Barah bhavo me shukra ka shubh ashubh samanya fal or upay
बारह भावों में शुक्र का शुभ अशुभ सामान्य फल और उपाय।
भारतीय ज्योतिष के अनुसार शुक्र लाभदाता ग्रह माना गया है। यह वृषभ एवं तुला राशियों का स्वामी है। शुक्र मीन राशि में उच्च भाव में रहता है और कन्या राशि में नीच भाव में रहता है। बुध और शनि शुक्र के सखा ग्रह हैं जबकि सूर्य और चंद्र शत्रु ग्रह हैं तथा बृहस्पति तटस्थ ग्रह माना जाता है। ज्योतिष के अनुसार शुक्र रोमांस, कामुकता, कलात्मक प्रतिभा, शरीर और भौतिक जीवन की गुणवत्ता, धन, विपरीत लिंग, खुशी और प्रजनन, स्त्रैण गुण और ललित कला, संगीत, नृत्य, चित्रकला और मूर्तिकला का प्रतीक है। जिनकी कुण्डली में शुक्र उच्च भाव में रहता है उन लोगों के लिए प्रकृति की सराहना करना एवं सौहार्दपूर्ण संबंधों का आनंद लेने की संभावना रहती है। हालांकि शुक्र का अत्यधिक प्रभाव उन्हें वास्तविक मूल्यों के बजाय सुख में बहुत ज्यादा लिप्त होने की संभावना रहती है। शुक्र तीन नक्षत्रों का स्वामी है: भरणी, पूर्वा फाल्गुनी और पूर्वाषाढ़ा।
शुक्र जीवनसंगी, प्रेम, विवाह, विलासिता, समृद्धि, सुख, सभी वाहनों, कला, नृत्य, संगीत, अभिनय, जुनून और काम का प्रतीक है। शुक्रा के संयोग से ही लोगों को इंद्रियों पर संयम मिलता है और नाम व ख्याति पाने के योग्य बनते हैं। शुक्र के दुष्प्रभाव से त्वचा पर नेत्र रोगों, यौन समस्याएं, अपच, कील-मुहासे, नपुंसकता, क्षुधा की हानि और त्वचा पर चकत्ते हो सकते हैं।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार ग्रहीय स्थिति दशा होती है, जिसे शुक्र दशा कहा जाता है। यह जातक पर २० वर्षों के लिये सक्रिय होती है। यह किसी भी ग्रह दश से लंबी होती है। इस दशा में जातक की जन्म-कुण्डली में शुक्र सही स्थाण पर होने से उसे कहीं अधिक धन, सौभाग्य और विलासिता सुलभ हो जाती है। इसके अलावा कुण्डली में शुक्र अधिकतर लाभदायी ग्रह माना जाता है। शुक्र हिन्दू कैलेण्डर के माह ज्येष्ठ का स्वामी भी माना गया है। यह कुबेर के खजाने का रक्षक माना गया है। शुक्र के प्रिय वस्तुओं में श्वेत वर्ण, धातुओं में रजत एवं रत्नों में हीरा है। इसकी प्रिय दशा दक्षिण-पूर्व है, ऋतुओं में वसंत ऋतु तथा तत्त्व जल है।
बारह भावों में शुक्र के शुभ अशुभ सामान्य फल इस प्रकार है। आपको जिस भाव का फल देखना हो, उस लाइन पर क्लिक कीजिये :-