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Monday, 28 December 2020

Kark rashi ke anya rashi walo se vivah sambandh kaise rahenge, janiye is lekh me / कर्क राशि के अन्य राशि वालों से विवाह संबंध कैसे रहेंगे, जानिये इस लेख मेंः

Posted by Dr.Nishant Pareek

Kark rashi ke anya rashi walo se vivah sambandh kaise rahenge, janiye is lekh me


कर्क राशि के अन्य राशि वालों से विवाह संबंध कैसे रहेंगे, जानिये इस लेख मेंः-

कर्क - मेषः- 

अग्नि और जल मिलकर समस्याऐं पैदा कर सकते है। कर्क जातक संवेदनशील होता है और मेष जातक के मुंहफटपन से उसे चोट पहंुच सकती है। मेष जातक को कर्क जातकों की संवेदनशीलता और भावुकता बिल्कुल नहीं भाती। एक व्यक्तित्व एकदम सीधा सपाट हो और दूसरा इतना जटिल, तो फिर उनके बीच मधुर संबंधों की बात सोचना ही व्यर्थ है। 

यदि पति मेष जातक है तो पत्नी कर्क जातिका, तो पत्नी के कुछ समझ पाने से पहले ही पति उस पर पूरी तरह हावी हो लेता है। शीघ्र ही पत्नी अपने जीवन मूल्यों के अंतर को समझने लगती है। पति को नए नए क्षेत्र चाहिये और पत्नी को शान्तिपूर्ण जीवन। पत्नी को प्यार में जलन अनुभव होने लगती है और वह सोचने लगती है कि यह आग कब तक कायम रहे सकेगी। पति भी महसूस करने लगता है कि वह वासना में अंधा हो गया था और पत्नी उसका साथ नहीं दे सकती। पत्नी की भावनाओं को न तो वह समझ सकता है और न समझने का प्रयास करता है। कर्क पत्नी को रोमांस और प्यार भरी पहल चाहिये, जिसका मेष पति में एकदम अभाव होता है। संतुष्टि नहीं मिलने पर पति उत्पीडन का भी सहारा लेने लगता है। 

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यदि पत्नी मेष जातिका है और पति कर्क जातक हो तो पत्नी को अपने पति को समझने में लंबा समय लगता है। उसके उपर एक रक्षा कवच होता है और अंदर एक अत्यंत संवेदनशील हदय, जिसे आसानी से चोट पहुंचा सकती है। कर्क पति अपने विचारों, सपनों, अपनी पुस्तकों व संगीत से चिपका रहता है। यहां तक कि मेष पत्नी इन्हें अपनी सौत समझने लगती है। इनमें उसकी कोई रूचि नहीं रहती। 

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कर्क पति एक पे्रमी और एक रक्षक पति की भूमिका निभाना चाहता है। वह चाहता है कि उसकी पत्नी में नारी के से गुण हो। कहे भले ही न, लेकिन यौन संबंधों का मुख्य उददेश्य उसकी दृष्टि में एक बडा परिवार बढाना होता है। मेष पत्नी भला इसे कैसे पसंद कर सकती है। 

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कर्क - वृष:- 

पृथ्वी तत्व और जल तत्व के बीच सहज आकर्षण होता है। दोनों में अनेक समानताएं होती है। दोनों के लिये भावनाओं तथा प्रेम का भारी महत्व है। दोनों मूल रूप से परंपरावादी है। अतः परस्पर विरोधी रूचियों के कारण संघर्ष की संभावना कम ही है। भावनाओं का उबाल आने पर समझदारी और तर्क से उसे शांत किया जा सकता है। लेन देन की भावना से इस संबंध को अच्छा बनाया जा सकता है। 

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यदि पत्नी वृष जातिका है और पति कर्क जातक है तो पति पत्नी के मन में यह बात बैठा सकता है कि वह उसके जीवन में सब कुछ है। यही आशा वह पत्नी से करता है। दोनों में घरेलूपन की भावना मिलती है और उनका अधिकांश समय घर में ही निकलता है। कर्क जातक सदैव कल्पनाशील रहता है। वह पत्नी में देवी की छति देखना चाहता है। अतः उसकी दुर्बलता सामने आने पर उसे बहुत सदमा सा लगता है। वह अपने में ही खोया रहने लग जाता है।

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 वृष महिला बहुत व्यवहार कुशल नहीं होती। पति को कुरेदकर बाहर निकालने के उसके प्रयासों का उल्टा ही परिणाम होता है। लेकिन वृष महिला में ममता भरपूर होती है। पति के बुरे दिनों में अपनी ममता का सहारा देकर वह उसे भारी प्रात्साहन दे सकती है। 

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इस संबंध में समय और समय और परिश्रम से सुधार हो जाता है। उनके यौन जीवन पर शाम की घटनाओं का भारी प्रभाव पडता है। यदि कोई दुखद घटना घट जाये तो पति के लिये प्रेमाचार असंभव हो जाता है। उस समय पत्नी उसे कुरेद कर नाराजगी ही पैदा करेगी। यदि पति वृष है और पत्नी कर्क हो तो घरेलूपन की भावना दोनों के जीवन को सुखी बनाये रखेगी। सबसे बडा संकट नीरस दिनचर्या के फलस्वरूप उबाउपन आने का है। उनका यौन जीवन भी मशीन जैसा बन सकता है। अतः कल्पना का सहारा लेकर जीवन में विविधता और सरसता लाने का प्रयास करना जरूरी है। 

कर्क - मिथुनः - 

मिथुन बौद्धिक राशि है तथा कर्क भावनात्मक राशि है। दोनों के स्वभावों में स्पष्ट अंतर दिखाई देता है। मिथुन जातक का विविधता पे्रम कर्क जातक को परेशान करता है। कर्क जातक की संवेदनशीलता और भावनात्मकता का मिथुन जातक पर विशेष प्रभाव नहीं होता। उसके पास कर्क जातक की भावनाओं को समझने का समय ही नहीं होता। फिर मिथुन जातक इतना व्यस्त रहता है कि कर्क जातक अपने को उपेक्षित महसूस करने लग जाता है। 

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पत्नी मिथुन हो और पति कर्क हो तो पति चाहता है कि पत्नी को सारी दुनिया की नजरों से छिपाकर अपने घर में रखे। उधर पत्नी समाज में घुले मिले बिना नहीं रहती। उसे बंदी बनकर घर में रहना पसंद नहीं। यही झगडे का कारण बनता है। पत्नी के न झुकने पर उनका जीवन असहय हो जाता है। पति कितना ही बुद्धिमान क्यों न हो, उसका हर काम भावना से प्रेरित होकर होता है। हां, वह समस्याओं से भागता नहीं है। 

यौन संबंधों में जहां पति उस क्षण की भावनाओं से सीधे प्रभावित होता है, वहां पत्नी की इच्छा मस्तिष्क से उपजती है। इससे गडबड हो सकती है। हो सकता है, दोनों में एक ही समय पर पे्रम न जागे। दोनों एक सी बात से उत्तेजित भी न हो पाये। प्रायः ऐसा होता है कि पति तो पे्रम के भावों में डूबा हुआ हो और पत्नी किसी कल्पना में डूबी हो। ऐसे में निराशा ही हाथ लगती है। 

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यदि पति मिथुन हो और पत्नी कर्क हो तो कुछ ही समय में उनके बुनियादी अन्तर सामने आने लगते है। पति को नित्य नवीनता और उत्तेजना चाहिये। उसके लिये एक स्थान पर या एक विचार पर अधिक समय तक जमे रहना संभव नहीं होता। उसके ऐसे व्यवहार का अर्थ कर्क पत्नी के शांत, घरेलू वातावरण पर अतिक्रमण होता है। पत्नी पति को बांधे रखना चाहती है, जबकि पति किसी बंधन में बंधने को तैयार नहीं होता। इसका घातक परिणाम हो सकता है। 

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मिथुन पति अकारण गैर वफादार नहीं होता, किन्तु उसे स्त्रियों से मिलना जुलना अच्छा लगता है। जरा सी उकसाहट पर उसमें हरजाईपन की भावना जन्म ले सकती है। कर्क पत्नी इसे आवश्यकता से अधिक गंभीर समझती है और भावनात्मक परिदृश्य पैदा कर सकती है। यौन संबंधों में जहां कर्क पत्नी केवल भावनाओं से उत्तेजित होती है, वहीं पति पर मस्तिष्क की तात्कालिक स्थिति का प्रभाव पडता है। पत्नी के व्यवहार में नवीनता न पाकर मिथुन पति अन्यत्र विविधता की तलाश करने लगता है। 

कर्क - कर्क:- 

कर्क राशि भावना प्रधान राशि होने के कारण इस जोडी के संबंधों में भावना की प्रमुख भूमिखा होती है। उनका जीवन अत्यंत सुखमय रह सकता है और इसके विपरीत परिणाम भी हो सकते है। इनका परिणाम इस बात पर निर्भर करता है कि दोनों के विचार कितने मिलते है। दोनों ओर से सहानुभूति की कोई कमी नहीं रहेगी। अतः संकट के समय वे एक दूसरे की सहायता करेंगे। भावना स्पष्ट चिन्तन में बाधा डालेगी, जिससे कोई नीच बात हो जाने पर स्थिति बिगड सकती है। 

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दोनों ही ऐसे समझते है कि वे एक दूसरे के लिए भारी त्याग कर रहे है। दूसरे पक्ष द्वारा इसे स्वीकार न किए जाने पर उनकी भावना चोट पहुंचेगी। दोनों पुरानी घटनाओं को सदा याद रखने वाले है और इससे उनके बीच बार बार झगडे को मिल सकती है। छोटी छोटी बातों पर और गडे मुर्दे उखाडने पर उनका काफी समय नष्ट होगा। तर्क वितर्क में वे शीघ्र समझौते के लिये तैयार हो जाएंगे। दोनों का व्यक्तित्व अत्यन्त जटिल तथा भावना प्रधान होगा। अच्छा है वे जीवन के प्रति अधिक यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाए। 

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उनकी जटिल भावनाएं यौन संबंधों में भी कठिनाई पैदा कर सकती है। ऐसे अवसर दुर्लभ ही होंगे। जब दोनों एक ही बात की इच्छा करेंगे। दोनों एक दूसरे से झुकने की आशा करेंगे और नित नए नाटक खडे कर देंगे। 

कर्क - सिंहः- 

पानी और आग का मेल नहीं हो सकता। लेकिन इस योग में दोनों राशियों के स्वामी चंद्र और सूर्य परस्पर मित्र  है। स्वभाव में अन्तर के बावजूद यह बंधन सुदृढ रहेगा। कर्क व्यक्ति को प्रायः झुकना पडेगा। उधर सिंह के सूर्य में कर्क चंद्रमा को अधिक प्रकाश देने की सामथ्र्य है। सिंह जातक चाहता है कि उसकी प्रशंसा की जाए और उसकी ओर ध्यान दिया जाए। कर्क जातक प्रसन्नता से यह काम कर सकता है। 

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यदि पत्नी कर्क जातिका है और पति सिंह जातक हो तो इच्छानुसार काम न होने पर वे अनेक दिन तक बात नहीं कर पाते है। ऐसी स्थिति में कर्क पत्नी के लिये समझदारी इसी में ही है कि वह अपने नारी सुलभ गुणों से पति को प्रसन्न करे। वह घर में पति की इच्दा का वातावरण प्रदान करके उसकी दुखती रगों को शांत करे। सिंह पति खेलों में भी अपना बहुत समय खराब कर सकता है। पत्नी को उसके खेलों में रूचि लेनी चाहिये। अन्यथा उसकी उपेक्षा हो सकती है या उसके साथ बुरा व्यवहार हो सकता है। कभी कभी सिंह पति को पैसा खर्च करने की लत पड सकती है। इससे कर्क पत्नी की बचत बिगड सकती है। सिंह पति भविष्य की चिंता नहीं करता। वह अपने वर्तमान को जीता है। 

यौन संबंधों में दोनों की भूख में बहुत अंतर होता है। कर्क पत्नी को पति की सहानुभूति और प्यार चाहिये जबकि सिंह पति कभी कभी पशुवत् आचरण कर सकता है। 

यदि पति कर्क जातक है जातक है और पत्नी सिंह जातिका तो प्यार का ज्वार उतरने पर पति के अतिप्रेम से पत्नी चिढने लगती है। सिंह पत्नी घर के कामकाज में अधिक कुशल या पारंगत नहीं होती और पति उसमें खोट निकालते है। लेकिन सिंह पत्नी अच्छी अतिथि सत्कारक होती है। जिसे कर्क पति पसंद करता है। कर्क पति को पानी के खेल अच्छे लगते है। जबकि सिंह पत्नी को उनमें कोई रूचि नहीं होती। पति यह सोचकर खुश होता है कि घर वह चला रहा है, जबकि पत्नी आर्थिक निर्भरता से चिढती है। परिणामस्वरूप उनके बीच अनेक वाद विवाद होते है। 

कर्क पति में कभी कभी शराब और खेल के प्रति एक साथ शौक जाग सकता है। इससे वह शराब पीकर लडखडा सकता है। प्रतीक्षा करती सिंह पत्नी की संभोग इच्छा पूरी करने में असमर्थ रहता है। 

कर्क -कन्याः-

जल का धरती से मेल है। फिर भी, कन्या जातक जल्दबाजी में उलटे-सीधे ढंग से किए गए काम को पसन्द नहीं करता। उसे हर काम करीने से चाहिए। कर्क जातक के अति-संवेदनशील होने के कारण उसके मन को जरा-सी बात पर चोट पहुंचती है। इसलिए कन्या जातक को कर्क जातक की गलती पर उसकी आलोचना से बचना चाहिए। कर्क जातक को भी महसूस करना चाहिए कि प्रेमाभिव्यक्ति में कन्या जातक अधिक दिखावटी नहीं होता।

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यदि पत्नी कर्क जातिका हो और पति कन्या जातक तो पति पत्नी के घरेलू गुणों को सराहेगा। इससे उसे सुरक्षा का अनुभव होगा, लेकिन मित्रों तथा सम्बन्धियों के आते रहने से उसे चिढ़ लग सकती है। सम्बन्धियों के प्रति कन्या जातक का इतना लगाव नहीं होता जितना कर्क जातक का । आर्थिक मामलों में कर्क पत्नियां समझदार होती हैं, किन्तु कन्या पत्नियों की भांति आलोचना नहीं करतीं। दोनों चाहते हैं कि उनका विशेष ध्यान रखा जाए, साथ ही अपने प्रियजनों से बात करते समय शब्दों पर संयम नहीं रख पाते। इससे वे अपना जीवन असह्य बना सकते हैं।

उनके जीवन में यौन-सम्बन्ध प्रमुख भूमिका नहीं निभाएंगे, क्योंकि दोनों में से किसी की यौन-भूख प्रबल नहीं होती है। फिर भी इससे उनके जीवन में कोमलता आएगी । इस बात की भी सम्भावना रहती है कि छोटे-मोटे झगड़े उनके सम्बन्धों की मधुरता को नष्ट कर दें।

यदि पति कर्क जातक है और पत्नी कन्या जातिका, तो एक ओर जहां पति अपनी रंगीली भावनाओं में डूबा रहेगा वहां पत्नी पर उसकी बुद्धि हावी रहेगी। इससे उनका जीना दूभर हो जाएगा। पत्नी को पति का भावनात्मक उत्साह निरर्थक और भीतकारी प्रतीत होगा। पति के माता-पिता तथा बहनों के प्रति अनुरक्ति भी दोनों के बीच विवाद का कारण हो सकती है। दो बातें अवश्य दोनों में समान होंगी-आर्थिक मामलों में फूंक-फूंककर कदम रखना और घर से प्यार ।

यौन सम्बन्धों में भी कर्क पति की अति-संवेदनशीलता समस्याएं पैदा कर सकता है। पत्नी को इतना उत्साही न पाकर वह उसे ठण्डी और संवेदनारहित समझ सकता है।

कर्क-तुला-

जल और वायु में अधिक तालमेल नहीं है, किन्तु दोनों राशियों के स्वामी चन्द्र और शुक्र में अनेक बातें समान हैं और उनकी निभ जाती है। कर्क जातक के मन को बहुत जल्दी चोट पहुंचती है, लेकिन तुला जातक उत्तेजना दिलाए बिना जानबूझकर संघर्ष पैदा करने वाला कोई काम नहीं करेगा। हां, तुला जातक भावना और तर्क के बीच सन्तुलन पसन्द करता है, अतः कर्क जातक की अत्यधिक भावना से कभी-कभी परेशान हो सकता है।

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यदि पत्नी कर्क जातिका है और पति तुला जातक तो उनके बीच किसी निर्णय पर पहुंचना कठिन होगा। पति बात को आगे बढ़ाता है जबकि पत्नी उसे टालती है । तुला जातक साझेदारी निभाने की चुनौती को स्वीकार कर इस दिशा में काफी प्रयास करेगा। वह नारी की इच्छाओं का पूरा पारखी होता है। किन्तु उसे अपना बनाए रखने के लिए कर्क पत्नी को अपनी बुद्धि का विकास करना होगा। तुला जातक बहुत शीघ्र बेचैन हो उठता है और ऊब जाता है । उसकी आंखें हमेशा नए शिकार की खोज में रहती हैं। अतः उसे वश में रखने के लिए कर्क पत्नी को सदा आकर्षक बने रहना होगा। तुला पति के लिए यौनाचार का भारी महत्व है और पत्नी उसे इस दिशा में व्यस्त रख सकती है। उसका रंगीला दृष्टिकोण ही काफी नहीं होगा। तुला पति को तरह-तरह की यौन विकृतियों के विचार से उत्तेजना मिल सकती है जबकि कर्क पत्नी का मन उनके प्रति विद्रोह करेगा।

यदि पति कर्क जातक है और पत्नी तुला जातिका, तो पत्नी का सामाजिक जीवन के प्रति प्रबल उत्कंठा पति के घरेलू जीवन में आनन्द लेने की प्रवृत्ति से टकराएगी। जितना पत्नी पति को घर से बाहर खींचने का प्रयास करेगी, उतना ही पति और अपनी जिद पर अड़ता जाएगा। अन्त में पत्नी सामाजिक जीवन में आनन्द लेना प्रारम्भ कर देगी और पति अपनी उदास घड़ियां घर में बिताएगा। बहस का भी कोई लाभ नहीं होगा। पति भावना से काम लेगा और पत्नी बुद्धि से। कर्क पति को तुला पत्नी का कपड़ों तथा साज-श्रृंगार पर व्यय भी पसन्द नहीं आएगा। उसकी समझ में यह बात नहीं आएगी कि इससे पत्नी का अहम् सन्तुष्ट होता है और उसमें अधिक नारी-भाव का विकास होता है, न यह कि साज- श्रृंगार उसके व्यक्तित्व का महत्वपूर्ण अंग है। कर्क पति की रुचि किसी खेल में हो सकती है लेकिन पत्नी को घण्टों खड़े-खड़े उसका खेल देखना नहीं भाएगा।

उसका यौन-जीवन दिल और दिमाग का निरन्तर टकराव होगा। तुला पत्नी कर्क पति की भावना को नहीं समझ सकती और कर्क पति मानसिक उत्तेजना के लिए तुला पत्नी की आवश्यकता को नहीं समझ पाएगा।

कर्क-वृश्चिक- 

पानी का पानी के साथ मेल स्वाभाविक है, किन्तु इन राशियों के मेल में तर्क और तथ्य के स्थान पर भावनाएं हावी रहेंगी। दोनों में तालमेल होने पर यह जोड़ी काफी रचनात्मक बन सकती है । यदि टकराव हुआ तो भावनाओं पर कोई अंकुश नहीं रह जाएगा और स्पष्ट चिन्तन धूमिल हो जाएगा। दोनों ही राशियों के जातकों में अतीन्द्रिय ज्ञान होता है और वे एकदूसरे के मन की बात को समझ सकते हैं। इसलिए उनके बीच विश्वास होना आवश्यक है । वृश्चिक जातक कठोर और निरंकुश हो सकता है, यह समझने का कर्क जातक का अपना ढंग है।

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यदि पत्नी कर्क जातिका है और पति वृश्चिक जातक, तो पति पत्नी को सम्पूर्ण हृदय से प्यार करते हुए भी उस पर ईष्र्यालु दृष्टि रखेगा। कर्क पत्नी प्रायः उसे सन्देह या अविश्वास का कोई कारण नहीं देगी। वृश्चिक पति कठोर परिश्रम करने वाला होता है और दिन भर की थकान के बाद उसे घर में चैन चाहिए। वह दूसरी स्त्री की ओर नहीं देखेगा। लेकिन अपनी पत्नी से सभी कुछ चाहेगा। ऐसे अवसर भी आ सकते हैं जब कर्क पत्नी के मेहमानों पर अधिक ध्यान देने से वृश्चिक पति के मन में ईष्र्यालु जाग उठे। कर्क पत्नी आमतौर से कठोर आलोचक होती है लेकिन वृश्चिक पति के लिए उसके मन में भारी आदर का भाव रहता है।

यौन सम्बन्धों में वृश्चिक पति कर्क पत्नी को अन्य राशियों की पत्नियों की अपेक्षा अधिक प्रसन्न कर सकता है। पत्नी भी स्वयं को अधिक उन्मुक्तता से और अधिक उत्साह से अभिव्यक्त कर पाती है।

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कर्क पति और वश्चिक पत्नी की जोड़ी भी इतनी ही सफल रहने की भावना है । पति प्रबल, दृढ़ संकल्प वाली पत्नी को हर प्रकार से सन्तुष्ट करने में समर्थ होता है और उसके साथ पत्नी भावनात्मक सुरक्षा का अनुभव करती है। फलस्वरूप उसका ईष्र्यालु और संदेहशील स्वभाव शांत होता है। आर्थिक समस्याओं के बारे में भी दोनों एक ही तरह से सोचते है और कर्जदार उनके घर के चक्कर नहीं काटते। पति के लिये घर ही सब कुछ होता है और बाहर जाने के बजाय दोनों अपनी शाम घर में ही बिताना पसंद करते है। उनकी सामाजिक रूचियां भी समान ही होती है। 

भावनाओं पर आधारित होने के कारण उनका यौन-जीवन नीरस होने की सम्भावना कम ही होती है। उसमें पति-पत्नी दोनों की आवश्यकताओं की पूर्ति से उन्हें परम सन्तोष मिलता है।

कर्क-धनुः-

आग और पानी का यह मेल दोनों के स्वभाव में भारी अन्तर को प्रकट करता है। ऐसा लगता है जैसे वे दो अलग-अलग दुनिया में जी रहे हो। धनु जातक बहुत स्वच्छन्द और स्वतन्त्रता प्रिय होता है। कर्क जातक उसे घर से बांधकर नहीं रख सकता। उसकी स्वतन्त्रताप्रियता के कारण कर्क जातक स्वयं को असुरक्षित अनुभव कर सकता है। दोनों अपने-अपने ढंग से उदार हैं। कर्क जातक में चिपकने की प्रवृत्ति होती है, जिससे धनु जातक स्वयं को जाल में फंसा समझ सकता है।

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यदि पत्नी कर्क जातिका है और पति धनु-जातक तो दोनों को गरमा-गरम वाद-विवाद के लिए प्रस्तुत रहना चाहिए। धनु पति बहुत सक्रियता वाला जीवन पसन्द करता है। वह चाहता है कि इसमें पत्नी भी उसका साथ दे। कर्क पत्नी से इसकी आशा कम ही है । धनु जातक के लिए प्रेम का मतलब यह नहीं कि वह अन्य स्त्रियों से मिलजुल नहीं सकता। उसके ऐसा करने पर कर्क पत्नी हंगामा खड़ा करने लगती है। पति महसूस करने लगता है कि उसने ऐसी पत्नी चुनकर गलती की है।

यौन-व्यवहार में धनु पति बहुत सक्रिय रहता है। इसमें उसे विशेषता प्राप्त होती है और एक चुनौती समझकर शीघ्र सन्तुष्ट हो जाने वाली पत्नी को भी देर तक उत्तेजित करने में सफल हो जाता है। दोनों के सम्बन्धों में प्यार और घृणा साथ-साथ चलते हैं।

यदि पति कर्क जातक हो और पत्नी धनु जातिका तो शुरू-शुरू में दोनों एक दूसरे के प्रति आकर्षित हो सकते हैं, किन्तु फिर शीघ्र ही अपनी भूल महसूस लगेंगे। इस सम्बन्ध में पत्नी को सामाजिक जीवन चाहिए और पति घर में रहना पसन्द करता है। पति के सोच-समझकर पैसा खर्च करने की प्रवृति को उसकी कंजूसी समझ सकती है और कुछ अधिक ही खर्च की प्रवृत्ति प्रदर्शित कर सकती है।

यौन-सम्बन्धों में भी वे एक-दूसरे के अनुकूल सिद्ध नहीं होते। पति की भावनाएं अत्यन्त तीव्र और रूमानी होती हैं। इससे पत्नी में यह भाव पैदा हो सकता है कि वह पति को अपनी छोटी उंगली पर नचा सकती है । इस खेल से ऊबकर वह अधिक चुनौतीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास करेगी और एक निराश तथा टूटे हुए पति को घर में छोड़ जाएगी।

कर्क-मकर-

पानी का पृथ्वी से तालमेल बैठ जाता है, किन्तु राशिचक्र में ये दो राशियां आमने-सामने होने से न केवल वे एक-दूसरे की पूरक हो सकती हैं बरन् उनके बीच तीव्र प्रतियोगिता भी जन्म ले सकती है। जब मकर जातक अपनी महत्वाकांक्षा तथा सफलता को सर्वोपरि समझेगा तब कर्क जातक स्वयं को उपेक्षित या चोट खाया अनुभव करेगा। कर्क जातक मकर जातक में कर्तव्य और उत्तरदायित्व की भावना को सराह सकता है, किन्तु कभी-कभी मकर जातक में उन भावनाओं, हार्दिकता और प्यार का अभाव होता है, जिन्हें कर्क जातक अत्यन्त महत्वपूर्ण समझता है।

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यदि पत्नी कर्क जातिका है और पति मकर जातक, तो उनके बीच आर्थिक समस्याएं पैदा होने की सम्भावना नहीं है। दोनों रुपए-पैसे को सोच-समझकर खर्च करने वाले हैं। लेकिन मकर पति का धंधा उनके यौन सम्बन्धों में हस्तक्षेप कर सकता है। उसे शैय्या पर भी अपने कागज-पत्र पढ़ना अच्छा लग सकता है। पत्नी यदि चतुर है तो वह ऐसे में पति के व्यावसायिक कागजों में कुछ उत्तेजक साहित्य भी छिपाकर रख देगी। पति इसका संकेत स्वयं समझ सकता है।

यदि पति कर्क जातक है और पत्नी मकर जातिका, तो पति पत्नी की महत्वाकांक्षी प्रवृत्तियों से परेशान हो उठेगा और अपने घेरे में बन्द हो जाएगा जिससे पत्नी उससे मन की बात न कह सके। पति के स्वप्नशील और रूमानी मन को पत्नी अयथार्थवादी कहकर उसे चोट पहुंचा सकती है। हां, दोनों के बीच आथिक समस्याएं पैदा होने की संभावना नहीं है। उनके पास कितना भी कम पसा हो, वे जन्म दिन जैसे अवसर मनाना नहीं भूलेंगे। यह पति-पत्नी के सम्बन्धों को अधिक घनिष्ठ कर सकता है।

यदि पत्नी यौन सम्बन्धों में पति को प्रसन्न रखना चाहती है तो उसे अपने अन्दर रूमानीपन पैदा करना होगा। उधर पत्नी के निराशा के दौर में उसकी उदासीनता पति को स्वीकारनी होगी। कर्क जातक अत्यन्त जिद के होते हैं और वे पत्नी को अपने से और दूर कर सकते हैं।

कर्क-कुम्भ-

कर्क के स्वामी चन्द्र और कुम्भ के स्वामी यूरेनस के बीच कोई समानता नहीं है । कर्क जातक की संवेदनशील और चिपकू भावनाएं जातक को परेशान कर सकती हैं। उसे स्वतन्त्र और बेलगाम कार्यवाही के लिये समय चाहिए। एक प्रकार से कुम्भ जातक व्यक्ति-प्रेमी न होकर विश्व प्रेमी होता है, जो मित्रों तथा मानवता को अपनी दिलचस्पियां और प्यार बांटना चाहता है।

यदि पत्नी कर्क जातिका है और पति कुम्भ जातक हो तो पति दुनिया के साथ-साथ अपनी पत्नी को सुधारने का भी बीड़ा उठाएगा। जिद्दी पत्ना भला इस कैसे स्वीकार कर सकती है ! उसे अपने अतीन्द्रिय ज्ञान पर गर्व है और पति का अपने तर्क पर। मतभेद होना ही है। कुम्भ जातक सत्य को सर्वोपरि समझता है। पत्नी के मन में इससे गलतफहमी हो सकती है। उसे अपने गिले-शिकवे अधिक सही लगते हैं और अधिकांश का लक्ष्य बेचारा पति ही होता है ।

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यौन की भूख दोनों में प्रायः समान होती है, किन्तु पत्नी को सीखना होगा कि पति को किस प्रकार घर में रखा जाए । अन्यथा कोई अन्य दिलचस्पी उसे बाहर खींच ले जाएगी।

यदि पति कर्क जातक है और पत्नी कुम्भ जातिका, तो पति के सामने पत्नी को घर में बांधे रखने की समस्या होगी। पत्नी मिनटों में घर का काम निपटाकर किसी सभा-समारोह में जाने की प्रवृत्ति दिखाएगी और पति चाहेगा कि वह घर को अधिक समय दे। पति की अधिकार-भावना का भी उस पर कोई प्रभाव नहीं होगा। आर्थिक दृष्टिकोण उनके बीच तनाव का एक और कारण होगा। कर्क पति पैसे को दांतों से पकड़ता है और कुम्भ पत्नी के पास रुपए-पैसे के बारे में सोचने को शायद ही समय हो। घर में भी दोनों की रुचियां भिन्न होंगीं । पति विगत के बारे में सोचेगा, सुन्दर पूरा वस्तुएं एकत्र करेगा। पत्नी केवल भविष्य की बात सोचेगी।

यौन-सम्बन्ध भी स्थिति को संभालने में अधिक सहायक नहीं होंगे। पति की संवेदना पत्नी के लिए अत्यन्त तीव्र हो सकती है। अधिक रूमानीपन दिखाने पर पत्नी केवल उपहास ही कर सकती है जिससे पति की भावना चोट पहुंचेगी।

कर्क-मीन-

यह मेल दो जल राशियों का है, अतः उनके सम्बन्धों में तर्क और समझदारी के स्थान पर भावनाओं और अतीन्द्रिय ज्ञान का अधिक बोलबाला रहेगा। व्यावहारिक आवश्यकताएं उलट-पुलट सकती हैं। दोनों बहुत रूमानी हैं और प्यार पाना तथा करना उनकी बुनियादी जरूरत है।

पत्नी कर्क जातिका और पति मीन जातक होने पर दोनों के लिए एकदूसरे को बिना अधिक प्रयास के समझना सरल होगा। मीन पति के मन में हर संकटग्रस्त प्राणी के लिए सहानुभूति उमड़ पड़ेगी। फलस्वरूप उनका घर आवारा कुत्तों, बिल्लियों या निराश्रित पशु-पक्षियों का चिड़ियाघर बन सकता है।

निराशा के दौर में मीन पति में पीने तथा धुआं उड़ाने की प्रवृत्ति पनप सकती है तथा उसे काफी देखभाल की आवश्यकता है। यह सब अधिक वितंडावाद के बिना होना चाहिए। कर्क पत्नी में विद्यमान ममता की भावना का इसमें सदुपयोग हो सकता है।

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यौन-व्यवहार में कल्पना की महत्वपूर्ण भूमिका रहने की सम्भावना है। उसका उपयोग रूमानी ढंग से होगा जो दोनों के बीच प्रबल शारीरिक आकर्षण पैदा कर सकता है।

पति कर्क जातक और पत्नी मीन जातिका होने पर भी उनके बीच घनिष्ठ सम्बन्धों के लिए अच्छा आधार रहता है। दोनों को सुखी घरेलू जीवन चाहिए। उनका काफी समय अपने घर की साज-संवार में और उसे अधिक सुविधाजनक बनाने में बीतेगा। कल्पना उन्हें और निकट लाएगी क्योंकि वे एकदूसरे की आशाओं तथा सपनों में भागीदार हो सकते हैं।

उनका यौन-जीवन कोमल भावनाओं से पूर्ण होगा, जिसमें पाशविक इच्छा के बजाय रूमानीपन की प्रेरणादायी शक्ति रहेगी। इस युगल की सफलता की भारी सम्भावनाएं हैं।


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Monday, 21 December 2020

Kark rashi ka sampurn parichaya / कर्क राशि का संपूर्ण परिचय

Posted by Dr.Nishant Pareek

Kark rashi ka sampurn parichaya  


 कर्क राशि का संपूर्ण परिचय

कर्क राशि के अंतर्गत आने वाले नामाक्षर निम्न हैः- ही, हू, हे, हो, डा., डी, डू, डे, डो।

राशि चक्र में चैथी राशि कर्क राशि है। इसके अलावा इसे कीट, कूर्म, चांद्र, कर्कट, कुलीर, षोडशांघ्रि, अपत्यशत्रु, जम्बालनीड, षोडशपाद, सलिलचर, शशांकभ आदि भी कहते है। अंग्रेजी में इसे कैंसर कहते है। 

इस राशि का प्रतीक चिन्ह केकडा है। यह चर राशि है। इसका विस्तार राशिचक्र के 90 अंश से 120 अंश तक है। इसका स्वामी चंद्रमा है। जल तत्व है। इसके तीन द्रेष्काणों के स्वामी क्रमशः चंद्र, मंगल व गुरू है। इसके अन्तर्गत पुनर्वसु नक्षत्र का अन्तिम चरण, पुष्य नक्षत्र के चारों चरण तथा आश्लेषा नक्षत्र के चारों चरण आते है। इन चरणों के स्वामी क्रमशः इस प्रकार है- पुनर्वसु चैथा चरण - गुरू चंद्र, पुष्य पहला चरण - शनि सूर्य, दूसरा चरण- शनि बुध, तीसरा चरण - शनि शुक्र, चैथा चरण- शनि मंगल, आश्लेषा पहला चरण- बुध गुरू, दूसरा चरण - बुध शनि, तीसरा चरण- बुध शनि, चैथा चरण- बुध गुरू। इन चार चरणों के नामाक्षर इस प्रकार है- ही, हू, हे, हो, डा., डी, डू, डे, डो।

त्रिशांश विभाजन में 0- 5 अंश शुक्र के, 5 - 12 अंश बुध के, 12- 20 अंश गुरू के, 20 - 25 अंश शनि के, तथा 25 - 30 अंश मंगल के है। 

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जिन व्यक्तियों के जन्म के समय निरयण चंद्रमा कर्क राशि में भ्रमण कर रहा हो, उनकी जन्म राशि कर्क होती है। उन्हें गोचर में अपने फलादेश इसी राशि के अनुसार देखने चाहिये। जन्म के समय लग्न कर्क राशि में होने से भी यह अपना प्रभाव दिखाती है। सायन सूर्य 22 जून से 22 जुलाई तक कर्क राशि में रहता है। यही अवधि शक् संवत के आषाढ मास की होती है। ज्योतिष के अनुसार इन तिथियों में दो एक दिन का अंतर अवश्य आ सकता है। जिन व्यक्तियों की जन्म तिथि इस अवधि के बीच में है, वे पश्चिमी ज्योतिष पर आधारित फलादेशों के लिये कर्क राशि देख सकते है। निरयण सूर्य लगभग 17 जुलाई से 17 अगस्त तक कर्क राशि में रहता है। 

जिनकी जन्म कुंडली नहीं है या जन्म विवरण ज्ञात नहीं है, वे लोग अपने प्रसिद्ध नाम के पहले अक्षर के अनुसार अपनी राशि स्थिर कर सकते है। इस तरह कर्क जातकों को भी चार भागों में बांट सकते है- चंद्र कर्क, लग्न कर्क, सूर्य कर्क तथा नाम कर्क। इन चारों वर्गों में कर्क राशि की कुछ न कुछ प्रवृतियां जरूर होती है। ग्रहमैत्री चक्र के अनुसार कर्क राशि सूर्य, मंगल, तथा गुरू के लिये मित्र राशि, और बुध, शुक्र, तथा शनि के लिये शत्रु राशि है। इस राशि में गुरू अपनी उच्च तथा मंगल नीच अवस्था में होता है। शनि के लिये यह अस्त राशि है। 

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प्रकृति और स्वभावः-
कर्क जल त्रिकोण की पहली राशि है। प्राचीन विद्वानों के अनुसार इस समय सूर्य केकडे की तरह आकाश में आगे बढता है और पीछे हटता हुआ दिखाई देता है। कर्क का यह गुण बहुत कुछ इस अवधि में उत्पन्न लोगों में भी दिखाई देता है। वे अपने काम में आगे पीछे होते हुए दिखाई देते है। यह प्रवृति उनके भाग्य में भी दिखाई देती है। जीवन में उतार चढाव आते रहते है। उनका यह स्वभाव कर्क राशि के स्वामी चंद्र के स्वभाव से भी समझा जा सकता है। जो कि माह में पंद्रह दिन बढता है और पंद्रह दिन घटता है। 

कर्क जातकों की प्रवृति और स्वभाव समझने के लिये हमें कर्क के एक और विशेष गुण पर ध्यान देना चाहिये। कर्क जब किसी वस्तु को अपने पंजों में जकड लेता है तो फिर वह उसे किसी भी दशा में नहीं छोडता। भले ही उसे अपना पंजा गंवाना पडे। कर्क जातको में अपने पे्रम पात्रों तथा विचारों से चिपके रहने की प्रबल भावना होती है। यह भावना उन्हें ग्रहणशीलता, एकाग्रता व धैर्य के गुण प्रदान करती है। 

स्वभाव के अनुसार कर्क जातक बहुत ही संवेदनशील होते है। दूसरों की कही जरा सी बात की भी वो गहरी प्रतिक्रिया करते है। घंटों तक उसी बात के बारे में सोचते रहते है। उनकी सोच बदलने में समय नहीं लगता। उनमें असीम कल्पना शक्ति होती है। वे कुछ भी, किसी भी हद तक सोच सकते है। अपनी कल्पना के बल पर वे छोटी छोटी बातों को भी बडा बना सकते है अपितु दूसरों को भी दिखा सकते है। इनकी याद्दाश्त बहुत तेज होती है। जो कि इनके लिये अनेक बार घातक भी होती है। 

कर्क जातकों को अपने परिवार के, विशेषकर पत्नी तथा पुत्र के प्रति प्रबल मोह होता है। इनके बिना उनका जीवन अधूरा रहता है। वे दोस्ती को भी जीवनभर निभाने में विश्वास रखते है। वे अपनी इच्छा के स्वामी होते है और उपर से किसी प्रकार का अनुशासन थोपा जाना पसंद नहीं करते है। 

कर्क जातक दब्बू ओर एकान्त प्रिय होते है। इससे उनमें तीव्र परिवर्तनों के लिये पहल करने की भावना पर अंकुश लगता है। जीवन में यदि कोई असामान्य या परंपरा से अलग बात अपनानी हो तो वे रूढिवादी रंग ढंग को ही पसंद करेंगे, किन्तु अपने मानसिक तथा दैनिक दृष्टिकोणों और मान्यताओं के प्रति वे असाधारण साहस का परिचय दे सकते है। उनमें संकटग्रस्त लोगों के प्रति भी भारी सहानुभूति पाई जाती है। चिन्ता करना उनकी पैदायशी आदत होती है और चिन्ता ही उनकी सबसे बडी शत्रु होती है। ये जातक प्रायः उच्च पदों पर पहुंचते है या बहुत प्रसिद्धि प्राप्त करते है। एक बार उंचाई पर पहुंचने के बाद ये लोग अपने हाथ से उस पद या सम्मान को जाने नहीं देते। प्रचार की चकाचैंध से बच पाना इनके लिये कठिन होता हैै। ये उच्च कोेटि के कलाकार, लेखक, संगीतज्ञ या नाटककार बनते है। कुछ व्यापारी या अच्छे मनोवैज्ञानिक भी बनते है। इसके अलावा गुप्त विद्याओं में, धर्म या किसी असाधारण जीवन दर्शन में गहरी रूचि लेते है। 

आमतौर पर वे बडी बडी योजनाओं का सपना देखते है। दूसरो के भले के लिये बडे बडे आदर्श कायम करते है। किन्तु विरोध या आलोचना से उनके मन को भारी ठेस पहंुचती है। उस समय वे अपने को स्वयं में ही सीमित कर लेते है। इन जातको में कुरीतियों का विकास होने पर वे अपनी इच्छा के वश में हो जाते है। भावनाओं में बहकर अन्तः विरोधों को जन्म देते है। स्वयं को अत्यधिक महत्व देकर वे दूसरों की सहानुभूति तथा मैत्री खो देते है। दूसरों को आकर्षित करने के लिये वे प्रायः रोगपीडा का बहाना भी बनाते है। उनकी संभोग इच्छाओं पर भी उनकी कुप्रवृतियों का प्रभाव पडता है। 

कर्क स्त्रियों में पुरूषों के समान ही गुण होने के साथ साथ मातृत्व की विशेष प्रवृति होती है। इसमें भी असफल रहने पर वे अपने घेरे में सिमट जाती है और परिवार पर बोझ बन जाती है। कर्क राशि का स्वामी चंद्रमा होने से हर कर्क जातक में कुछ न कुछ स्त्रियों के गुण अवश्य होेते है तथा आत्मपीडन की आदत जरूर होती है। कर्क राशि का स्वामी चंद्रमा प्रकाश ग्रह है किन्तु वह उधार के प्रकाश से ही चमकता है। यदि उसके प्रकाश स्त्रोत से उसका संबंध काट दिया जाये तो उसका चमकना बंद हो जायेगा। 

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आर्थिक क्षेत्रः-
कर्क जातक परिश्रमी और उद्यमी होते है। लेकिन प्रायः उनमें सट्टेबाजी की प्रवृति पाई जाती है। शेयरों में हानि उठाने से जमे जमाए व्यापार को चैपट कर बैठते है। उनके जीवन में आर्थिक क्षेत्र में अप्रत्याक्षित क्षेत्र में अप्रत्याक्षित परिवर्तनों की आशंका बनी रहती है। अतः कम पूंजी पर बडी आय का प्रलोभन देने वाली संस्थाओं से उन्हें सावधान रहना चाहिये। बिना सोचे समझे चाहे जिस कागज, करार या समझौते पर हस्ताक्षर करने से भी बचना चाहिये। 
कर्क जातकों को प्रायः अप्रत्याशित सूत्रों या विचित्र साधनों से और अजनबियों के सम्पर्क में आने से आर्थिक लाभ होता है। उन्हें तेल शोधन, कोयला, जहाजरानी, रेडियम, बिजली, पुरातन वस्तुओं आदि में पैसा लगाने से सफलता मिलती है। जन उपयोगी की बडी बडी कम्पनियों में पैसा लगाना भी उनके लिये लाभदायक रहता है। कुछ अन्य आर्थिक क्षेत्र, जिनमें वे सफल रह सकते है, वो है- दवाओं व द्रव्यों का आयात, अन्वेषण तथा खोज, भूमि तथा खानों का विकास, रेस्तरां, पानी से प्राप्त होने वाली वस्तुओं दुग्ध पदार्थ आदि। राशिचक्र की चैथी राशि में जन्म लेने के कारण कर्क जातक वैदिक साहित्य तथा प्राचीन वाड्मय के अनुशीलन का कार्य भी कर सकते हैै। पानी के निकट रहने पर विशेष आनन्द का अनुभव होता है। 

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मैत्री व  प्रेम  संबंधः- 
कर्क जातक अच्छे मित्र साबित होते है और आजीवन दोस्ती निभाने का प्रयास करते है। प्रेम के संबंध में वे अत्यंत भावुक और संवेदनशील होते है। उनके मस्तिष्क में वर्षों पुरानी छोटी छोटी यादें भी जमा रहती है। उनके उनके स्वभाव बहुत स्नेह भरे होते है। वे उनका बहुत कम दिखावा करते है। इससे प्रायः उन्हें क्रूर और भावनाहीन की उपाधि भी मिल जाती है। अपने परिवार के प्रति वे पूरी तरह समर्पित होते है। 

यह सही है कि कर्क जातक से अधिक भावुक और कल्पनाशील प्रेमी दूसरा कोई नहीं हो सकता। लेकिन वे स्वभाव से शर्मीले होते है। और अवज्ञा या अपमान सहन नहीं कर सकते। इससे अनेक गलतफहमियां भी पैदा हो सकती है। किन्तु अंततः वे सभी रूकावटों को दूर करने में सफल होते है और एक स्थायी तथा संतुष्टिदायक संबंध की नींव पड जाती है। 

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स्वास्थ्य और खानपानः- 
कर्क जातक बचपन में लगभग दुबले पतले ही होते है। किन्तु आयु के साथ साथ उनके शरीर का भी विकास होता जाता है। उनका चेहरे का आकार बडा होता है और उसमें हड्डियां उभरी रहती है। हाथ पांव पतले और शरीर के अनुपात में लंबे होते है। कपाल बडा होता है। निचला जबडा आगे को उभरा रहता है। मुंह चैडा और नाक उपर को उठी रहती है। बाल भूरे होते है और दोनों आंखों के बीच बडा अन्तर रहता है। बौने आमतौर से इसी राशि में पैदा होते है। 

कर्क राशि कालपुरूष के वक्षस्थल और पेट का प्रतिनिधित्व करती है। अतः कर्क जातकों के भोजन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। वे बहुभोजी हो सकते है। जिससे उनका पेट बडा और आगे निकला हो सकता है। निराशा की स्थिति में अथवा मित्र मंडली में बैठकर उनमें मद्यपान की प्रवृति भी पाई जाती है। चिन्ता उनकी सबसे बडी शत्रु होती हे। इससे उनकी पाचन शक्ति बिगड सकती है और इसका प्रभाव रक्त संचार पर पडता है। अधिक कल्पना शक्ति के कारण कर्क जातक प्रायः सपनों के जाल बुनते रहते है। जिसका उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है। 

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 जिन रोगों से विशेष रूप से पीडित होने की संभावना रहती है, वो इस प्रकार है- 
फेफडों के रोग, फलू, खांसी, दमा, श्वास रोग, प्लूरिसी, क्षय, उदर रोग, बेरी बेरी, स्नायविक दुर्बलता, भय भावना, मिर्गी, पीलिया, पित्ताशय में अवरोध, आंतों में कीडें, छाती में फोडे फुंसी, जलोदर, कैन्सर, गठिया आदि। इन लोगों के अधिकांश रोग अधिक भावुकता के कारण अनियंत्रित भावनाओं तथा उदासी के दौरों से होते है। उन्हें भविष्य की चिन्ता और भय की भावना से बचना चाहिये। 

द्रेष्काण , नक्षत्र तथा त्रिशांशः- 
कर्क लग्न के प्रथम द्रेष्काण में जन्म होने पर जातक पर दुहरे चंद्रमा का प्रभाव होता है और उसमें कर्क राशि की प्रवृतियां अधिक प्रमुखता से दिखाई देती है। यदि लग्न दूसरे द्रेष्काण में हो तो जातक को अधिक आवेगी और जिद्दी बनाता है। तीसरे द्रेष्काण में लग्न हो तो उस पर चंद्रमा के साथ गुरू का भी प्रभाव रहता है। इससे उसमें कुछ संतुलन तो आता है किन्तु वह अधिक मूडी भी हो जाता है। उसके मन में प्रायः दो विरोधी विचारों का द्वन्द्व चलता रहता है। 
कर्क राशि के अन्तर्गत पुनर्वसु का अन्तिम चरण, पुष्य के चारों चरण तथा आश्लेषा के चारों चरण आते है। पुनर्वसु का चैथा चरण जातक को अधिक अस्थिर करता है। उसमें अहम् की मात्रा बढ जाती है। दूसरे चरण में उसकी भावनात्मकता कम होकर उसका स्थान कुछ गंभीरता व बौद्धिकता ले लेती है। तीसरा चरण उसे संतुलित बनाता है तथा चैथे चरण में उसमें पुनः आवेग के लक्षण बढ जाते है। आश्लेषा नक्षत्र का पहला चरण उसे साहित्यिक खोज की ओर प्रवृत कर सकता है। दूसरे चरण से उसमें महत्वकांक्षा में वृद्धि होती है। तीसरे चरण में चंद्र होने से उसमें जन कल्याण के भावों का उदय होता है। जबकि चैथे चरण में जन्म उसे देशाटन और नई खोजों की प्रवृति प्रदान करता है। 
कर्क जातिका के लिये शुक्र का त्रिशांश 0-5 डिग्री उसे अधिक संभोग प्रिय बनायेगा। बुध का त्रिशांश 5- 12 डिग्री उसमें शिल्प और कला के प्रति अभिरूचि पैदा करेगा। गुरू का त्रिशांश 12 - 20 डिग्री आयु तथा पुत्रों को सीमित करता है। शनि का त्रिशांश 25 - 30 डिग्री हो और चंद्रमा को पापग्रह देखते हो तो ऐसी स्त्री अपने पति के नियंत्रण में नहीं रहती। 

विशेषः- 
भारतीय ज्योतिषियों ने कर्क राशि का वर्ण पाटल या श्मामलता लिये ललाई माना है। इसके स्वामी चंद्रमा का श्वेत वर्ण वाले है। चंद्रमा का रत्न मोती है। जिसे चांदी में बनवाकर पहना जाता है। कर्क राशि उत्तर दिशा की द्योतक है। कर्क राशि के स्वामी चंद्रमा का मूलांक 2 है। यह अंक द्वैध का प्रतीक है। मूलांक 7 के साथ इसका विशेष संबंध है। कर्क जातक के जीवन में ये दोनों अंक प्रमुख भूमिका निभाते है। यह राशि सोमवार का प्रतिनिधित्व करती है।
 
कर्क राशि निम्न वस्तुओं की द्योतक है- 
दूध तथा दूध से बने पदार्थ, चांदी, चाय, पैटोल, सभी द्रव पदार्थ, फल, जिनमें केला विशेष, रबड, गोभी, मशरूम आदि। नहर, नदी - नाले, समुद्र, कुएं, झरने, खाइयां, दलदल, मत्स्यशाला, डेयरीफार्म, गाडियों के अड्डे, नालियां, समुद्रवर्ती खेत आदि। जहाज - कर्मचारी, व्यापारी, रेस्तरां तथा चायघरों के मालिक, नर्स, मैट्रन, इतिहासकार, शिक्षक, उपदेशक, वक्ता आदि।  


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