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Friday, 27 March 2020

Dusre bhav me guru ka shubh ashubh samanya fal/ दूसरे भाव में गुरु का शुभ अशुभ सामान्य फल

Posted by Dr.Nishant Pareek
 दूसरे भाव में गुरु का शुभ अशुभ सामान्य फल


शुभ फल : द्वितीयभाव में जो-जो बातें देखी जाती हैं उन सबका सुख प्राप्त होता है। दूसरे स्थान में बृहस्पति होने से जातक सुन्दर मुखाकृति वाला, रूपवान्, सुमुख, सुंदर शरीर और आयुष्मान् होता है। जातक गुणी, श्रेष्ठ-दानी, सुशील, दीनदयालु, निर्लोभी, निरूपद्रवी, विनम्र, सत्संगी, साहसी और सदाचारी होता है। जातक मधुरभाषी, सर्वजनप्रिय, सम्माननीय होता है तथा सबलोग आदर-मान करते हैं। बुद्धिमान्, विद्या-विनययुक्त, विद्याभ्यासी विवेकसंपन्न, विद्वान, ज्ञानी, गुणज्ञ, होता है। सुकार्यरत, पुण्यात्मा, कृतज्ञ, राजमान्य, लोकमान्य, भाग्यवान् होता है। कवि की सी कोमल भावनाओ से युक्त होता है। मान-प्रतिष्ठा को ही धन मानता है। दूसरे भाव का बृहस्पति जातक को नेतृत्व के गुणों से युक्त करता है। कीर्ति से युक्त होता है। सदैव उत्साही होता है।

 वाग्मी (बोलने में कुशल) होता है। बुद्धिमान् और कुशलवक्ता होता है। जातक भाषण में कुशल, बोलने में चतुर, तथा प्रसन्नमुख होता है। द्वितीयभावगत बृहस्पति के प्रभाव में उत्पन्न व्यक्ति वाचाल होता है-बोलने में प्रगल्भ होता है। जातक की वाणी अच्छी होती है-अर्थात् मितभाषी यथार्थ और मधुरभाषी होता है। जातक लोगों के बीच सभा में अधिक बोलने वाला होता है। जातक को उत्तम भोजन प्राप्त होते हैं। जातक धनी और सर्वाधिकार प्राप्तकर्ता होता है। जातक सम्पत्ति और सन्ततिवान्, धनाढ़्यय होता है। जातक को प्रयत्न से धन का लाभ होता है। मोतियों के व्यापार से धनवान् होता है। जातक पशुधन से भी धनाढ़्य होता है। अनेक प्रकार के वाहन-हाथी, घोड़े, मोटर आदि से युक्त होता है।

 गुरु धनस्थान में हाने से या इस स्थान पर गुरु की दृष्टि होने से धनधान्य का सुख मिलता है। धनस्थ गुरु अनेक प्रकारों से धन का संग्रह और संचय करवाता है। धन का संग्रह होता है। सोना चांदी प्राप्त करने वाला, सरकारी नौकरी, कानूनी काम, बैंक, शिक्षा संस्थान, देवालय, धर्मसंस्था में यश मिलता है। रसायनशास्त्र, और भाषाओं के ज्ञान में निपुणता प्राप्त होती है।

 द्वितीयभाव में बृहस्पति होने से जातक की स्वाभाविक रुचि काव्यशास्त्र की ओर होती है। द्वितीयभाव का बृहस्पति दंडनेतृत्व शक्ति अर्थात् राज्याधिकार देता है। जातक अपराधीजनों को दंड देने का अधिकारी होता है-अर्थात् मैजिस्ट्रेट-कलक्टर आदि न्यायाधीश होता है। कुटुंब के व्यक्तियों से और पत्नी से अच्छा सुख मिलता है। जातक की पत्नी सुन्दर होती है। पत्नी से संतुष्ट होता है। बंधुओं से आनन्द प्राप्त होता है। 27 वें वर्ष राजा से आदर पाता है। निर्वैर-अर्थात् शत्रुहीन होता है। शत्रुओं को पर विजय करने वाला होता है।  गुरु कर्क और धनुराशि में होने से धनवान् होता है।  यह गुरु बलवान् होतो श्रेष्ठ फल मिलता है।

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 अशुभफल : गुरु धनस्थान में पापग्रह से युक्त होने से शिक्षा में रुकावटें आती हैं। चोर, ठग, मिथ्याभाषी, अयोग्यभाषणकर्ता होता है। नीचराशि में, या पापग्रह की राशि में होने से मद्यपी, भ्रष्टाचार, कुलनाशक, परस्त्रीगामी और पुत्रहीन होता है। प्रथम आय के साधन कम होते हैं, दूसरे आय से अधिक खर्च होता रहता है, इसलिए धनाभाव बना ही रहता है।

 द्वितीयभावगत बृहस्पति से प्रभावान्वित व्यक्ति को धनार्जन करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ता है। बड़ी कठिनता से अर्जित धन यत्न करने पर भी स्थायी नहीं होता है-अर्थात् आर्थिक कष्ट बना ही रहता है। जातक वक्त्ररोगी होता है। बहुत बोलना, वा मूक होना-दोनों ही जिह्वा के दोष हैं। द्वितीयभावगत गुरुप्रभावान्वित व्यक्ति शरीर में कोमल होने से, रतिप्रिया कामिनी के साथ रतिप्रसंग में विजयी नहीं होता-क्योंकि अल्पवीर्य होता है।

धनस्थानस्थ गुरु के व्यक्ति प्राय: भिक्षुक ब्राह्मण, पाठशालाओं में शिक्षक, प्राध्यापक अथवा ज्योतिषी होते हैं, और ये धनी नहीं होते हैं-जीवननिर्वाह के लिए इन्हें जो कुछ मिलता है-किसी से छिपा हुआ नहीं है। वैरिस्टर, वकील और जज लोग धनपात्र होते हैं। यह ठीक है, किन्तु ये लोग साधारण स्थिति के अपवाद में है। अत: यह धारणा कि धनभाव का गुरु धन देता है-सुसंगत नहीं है। उच्चवर्ग में विवाह का बिलंब से होना-गुरु का फल हो सकता है। बाल-विवाह की प्रथा निम्नवर्ग के लोगों में अभी तक चली आ रही है। "पिता का सुख कम मिलता है-जातक के धन का उपयोग पिता नहीं कर सकता है। पैतृकसंपति नहीं होती-हुई तो नष्ट हो जाती है, जातक द्वारा दत्तक पुत्र लिया जा सकता है। यदि पैतृकसंपत्ति अच्छी हो तो पिता-पुत्र में वैमनस्य रहता है। अच्छे सम्बन्ध हों तो दोनों में से एक ही धनार्जन कर पाता है।

इस भाव का गुरु शिक्षा के लिए अच्छा नहीं है, शिक्षा अधूरी रह जाती है। अपने ही लोग निंदक हो जाते हैं। उपकर्ता का विरोध करते हैं। 27 वें वर्ष राजमान्यता मिलेगी-यवनजातक का यह फल ठीक प्रतीत होता है। धनभावगत बृहस्पति धनार्जन करवाता है। जातक को महान् प्रयास और कष्ट उठाना पड़ता है-धनार्जन उच्च्कोटि का भी हो सकता है-मध्यमकोटि का भी तथा अधमकोटि का भी हो सकता है-इसका कारण एकमात्र व्यक्ति का परिश्रम, प्रयास तथा कष्ट होता है-जैसा परिश्रम, वैसा ही फल।  

   मेष, सिंह तथा धनु राशि में गुरु होने से, गुरुजनों से, घर में बड़ों से विरोध करता है-इस फल का अनुभव होता है। भृगुसूत्र के अनुसार दूषित गुरु का फल -मद्यपायी होना, चोर वा ठग होना, वाचाट और भ्रष्टाचारी होना आदि-संभव हैं, अनुभव में आ जावें।       धनु में गुरु होने से दान-धर्म के कारण अल्पघनता होती है। पैतृकसंपत्ति नहीं मिलती है।       धनस्थान में मेष, सिंह, धनु, मिथुन, तुला, कुंभ में गुरु के फल साधारणत: अच्छे होते हैं।
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