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Sunday, 16 February 2020

dasve bhav me mangal ka shubh ashubh fal/ दसवें भाव में मंगल का शुभ अशुभ फल

Posted by Dr.Nishant Pareek
दसवें भाव में मंगल का शुभ अशुभ फल:-


कुंडली के दसवें भाव का कारक ग्रह सूर्य है। इससे आजीविका, उद्धम, रोजगार, मान प्रतिष्ठा, राज्यकार्य, कीर्ति, प्रशासन, पिता, नौकरी, तथा विदेश यात्रा का विचार किया जाता है। 
शुभ फल : दसवें स्थान का शुभ ग्रह से प्रभावित मंगल अत्यन्त शुभ माना जाता है। दसवें स्थान में मंगल बलवान् माना जाता है क्योंकि दसवां स्थान दक्षिण है और मंगल दक्षिण दिशा का स्वामी होता है। दसवें भाव मे मंगल होने से जातक कुलदीपक होता है- "दशमेंऽगारको यस्य सजात: कुलदीपक:"। दशमभावस्थ मंगल के प्रभाव में उत्पन्न होने से जातक अपने पराक्रम से, अपने भुजवलार्जित धन से, तथा अन्य स्थावर जंगम संपत्ति से, अपने कुल को उजागर अर्थात् प्रसिद्ध कर देता है। कुल का उद्धारक होता है। 

जातक तेजस्वी, नीरोग, मजबूत शरीर का होता है। जातक अपने प्रताप से सिंह के समान पूर्ण पराक्रमी तथा शूर होता है। जातक संतुष्ट-परोपकारी, उत्साहयुक्त तथा राजा के समान पराक्रमी होता है। जातक शुभकर्म कर्ता-कल्याणयुक्त, साहसी तथा स्वाभिमानी होता है। दशम में मंगल होने से जातक दाता, होश्यिार, किफायती, लोकपूजित होता है। जातक क्रियाशील, अजेय, संयमी, महानपुरुषों की सेवा करनेवाला तथा बहुतप्रतापी होता है। ध्यान-धारणा करता है तथा शीलवान्, गुरु का भक्त होता है। सर्वथा सामर्थ्यवान् होता है। ब्राह्मणों का तथा बड़े बूढ़ों का भक्त होता है। 

मंगल कार्यकारी मंगल दशमभाव में होने से जातक के कुल में विवाह आदि मंगलकार्य होते रहते हैं। जातक के काम स्वत: सिद्ध-अर्थात् बहुत प्रयास के बिना भी-अपने थोड़े से उद्यमद्वारा सिद्ध हो जाते हैं। निरंतर सब कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। दशमस्थ मंगल के शुभ प्रभाव में जन्म होने से जातक स्वयं स्वपराक्रम से, स्वभुजबल से, उन्नत होते हैं जिन्हें अंगरेजी में 'सैल्फमेड' कहा जाता है। 

मंगल के प्रभाव से समाज में यश और सम्मान प्राप्त होता है। बड़े मुख्य आदमी भी जातक की प्रशंसा करते हैं। लोकप्रिय होता है। प्रचुर धन लाभ करता है, सुख के साधनों की कमी नहीं रहती, विलासितापूर्ण जीवन जीया करता है। भूमि-भृत्य-ग्राम और राजकुल से धन प्राप्त होता है। ऐश्वर्य तथा प्रताप में राजा के समान, सुन्दर भूषण-मणि आदि विधि रत्नों को प्राप्त करनेवाला होता है। उत्तम-वाहनों से सुखी, वाहन का सुख प्राप्त होता है । जातक के पास नौकर चाकर बहुत होते हैं। जन्मभूमि से दूर रहनेवाला होता है। विशेष भाग्यवान् होता है। जातक श्रेष्ठपुत्रों वाला, पुत्र सुख युक्त होता है। वह व्यापार में प्रवीण होता है।

 18 वें वर्ष में व्यापार में, या राजा की कृपा से, या साहस से धन प्राप्त करता है। किसी बैंक वा संस्था का चालक हो सकता है। जमीन पर उपजीविका करनेवाला होता है। अग्नि संबन्धी कार्यों से या शस्त्रों के काम से धन कमाता है। 26 वर्ष से कुछ भाग्योदय होता है। 36 वें वर्ष में स्थिरता प्राप्त होती है। वकीलों के लिए भी यह योग अच्छा है। फौजदारी मुकदमों में अच्छा यश मिलता है। नौकरी में बड़े अफसरों से झगड़ें होते हैं।

 'दशमेंऽगार को नास्ति सजात: कि करिष्यति" जन्मकाल में मंगल दशमस्थान में यदि नहीं होता है तो मनुष्य का जीवन अत्यन्त साधारण बीतता है। हीनकुल में उत्पन्न होकर भी जातक दशमभावस्थ मंगल के शुभ प्रभाव से लोगों में अग्रणी तथा उनका नेता हो जाता है।       

शुभफलों का अनुभव मेष, सिंह, धनु, कर्क, वृश्चिक तथा मीन में संभव है।  मंगल शुभ संबन्ध में होने से धैर्यशाली और बहादुर होता है।  शुभग्रह के साथ या उसकी राशि में होने से काम सफल होते हैं, कीर्ति तथा प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।       दशमस्थान का स्वामी बलवान् हो तो भाई दीर्घायु होता है।       भाग्य और कर्मस्थान के अधिपति भी मंगल के साथ दशम में ही हों तो राजयोग होता है। फलत: युवराज-पट्टाभिषिक्त महाराजा हो सकता है।       पुरुषराशि लग्न में हो तो विनायत्न भी उन्नति होती है और कीर्ति मिलती है।   

अशुभफल :  अशुभ ग्रहों से पीड़ित मंगल  जातक को क्रूर, दुष्ट, कुकर्मी, दुराचारी नीचसंगी बनाता है। जातक अभिमानी, उतावला स्वभाव, लोभी होता है। वृत्ति पाशवी होती है। बुद्धि चोर जैसी और आचरण बुरा होता है। धन होकर खर्च हो जाता है। कभी फायदा कभी नुकसान होता है। सुख और दु:ख दोनों मिलते हैं-स्थिरता नहीं होती। सन्तानों की ओर से विशेष सुख नहीं मिलता।
दशमस्थ भौम होने से जातक के पुत्र अच्छे नहीं होते । दशम में मंगल होने से मामा का तत्काल नाश होता है। जातक किसी का दत्तक पुत्र हो सकता है। पुत्रमृत्यु हो सकती है। समाज में कीर्ति नहीं प्राप्त होती।
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