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Wednesday, 23 June 2021

Akshya tritiya vrat katha | aakha teej vrat katha | aakha teej ki kahani | अक्षय तृतीया या आखातीज व्रत कथा

Posted by Dr.Nishant Pareek

Akshya tritiya vrat katha | aakha teej vrat katha | aakha teej ki kahani |  




अक्षय तृतीया या आखातीज व्रत कथा

अक्षय तृतीया को आखातीज के नाम से भी जाना जाता है। आखातीज का व्रत वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की तीज को किया जाता है।

इस दिन श्री लक्ष्मी जी सहित भगवान नारायण की पूजा की जाती है । पहले भगवान नारायण और लक्ष्मी जी की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराना चाहिए। उन्हें पुष्प और पुष्प माल्यार्पण करना चाहिए। भगवान की धूप, दीप से आरती उतारकर चंदन लगाना चाहिए। मिश्री और भीगे हुए चनों का भोग लगाना चाहिए। भगवान को तुलसी-दल और नैवेद्य अर्पित कर ब्राह्मणों को भोजन कराकर श्रद्धानसार दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए। इस दिन सभी को भगवत्-भजन करते हुए सदचिंतन करना चाहिए। अक्षय तृतीया के दिन किया गया कोई भी कार्य बेकार नहीं जाता इसलिये इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। अक्षय तृतीया का व्रत भगवान लक्ष्मीनारायण को प्रसन्नता प्रदान करता है। वृंदावन में केवल आज के ही दिन बिहारीजी के पाँव के दर्शन होते हैं। किसी भी शुभ कार्य को करने के लिये यह दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन प्रात:काल में मूग और चावल की खिचड़ी बिना नमक डाले बनाए जाने को बड़ा ही शुभ माना जाता है। इस दिन पापड़ नहीं सेंका जाता और न ही पक्की रसोई बनाई जाती है। इस दिन नया घड़ा, पंखा, चावल, चीनी, घी, नमक, दाल, इमली, रुपया, इत्यादि को श्रद्धापूर्वक ब्राह्मण को दान देते हैं।







अक्षय तृतीया या आखातीज व्रत की कथा

अत्यन्त प्राचीन काल की बात है। महोदय नामक एक वैश्य कुशावती नगर में निवास करता था। सौभाग्यवश महोदय वैश्य को एक पंडित द्वारा तृतीया के व्रत का विवरण प्राप्त हुआ। उसने भक्ति-भाव से विधि नियमपर्वक व्रत रखा। व्रत के प्रभाव से वह वैश्य कुशावती नगरी का महाप्रतापी और शक्तिशाली राजा बन गया। उसका कोष हमेशा स्वर्ण-मुद्राओं और हीरे जवाहरातों से भरा रहता था। राजा स्वभाव से दानी भी था। वह उदार मन होकर बिना सोचे समझे दोनों हाथों से दान देता था। एक बार राजा के वैभव और सुख-शान्तिपूर्ण जीवन से आकर्षित होकर कुछ जिज्ञासु लोगों ने राजा से उसकी समृद्धि और प्रसिद्धि का कारण पूछा। राजा ने स्पष्ट रूप से अपने अक्षय तृतीया व्रत की कथा को सुनाया और इस व्रत की कृपा के बारे में भी बताया। राजा से यह सुनकर उन जिज्ञासु पुरुषों और राजा की प्रजा ने नियम और विधान सहित अक्षय तृतीया व्रत रखना प्रारम्भ कर दिया। अक्षय तृतीया व्रत के पुण्य प्रताप से सभी नगर-निवासी, धन-धान्य से पूर्ण होकर वैभवशाली और सुखी हो गये। हे! अक्षय तीज माता जैसे आपने उस वैश्य को वैभव--सुख और राज्य प्रदान किया वैसे ही अपने सब भक्तों एवं श्रद्धालुओं को धन-धान्य और सुख देना। सब पर अपनी कृपादृष्टि बनाए रखना। हमारी आप से यही विनती है।

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