Mithun rashi ke anya rashi walo se vivah sambandh kaise rahenge , Janiye is lekh me
मिथुन राशि के अन्य राशि वालों से विवाह संबंध कैसे रहेंगे, जानिये इस लेख में
मिथुन - मेष:-
अग्नि का वायु के साथ मेल ठीक बैठता है। मिथुन जाताकों की हाजिर जवाबी मेष जातकों की संघर्षशील भावना का जोड सिद्ध होती है। दोनों विविधता, कर्मठता और नई नई बातों की खोजों को पसंद करते है। जिससे दोनों की रूचियां समान रहती है और उनका जीवन उबाउ नहीं हो पाता। लेकिन इन संबंधों को स्थायी बनाने के लिये दोनों ओर से काफी लेन देन की आवश्यकता होती है।
यदि पति मेष जातक हो और पत्नी मिथुन जातिका हो तो पत्नी पहले तो ऐसे पुरूष के चरित्र की दृढता, निद्र्वन्द्वता, आत्मविश्वास, पे्रम या व्यापार के मामले में शीघ्र निर्णय और नई नई योजनाओं के लिये उसकी पहल से काफी प्रभावित होती है। ये बातें उसे अपने व्यक्तित्व के अतुल्य ही लगती है। लेकिन पति शीघ्र ही उस पर हावि होने लगती है। जब इस नये अनुभव का नशा उतरने लगती है तो पत्नी उबने लगती है। रूचियों में भिन्नता से उसकी निराशा और भी बढ जाती है। पति को कला के प्रति पत्नी की रूचि अच्छी नहीं लगती और पत्नी को पति खिलाडीपन पसंद नहीं आता। किसी किसी दिन दोनों में तू तू मैं मैं भी हो जाती है। लेकिन वे अधिक समय तक उसे याद नहीं रखते।
मेष जातक का पे्रम प्रदर्शन का तरीका भी मिथुन जातिका के लिये बहुत अधिक हो सकता है और वह उसके प्रति उदासीन हो सकती है। यदि यही स्थिति अधिक काल तक चलती रही तो पति पत्नी को ठंडी भी समझ सकता है। मेष पति के लिये मिथुन पत्नी की मानसिकता को समझना कभी संभव नहीं है। परिणामस्वरूप उनके बीच यौन समस्यायें पैदा हो सकती है और उनके संबंधों में दरार पड सकती है। बहस से बात और बिगड सकती है।
यदि पत्नी मेष जातिका है और पति मिथुन जातक हो तो पत्नी को अपने अंदर संतुलन और धैर्य की गहरी भावना लाने की जरूरत होगी। यह काम उसके लिये सरल नहीं है। पति के क्षण क्षण बदलते मूडों से वह उलझन में पड सकती है। पति का भव्य मिलनसार और दिलचस्प रूप उसे आकर्षित कर सकता है, किन्तु उस पर हावी की अपनी भावना के कारण वह उसे विद्रोही भी बना सकती है।
मिथुन पति को सबसे अधिक आवश्यकता मानसिक भोजन की होती है। बांध के रखना उसके लिये मरने जैसा है। यौन संबंधों में भी पति को नित नवीनता चाहिये। मेष पत्नी में इतनी बुद्धि नहीं होती कि वह पे्रम में नित नये प्रयोग या आसन कर सके। इसलिये मिथुन पति उससे उबने लगता है।
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मिथुन - वृषः-
वृष सबसे अधिक पृथ्वी तत्व वाली राशि है। मिथुन वायु तत्व वाली राशि चंचल और परिवर्तनशील है। दोनों की मूल आवश्यकताएं आकांक्षाएं परस्पर विरोधी है। मिथुन में निरन्तर परिवर्तन तथा विविधता की भावना से स्थिरता चाहने वाली वृष परेशान हो सकती है। वृष के लिये मिथुन को रोके रखना प्रायः असंभव होगा।
यदि पत्नी वृष है और पति मिथुन जातक है तो पत्नी को कलाओं में दिलचस्पी अपने तक ही सीमित रखनी चाहिये। जब तक उसमें उच्च कोटि की कला प्रतिभा नहीं होगी, तब तक पति पर उसके कला पे्रम का कोई प्रभाव नहीं पडेगा। उसे घरेलू ढंग की पत्नी भी पसंद नहीं आती। मिथुन जातक ऐसी पत्नी चाहता है जो धुंआधार सामाजिक जीवन में भी उसका साथ दे सके। वृष जातिका का अतिथि सत्कार का गुण उसे अच्छा लग सकता है। किन्तु ऐसी पत्नी ईष्र्यावश उसके अन्य महिलाओं से मिलने जुलने को पसंद नहीं करेगी। उसकी दिमागी भूख को समझे बिना वह उस पर अधिकार जताने का प्रयास करेगी। जिससे उनके संबंधों में तनाव पैदा होगा। वृष पत्नी की अपने साज श्रृंगार पर ध्यान देने और संगठन की प्रतिभा का प्रदर्शन करने की मिथुन पति अवश्य सराहना करेगा। कभी कभी वह उसके चरित्र बल की प्रशंसा भी करेगा। जब दुनिया उसे धकियाती दिखाई देती है तो वह पत्नी की गोद में ही जाकर शरण लेगा। इससे उनके शिथिल दाम्पत्य को कुछ बल मिलेगा।
पति पत्नी के गिरगिट जैसे रंगों से बहुत परेशान रहेगी। एक दिन वह शरारती बालक जैसा व्यवहार करेगा तो दूसरे दिन पशु जैसा। उसे विविधता चाहिये, जो यदि घर में नहीं मिलती तो वह बाहर तलाश करता है। यदि पति वृष जातक है और पत्नी मिथुन है तो कभी कभी मौज मस्ती की तरंग में वेे एक दूसरे के प्रति आकर्षित हो सकते है। बाद में पति की मंद और परंपरागत चाल से तथा अपने रंग ढंग में कोई परिवर्तन न करने की जिद से पत्नी उखड जायेगी। इसे वह अदूरदर्शिता समझेगी। कभी कभी घर भी उसे अच्छा लग सकता है किन्तु घर ही उसके लिये पूरी दुनिया नहीं होती। वह खुला जीवन जीना चाहती है। पति चाहेगा कि वह सारा समय घर में ही बिताये। और उसके लिये सुख सुविधायें जुटाए। ऐसा न होने पर संबंधों में दरार आने का खतरा होता है।
वृष व्यक्ति में यौन समागम की प्रबल इच्छा होती है। लेकिन अपनी बिना लाग लपेट वाली पहल व ईष्र्यालु स्वभाव के कारण वह मिथुन पत्नी को अपने से दूर कर देगा। पे्रमाचार के मामले में दोनों की पहल में इतनी भिन्नता होगी कि उनके लिये एक दूसरे को संतुष्ट कर पाना प्रायः असंभव होगा।
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मिथुन - मिथुन:-
पति पत्नी दोनों ही अतिसंवेदनशील, चंचल, वायुराशि होने से यह आश्वासन रहेगा कि जीवन कभी नीरस या उबाउ नहीं हो सकता। दोनों के संबंध जानदार, उत्तेजक, गपशपी, वैवाहिक रूप से उत्साहवर्धक, बहुद्देशीय, परिवर्तन, विविधता, लिये हुये होंगे। इसमें परेशानी एक ही है कि कभी कभी दोनों ही बच्चों की तरह झगडा करने लग सकते है। किन्तु उनके झगडे से आपस में कटुता नहीं आयेगी। यौन संबंधों में भी दोनों एक दूसरे की मानसिक प्रोत्साहन की आवश्यकता को समझ सकेंगें और नित नवीन खोज में रहेंगें। यह मेल तभी घातक होता है जब दोनों में से कोई एक में बौद्धिक गुणों का विकास न होकर अवगुणों का विकास हो जाये।
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मिथुन - कर्क -
मिथुन बौद्धिक राशि है तथा कर्क भावनात्मक राशि है। दोनों के स्वभावों में स्पष्ट अंतर दिखाई देता है। मिथुन जातक का विविधता पे्रम कर्क जातक को परेशान करता है। कर्क जातक की संवेदनशीलता और भावनात्मकता का मिथुन जातक पर विशेष प्रभाव नहीं होता। उसके पास कर्क जातक की भावनाओं को समझने का समय ही नहीं होता। फिर मिथुन जातक इतना व्यस्त रहता है कि कर्क जातक अपने को उपेक्षित महसूस करने लग जाता है।
पत्नी मिथुन हो और पति कर्क हो तो पति चाहता है कि पत्नी को सारी दुनिया की नजरों से छिपाकर अपने घर में रखे। उधर पत्नी समाज में घुले मिले बिना नहीं रहती। उसे बंदी बनकर घर में रहना पसंद नहीं। यही झगडे का कारण बनता है। पत्नी के न झुकने पर उनका जीवन असहय हो जाता है। पति कितना ही बुद्धिमान क्यों न हो, उसका हर काम भावना से प्रेरित होकर होता है। हां, वह समस्याओं से भागता नहीं है।
यौन संबंधों में जहां पति उस क्षण की भावनाओं से सीधे प्रभावित होता है, वहां पत्नी की इच्छा मस्तिष्क से उपजती है। इससे गडबड हो सकती है। हो सकता है, दोनों में एक ही समय पर पे्रम न जागे। दोनों एक सी बात से उत्तेजित भी न हो पाये। प्रायः ऐसा होता है कि पति तो पे्रम के भावों में डूबा हुआ हो और पत्नी किसी कल्पना में डूबी हो। ऐसे में निराशा ही हाथ लगती है।
यदि पति मिथुन हो और पत्नी कर्क हो तो कुछ ही समय में उनके बुनियादी अन्तर सामने आने लगते है। पति को नित्य नवीनता और उत्तेजना चाहिये। उसके लिये एक स्थान पर या एक विचार पर अधिक समय तक जमे रहना संभव नहीं होता। उसके ऐसे व्यवहार का अर्थ कर्क पत्नी के शांत, घरेलू वातावरण पर अतिक्रमण होता है। पत्नी पति को बांधे रखना चाहती है, जबकि पति किसी बंधन में बंधने को तैयार नहीं होता। इसका घातक परिणाम हो सकता है।
मिथुन पति अकारण गैर वफादार नहीं होता, किन्तु उसे स्त्रियों से मिलना जुलना अच्छा लगता है। जरा सी उकसाहट पर उसमें हरजाईपन की भावना जन्म ले सकती है। कर्क पत्नी इसे आवश्यकता से अधिक गंभीर समझती है और भावनात्मक परिदृश्य पैदा कर सकती है। यौन संबंधों में जहां कर्क पत्नी केवल भावनाओं से उत्तेजित होती है, वहीं पति पर मस्तिष्क की तात्कालिक स्थिति का प्रभाव पडता है। पत्नी के व्यवहार में नवीनता न पाकर मिथुन पति अन्यत्र विविधता की तलाश करने लगता है।
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मिथुन - सिंह -
वायु तत्व और अग्नि तत्व का मेल मानसिक या बौद्धिक स्तर पर दिलचस्पी बनाए रखेगा। सिंह जातक चाहता है कि उस पर विशेष ध्यान दिया जाए। मिथुन जातक की बहुविध दिलचस्पियों से वह स्वयं को उपेक्षित महसूस करता है। सिंह जातक का उच्च विचार दर्शन मिथुन जातक को भला लगता है। लेकिन उसकी नियंत्रण की इच्छा उसकी स्वतंत्र भावना को ठेस पहुंचा सकती है। यदि दोनों एक दूसरे को अपनी इच्छानुसार चलने दे ंतो यह एक शानदार जोडी हो सकती है।
जब मिथुन पत्नी अपने सिंह पति के व्यक्तित्व को टटोलने का प्रयास करती है तो उसे अभिमानी बहिरंग के पीछे एक स्नेही हदय दिखाई देता है। जब वह उस पर छाने की बात करता है तो उसके मन में दोनों की भलाई की ही भावना होती है। वह उसकी व्यक्तिगत तथा सामाजिक स्वतंत्रता की इच्छा का सम्मान करता है, किन्तु बदले में चाहता है कि पत्नी उसकी प्रशंसा करे। जब दोनों साथ रहते है तो सिंह पति को मिलने वाले सत्कार से पत्नी अपने को उपेक्षित अनुभव करने लगती है और यह उसे बुरा लगता है।
सिंह पति मिथुन पत्नी का परिवर्तनशील स्वभाव समझने में असमर्थ रहता है। पत्नी भी कभी कभी उसके नितांत आलसीपन को नहीं समझ पाती। किन्तु वह पत्नी के समय समय पर उठने वाले उबालों को क्षमा कर सकता है। पत्नी भी समझ जाती है कि समय आने पर उसका आलसीपन स्वयं दूर हो जायेगा।
यौन संबंधों में मिथुन पत्नी की बदलती इच्छाएं सिंह पति को हैरानी में डाल देती है। किन्तु वह पूरे हदय से प्यार करता है और पत्नी की मानसिक दीवार ढह जाती है। जब पत्नी ऐसा नहीं कर पाती तो पति उसे ठंडा समझने लगता है। आश्चर्य की बात यह है कि निरंतर चुनौतियों के कारण यह संबंध प्रायः सफल रहता है।
यदि पति मिथुन जातक है और पत्नी सिंह जातिका, तो प्रारंभ में उनकी अच्छी तरह से पट सकती है। पति पत्नी को एक धुआंदार सामाजिक जीवन में दीक्षित करना चाहेगा। लेकिन अन्ततः सिंह पत्नी की पति पर छाने की प्रवृति सामने आने लगेगी। कालांतर में पति विद्रोह कर उठेगा। एक दुष्चक्र बनने लगता है। पति अपना गला छुडाने का प्रयास करता है और पत्नी उसे अधिकाधिक जकडकर रखना चाहती है। इस प्रक्रिया में पे्रम समाप्त हो जाता है। यौन संबंधों में पति को काफी मानसिक उत्तेजना चाहिये। वह नई नई कल्पनाओं और परीक्षणों में विश्वास करता है। सिंह पत्नी की समझ में उसकी ये बातें नहीं आती। उसमें कामेच्छा बहुत आसानी से जागृत हो सकती है। अपने संबंधों को सफल बनाने के लिये उसे परंपरा से हटकर प्यार करना सीखना आवश्यक है।
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मिथुन - कन्या -
यद्यपि वायु तत्व का पृथ्वी तत्व के साथ मेल नहीं है तथापि बुध इन दोनों राशियों का स्वामी होने के कारण साधक का काम कर सकता है। दोनों में से किसी राशि में अतिभावुकता नहीं है। अतः व्यावहारिकता, सामाजिक बौद्धिक या व्यापारिक हित अनेक समान आधार बन सकते है। यथार्थ और योजनाबद्ध काम में विश्वास रखने वाला कन्या जातक सदा मिथुन जातक की योजनाओं की भीड या उखडे उखडे विचारों का साथ नहीं देगा। कन्या जातक एक दिशा में अपना ध्यान अधिक केन्द्रित करता है।
मिथुन जातिका आरंभ में कन्या जातक की ठोस छवि की ओर आकर्षित होगी। वह यह भी अनुभव कर सकती है यह ऐसा व्यक्ति है तो अपनी पे्रमिका के लिये कुछ भी करने को तैयार होगा, जो उसकी बुद्धि को बढावा और अभिव्यक्ति का अवसर दे सकता है। लेकिन बाद में उसका समझदारी वाला दृष्टिकोण और उसके नए विचारों में साथ देने में असमर्थता देख उसे चिढ लगने लगेगी। पैसे को दांत से पकडने के उसके दृष्टिकोण से भी मिथुन जातिका मे रोष पैदा होगा। कन्या पति पत्नी के मूड में आकस्मिक परिवर्तन का कारण जानने का प्रयास करेगा। वह ऐसा महसूस कर सकता है कि यह सामान्य नहीं है। उसकी प्रतिक्रिया से पत्नी में और रोष जागेगा। वह पति पर कटु आलोचक, ठंडा, और पुराणपंथी होने का भी आरोप लगा सकती है। निराशा के दौर में वह काबू से बाहर हो सकती है। धीरे धीरे पत्नी के पे्रम पर पति का विश्वास घटने लगता है और वह अपने को असुरक्षित महसूस करने लगता है।
प्रारंभ में दोनों के बीच प्रबल यौनाकर्षण रह सकता है। जब मिथुन जातिका अपने व्यक्तित्व के लिये खतरा देखती है तो वह पति की ओर से मुंह मोडने लगती है। जब कन्या पति उसकी इस उपेक्षा पर कोई ध्यान नहीं देता तो यह अन्यत्र सहारा देखने लगती है।
यदि पति मिथुन हो और पत्नी कन्या जातिका हो तो भी दोनों के संबंध अधिक टिकाउ नहीं हो सकते। अधिक आयु वाली कन्या जातिका मिथुन जातक की बचकाना हरकतों पर दया करके उसे अपना सकती है। वह सोच सकती है कि ये प्रवृत्तियां समय के साथ स्वयं ही समाप्त हो जायेगी। बाद में वह महसूस करती है यह हरकतें उसके स्वभाव का अंग है। वह पति को बदलने का प्रयास करेगी लेकिन पति उसके प्रयासों का विरोध करेगा।
पत्नी की व्यवस्थाप्रियता और पति की अराजकताप्रियता दोनों के बीच झडपों का कारण बनेगी। दोनों में कोई बौद्धिक समझौता ही उनके विग्रह को रोक सकता है। यौन संबंधों में नित्य चिक चिक पत्नी के लिये समर्पण कठिन बना सकती है। उधर मिथुन पति को ऐसी पत्नी चाहिए जो उसके प्रस्तावों पर ध्यान दे और उसे नवीनता तथा उत्तेजना प्रदान करे। यह प्रायः निश्चय है कि पत्नी को क्रोध और निराशा में छोडकर पति अन्यत्र इसकी तलाश करेगा।
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मिथुन - तुला-
दो वायु तत्वों का यह एक अच्छा मेल है जिसमें मस्तिष्क का ग्रह बुध प्रेम तथा भावनाओं के प्रतीक शुक्र के साथ गठजोड करता है। दोनों एक दूसरे के परिष्कृत, कलात्मक, सुंदर, मिलनसार, दिलचस्प, और जानकारी से पूर्ण दृष्टिकोणों की सराहना करते है। मिथुन जातक तुला जातक के साथ विचारों का आदान प्रदान कर प्रसन्नता अनुभव करता है। तुला जातक मिथुन जातक के साथ मिलकर स्वयं को पूर्ण समझता है।
मिथुन पत्नी और तुला पति घर में सम स्तर होते है। दोनों व्यक्ति की स्वतंत्रता की आवश्यकता को अनुभव करते है। वे सक्रिय सामाजिक जीवन और निरंतर परिवर्तनशीलता की भावना को सहर्ष स्वीकार करते है। तुला पति घर के काम में सहायता न करना, उसकी पत्नी को कुछ नाराज कर सकता है और पत्नी का बचकाना स्वभाव दिखाना पति को नापसंद हो सकता है। किन्तु अधिकांश समय उनके सबंधं अच्छे रहेंगें। तुला पति में संभोग की इच्छा प्रबल होती है। वह पत्नी को उसकी इच्छा भर मानसिक संतोष प्रदान कर सकता है। वह पत्नी की प्रशंसा करते थकता नहीं। लेकिन ये ही बातें वह अपनी अन्य प्रेमिकाओं से भी दोहरा सकता है। वह अत्यंत कुशल प्रेमी होता है और प्रेम का उसका अनुभव भी प्रचुर रहता है। अतः इन दंपत्तियों का जीवन कभी नीरस नहीं हो सकता।
यदि पति मिथुन हो और पत्नी तुला हो तो नवीनता और उत्तेजना की खोज उन्हें एक दूसरे से बांध कर रखती है। प्यार का उन्माद कुछ कम होने पर पत्नी का ध्यान पति के अनुत्तरदायित्वपूर्ण व्यवहार और आर्थिक स्थिति की ओर जा सकता है। लेकिन घर में स्थायित्व लाने का दायित्व भी उसे ही संभालना होगा। इसमें वह झुंझला सकती है। फिर भी प्यार का आकर्षण इतना अधिक होगा कि झुकने को सहज ही तैयार हो जायेगी। यदि पत्नी कोई व्यापार चलाती है तो उसमें पति से पूर्ण सहयोग मिलेगा। पति पत्नी दोनों यात्रा के भी शौकीन होंगे और प्रायः बिना पूर्व कार्यक्रम के छोटी छोटी यात्राओं पर चल जायेंगे। यौन संबंधों में दोनों एक दूसरे की आवश्यकताओं को समझते है। उनका साथ साथ रहना ही दोनों को उत्तेजित किये रहता है। ऐसी संभावना कम ही है कि कोई तीसरा व्यक्ति उनके संबंधों में दरार पैदा कर सके। क्योंकि दोनों ही थोडी बहुत उंच नीच को महत्व नहीं देते।
मिथुन - वृश्चिकः-
वायु तत्व और जल तत्व का मेल आसान नहीं है। दोनों में आकाश - पाताल का अंतर है। मिथुन व्यक्ति में वृश्चिक व्यक्ति की भावनात्मक गहराई का अभाव होता है। परिणामस्वरूप वृश्चिक जातक उस पर पूरी तरह छा जाता है। यदि वृश्चिक जातक की ईष्र्या और अधिकार भावना जाग जाती है तो बेचारे मिथुन जातक की स्वतंत्रता की भावना घुट जाती है।
यदि पत्नी मिथुन हो और पति वृश्चिक हो तो पति को पत्नी की अच्छाइयों के साथ साथ बुराइयां भी बहुत जल्दी दिखाई देने लगती है। दूसरी ओर पत्नी के लिये पति रहस्य ही बना रहता है। मिथुन पत्नी सक्रिय जीवन बिताना चाहती है, जबकि वृश्चिक पति को अपने उद्धार की चिन्ता अधिक रहती है। वृश्चिक पति अन्य लोगों को ईष्र्या और संदेह की दृष्टि से देखता है अतः पत्नी के सामाजिक जीवन अपनाने पर उनमें तनाव उत्पन्न होने लगता है। पति के लिये पत्नी को प्रसन्न रखना कठिन हो जाता है। उसकी ईष्र्या तथा अधिकार की भावना पत्नी में बंधंन की भावना उत्पन्न करती है। एक दिन वह खुद को सुरक्षित महसूस करेगी और अगले दिन इस स्थिति से भाग निकलने की सोचेगी। दोनों के यौन संबंधों पर बाहरी घटनाओं का भारी प्रभाव पडेगा। मूड ठीक रहने पर वे एक दूसरे के निकट आते दिखाई देंगे। लेकिन ठीक न होने पर उनमें झडप और हाथापाई भी हो सकती है। पति निराश होकर शराब आदि नशे का सेवन कर सकता है। मिथुन पत्नी के लिये ऐसा व्यवहार असहनीय होगा।
पति मिथुन हो और पत्नी वृश्चिक हो तो निराशा के समय पति पत्नी की शक्तियों व गहराई से आकर्षित हो सकता है। किन्तु मानसिक स्थिति सामान्य होते ही उसकी मिथुन प्रवृत्तियां वापस सक्रिय हो उठती है। पत्नी उसे जकडकर रखना चाहती है और उसके स्वभाव को बदलना चाहती है और पति उसे गले का ढोल समझकर उसकी जकड से छूटना चाहता है। वह पत्नी को पागल जैसा समझता है। यौन संबंधों में मिथुन पति को अपनी संतुष्टि के लिये मानसिक उत्तेजना चाहिये। किन्तु वृश्चिक पत्नी उसकी इस आवश्यकता पर कोई ध्यान नहीं देती। पति की बैचेनी उसे थोडा चिन्तित अवश्य करती है। बाद में वह समझ लेती है कि इस आदमी से विवाह करके उसने गलती की है और उससे पीछा छुडाने की कोशिश करती है।
मिथुन - धनु -
वायु हमेशा अग्नि को भडकाने का काम करती है। किन्तु ये दोनों राशियां राशिचक्र में आमने सामने होने के कारण उनके बीच न केवल आकर्षण अपितु विकर्षण भी जन्म ले सकता है। मिथुन जातक स्वयं में इतना व्यस्त रहता है कि उसके लिये धनु जातक को मनचाही छूट देना कठिन है। आदान प्रदान के आधार पर इस जोडी में अच्छी निभ सकती है। धनु जातक के लिये मिथुन स्त्री के प्रेम पाश में बंध जाना कठिन नहीं है। लेकिन वैवाहिक जीवन को निभा पाना कठिन है। दोनों में विचारों के आदान प्रदान को सीखने और देखने की प्रवृति रहती है। दोनों जीवन को पूरे जोश के साथ जीना चाहते है। लेकिन मिथुन पत्नी में गुप्त व्यावहारिक प्रवृत्ति भी रहती है। जो धनु पति को रास नहीं आती। दोनों ही चुंबक की तरह अन्य लोगों से आकर्षित करते है, जिससे उनके जीवन में एकान्त की घडियां कम ही मिल पाती है। उनके यौन संबंध बहुमुखी रहेंगें। उनका कोई भी रूप हो सकता है। सप्ताह का अंत वे किसी अन्य पुरूष या महिला के साथ व्यतीत कर सकते है। लेकिन घूमफिर कर वापस अपने घर ही आते है। दोनों के बीच एक प्रबल जटिल शारीरिक आकर्षण बना रहेगा। दोनों के संबंध बहुत जटिल रहने की संभावना है।
यदि पति मिथुन हो और पत्नी धनु हो तो भी स्थिति कम या अधिक लगभग यही रहेगी। वे परस्पर बहुत संतुष्ट और सुखी दिखाई देंगे। किन्तु कर्जदार प्रायः उनके दरवाजे पर हमेशा खडे रहेंगे। आरंभ में वे इसे हंसी में टाल देंगे। लेकिन फिर उसकी गंभीरता को समझेंगे और महसूस करेंगे कि इस संबंध में कुछ न कुछ करना चाहिये। समस्या को हल करने का भार ले देकर पत्नी पर ही पड सकता है। क्योंकि पति तो उसकी चर्चा तक करना पसंद नहीं करता। दोनों में कोई भी अपने काम पर अधिक समय तक नहीं टिक सकता। हो सकता है कि वे बारी बारी से घर की जिम्मेदारी उठाने का निश्चय करे। उनके यौन संबंधों में काल्पनिकता अधिक और वास्तविकता कम होगी। वे अपनी कल्पना में मस्त रहना चाहेंगें। थोडी उंच नीच को यह जोडी कोई बडा पाप नहीं मानती और ऐसा प्रायः कम ही होगा जब कोई तीसरा व्यक्ति उनके जीवन में शामिल न हो।
मिथुन - मकर -
वायु और पृथ्वी का कोई मेल नहीं है, फिर भी यदि इन दोनों राशियों के जातक चाहे तो वे एक दूसरे के अभावों की पूर्ति कर सकते है। मिथुन में यौवन का उत्साह है जबकि मकर में अनुभव का ज्ञान है। उन्हें अपने मतभेदों के साथ जीना भी सीखना होगा। मिथुन जातक प्रायः दिशा बदलते रहते है। जबकि मकर जातक अपना लक्ष्य प्राप्त किए बिना शांति से नहीं बैठते। वास्तव में इतनी भिन्नता लिए अन्य दो चरित्र मिलना कठिन है।
यदि पत्नी मिथुन है और पति मकर है तो पत्नी को बातूनी होते हुये भी पति की बात सुननी होगी। इसी प्रकार वह उसके मन के तनाव को कम कर सकती है। बदले में पति पत्नी के अंदर की बेचैनी को शांत कर सकता है। पति को पत्नी की स्वचंछदता पर आपत्ति नहीं होगी। किन्तु जीवन के कलापक्ष में दोनों समान रूप से दिलचस्पी ले सकते है। मकर पति में भविष्य के लिये बचत करने की बलवती भावना रहती है। मिथुन पत्नी तात्कालिक आवश्यकताओं से आगे की बात नहीं सोच सकती। इस अंतर को समझना चाहिये। यौन संबंधों में पत्नी को सीखना होगा कि पति का ध्यान उसकी व्यावहारिक समस्याओं से कैसे हटाया जाये। उसके लिये यह एक नया अनुभव होगा। इससे उसके अहम् को चोट पहुंच सकती है और अपनी संतुष्टि के लिये किसी और पुरूष की खोज कर सकती है। यही समस्या तब आयेगी जब पति मिथुन हो और पत्नी मकर हो। उनके विचारों में इतना अंतर होगा कि यह मेल कुछ सप्ताह ही चलने की संभावना है। इस मेल में पत्नी को आर्थिक मामलों में पहल अपने हाथ में लेने को तैयार रहना चाहिये। क्योंकि उसका मिथुन पति आमतौर पर सोच समझकर घर खर्च चलाने में असमर्थ होगा।
मकर पत्नी सामाजिक जीवन में मिथुन पति का साथ देती है तो उसके हरजाईपन के स्वभाव को देखते हुए उसके मन में ईष्र्या जन्म ले सकती है। इससे बडा संकट तब पैदा होगा, जब पति पत्नी के जीवन के प्रति गंभीर दृष्टिकोण को उबाउ समझने लगे। उनके यौन संबंधों में भी कठिनाइयां पैदा होने की संभावना है। दोनों एक दूसरे से उसका दृष्टिकोण बदलने की आशा करेंगे। इससे उनकी जिद और बढेगी। जब तक दोनों के बीच कोई समझौता न हो, जिसकी आशा बहुत कम है, इस जोडी की सफलता की आशा करना व्यर्थ है।
मिथुन - कुंभ -
वायु का वायु से अच्छा मेल होता है। किन्तु इन दोनों राशियों के स्वामी ग्रह बहुत भिन्न स्वभावों और दृष्टिकोणों को जन्म देते है। मिथुन जातक कुंभ जातक के उदासीन या रहस्यमय मूड को स्वीकार कर सकता है। वह उसकी मौलिकता और खोजी प्रवृत्ति, दोनों से ही प्रभावित होता है। यह संबंध अपनी परस्पर विहीन तथा परिवर्तनशील गुण के कारण अत्यंत दिलचस्प हो सकता है। कुंभ जातक को पूरी दुनिया की चिंता रहती है। वह एक असाध्य सुधारक होता है। अतः यदि मिथुन पत्नी हो और कुंभ पति हो तो पति पत्नी से हर समय बौद्धिक विवाद के लिये तैयार रहने की आशा करेगा। मिथुन पत्नी को यह अच्छा लग सकता है क्योंकि इससे उसे कुछ अप्रिय कामों से छुट्टी मिलेगी। लेकिन उसे प्रतीक्षा करने से चिढ है। विशेषकर जब पति किसी मित्र की समस्या को सुलझाने में संलग्न हो। पति के लिये यह एक साधारण सी बात होगी।
कुंभ पति, मिथुन पत्नी के हर काम में रूचि लेगा और उसके व्यक्तित्व के सुखद पक्ष को ही देखने का प्रयास करेगा। किन्तु बाहरी गतिविधियों के कारण उन्हें अपने यौन जीवन के लिये बहुत कम समय मिल पाएगा। मिथुन पत्नी कभी कभी इस अभाव को महसूस कर सकती है। वह इतनी व्यस्त रहेगी कि इस पर वह अधिक ध्यान नहीं देगी। लगभग यही स्थिति तब होगी जब पति मिथुन और पत्नी कुंभ हो। इस जोडी के सम्मुख सबसे बडी कठिनाई आर्थिक तौर पर आती है। उनके यौन संबंध काफी गहरे होने की संभावना है। नित्यचर्या का उनके यौन जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड पायेगा क्योंकि मिथुन पति इतना आवेगी हो सकता है कि उसके लिये रात की प्रतीक्षा करना भी आवश्यक नहीं होगा।
मिथुन - मीन -
वायु और जल की प्रतिकूलता मिथुन और मीन जातक के स्वभाव या विचार में भी स्पष्ट दिखाई देती है। मिथुन जातक तर्कपूर्ण, तथ्यपूर्ण तथा बौद्धिक विचारों वाला होता है। जबकि मीन जातक कल्पनाशील होता है। खयाली पुलाव पकाता है। हमेशा सपने देखता रहता है और संवेदनशील होता है। भावना और अतीन्द्रिय ज्ञान ही उसका जीवन है। मीन जातक के तर्क रहित रंग ढंग में मिथुन जातक को कोई समझदारी दिखाई नहीं देती। मिथुन जातक व्यावहारिक, क्षिप्र, और कुशल होता है। किन्तु मीन जातक प्रायः ढुलमुल रवैये वाला तथा दोराहे पर सवार होता है।
वास्तव में ये दोनों द्विस्वभाव राशियां है। अतः इस संबंध में दो स्थानों पर चार व्यक्तित्व विद्यमान रहते है। यदि पत्नी मिथुन है और पति मीन है तो एक दिन तर्कपूर्ण और नए नए विचारों से उत्साहित दिखाई देता है, और दूसरे ही दिन अपने में सिमटा हुआ, तर्कहीन लगता है। पत्नी उसके एक पक्ष को प्रेम कर सकती है तथा दूसरा पक्ष उनके बीच संघर्ष को ही जन्म दे सकता है। अच्छे संबंध बनाए रखने के लिये पत्नी को पति के और पति को पत्नी के दोनों रूप समझने होंगें। यौन संबंध उनके बीच समस्या नहीं होने होने चाहिये। दोनों को कभी कभी सहारे की जरूरत होती है। दोनों में ही मस्ती की गहरी भावना होती है। मीन पति विचित्र कल्पनाओं में खोया रहता है। दूसरों के असामान्य यौन व्यवहार से उनके मन में भी गुदगुदी पैदा हो सकती है। अतः यौन संबंध साहित्य या चित्र उसमें कामेच्छा जगाने में प्रमुख भूमिका निभा सकते है। पत्नी को इसकी उपेक्षा कर देनी चाहिये।
यदि पति मिथुन है और पत्नी मीन हो तो पत्नी के मन में पति के हरजाईपन से ईष्र्या हो सकती है तथा पति पत्नी की अधिकार भावना के विरूद्ध विद्रोह कर सकता है। दबाव का उस पर विपरीत प्रभाव ही रहेगा। पति पत्नी दोनों ही मूड वालेे और परिवर्तनशील है, अतः उनके संबंध थकाने वाले और जटिल हो सकते है। दोनों अपने पृथक व्यक्तित्व को बनाए रखना चाहते है और आर्थिक क्षेत्र में स्वतंत्रता रखेंगें। आर्थिक मामलों में दोनों का टकराव हो सकता है। क्योंकि कोई भी उत्तरदायित्व उठाने को तैयार नहीं होगा और कर्जदार उनके दरवाजे पर खडे रहेंगे। जिससे उनकी शांति भंग होगी।
पत्नी की कल्पनाशीलता पति को बौद्धिक प्रोत्साहन प्रदान करेगी। वे अपनी समस्याएं शयन कक्ष में सुलझाने का प्रयास कर सकते है, किन्तु सुबह होते ही यथार्थ उनके संबंधों पर चोट करता मिलेगा। इस स्थिति में उनके टूटने का पूरा खतरा है।