Wednesday, 2 April 2025

ज्योतिष शास्त्र के प्राचीन विद्वान् ऋषि पराशर / Jyotish shastra ke prachin vidvan parashar rishi

Posted by Dr.Nishant Pareek

 ज्योतिष शास्त्र के प्राचीन विद्वान् पराशर ऋषि 


                उदयकाल में ज्योतिष का प्रसार मुख द्वारा ही होता था। उस समय ज्ञान को ग्रन्थबद्ध करने की परम्परा नहीं थी। आदिकाल में इस विषय पर स्वतन्त्र ग्रन्थों की रचना होने लगी। इस युग में शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष तथा छन्द ये छः भेद वेदांग के प्रस्तुत हो गये। इस समय का प्राणी अपने विचारों को केवल अपने तक ही सीमित नहीं रख पाया और उनको दूसरों तक पहुँचाने की चेष्टा करता। फलस्वरूप ज्योतिष शास्त्र का विकास भी होने लगा। हमारे विद्वानों ने भविष्य का विचार करके अपने ज्ञान को ग्रन्थबद्ध करना आरम्भ कर दिया। ऐसे ही विद्वानों का परिचय यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है 

पराशर ऋषि 

नारद तथा वसिष्ठ के पश्चात् ज्योतिष के क्षेत्र में महर्षि पद प्राप्त करने वाले पराशर ऋषि थे। कहते है कि कलियुग में पराशर के समान अन्य महर्षि नहीं हुये। उनके ग्रन्थ ज्योतिष के आधार सिद्ध हुये है। पराशर का समय कौनसा है तथा इन्होंने कहाँ जन्म लिया था, यह ज्ञात नहीं है। पर इनकी रचना बृहत्पाराशरहोराशास्त्र से ज्ञात होता है कि इनका समय वराहमिहिर से पूर्व का है। 

भारतीय संस्कृति में महर्षि पराशर को मन्त्रद्रष्टा, शास्त्रवेत्ता, ब्रह्मज्ञानी तथा स्मृतिकार माना गया है। ये महर्षि वसिष्ठ के पौत्र, गोत्रप्रवर्तक, वैदिक सूक्तों के द्रष्टा और ग्रंथकार भी हैं। ‘पराशर‘ शब्द का अर्थ है - ‘पराशृणाति पापानीति पराशरः‘ 

अर्थात् जो दर्शन-स्मरण करने से ही समस्त पापों का नाश करता है, वहीं पराशर है।  

परासुः स यतस्तेन वशिष्ठः स्थापितो मुनिः।

                       गर्भस्थेन ततो लोके पराशर इति स्मृतः ।।                     

                                                   (महाभारतम् 1-179-3) 

परासोराशासनमवस्थानं येन स पराशरः। 

आंपूर्बबाच्छासतेर्डरन्। इति नीलकण्ठः ॥ 

पराशर के पिता का नाम शक्तिमुनि तथा माता का नाम अद्यश्यन्ती था। शक्तिमुनि वसिष्ठऋषि के पुत्र और वेदव्यास के पितामह थे। इस प्रकार पराशर ऋषि वसिष्ठ के पौत्र हुए। 

ऋषि शक्तिमुनि का विवाह तपस्वी वैश्य चित्रमुख की कन्या अद्यश्यन्ती से हुआ था। माता के गर्भ में रहते हुए पराशर ने पिता के मुख से निकले वचनों से ब्रह्माण्ड पुराण सुना था, कालान्तर में जाकर उन्होंने प्रसिद्ध जितेन्द्रिय मुनि एवं युधिष्ठिर के सभासद जातुकर्णय को उसका उपदेश किया था। पराशर बाष्कल मुनि के शिष्य थे। ऋषि बाष्कल ऋग्वेद के आचार्य थे। याज्ञवल्क्य, पराशर, बोध्य और अग्निमाद्यक इनके शिष्य थे। मुनिबाष्कल ने ऋग्वेद की एक शाखा के चार विभाग करके अपने इन शिष्यों को पढाया था। पराशर याज्ञवल्क्य के भी शिष्य थे। 

पराशर की कृतियाँ 

ऋग्वेद में पराशर की कई रचनाओं का उल्लेख (1, 65-73-9, 97) हैं। विष्णुपुराण, पराशर स्मृति, विदेहराज जनक को उपदिष्ट गीता (पराशर गीता) जो महाभारत के शांतिपर्व का एक भाग है, बृहत्पराशरसंहिता आदि पराशर की रचनाएँ हैं। भीष्माचार्य ने धर्मराज को पराशरोक्त गीता का उपदेश किया है (महाभारत, शांतिपर्व, 291-297)। इनके नाम से संबद्ध अनेक ग्रंथ ज्ञात होते हैं: 

1. बृहत्पराशर होरा शास्त्र, 

2. लघुपाराशरी (ज्यौतिष), 

3 बृहत्पाराशरीय धर्मसंहिता, 

4 पराशरीय धर्मसंहिता (स्मृति), 

5 पराशर संहिता (वैद्यक), 

6. पराशरीय पुराणम् (माधवाचार्य ने उल्लेख किया है),  

7. पराशरौदितं नीतिशास्त्रम् (चाणक्य ने उल्लेख किया है), 

8. पराशरोदितं वास्तुशास्त्रम् (विश्वकर्मा ने उल्लेख किया है)। 

9. पराशर स्मृति 


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