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Monday, 6 April 2020

gyarve bhav me guru ka shubh ashubh samanya fal / ग्यारहवे भाव में गुरु का शुभ अशुभ सामान्य फल

Posted by Dr.Nishant Pareek

ग्यारहवें भाव में गुरु का शुभ अशुभ सामान्य फल  


शुभ फल : ग्यारहवें भाव में बृहस्पति होने से जातक सुन्दर, नीरोगी, स्वस्थ देह वाला, दीर्घायु होता है। जातक प्रमाणिक, सच बोलनेवाला, कुशाग्र बुद्धि, विचारवान् होता है। सन्तोषी, उदार, परोपकारी और साधु स्वभाव का होता है। सज्जनों की संगति में रहता है। "लाभस्थाने ग्रहा: सर्वे बहुलाभप्रदा:" इसके अनुसार सभी ग्रंथकारों ने प्राय: शुभफल बतलाए हैं। जातक को राज्य द्वारा सम्मान और लाभ के विलक्षण योग प्राप्त होते हैं। श्रीमान् और खानदानी लोगों से मित्रता होती है। अच्छे मित्रों से युक्त होता है। मित्रों की मदद से आशाएं और महत्वाकांक्षाएं पूरी होती हैं। उनकी सलाह उत्तम और फायदेमंद होती हैं। अपने कामों से समाज में नाम होता है और श्रेष्ठता प्राप्त होती है।

 ग्यारहवें स्थान में स्थित बृहस्पति से पुष्कल अर्थ-लाभ, धनप्राप्ति अच्छी होती है। धनधान्य से परिपूर्ण भाग्यवान् होता है। जातक के धनप्राप्ति के मार्ग अपरिमित और असंख्य होते हैं। उत्तम रत्न, विविध वस्त्रों से युक्त, और व्यापार से लाभ प्राप्त होते हैं। सोना-चांदी आदि उत्तम और अमूल्य वस्तु प्राप्त होती है। जातक हाथी घोड़े आदि धनसंपत्ति से युक्त होता है। पृथ्वी पर जातक के लिए कुछ भी अलभ्य नहीं होता है। राजा, यज्ञ, हाथी, जमीन, और ज्ञान की क्रिया से लाभ होता है। 32 वें वर्ष बहुत लाभ होता है। कई प्रकार से प्रतिष्ठा प्राप्ति होती है।

जातक के पास सवारियाँ भी बहुत होती हैं, उत्तमवाहन प्राप्त होते हैं। जातक सेवकों का सुख प्राप्त करता है। नौकर चाकर बहुत होते हैं। जातक अनेक स्त्रियों का उपभोग करता है और पांच पुत्र उत्पन्न करता है। संतति सुख अच्छा मिलता है। पुत्र के जन्म से भाग्योदय शुरु होता है। जातक अपने पिता के भार को संभालनेवाला अर्थात् अपने पिता का पोषक या सहायक होता है। पराक्रमी होता है, शत्रुगण संग्राम में शीघ्र ही विमुख होकर भाग जाते हैं। मंत्रज्ञ तथा दूसरों के शास्त्र जानने वाला होता है। धनवान् लोग तथा ब्राह्मणगण(विद्वान्) स्तुति करते हैं। राजपूज्य, राजकृपायुक्त होता है। अपने कुल की बढ़ौत्री करनेवाला होता है। संतति-संपत्ति और विद्या, इन तीनों में से एक का अच्छा लाभ, एकादशस्थ गुरु का सामान्य फल है। कथन का तात्पर्य यह है कि यदि संपत्ति अच्छी होगी तो दूसरी दोनों संतान और विद्या कम होगी। पूर्वार्जित संपत्ति प्राप्त नहीं होती या अपने हाथों नष्ट हो जाएगी या दूसरे हड़प कर लेगें।  शुभफलों का अनुभव कर्क, कन्या और मीन को छोड़कर अन्यराशियों में आता है। गुरु द्विस्वभाव राशि में होने से धार्मिक और संसारदक्ष होता है। 
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 अशुभफल : कल्याण वर्मा और गर्ग ने कुछ अशुभफल भी कहे हैं-'शिक्षा न होना।' 'अल्प संतान होना।' ये अशुभफल हैं। जातक का द्रव्य (धन) दूसरों के लिए होता है। जातक के उपभोग के लिए नहीं होता है। अर्थात् जातक कृपण होता है अत: दान-भोग आदि में अपने धन का उपयोग स्वयं नहीं करता है-और जातक के धन का आनन्द दूसरे लेते हैं। अल्पसन्ततिवान् अर्थात् पुत्र भी बहुत नहीं होते। विद्या बहुत नहीं होती अर्थात् बहुत विद्वान् नहीं होता है। एकादश में गुरु होने से पुत्र बहुत दुराचारी होते है। मां-बाप से झगड़ते हैं, मारपीट करने से भी पीछे नहीं रहते । निरुपयोगी होते हैं। अपना पेट भी भर नहीं सकते।     

 गुरु कर्क, कन्या, धनु या मीन में होने से संतति या तो होती नहीं, होती है तो मृत होती है। अथवा स्त्री पुत्रोत्पत्ति में अयोग्य होती है। गुरु के प्रभाव स्वरूप विपत्तियों की भरमार रहती है। स्वयं रोगी होना, पत्नी का रुग्णा होना, पत्नी से वैमनस्य, द्वितीय विवाह, कन्याएं ही होना, बड़े भाई की मृत्यु, निर्धनी, ऋण लेना, चुकाने में असमर्थ होने से जेल जाना-व्यवसाय में नुकासान, परिणामत: वेइज्जत होकर गांव छोड़ अन्यत्र वास करना आदि-आदि अशुभ फल मिलते हैं।
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