Chathe bhav me shukra ka shubh ashubh samanya fal
छठे भाव में शुक्र का शुभ अशुभ सामान्य फल
शुभ फल : छठें भाव में शुक्र होने से
जातक का जन्म श्रेष्ठकुल में होता है।सुशिक्षित और विवेकशील विद्वान् होता है।
जातक शत्रुओं का नाश करने वाला, शत्रुहीन होता है अर्थात्
इसके शत्रु नहीं होते। छठेभाव में शुक्र होने से भाई, बहनों तथा मामा को सुख प्राप्त होता है। मामा को कन्या संतति होती है। जातक के
मित्र अच्छे होते हैं। जातक को श्रेष्ठ पुत्र होता है। लग्न से छठे स्थान में
शुक्र होने से जातक जाति या संतान वाला, तथा पुत्र और पौत्र वाला
होता है। जातक को सुख और वैभव अच्छा मिलता है। नौकरी से और नौकरों से लाभ होता है।
विवाह के बाद आहार-विहार नियमित रखने से प्रकृति अच्छी रहती है। पुरुषराशि का शुक्र होने से पत्नी सुन्दर, बोलने में कुछ कर्कश तथा सुकेशी होती है। शुभफल पुरुषराशि में होने से अधिक मिलते
हैं। छठेभाव में शुक्र अस्तगत या
नीचराशि के अतिरिक्त अन्य राशि में होने से शत्रुओं का पराभव होता है।
अशुभ फल : छठे भाव का शुक्र अनिष्ट
फल देता है। शुक्र के प्रभाव में उत्पन्न जातक डरपोक, बहुत शत्रुओं से पीडि़त, स्त्रियों को अप्रिय, धनेप्सु और दुर्बल होता है। जातक को शोक तथा निन्दा के अवसर बहुत आते है। जीवन
में शत्रुओं से घिरा-घिरा और पराजित-सा अनुभव करता है। ऐसे मित्रों की संगति मिलती
है जो दुराचारी होते हैं और जातक को भी आचारहीन कर देते हैं। छठे भाव में शुक्र
होने से जातक को स्त्रियाँ प्रेमदृष्टि से, अभिलाषापूर्ण नजर से नहीं
देखती हैं। जातक स्त्रियों का अप्रिय, कामेच्छा बहुत कम होती है।
स्त्री पक्ष से जातक को सुख नहीं मिलता और गुप्त रोगों से पीडि़त रहता है।
जननेन्द्रिय संस्थान निर्बल होता है इसलिए शीघ्रपतन,
बहुमूत्रता
जैसी बीमारियां होती हैं। इसका अवैध सम्बन्ध अनेक युवतियों से होता है। अतएव यह
रुग्ण रहता है और दु:ख भोगता है।
जातक का खर्च भी बढ़चढ़ कर होता रहता है-धनव्यय चाहे सन्मार्ग में हो, चाहे कुमार्ग में, आय से भारी मात्रा में होता है जिससे दारिद्य, ऋणग्रस्तता, अशान्ति तथा मनोव्यग्रता बनी रहती है। धनहीन होता है। जातक अपने धन का खर्च अनुचित प्रकार से करता हैय जहाँ धन का व्यय होना चाहिए वहाँ व्यय नहीं करता है। प्रयत्न करने पर भी विफलता मिलती है। कार्य को फलोन्मुख बनाने के लिए भारी उद्योग और यत्न करने पर भी जातक की कार्यसिद्धि नहीं होती, प्रत्युत काम ही विगड़ जाता है। कुमंत्र के जप से दु:ख उठाना पड़ता है। जातक को गुरुजनों से माता पिता आदि से सुख प्राप्ति नहीं होती है। प्रत्युत जातक का रुख या रवैया गुरुजनों के विरोध में रहता है। शुक्र रिपुभाव (छठास्थान) में होने से जातक को स्त्री सुख तथा ऐश्वर्य तथा वैभवसुख नहीं मिलता है। रिपुभाव में शुक्र होने से जातक नाच-गाानों में आसक्त रहता है। अपने नाम से स्वतंत्र व्यवसाय में अच्छा लाभ नहीं होता ।
शुक्र के शुभ फल प्राप्त करें इन सरल उपायों से
पुरुषराशि का शुक्र होने से सुख प्राप्ति होती है। शुक्र अशुभ सम्बन्ध में होने से अति विषयभोग से स्वास्थ्य विगड़ता है, जननेंद्रिय सम्बन्धी गुप्त रोग होते हैं। मूत्रपिंड के विकार, प्रमेह, उपदंश आदि तथ गले के रोग होते हैं। षष्ठेश बलवान् हो, या बलवान् ग्रहों से युक्त होने से शत्रु और अपनी जाति के लोगों की वृद्धि होती है।
जातक का खर्च भी बढ़चढ़ कर होता रहता है-धनव्यय चाहे सन्मार्ग में हो, चाहे कुमार्ग में, आय से भारी मात्रा में होता है जिससे दारिद्य, ऋणग्रस्तता, अशान्ति तथा मनोव्यग्रता बनी रहती है। धनहीन होता है। जातक अपने धन का खर्च अनुचित प्रकार से करता हैय जहाँ धन का व्यय होना चाहिए वहाँ व्यय नहीं करता है। प्रयत्न करने पर भी विफलता मिलती है। कार्य को फलोन्मुख बनाने के लिए भारी उद्योग और यत्न करने पर भी जातक की कार्यसिद्धि नहीं होती, प्रत्युत काम ही विगड़ जाता है। कुमंत्र के जप से दु:ख उठाना पड़ता है। जातक को गुरुजनों से माता पिता आदि से सुख प्राप्ति नहीं होती है। प्रत्युत जातक का रुख या रवैया गुरुजनों के विरोध में रहता है। शुक्र रिपुभाव (छठास्थान) में होने से जातक को स्त्री सुख तथा ऐश्वर्य तथा वैभवसुख नहीं मिलता है। रिपुभाव में शुक्र होने से जातक नाच-गाानों में आसक्त रहता है। अपने नाम से स्वतंत्र व्यवसाय में अच्छा लाभ नहीं होता ।
शुक्र के शुभ फल प्राप्त करें इन सरल उपायों से
पुरुषराशि का शुक्र होने से सुख प्राप्ति होती है। शुक्र अशुभ सम्बन्ध में होने से अति विषयभोग से स्वास्थ्य विगड़ता है, जननेंद्रिय सम्बन्धी गुप्त रोग होते हैं। मूत्रपिंड के विकार, प्रमेह, उपदंश आदि तथ गले के रोग होते हैं। षष्ठेश बलवान् हो, या बलवान् ग्रहों से युक्त होने से शत्रु और अपनी जाति के लोगों की वृद्धि होती है।