Nave bhav me shani ka shubh ashubh samanya fal
नवें भाव में शनि का शुभ अशुभ सामान्य फल
शुभ फल: प्राचीन लेखकों ने नवम भावस्थ शनि के फल मिश्रित रूप में बतलाए हैं। किसी ने शुभ और किसी ने अशुभ फल बतलाए हैं। नवम भाव में शनि होने से जातक भ्रमणशील, धर्मात्मा, साहसी, स्थिरचित और शुभ कर्मकर्ता होता है। मीठा बोलनेवाला, विचारशील, दानशील और दयालु होता है। रजोगुणप्रधान होता है। जातक का शील-अर्थात् आचरण और दूसरों के प्रति व्यवहार मृदुल तथा सर्वाकर्षक और मनोरम होता है। जातक का स्वभाव निर्मल होता है। अर्थात् जातक कुटिल न होकर निर्मल और सरल चित्त होता है। जातक कोमल स्वभाव का होकर भी निर्णय लेने में कठोर होता है। नवमभाव में शनि स्थित होने से जातक की बुद्धि विषयवासना से विमुख और विरक्त होती है। आध्यात्मिक रुचिवाला होता है। योग प्रतिपादक ग्रंथों में रुचि रखता है, अर्थात् योगशास्त्र का अभ्यास करता है। तीर्थयात्रा करने के लिए उद्यत और यत्नशील होता है। ज्योतिष, तन्त्र आदि गूढ़ शास्त्रों से रुचि रहती है।
नवम भाव में शनि हो तो व्यक्ति प्रसिद्ध होता है। जातक के द्वारा इस प्रकार के कार्य होते हैं, जो मृत्यु के बाद भी याद रखे जाते हैं। नवम भाव में शनि होने से जातक भाग्यवान् होता है। म्लेच्छ जाति के लोगों का सहयोग भाग्योदय में हो सकता है। शनि के नवमभाव में होने से जातक अधिकार पाता है। पुरानी इमारतों की मरम्मत आदि करवाता है। 39वें वर्ष में तालाब-मन्दिर आदि साधारण जनता के हित के लिए बनवाता है। जातक का स्वभाव अभ्यासप्रिय, गम्भीर, दूसरों का तिरस्कार करने वाला होता है। जातक पुत्रवान्, धनवान् तथा सुखी होता है। जातक पुत्र, धन तथा सुख से युक्त होता है। शिक्षा पूरी होती है-बी0एस-सी, एम0एम-सी, आदि उपाधियाँ प्राप्त होती हैं। शिक्षक, वकील आदि के रूप में सफलता मिलती है। नवम स्थान के शनि से साधारण लोग 20 वें वर्ष से आजीविका का प्रारम्भ करते हैं। उच्चवर्ग के लोगों में आजीविका का प्रारम्भ 27 वें वर्ष से होता है। नवम शनि होने से बुजुर्गों की संपत्ति उत्तराधिकार से प्राप्त करता है और इसमें कुछ बढ़ोत्री भी होती है। शनि स्वतंत्र व्यवसाय या व्यापार के लिए भी कहीं पर अनुकूल होता है। अन्य राशियों में शनि हाने से छोटे भाई नहीं रहते।
नवमस्थ शनि उच्च में या स्वक्षेत्र में होने से जातक वैकुंठ से आकर धर्मपूर्वक राज्य करके दोबारा वैकुण्ठ को जाता है। अर्थात् जातक के पूर्वजन्म तथा पुनर्जन्म देानों अच्छे होते हैं। शनि नवमभाव में स्वगृही होने से जातक महेश्वर यज्ञ करनेवाला, विजयी, राजचिन्हों तथा राजा के वाहनों से युक्त होता है। शनि उच्च या स्वगृह में होने से जातक का पिता दीर्घायु होता है। नवमभाव में तुला, मकर, कुंभ या मिथुन में शुभ सम्बंधित शनि होने से जातक विद्याव्यासंगी, विचारी, शांत, धीरोदात्त, स्थिरवृत्ति तथा मितभाषी होता है। कानून, दर्शनशास्त्र, वेदांत आदि जटिल विषयों में रुचि रखता है और प्रवीणता प्राप्त करता है। न्याय, दान, धर्मिक संस्थाएँ, विद्यालय आदि में अपनी पवित्रता तथा श्रेष्ठबुद्धि से अच्छा स्थान प्राप्त करता है। दैवी धर्म संस्थापकों की कुंडली में अक्सर यह योग देखा गया है। नवम स्थान में शुभ शनि होने से विदेश भ्रमण के लिए अच्छा है।
अशुभ फल: नवम स्थान में पीडि़त शनि होने से जातक द्वेषी, मदांध, दांभिक, कंजूस, स्वार्थी, क्षुद्रबुद्धि, वाचाल, छद्मी, तथा मर्मघातक बोलने वाला होता है। जातक धर्म के विषय में दुराग्रही, पिता तथा देवता पर आस्था न रखनेवाला, तीर्थों में श्रद्धा न रखने वाला, तथा भाग्यहीन होता है। नवें स्थान में बैठा शनि रोगी, दुबला शरीर डरपोक, बनाता है। शरीर के अंगों में कहीं पर विकार और हीनता होती है। नवम शनि सुहृद्वर्ग से सुखप्राप्ति में बाधक होता है। जातक दुष्ट बुद्धि वाला तथा सौजन्यरहित होता है। जातक मन्दबुद्धि अर्थात् मूर्ख होता है। दूसरों को संताप देनेवाला होता है। विवाह से सम्बन्धित रिश्तेदारों से हानि होती है। विदेश में घूमने से, कानूनी व्यवहारों में, लम्बे प्रवास से नुकसान होता है। ग्रन्थ प्रकाशन में असफलता मिलती है। शनि सौतेली माँ होने का योग करता है। शनि नवम होने से जातक भाग्यहीन, धनहीन, धर्महीन, पुत्रहीन भ्रातृहीन तथा पितृहीन होता है।
शनिकृत कष्टों के निवारण हेतु सरल उपाय
शनि नवमभाव में होने से जातक शत्रुवशवर्ती, क्रूर और सदैव परस्त्रीगामी होता है। नवम में शनि होने से जातक की भाग्य की हानि होती है तथा मित्रों को कारावास होता है। नवमभाव में शनि होने से जातक पुत्र तथा नौकरों के लिए चिन्तित होता है। नवम स्थान वृष, कन्या, तुला, मकर तथा कुंभ राशियों में शनि होने से पूर्वार्जित संपत्ति नहीं होती, हो तो भी 34 वें वर्ष तक अपने ही हाथों से नष्ट होती है। दरिद्र होने का योग बनता है। स्थिरता नहीं होती, आदर नहीं होता। पिता की मृत्यु शीघ्र होती है। यदि पिता जीवित रहे तो परस्पर व्यक्तिगत वैमनस्य रहता है। भाई-बहिनों से अनबन होती है। परस्पर स्थिति अच्छी नहीं रहती-विभाजन होता है। विभाजन से स्थिति अच्छी होती है। विवाह के विषय में अनियमितता होती है। या तो विवाह करवाना पसन्द नहीं होता अथवा कोर्ट-रजिस्टर पद्धति से विवाह कर लेते हैं। यदि विदेश यात्रा हुई तो विदेशी युवति से विवाह कर लेते हैं। अशुभ फलों का अनुभव वृष, कन्या, तुला, मकर तथा कुंभ में आता है।