Friday, 18 September 2020

Mesh rashi ke anya rashi walo se vivah sambnadh kaise rahenge / मेष राशि के अन्य राशि वालों से विवाह संबंध कैसे रहेंगे, जानिये इस लेख मेंः-

Posted by Dr.Nishant Pareek

Mesh rashi ke anya rashi walo se vivah sambnadh kaise rahenge ?


मेष राशि के अन्य राशि वालों से  विवाह संबंध कैसे रहेंगे, जानिये इस लेख मेंः-

मेष - मेष:- 

अग्नि तत्व का अग्नि तत्व से संबंध अनुकूल तो है किंतु आग के हद से अधिक बढ जाने की आशंका रहती है और कभी कभी वातावरण में गहरा तनाव भी पैदा हो सकता है। शांति और संतोष की आशा करना बहुत अधिक है। दोनों एक दूसरे पर हावि होने का प्रयास कर सकते है। जो तनाव उत्पन्न करते है। आवश्यकता होने पर दोनों एक दूसरे का जमकर पक्ष लेते है। इस जोडे के जीवन में उबाउपन कभी नहीं आयेगा। क्योंकि दोनों में से कोेई शांति से बैठने वाला नहीं है।  यदि दोनों के बीच किसी बात को लेकर विवाद पैदा हो गया तो यह विवाद तब तक जारी रहेगा जब तक उनमें से कोई एक हथियार नहीं डाल देता। इस जोडे के साथ एक खतरा यह भी है कि शारीरिक आकर्षण का ज्वार बहुत जल्दी उतर सकता है। तब दोनों विवाहेत्तर संबंधों में शांति खोजने का प्रयास कर सकते है जो उनके जीवन को असहनीय बना देता है। तब पे्रम का स्थान उतनी ही नफरत ले लेगी। 

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मेष - वृष:- 

अग्नि तत्व और जल तत्व की आवश्यकताओं और स्वभाव में इतनी भिन्नता है कि उनकी पटरी ठीक से बैठ पाना सरल नहीं है। दोनों में से किसी के झुकने के लिये तैयार न होने पर कठिनाई सामने आयेगी। मेष को नए नए उद्यम और चुनौतियां चाहिये। जबकि वृष जातक शांति और सुस्थिरता चाहते है। वृष जातकों की मंदगति और एक ही स्थान पर ठहरे रहने की प्रवृति पर मेष जातक अपना धैर्य खो बैैठते है।

यदि पति मेष राशि है और पत्नी वृष, तो पत्नी को समझ लेना चाहिये कि वह पति को अपनी मनमर्जी से झुका नहीं सकती है। लेन देन की भावना का अभाव दोनों की कमजोरी है। दोनों अपनी अपनी फायदा या सुख देखेंगे। यदि दोनों अपने अपने रूख पर अडे रहे तो ऐसा भी हो सकता है कि उनके बीच संभोग संबंध समाप्त हो जाये अथवा संभोग के समय लडाई झगडा हो। 

यदि पति वृष हो और पत्नी मेष हो तो भी दोनों के संबंध मधुर रहने की संभावना बहुत कम होती है। किसकी मर्जी चलेगी, इस बात पर दोनों में टकराव होता है। पत्नी अपने नये नये विचार पति पर थोपने का प्रयास करती है और पति को वह विचार समझ से परे लगते है। वह हर बात को तर्कपूर्ण तरीके से सोचना चाहता है। वह हर काम में सुरूचि भी खोजता है। भोजन बनाना तक उसके लिये कला का काम है। जिसमें उसकी पत्नी को अपनी सुरूचि का परिचय देना चाहिये। पत्नी के लिये इन सब बातों का कोई महत्व नहीं है और उसकी दिलचस्पी कहीं और ही रहती है। शारीरिक संबंधों में भी पत्नी पति से उससे कहीं अधिक अपेक्षा करेगा जितना वह उसे दे सकती है। पति के लिये यौन संतुष्टि सबसे महत्वपूर्ण है जबकि पत्नी को बाहय संतुष्टि के बिना यौन संबंधों में रस नहीं मिल सकता। 

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मेष - मिथुन:

अग्नि का वायु के साथ मेल ठीक बैठता है। मिथुन जाताकों की हाजिर जवाबी मेष जातकों की संघर्षशील भावना का जोड सिद्ध होती है। दोनों विविधता, कर्मठता और नई नई बातों की खोजों को पसंद करते है। जिससे दोनों की रूचियां समान रहती है और उनका जीवन उबाउ नहीं हो पाता। लेकिन इन संबंधों को स्थायी बनाने के लिये दोनों ओर से काफी लेन देन की आवश्यकता होती है। 

यदि पति मेष जातक हो और पत्नी मिथुन जातिका हो तो पत्नी पहले तो ऐसे पुरूष के चरित्र की दृढता, निद्र्वन्द्वता, आत्मविश्वास, पे्रम या व्यापार के मामले में शीघ्र निर्णय और नई नई योजनाओं के लिये उसकी पहल से काफी प्रभावित होती है। ये बातें उसे अपने व्यक्तित्व के अतुल्य ही लगती है। लेकिन पति शीघ्र ही उस पर हावि होने लगती है। जब इस नये अनुभव का नशा उतरने लगती है तो पत्नी उबने लगती है। रूचियों में भिन्नता से उसकी निराशा और भी बढ जाती है। पति को कला के प्रति पत्नी की रूचि अच्छी नहीं लगती और पत्नी को पति खिलाडीपन पसंद नहीं आता। किसी किसी दिन दोनों में तू तू मैं मैं भी हो जाती है। लेकिन वे अधिक समय तक उसे याद नहीं रखते। 

मेष जातक का पे्रम प्रदर्शन का तरीका भी मिथुन जातिका के लिये बहुत अधिक हो सकता है और वह उसके प्रति उदासीन हो सकती है। यदि यही स्थिति अधिक काल तक चलती रही तो पति पत्नी को ठंडी भी समझ सकता है। मेष पति के लिये मिथुन पत्नी की मानसिकता को समझना कभी संभव नहीं है। परिणामस्वरूप उनके बीच यौन समस्यायें पैदा हो सकती है और उनके संबंधों में दरार पड सकती है। बहस से बात और बिगड सकती है। 
यदि पत्नी मेष जातिका है और पति मिथुन जातक हो तो पत्नी को अपने अंदर संतुलन और धैर्य की गहरी भावना लाने की जरूरत होगी। यह काम उसके लिये सरल नहीं है। पति के क्षण क्षण बदलते मूडों से वह उलझन में पड सकती है। पति का भव्य मिलनसार और दिलचस्प रूप उसे आकर्षित कर सकता है, किन्तु उस पर हावी की अपनी भावना के कारण वह उसे विद्रोही भी बना सकती है। 

मिथुन पति को सबसे अधिक आवश्यकता मानसिक भोजन की होती है। बांध के रखना उसके लिये मरने जैसा है। यौन संबंधों में भी पति को नित नवीनता चाहिये। मेष पत्नी में इतनी बुद्धि नहीं होती कि वह पे्रम में नित नये प्रयोग या आसन कर सके। इसलिये मिथुन पति उससे उबने लगता है।  

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मेष - कर्क:- 

अग्नि और जल मिलकर समस्याऐं पैदा कर सकते है। कर्क जातक संवेदनशील होता है और मेष जातक के मुंहफटपन से उसे चोट पहंुच सकती है। मेष जातक को कर्क जातकों की संवेदनशीलता और भावुकता बिल्कुल नहीं भाती। एक व्यक्तित्व एकदम सीधा सपाट हो और दूसरा इतना जटिल, तो फिर उनके बीच मधुर संबंधों की बात सोचना ही व्यर्थ है। 

यदि पति मेष जातक है तो पत्नी कर्क जातिका, तो पत्नी के कुछ समझ पाने से पहले ही पति उस पर पूरी तरह हावी हो लेता है। शीघ्र ही पत्नी अपने जीवन मूल्यों के अंतर को समझने लगती है। पति को नए नए क्षेत्र चाहिये और पत्नी को शान्तिपूर्ण जीवन। पत्नी को प्यार में जलन अनुभव होने लगती है और वह सोचने लगती है कि यह आग कब तक कायम रहे सकेगी। पति भी महसूस करने लगता है कि वह वासना में अंधा हो गया था और पत्नी उसका साथ नहीं दे सकती। पत्नी की भावनाओं को न तो वह समझ सकता है और न समझने का प्रयास करता है। कर्क पत्नी को रोमांस और प्यार भरी पहल चाहिये, जिसका मेष पति में एकदम अभाव होता है। संतुष्टि नहीं मिलने पर पति उत्पीडन का भी सहारा लेने लगता है। 

यदि पत्नी मेष जातिका है और पति कर्क जातक हो तो पत्नी को अपने पति को समझने में लंबा समय लगता है। उसके उपर एक रक्षा कवच होता है और अंदर एक अत्यंत संवेदनशील हदय, जिसे आसानी से चोट पहुंचा सकती है। कर्क पति अपने विचारों, सपनों, अपनी पुस्तकों व संगीत से चिपका रहता है। यहां तक कि मेष पत्नी इन्हें अपनी सौत समझने लगती है। इनमें उसकी कोई रूचि नहीं रहती। 

कर्क पति एक पे्रमी और एक रक्षक पति की भूमिका निभाना चाहता है। वह चाहता है कि उसकी पत्नी में नारी के से गुण हो। कहे भले ही न, लेकिन यौन संबंधों का मुख्य उददेश्य उसकी दृष्टि में एक बडा परिवार बढाना होता है। मेष पत्नी भला इसे कैसे पसंद कर सकती है। 

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मेष - सिंह:-

यदि दोनों में से कोई भी एक दूसरे पर हावी होने का प्रयास न करे तो अग्नि और अग्नि का यह मेल काफी उत्साहवर्धक हो सकता है। सिंह जातक मेष जातक की गतिशीलता और पहल को सराहेगा तथा मेष जातक सिंह जातक के लंबे चैडे विचारों, सत्ता और उदारता, के रौब में नहीं आयेगा। दोनों राशियां बहिर्मुखी और जीवन से पूर्ण है। अतः संबंध बहुत धूम धडाके वाला रहेगा। 

मेेष पति अपने आत्मविश्वासी और संघर्षशील स्वभाव से सिंह पत्नी के मन में भारी आकर्षण और सम्मान पैदा कर सकता है। चिंता उसे पति के क्रोधी स्वभाव से हो सकती है। दोनों अपने अपने अहम में डूबे रहते है। पत्नी चाहती है कि पति सदा उसकी प्रशंसा करे। और पति चाहता है कि उसके व्यवसाय में पत्नी उसे प्रात्साहित करती रहे। जब उनके अहम् को चोट लगती है तो वे उग्र हो उठते है। फिर उनमें नाटकिय झगडे शुरू हो जाते है। उनसे बचने के लिये पत्नी को कभी कभी पति को विजयी होने का अहसास करा देना चाहिये। दोनों ही संघर्ष को पसंद करते है। अतः उनके जीवन में वाद विवाद की प्रमुख भूमिका होती है। पति को पत्नी की महत्वकांक्षा पर कोई आपत्ति नहीं होती। बस, वह यही चाहता है कि पत्नी की महत्वकांक्षा उससे या उसकी महत्वकांक्षा से आगे नहीं बढ पाये। दोनों ही पूरी सुख सुविधाऐं पसंद करते है। अतः आर्थिक समस्याएं पैदा होने पर उनके जीवन को बहुत कठिन बना सकती है।  उनके स्वभाव की उग्रता उनके यौन संबंधों पर भी प्रभाव डालती है। अतः अपने पे्रम को जीवित रखने के लिये उन्हें काफी समझदारी से काम लेना चाहिये। 

यदि पत्नी मेष जातिका है और पति सिंह जातक हो तो भी दोनों के संबंध धूमधडाके वाले ही होंगे। कठिनाई पति की इस भावना से होगी कि उसकी निरंतर प्रशंसा की जाये और उसे घर का स्वामी समझा जाये। मेष पत्नी अधिक प्रदर्शन में विश्वास नहीं करती। उसे चापलूसी से प्रेम भी पसंद नहीं होता। विशेषकर जब पति की चापलूसी करने वाली कोई अन्य सुंदर महिला हो। अतः ऐसी समझदार मेष पत्नियां स्वयं यह भूमिका निभाकर अपने पति को वश में कर सकती है। इसके बदले में पति पत्नी की बेचैनी को और उसकी मानसिक भूख को चतुराई से शांत करता है। यौन संबंधों में पति पत्नी खूब खुलेपन का परिचय देते है। 

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मेष - कन्या:- 

मेष अग्नि तत्व वाली राशि है तथा कन्य पृथ्वी तत्व वाली राशि है। दोनों के स्वभाव में आकाश पाताल का अंतर है। मेष जातक किसी काम के करने के ढंग और विस्तार की अधिक चिंता नहीं करता, जबकि कन्या जातक की ये स्वाभाविक प्रवृति होती है। अतः यह संबंध घातक हो सकता है। 

यदि मेष पति है और सिंह पत्नी है तो ऐसा पति वर्तमान में जीना पसंद करता है। जबकि पत्नी की एक आंख भविष्य पर लगी होती है। पति धन की बिल्कुल भी परवाह नहीं करता है। वह ये मानकर चलता है कि धन तो कहीं न कहीं से आ ही जायेगा। अपने काम को भी वह मन लगाकर तभी करता है जब उसकी रूचि हो। अतः उसके जीवन में उतार चढाव आते रहते है। इसके विपरीत कन्या पत्नी को हमेशा भविष्य की और आर्थिक सुरक्षा की चिंता रहती है। वह ऐसे काम पसंद करती है जिनमें कडी मेहनत भले ही हो, लेकिन स्थायित्व और सुरक्षा हो। पत्नी यदि पति से कठोर वचन कहती है तो पति प्रायः हंसकर टाल देता है। लेकिन जब बात उसकी सहन शक्ति से बाहर हो जाती है तो वह संबंध विच्छेद करने में भी पीडे नहीं हटता। 

दोनों के भावनात्मक ढांचे में भी भारी अंतर होता है। स्थिति यह है कि कोई किसी के विचारों को नहीं बदल पाता। अतः इस युगल के लिये एक दूसरे को सहन करने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। भावनाओं का यह अंतर उनके यौन संबंधों में भी प्रकट होता है। 

यदि पत्नी मेष है और पति कन्या है हो तो भी उन्हें प्रेम पूर्वक रहने में भारी कठिनाई का सामना करना पडेगा। दोनों एक दूसरे के सुझावों को काटते रहेंगे जिससे उनके बीच विद्रोह की भावना पैदा होगी। इस प्रवृति पर प्रारंभ में ही अंकुश लगाना चाहिये। आर्थिक मामलों में भी दोनों के खींचतान रहने की संभावना होती है। पति बहुत सावधानी से पैसा खर्च करता है जबकि पत्नी का हाथ काफी खुला रहता है। लेकिन पत्नी जब बीमार पडती है तो उसे कन्या पति से अधिक देखभाल करने वाला दूसरा नहीं मिल सकता। जहां तक यौन संबंधों की बात है तो पत्नी बहुत शीघ्र बेचैनी और उबाउपन अनुभवन करने लगती है। ये तैयार रहे। मेष पत्नी के लिये इसे करना कठिन होता है। 

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मेष - तुला:- 

यह मेल मेष अग्नि और तुला वायु तत्व का मेल है। किंतु कंुडली में ये राशियां एक दूसरे के आमने सामने होने के कारण उनके बीच में आकर्षण और विकर्षण दोनों हो सकते है। इनमें प्रबल शारीरिक या भावनात्मक आकर्षण रहता है। यदि उनमें टकराव होता है तो मेष की जीत होती है और तुला हार जाता है। जहां तक हो सके इस संबंध को टालना ही चाहिये। क्योंकि यह रिश्ता बहुत कमजोर नींव पर खडा होता है। 

यदि पति मेष हो और पत्नी तुला हो तो आरंभ में तो पत्नी उसके दबदबे से प्रसन्न होती है, किंतु उसकी प्रसन्नता अधिक समय तक नही रहती। तुला पत्नी संबंधों की समानता में विश्वास रखती है। शीघ्र ही उसे पता चल जाता है कि मेष पति घर का एकछत्र स्वामी बनना चाहता है। तब उसका सारा उत्साह भंग हो जाता है। तुला पत्नी में अपने को अभिव्यक्त करने की स्वाभाविक प्रतिभा होती है। जबकि मेष पति प्यार के दो शब्द बोलना कमजोरी की निशानी समझता है। पत्नी अपने पिछले संबंधों पर विचार करना चाहती है या भावी संबंधों की योजना बनाना चाहती है। पति इसमें सहयोग करने से मना कर देता है और पत्नी के मन में भविष्य के प्रति असुरक्षा की भावना पैदा हो जाती है। 
पत्नी दूसरों की, विशेषकर संकट में पडे लोगों की सहायता करना चाहती है। पति इसे समय की बर्बादी समझता है। उसे मैं से आगे कुछ नहीं दिखता। कभी कभी वह पत्नी की हीन भावनाओं का भी लाभ उठाने का प्रयास करता है। पत्नी के स्वतंत्र होने की इच्छा उसे चोट पहुंचाती है। यौन संबंधों में भी पत्नी की ओर से पे्रम की पहल का मेष पति गलत मतलब निकाल सकता है। इसे अपने पौरूष को चुनौती समझ सकता है। 

यदि पत्नी मेष हो और पति तुला हो तो पति के रंगीले स्वभाव के कारण काफी कठिनाई पैदा हो सकती है। मेष जातक में विपरीत लिंगियों के लिये भारी आकर्षण पाया जाता है। इसका लाभ उठाकर वह एक सप्ताह किसी लडकी के साथ खिलवाड भी कर सकता है। उसके पे्रम के वादों को गंभीरता से नहीं लेना चाहिये। मेष पत्नी इसे सहन नहीं करती है और झगडा होता है। इसका परिणाम पति के उठकर चले जाने में होता है। कभी कभी पति कमजोर वर्गों की वकालत भी करने लगता है, जिसे पत्नी समय की बर्बादी समझती है। 

स्ंाबंधों में अधिक तनाव आ जाने पर तुला पति अपना रौद्र रूप भी दिखा सकता है। ऐसे समय में पत्नी को उसके साथ विवादों में नहीं पडना चाहिये। क्योंकि दोनों में से कोई भी अपनी गलती मानने को तैयार नहीं होता। यौन संबंधों में तुला पति पत्नी से रोमांस की अपेक्षा रखता है। वह चाहता है कि पत्नी उत्तेजक वस्त्र धारण करे। घर के वातावरण को रोमांस पूर्ण बनाए और उसके साथ हर समय रोमांस के लिये तैयार रहे। मेष पत्नी के लिये इसे करना कठिन होता है। 

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मेष - वृश्चिकः- 

यह अग्नि और जल का संयोग है। जो कि भाप बनाता है। दोनों राशियों के स्वामी मंगल ही है। अतः दोनों एक दूसरों की शक्ति और क्षमता को सराह सकते है अथवा उनके बीच तीव्र स्पर्धा जन्म ले सकती है। सीधा सादा मेष जातक वृश्चिक जातक के प्रपंचों को समझ नहीं पाता। फिर भी, यदि दोनों के लक्ष्य समान हो तो यह एक उत्तम जोडी सिद्ध हो सकती है। लेकिन वे एक दूसरे से काफी अपेक्षाऐं रखते है। 

यदि पति मेष हो और पत्नी वृश्चिक हो तो दोनों जन्मजात युद्ध प्रिय होने के कारण एक दूसरे  से लडकर ही अपनी भडास निकाल लेते है। दोनों में से कोई अपनी गलती नहीं मानता है। कार्य के प्रति भावना में भी टकराव होगा। पत्नी चाहेगी कि पति एक ही स्थान पर काम करता हुआ उन्नति करता रहे। पति नया आकर्षक काम सामने आते ही पुराना छोडकर उसकी ओर निकल जाता है। पति को भविष्य की कोई चिंता नहीं है और पत्नी के सीख देने पर उसके दिमाग का पारा चढ जाता है। मेष जातक के लिये भावनाओं का कोई महत्व नहीं रहता। 

यौन संबंधों में पति पत्नी कभी तो घुल मिल जाते है और कभी उनके बीच टकराव होता है। पत्नी के रूठने पर पति के लिये मनाना असंभव हो जाता है। जिसके कारण पति का पारा चढने में भी देर नहीं लगती। यह संबंध बुद्धिमानी वाला नहीं है। पे्रमी तो क्या, ये दोनों दोस्त की तरह भी नहीं रह सकते। 

यदि पत्नी मेष है और पति वृश्चिक है तो पत्नी पति के हावी होने के प्रयासों का विरोध करेगी और जो वह चाहेगा उसका उल्टा करेगी। दोनों में मेल रहना बहुत मुश्किल है। पत्नी की ओर से निराश होकर पति अपना सारा ध्यान अपने व्यापार में लगा देगा। यौन संबंधों में भी पत्नी उससे दूर भागने का प्रयास ही करेगी। वृश्चिक जातको के लिये घरेलू वातावरण का बहुत महत्व होता है और अन्य सभी जातकों की अपेक्षा वे अपनी पत्नियों के प्रति सबसे वफादार रहते है। उनमें यौन की भूख भी अपार होती है। किंतु यह संयोग अपवाद होगा। 

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मेष - धनु:- 

अग्नि का अग्नि से कोई विरोध नहीं होता। लेकिन दोनों अपने अपने विचारों में स्वतंत्र होने के कारण उन्हें एक दूसरे की भावना व स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही होगा। धनु जातक उत्साही, मेष जातक के लिये प्रेरणा का काम करता है। जबकि मेष जातक धनु जातक के आशावादी दृष्टिकोण तथा ईमानदारी की सराहना करता है। दोनों के तीव्र गति में विश्वास करने के कारण शान्ति और शिथिलता की आशा करना व्यर्थ है। कोई दूसरे का रौब स्वीकार नहीं करेगा। सब मिलाकर यह एक सुखद साझेदारी हो सकती है। 

यदि पति मेष हो और पत्नी धनु जातिका हो तो पत्नी के लिये पति के व्यक्तित्व के आकर्षण से बच पाना कठिन होगा। पत्नी पति के हर नये विचार का उत्साह से स्वागत करेगी। भले ही उसका परिणाम कुछ न निकले। पति के ढलते हुये अहम को पत्नी के आशावाद से बहुत सहारा मिलता है। मेष जातक में स्वयं अपने वित्तीय भविष्य की योजना समझदारी से बनाने की बुद्धि नहीं होती। उस पर धनु पत्नी तो एकदम अव्यावहारिक होगी। अतः वित्तीय जिम्मेदारी पति को ही अपने कंधे पर उठानी पडेगी। अन्यथा वित्तीय कठिनाई से उनके मधुर संबंधों में कडवाहट आ सकती है। यदि वे अपने बाहर के व्यस्त कार्यक्रमों से समय निकाल सकें तो उनका वैवाहिक जीवन सुखमय रहेगा। सामान्यतया धनु स्त्रियों की गतिविधियां इतनी बहिर्मुख होती है कि वह अपनी भूख और कहीं शांत कर लेती है। जिसकी उन्हें कोई चिंता नहीं होती। 

यदि पत्नी मेष है और पति धनु है तो बहिर्मुखी जीवन से प्रेम और साथ साथ काम करने की भावना से वे एक दूसरे की ओर आकर्षित होंगे। फिर भी पत्नी को इसमें संदेह हो सकता है कि धनु पति इन संबंधों को अधिक समय तक निभा पायेगा। उधर धनु पति, मेष पत्नी को तब तक आदर्श समझता रहेगा जब तक वह व्यक्तिगत स्वतंत्रता के उसके विचारों को मान्यता प्रदान करेगी। अपनी ईष्र्या पर नियंत्रण रख सकेगी और पति के निर्दोष हरजाईपन की उपेक्षा कर सकेगी। 

परिपक्वता आने पर पति घरेलू वातावरण के लाभ महसूस करने लगेगा, लेकिन उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। दांव लगाने की प्रवृति उसमें अन्त तक बनी रहती है। काम छोडते भी उसे देर नहीं लगेगी। संयोग से वह इतना भाग्यशाली होता है कि उसके अधिकांश दाव सही लगते है। लेकिन जब उसकी कोई योजना विफल होती है तो घर का सारा भार पत्नी पर आ पडता है। यह एक अस्थायी दौर होता है। क्योंकि पति शीघ्र ही पुरानी सारी क्षति की पूर्ति कर देता है। 

धनु जातक स्वभाव से वफादार नहीं होता। उसे अनेक प्रेम प्रसंगों में रस आता है। और इसके लिये उसके मन में स्वतः कोई अपराध बोध नहीं होता। पत्नी को भी निराश नहीं करता। क्योंकि ऐसा करने से उसके पौरूष के अभिमान को चोट पहुंचती है। उनके संबंध संतोषदायी और कभी कभी आश्चर्यजनक भी रहते है। 

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मेष - मकर:- 

अग्नि और पृथ्वी तत्व का यह योग तनावपूर्ण रहने की संभावना है। मेष का स्वामी मंगल अधीर और जोशीला ग्रह है। जबकि मकर का स्वामी शनि सावधान, शांत व मंद। मकर भविष्य की योजना बनाकर चलना चाहता है और इसके लिये प्रतीक्षा भी कर सकता है। मेष को तत्काल परिणाम चाहिये। प्रतीक्षा से उसे घृणा है। इस योग में लाभ कम और हानि ज्यादा है। 

यदि पति मेष है और पत्नी मकर है तो प्रारंभ में पति के पहली भेंट में ही बोले गये प्रेम के दो बोल पत्नी को अभिभूत कर देंगे। वह उसकी किसी पागलपन से भरी धनकमाउ योजना के प्रति भी आकर्षित होगी। किंतु पति को फिर शीघ्र उसकी सहज बुद्धि और निराशावाद का सामना करना होगा। मेष पति यह नहीं समझ पाता कि उसकी मकर पत्नी जगह जगह धन छिपाकर क्यों रखती है। वह उसे छेडता है। पत्नी पति को दुनिया का सबसे बडा अपव्ययी समझती है। दोनों की पटरी बैठना असंभव है और पति अन्यत्र सुख की खोज कर सकता है। 

सामाजिक दृष्टि से मकर पत्नी को इस संबंध से लाभ हो सकता है। मेष पति अपनी बहिर्मुखी प्रवृत्तियों में उसे भी शामिल करता है और मकर पत्नी की समझ में आने लगता है कि जीवन में काम के अतिरिक्त और भी कुछ है। लेकिन उसके अन्य पुरूषों के संसर्ग में आने से मेष पति के मन में ईष्र्या जन्म ले सकती है। उनके यौन जीवन में गंभीर समस्याएं नहीं आनी चाहिये। जो आती है, वे पत्नी के निराशावादी मूड के कारण आती है। 

यदि पत्नी मेष है और पति मकर है तो मेष स्त्री कभी कभी व्यावहारिकता के दौर पडने पर मकर जातक की ओर आकर्षित हो सकती है। मेष पति के महत्वकांक्षी विचार उसे अच्छे लग सकते है। उसके स्वतंत्रता प्रेम से भी उसकी पटरी बैठ जाती है। उधर मकर पति को मेष पत्नी की शक्ति और चरित्र की दृढता पा सकती है। लेकिन अधिक समय तक साथ साथ रहने पर पति के अपने काम में व्यस्त रहने पर पत्नी के मन में ईष्र्या भाव पैदा हो सकता है। बुनियादी तौर पर मकर पति बहुत सीधा सादा व्यक्ति होता है और मेष पत्नी उसके लिये बहुत भारी पड सकती है। दोनों के स्वभाव में भारी अंतर होता है। कभी कभी पत्नी पति को उसके निराशा के मूड से बाहर निकाल लेती है। लेकिन इससे उनके बीच तीव्र झडपें नहीं रूकती है। 

यौन संबंधों में मकर पति अधिक कामी नहीं होता। किंतु थोथे बहाने कर उसके प्रस्ताव को अस्वीकार कर देने पर वह शीघ्र बुरा मान जाता है। उसकी निराशा भी उसके यौन जीवन को प्रभावित करती है। इस दौर में पत्नी को साध्वी का जीवन बिताने के लिये तैयार रहना चाहिये। 

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मेष - कुंभ:- 

अग्नि और वायु का मेल बैठता है। इस योग में स्वामी ग्रह मेष का मंगल और कुंभ का स्वामी शनि अपार उर्जा पैदा करता है। यह उसके रचनात्मक उपयोग पर निर्भर करता है। कुंभ जातक मेष जातक को और मेष जातक कुंभ जातक को अपना मित्र समझेगा। मेष जातक और कुंभ जातक दोनों को नई और परंपरा से भिन्न बातें पसंद आती है। किंतु यदि किसी कुघडी में कुंभ जातक अप्रत्याशित बात कर दे तो इससे मेष जातक धैर्य खोकर चिढ सकता है। अतः यह योग हलचलपूर्ण किंतु अस्थिर रहता है। 

मेष जातक और कुंभ जातिका की पहली भेंट का परिणाम दोनों के बीच आकर्षण ही हो सकता है। घनिष्ठ संपर्क में आने पर मेष जातक को पता चलेगा कि कुंभ स्त्री की दिलचस्पी अन्य व्यक्तियों में भी है। वह इसे सहन नहीं कर पाता। परिणामस्वरूप दोनों में विवाद होता है। और अहम को चोट लगने से मेष जातक अपना सारा क्रोध कुंभ जातिका पर निकालता है। अधिकांश कुंभ जातिकाएं मित्रता के संबंध पसंद करती है। लेकिन मेष जातक के पास इसके लिये समय नही होता। उसके लिये स्त्री केवल स्त्री होती है। और मित्रता समलैंगिक से ही करता है। मेष व्यक्ति को कुंभ स्त्री के स्वतंत्र वृति अपनाने पर आपत्ति होती है। 

वैसे दोनों अधिक कामी नहीं होते। अन्य गतिविधियों में व्यस्त रहने के कारण भागते दौडते ही उनहें मिलने का समय मिल पाता है। वे इसकी अधिक चिंता भी नहीं करते। 

यदि पत्नी मेष हो और पति कुंभ हो तो पति पत्नी को मित्र और पे्रमिका के रूप में देखना चाहेगा। कुंभ जातक मन से सुधारवादी होते है। वे आफिस, मित्रों आदि सभी को बदलने का प्रयास करते है। भले ही वे सफल न हो। अतः पत्नी का सामना असामान्य और सनकी व्यक्तियों से हो सकता है। कुंभ जातक प्रायः हरफनमौला होते है। वे अधिक कामी नहीं होते है। इसके लिये उन्हें समय ही नहीं मिलता। इच्छा होने पर ही वे प्यार जताते है। और पत्नी उन्हें बहुत स्वार्थी पे्रमी समझती है। 

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मेष - मीनः- 

अग्नि और जल एक दूसरे से बिल्कुल विपरीत है। दोनों के बीच समानता खोज पाना कठिन है। ओजपूर्ण मेष, मीन की रहस्यमय गहराई को मापने में असफल रहता है। उसके लिये मीन सौम्य या अनिश्चय वाली राशि है। यह संबंध लेन देन की भावना से ही सफल होता है। 

मेष जातक मीन जातिका के विचित्र और बदलते मूड को समझने में हमेशा असमर्थ होता है। किंतु इसे वह अधिक महत्वपूर्ण नहीं समझता। उसका संरक्षणात्मक रवैया मीन जातिका को परेशान कर सकता है। हो सकता है उस समय बीतने के साथ वे अपने को एक दूसरे के अनुकूल ढाल सकें। लेकिन उनके बीच पूर्ण समझ कभी स्थापित नही हो सकती है। मेष पति अनेक बार अपने कार्य में परिवर्तन कर सकता है और नये कार्य में पूरे उत्साह से लग सकता है। मीन पत्नी को इससे कितनी ही परेशानी हो, पति उससे समर्थन की आशा ही करेगा। जिससे तनाव पैदा होगा। पत्नी की वृत्ति पर पति का कोई ध्यान नहीं होता। 

दोनों के बीच यौन संबंधों में भी गलतफहमी हो सकती है। क्योंकि पत्नी रोमांटिक भ्रमों को बनाये रखना चाहती है। पति को पत्नी के साथ अधिक कोमलता बरतनी होगी। और अपनी स्वार्थी भावनाओं को नियंत्रण में रखना होगा। अन्यथा पत्नी की वैवाहिक संबंधों में रूचि समाप्त हो जायेगी। 

मेष जातिका और मीन जातक के संबंध जटिल हो सकते है। पति को निराशा या थकान में पत्नी की शक्ति और सहारे की आवश्यकता होती है। किन्तु ज्यों ही वह उसे दुलारने के लिये स्वयं को तैयार करती है, अचानक पति का पौरूष जाग जाता है और वह संरक्षक पति की भूमिका ग्रहण करने लगता है। कभी कभी मीन पति किसी समस्या को लेकर अपने खोल में घुस जाता है। और पत्नी उससे कट जाती है। वैसे वह अधिकांश निर्णय पत्नी पर छोड देता है। लेकिन यदि पत्नी के निर्ण उसकी योजनाओं से मेल न खाये तो वह उनकी उपेक्षा कर देता है।
 
यौन संबंधों में मीन पति स्थिति के अनुसार अपने को ढाल सकता है। किन्तु वह बहुत संवेदनशील होता है और कोई आलोचना सहन नहीं कर सकता। लडकों के साथ शराब पीने की उसकी प्रवृति से कभी कभी उसके यौन जीवन पर प्रभाव पडता है। पत्नी स्वयं को उपेक्षित महसूस करती है। वैसे उनके लिये ये आनंद के क्षण होते हैं।   

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