि-षष्ठ स्थान का स्वामी युक्त होने से या बृहस्पति युक्त होने से उक्त फल नहीं होता है। अपव्ययकारी होता है। पाप नाशकारी होता।    बुध के साथ पापग्रह बैठने से या पापग्रह के घर में होने से शरीर में रोगवाला तथा पित्त-पांडु रोगवाला होता है।
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