Showing posts with label मंगल दोष. Show all posts
Showing posts with label मंगल दोष. Show all posts

Wednesday, 1 March 2017

दाम्पत्य जीवन में ग्रह युति का फल

Posted by Dr.Nishant Pareek
दाम्पत्य जीवन में ग्रह युति का फल :- 

                                दाम्पत्य जीवन में अन्य ग्रह युतियों का भी बहुत प्रभाव पड़ता है।  इसलिए वैवाहिक जीवन की पूर्ण सफलता के लिए इन ग्रह युतियों का अध्ययन करना भी बहुत आवश्यक है।  :-


  • शुक्र - मंगल युति:- शुक्र सौन्दर्य , भावनाएं , भोग , यौन  सम्बन्ध , व वीर्य का प्रमुख कारक है।  मंगल साहस शक्ति व तेज का मुख्य कारक है।  तथा महिला में रज और पुरुष में वीर्य का अधिष्ठाता  है।  इसलिए इन दोनों की युति कुंडली में मुख्य भूमिका निभाती है।  कुंडली मिलते समय भी इनका विशेष विचार करना चाहिए।  
  • मंगल - शनि युति :- कुण्डली में मंगली भाव अर्थात पहले चौथे सातवें आठवें तथा बारहवें में मंगल शनि की युति दाम्पत्य जीवन के लिए शुभ नही है।  या इन्ही भावों में दोनों का एक दूसरे को देखना भी अशुभ होता है।  सुखी वैवाहिक जीवन के लिए दोनों की कुंडली में ग्रहों का सन्तुलन होना बहुत आवश्यक है।  नही तो जीवन भर कटुता रहती है।



  • चन्द्र - शुक्र :-  वैसे तो चन्द्र शुक्र की युति शुभ मानी जाती है परन्तु वैवाहिक जीवन में यह अशुभ प्रभाव भी देती है।  इस युति के प्रभाव से दोनों के मध्य वैचारिक मतभेद असंतोष चिंता व मन का भटकाव आदि परेशानियां आती है।  यदि इस युति पर कोई पाप ग्रह  की युति या दृष्टि हो तो तलाक तक बात चली जाती है।  यदि दोनों में से किसी एक की कुंडली लग्न , द्वितीय , अथवा सप्तम भाव में ये युति हो और दूसरे की कुंडली में भी इन्ही भावों में यह युति हो अथवा दोनों की आपस में दृष्टि हो तो फिर इस युति का प्रभाव नष्ट हो जाता है।  
  • गुरु - मंगल युति :-  प्राचीन शास्त्रों के अनुसार यदि मंगल व गुरु की युति हो अथवा मंगल पर गुरु की दृष्टि हो तो मंगल दोष समाप्त हो जाता है।  अनुभव सिद्ध बात है कि यदि यह युति किसी भी मांगलिक भाव में हो तो मंगल का प्रभाव समाप्त नही होता. क्योकि गुरु जिस भाव में बैठता है उसकी हानि करता है तथा मंगल भी अपना अशुभ प्रभाव देता है।  यदि मंगल गुरु के सामने हो तो भी मंगल दोष में वृद्धि होती है।  क्योकि मंगल की दृष्टि गुरु को दूषित करती है।  
  • मंगल - राहु युति :-  कहते है कि राहु मंगल की युति होने पर मंगल दोष समाप्त हो जाता है।  परन्तु अनुभव में देखा है कि  सप्तम व अष्टम भाव में यह युति अधिक हानिकारक होती है।  यदि किसी एक की कुंडली में राहु मंगल का योग हो तथा दूसरे की कुंडली में ठीक उसके विपरीत भाव में यह युति हो तो दोष समाप्त हो जाता है।  

Read More

Tuesday, 28 February 2017

जानिए किस ग्रह की दशा में विवाह होगा ?

Posted by Dr.Nishant Pareek
जानिए किस ग्रह की दशा में विवाह होगा ?

कुंडली में दशाओं से भी विवाह का समय ज्ञात किया जा सकता है कि किस ग्रह की दशा अन्तर्दशा में विवाह होने की सम्भावना होती है।  

  •  सप्तमेश की दशा अन्तर्दशा में विवाह होता है।  
  • शुक्र की दशा अन्तर्दशा में भी विवाह सम्भव होता है।  
  • दूसरे भाव का स्वामी जिस राशि में हो उसके स्वामी को दशा में विवाह की पूरी सम्भावना होती है।  
  • आठवें या दसवें भाव का स्वामी के स्वामी की दशा में भी विवाह की पूर्ण सम्भावना होती है।  
  • सातवें भाव में स्थित ग्राह की दशा में भी विवाह की पूरी सम्भावना होती है  . 
  • शुक्र जिस राशि में हो यदि उसका स्वामी ६,८,१२, भाव में न हो तो उसकी दशा में विवाह होता है।  
  • लग्नेश व सप्तमेश को स्पष्ट कर इनके राशि अंश व कला आदि के तुल्य राशि पर जब गुरु गोचर क्रम से प्रवेश करे तब विवाह होता है।  


  • चन्द्र व सप्तमेश की स्पष्ट कर इनके राशि व आदि के तुल्य गोचर क्रम में गुरु के प्रवेश करने करने पर विवाह होता है।  
  • शुक्र जितना लग्नेश  के पास होगा उतनी ही जल्दी विवाह होता है  . 
  •   शुक्र, लग्न , और चन्द्रमा , से सप्तम भाव के स्वामी की दशा की संख्या जोड़कर उतनी आयु में विवाह होता है।  
  • शुक्र अथवा चन्द्रमा से ७ वें अथवा त्रिकोण में गोचर में गुरु के जाने के पर भी विवाह होता है।  
  • चन्द्र लग्न से गुरु लग्न , दूसरे , तीसरे पांचवे सातवें नवे  अथवा ग्यारहवें भाव में जाने पर विवाह होता है।  
  • सप्तमेश पंचमेश या एकादशेश की दशा में भी विवाह होता है।  
  • सप्तमेश यदि शुक्र के साथ हो तो उसकी दशा में भी विवाह होता है।
  • लग्न से दूसरे भाव के स्वामी की भुक्ति में भी विवाह होता है।  
  • दशमेश और अष्टमेश की भुक्ति में भी विवाह होता है।  
  • नवम सप्तम व दशम भाव के स्वामी की दशा में भी विवाह होता है।  
  • शुक्र या   चन्द्रमा में से जो बली होता है , उसकी महादशा में विवाह होता है।  
                     इस तरह कुंडली में विवाह के कारक ग्रहों का अध्ययन के बाद विवाह का समय जान कर फिर उस अवस्था में उपरोक्त योग व दशा तथा गोचर में गुरु की स्थिति के आधार  पर विवाह का समय जाना जा सकता है।  कुंडली में योगों के अध्ययन के बाद विवाह की आयु , विवाह कारक योग दशा 
Read More
Powered by Blogger.