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Saturday, 13 June 2020

Barve bhav me rahu ka shubh ashubh samanya fal / बारहवें भाव में राहु का शुभ अशुभ सामान्य फल

Posted by Dr.Nishant Pareek

Barve bhav me rahu ka shubh ashubh samanya fal 


बारहवें भाव में राहु का शुभ अशुभ सामान्य फल

शुभ फल : स्त्रीराशि में राहु होने से जातक महत्वाकांक्षी, उदार, उच्च आदर्शवाला, वाड्मयप्रेमी और मिलनसार होता है। यह राहु मनुष्य को पराक्रमी और यशस्वी बनाता है। राहु द्वादशभाव में होने से जातक रूपवान्, परिश्रमी, बहुत सुखी होता है। जातक परोपकारी होता है। अध्यात्मज्ञान के लिए यह शुभ है। वेदान्त की रुचि हो तो साधुवृत्ति होता है। सार्वजनिक संस्थाओं से लाभ होता है। जातक एक जगह स्थिर होकर बैठता है तो इसकी इच्छाएँ पूरी होती हैं। प्रयत्न करने पर भी (आदि में) अनिष्टफल तथा अन्त में शुभफल होता है। राहु शत्रुनाशक होता है। जातक की पहली उमर में स्थिरता नहीं होती, कुटुम्ब छोड़कर दूर उत्तर की ओर जीविका के लिए जाना पड़ता है। यह राहु जन्मभूमि में लाभ नहीं देता, बाहर भाग्योदय होता है। जातक बहुत कमाता है। खर्च भी बहुत करता है। 

द्वादशभावस्थराहु से निम्नलिखित बातें सम्भावित होती हैं-12 वें वर्ष में माता वा पिता की मृत्यु, 21-22 वर्ष में जीविका का प्रारम्भ, 16 वें वर्ष में पैतृक धन का लाभ 35 वें वर्ष भाग्योदय, बचपन में पहिला विवाह हुआ हो तो 21 वें वर्ष दूसरा विवाह होता है। अथवा 32 से 36 वें वर्ष तक दूसरे विवाह की सम्भावना होती है। पुरुषराशि में जातक को पुत्र संतान कम होती है। एक या दो ही संतति होती है। राहु उच्च या स्वगृह में होने से शुभ फल देता है। द्वादश स्थान में मिथुन, धनु, या मीन में राहु मुक्तिदायक होता है।   


अशुभ फल : राहु द्वादशभाव में होने से जातक विवेकहीन, मतिमन्द, मूर्ख, चिन्ताशील होता है। जातक कलहप्रिय, व्यर्थ की बकवास करने वाला होता है। जातक प्रपंची होता है। प्रपन्च में लगा रहता है। राहु द्वादशभाव में होने से जातक नीचकर्म करनेवाला, पापी विचारों का, छल-कपट करनेवाला, गुप्तरूप से पाप करता है। जातक घर में झगड़ा करता है, और कुल को कलंकित करने वाला होता है। बुरे नखवाला और गन्दे कपड़े पहननेवाला होता है। राहु द्वादशभाव में होने से जातक दुर्बल, अपने बाधवों का वैरी या विरोधी होता है। जातक सज्जन पुरुषों से द्वेष और दुर्जन व्यक्तियों से मित्रता रखता है। दुष्टों का मित्र और सज्जनों का शत्रु होता है। राहु द्वादशभाव में होने से जातक व्यर्थ समय वितानेवाला, कर्जा करने वाला और दरिद्र होता है। जातक बुरे कामों में धन का खर्च करनेवाला, अतिव्ययी होता है। दुष्टजनों के संसर्ग में रहकर दुर्व्यसनों में पैसा खर्च करता है। अतएव आर्थिक चिन्ता से घिरा रहता है। जातक का धन म्लेच्छ और भील लूटते हैं।

राहु की शांति के सरल उपाय

 द्वादशभाव में राहु होने से दीन होता है। वैद्यनाथ ने "धनप्राप्ति" तो शेष लेखकों ने दारिद्र्य फल बतलाया है। स्त्री से दूर रहनेवाला, और स्त्री को कष्ट होता है। राहु द्वादशभाव में होने से जातक कामुक होता है। बारहवें भाव में राहु की स्थिति नेत्ररोग, आंखों में बीमारी या मन्द दृष्टि संभव है। पैरों में चोट या पाँव पर जख्म होते हैं। पार्श्व या पसली में और हृदय में वातजन्य शूल होता है। राहु द्वादशभाव में होने से जलोदार रोग से पीडि़त होता है। द्वादशभाव में राहु होने से -गिर पड़ता है। व्यंग से युक्त होता है। बारहवें स्थान में राहु जीवन में असफलता अधिक देता है। चाहे जितना उद्योग किया जावे काम में सफलता नहीं मिलती-उलटे काम विगड़ता है। इधर-उधर घूमता फिरता है किन्तु धन प्राप्त नहीं होता प्रत्युत काम विगड़ जाते हैं। राजा से पीड़ा होती है। मामा की मृत्यु होती है। दो विवाह होते हैं।       पुरुषराशि में राहु होने से नेत्ररोग सम्भव हैं। आचार्यों ने प्राय: द्वादश राहु के अशुभफल ही बतलाए हैं- अशुभफल पुरुषराशियों में अनुभव में आते हैं।


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Gyarave bhav me rahu ka shubh ashubh samanya fal / ग्यारहवें भाव में राहु का शुभ अशुभ सामान्य फल

Posted by Dr.Nishant Pareek

Gyarave bhav me rahu ka shubh ashubh samanya fal

 
 ग्यारहवें भाव में राहु का शुभ अशुभ सामान्य फल

शुभ फल : एकादश भाव में राहु अरिष्टनाशक होता है।(3-6-11 स्थानों में राहु अरिष्ट दूर करता है) राहु लाभभाव में होने से जातक का शरीर पुष्ट होता है और दीर्घायु होता है। लाभभाव में राहु होने से जातक परिश्रमी, विलासी, कवि हृदय, धनवान् और भोगी होता है। एकादशभाव में राहु होने से जातक इन्द्रियों का दमन करने वाला होता है। जातक साँवले रंग का, सुन्दर-मितभाषी, शास्त्रों का ज्ञाता, विद्वान्, विनोदी चपल होता है। जिस भी किसी समाज में रहे उसी का अग्रणी बनता है। देश में प्रतिष्ठा होती है। यश प्राप्त करता है। चतुर पुरुषों के साथ मित्रता स्थापित करता है। ग्यारहवें भाव में राहु के रहने से जातक को अनेक प्रकार के लाभ के अवसर मिलते हैं। अपने लाभ और लोभ के प्रति जातक अत्यधिक सावधान होता है। धन तथा धान्य की समृद्धि प्राप्त होती है। 

ग्यारहवें स्थान पर राहु जातक को धनलाभ कराता है किन्तु धनलाभ के तरीके अनैतिक ही रहते हैं। एकादशस्थान में राहु से म्लेच्छों से धन का लाभ होता है। विदेशियों से धन या कीर्ति मिलती है। वक्ता होकर धन प्राप्त करता है। सम्पूर्ण धन का लाभ होता है। विविध वस्त्रों की प्राप्ति, चौपायों का लाभ और कांचन का लाभ प्राप्त करता है। विदेशियों और पतितों से हाथी, घोड़े, रथ आदि की प्राप्ति होती है। सेवकों को साथ लेकर चलता है। पुत्र सन्तति होती है। पुत्रजन्म का सुख मिलता है।पुत्र सन्तान अच्छी होती है। जातक को राजाओं से मान और सुख प्राप्त होता है। जातक की विजय होती है। मनोरथ पूरे होते हैं। जातक के शत्रु नष्ट होते हैं। प्रताप से शत्रुओं को सन्तप्त करनेवाला होता है। शत्रु भी नम्र होते हैं। जातक के मित्र अच्छे होते हैं तथा उनकी सहायता से जातक का जीवन अच्छा होता है। मित्र ज्योतिषी या मंत्रशास्त्रवेत्ता होते हैं। जातक अधिकारी होकर रिश्वत खाता है किन्तु कानून की गिरफ्त में नहीं आता है। व्यवसाय करे वा नौकरी करे-दोनों ही सफल होते हैं। बड़े भाई की मृत्यु-या इसकी वेकारी से कुटुम्ब का बोझा स्वयं उठाना होता है। 42 वें वर्ष में सहसा धन प्राप्ति सम्भावित होती है। 28 वें वर्ष जीविका का आरम्भ होना सम्भावित है। 27 वें वर्ष में विवाह सम्भावित होता है। राहु उच्च या स्वगृह का होने से राजा द्वारा आदर पाता है।   

राहु की शांति के सरल उपाय

अशुभ फल : ग्यारहवें भाव में राहु होने से जातक मन्दमति, लाभहीन, निर्लज्ज और एक अभिमानी व्यक्ति होता है। जातक बेकार समय बितानेवाला, कर्जा लेनेवाला और झगड़ा करने वाला होता है। धूर्तों का मित्र तथा अनर्थ करनेवाला होता है। स्करों के साथ मित्रता रखता है। जातक की बुद्धि दूसरे का धन अपहरण करने में लगी रहती है। दूसरे के धन को ठगी से हथिया लेता है। रेस, सट्टा, लाटरी में लाभ नहीं होता है। जातक का व्यवसाय ठीक-नहीं चलता, कर्ज रहता है। जातक को पुत्र तथा कुटुम्ब की चिन्ता में कष्ट होता है। राहु एकादश भाव में होने से जातक बहरा (वधिर) होता है। कान के रोग से युक्त होता है। सहसा श्रीमान् हो जाऊँ-इस अभिलाषा से एकादशभावगत राहु का जातक रेस, सट्टा-लाटरी-जूआ आदि में धन का खर्च करता है। इसी आकांक्षा से, अधिकारी होने से अन्धाधुन्ध रिश्वत लेता है और कानून के शिकन्जे में आ जाता है। इसी कारण जातक लोभी परद्रव्यापहारी और बरताव अनियमित होता है- मित्रों से हानि, भाग्योदय में रुकावटें आती हैं। पुरुषराशि में एकादश राहु होने से पुत्र सन्तति में बाधा पड़ती है और इसका कारण पूर्वजन्म का शाप होता है। इस शाप का अनुभव कई प्रकार से होता है-जैसे पुत्रमरण, गर्भपात, स्त्री को सन्तति प्रतिबन्धक रोग का होना आदि।       अशुभफल पुरुषराशियों में अनुभव में आते हैं।


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Dasve bhav me rahu ka shubh ashubh samanya fal / दसवें भाव में राहु का शुभ अशुभ सामान्य फल

Posted by Dr.Nishant Pareek

Dasve bhav me rahu ka shubh ashubh samanya fal 


 दसवें भाव में राहु का शुभ अशुभ सामान्य फल

शुभ फल : दशमभाव में राहु बहुत उत्तम फल देता है। दशमभाव में राहु होने से जातक बलवान, शूर, निडर, बुद्धिमान, परोपकारी और चिन्तायुक्त भहृदयवाला होता है। दशमभावगत राहु होने से जातक का गर्व दूर होता है। दशमस्थ राहु होने से जातक बलवान लोगों का साहाय्य प्राप्त करता है। काव्य में रुचि होती है। लेखन-सम्पादन आदि में निपुणता प्राप्त होती है। राहु दशमभाव में होने से जातक विख्यात होता है। पूरे जीवन में सफलता, सम्मान, कीर्ति व श्रेष्ठता मिलती है। राहु दशमभाव में होने से जातक लोकसमूह, गांव या नगर का अधिकारी, मंत्री या सेनापति होता है। दशमभाव में राहु होने से गंगास्नान का लाभ मिलता है। पुत्र संतान थोड़ी होती है। राहु दशमभाव में शत्रुनाशक होता है। जातक शत्रुहीन होता है। जातक प्रवासी, व्यापार में निपुण होता है। जातक को कोर्ट के कामों में विजय मिलती है। दशमभाव भाव के राहु से जातक पूर्व अवस्था में बहुत कष्ट भोगकर प्रगति करता है। जातक उत्तमोत्तम यौवनागर्विता रूपलावण्यसम्पन्ना कमनीयतमास्त्रियों के साथ सहवास करता है और रतिसुख प्राप्त करता है। 21 वें वर्ष में भाग्योदय का प्रारम्भ होता है। 36 वें वर्ष पूर्ण उन्नति होती है। 42 वें वर्ष सार्वजनिक आदर-सम्मान की प्राप्ति होती है। पुरुषराशि में राहु के होने से जातक पुलिस, रेलविभाग, बीमा कम्पनी, बैंक आदि में नौकरी करे तो सफल होता है। दशमभाव का राहु मिथुन या कन्या में होने से जातक राजमान्य होता है।   


अशुभ फल : दसवें भाव में राहु होने से जातक आलसी, उत्साहहीन, दीन, विरक्त, चपल और अति दुष्ट होता है। अनियमित कार्यकर्ता, मितव्ययी होता है। जातक दुष्कर्म करने वाला,नीच, पापी, व्यभिचारी, दुर्व्यसनी और दुष्ट व्यक्तियों के साथ मित्रता रखने वाला होता है। राहु दशमभाव में होने से जातक चोरी करने में चतुर होता है। शीलहीन होता है। दशम राहु का जातक झगड़ालू होता है। युद्ध में लड़ने के लिए उत्सुक रहता है। जातक व्यर्थ का घमंड करता है। चिन्ता अधिक होती है। जातक लोगों का विश्वासपात्र नहीं होता है। जातक नशे के निमित्त द्रव्य खर्च करता है। दूसरे का धन चाहनेवाला होता है। राहु के दशमभावमें होने से जातक कामातुर होता है। दशमस्थ राहु का जातक विधवा से संबंध रखता है। यह फल पुरुषराशि का है। जातक अनेक स्त्रियों से संबंध रखता है। दसवें भाव में स्थित राहु धर्म और धन का नाश करता है। सुख में कमी लाता है। पुत्रों को कष्टप्रद रहता है, पुत्र के सुख की हानि होती है और अपने समय में मारक भी बन जाता है। माता को कष्ट तथा कुल में अपघात से मृत्यु होता है। पिता या भा्रता को दु:ख होता है। अपने लोगों से तथा पिता से पूर्ण सुख प्राप्त नहीं होता है।

 राहु की शांति के सरल उपाय

जातक के जन्म से ही राहु माता-पिता को शारीरिक या आर्थिक कष्ट देता है। पिता पंगु होकर पैन्शन लेता है। माता या पिता की मृत्यु वचपन में हो सकती है। अपने इष्ट मित्रों से तथा अपने लोगों से द्वेष होता है। सर्वदा म्लेच्छों की संगति में रहता है। विदेशियों के सम्बन्ध में गर्विष्ठ होता है। नित्यशरीर को कष्ट, वातरोग होते हैं। दशम भाव के राहु से भूमि का नाश होता है। जातक को वाहनों से कष्ट होता है। मित्रों के दु:ख से दु:खी रहता है। दशम भाव के राहु से 32 वें वर्ष माता को, 7 वें वर्ष पिता को, 8 वें वर्ष पैतृक सम्पत्ति को गम्भीर खतरा होता है। पुरुषराशि में राहु के होने से जातक घमंडी, वाचाल और लोगों से पृथक रहनेवाला होता है। उपर दिये अशुभ फल पुरुषराशि के हैं।


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Nave bhav me rahu ka shubh ashubh samanya fal / नवें भाव में राहु का शुभ अशुभ सामान्य फल

Posted by Dr.Nishant Pareek

Nave bhav me rahu ka shubh ashubh samanya fal

 

नवें भाव में राहु का शुभ अशुभ सामान्य फल    

शुभ फल : नवें स्थान पर स्थित राहु के प्रभाव से जातक परिश्रमशील, आस्तिक, कृपालु, परिवार को स्नेह करने वाला गुणवान बनता है। जातक प्रवासी, तीर्थाटनशील, धर्मात्मा, दयालु, सभ्य और सहृदय होता है। नवमस्थ राहु का जातक विद्वान् होता है, अपने गुणों से लोगों में पूज्य, मान्य और आदरपात्र होता है। अपने चातु्यर्य आदि गुणों से सभा को भी प्रकाशित अर्थात् चमत्कृत करनेवाला होता है। जातक देवताओं और तीर्थों से श्रद्धा और विश्वास तथा भक्ति रखनेवाला होता है। जातक किये हुए उपकार को भूलता नहीं है, अर्थात् कृतघ्न नहीं प्रत्युत कृतज्ञतागुणसम्पन्न होता है। जातक सर्वदा कुटुम्ब का पालन करता है। जातक धन का दान देनेवाला, पुण्य करनेवाला, अपने परिजनों के मार्ग पर चलनेवाला और निर्मल कीर्तिवाला होता है। राहु नवमभाव में होने से जातक प्रारम्भ किए हुए काम को अधूरा नहीं छोड़ता है। अर्थात् अपने हाथ में लिए हुए काम को सफल बनाने के लिए उस समय तक उद्यमशील रहता है जब तक काम फलोन्मुखन न हो। सुधारवादी विचार, उन्नत आत्मशक्ति, जगत के कल्याण के लिये प्रयत्नशील होता हैं। कई प्रकार की कलाओं में निपुण बनता है। राज परिवार से संपर्क होते हैं। 

नवमभाव में राहु होने से जातक विबिधरत्न, जरीदार वस्त्रों से युक्त-बहुतों का स्वामी और सुखी होता है। जातक के घर पर नौकर चाकर रहते हैं। सेवक बहुत होते हैं। धनी, सुखी, भाग्यवान होता है। सभा में विजयी होता है। स्त्री की इच्छा का पालन करता है। बन्धुओं में स्नेह करता है। स्वदेशीय उद्योग में लाभ होता है। जातक गाँव या नगरप्रमुख होता है। भाइयों की एकत्र प्रगति में नवमभाव का राहु बाधक होता है। यदि विभाजन हो और एकत्र स्थिति न हो तो दोनों भाई प्रगति कर पाते हैं। राहु स्वगृह या उच्च में होने से शुभफल देता है। राहु वृष, मिथुन, कर्क, कन्या या मेष में हो तो उत्तम यश देता है।पुरुषराशि में नवमस्थ राहु होने से जातक बाप का इकलौता बेटा होता है। अथवा सबसे बड़ा या छोटा होता है-इससे बड़ी या छोटी बहनें होती हैं बहनें न हों तो यह राहु भाई को मारक होता है।   


अशुभ फल : राहु नवम में होने से जातक धर्महीन, कर्महीन, निर्धन, धूर्त, शूर्तप्रिय, सभी प्रकार के सुखों से हीन तथा अभागा होता है। धर्म पर श्रद्धा कम होती है। धर्म की निन्दा करनेवाला, धर्मभ्रष्ट तथा कर्तव्य रहित होता है। राहु नवमभाव में होने से जातक नीचों के धर्म में आसक्त, सत्यहीन, पवित्राचरणहीन, भाग्यहीन तथा मन्दमति होता है। जातक जाति का अभिमानी, झूठ बोलनेवाला, एवं दुष्टबुद्धि होता है। चुगुल और गन्दे कपड़े पहननेवाला होता है। नवमभाव का राहु होने से जातक का धर्म नष्ट होता है। अशुभ काम करनेवाला होता है। पापाचरण करनेवाला होता है। सुख कम मिलता है। नवमभाव में राहु होने से जातक भाग्योदय से रहित और धनहीन होता है। जातक घुमक्कड़ होता है। अपने जाति के लोगों के आमोद-प्रमोद में कोई उत्साह नहीं होता है। भाई बांधवों से विरोध होता है। बाँधवों से सुख कम मिलता है। शत्रुओं से भय होता है। धर्महीन, पापी तथा दुष्टों की संगति में रहता है। युद्ध में जातक का पैर जख्मी होता है। राहु के नवमभाव में होने से जातक प्रतिकूल वाणी बोलनेवाला है। शुद्रास्त्री का उपभोग करता है।

 राहु की शांति के सरल उपाय

नवमस्थ राहु का जातक पुत्रहीन होता है। जातक वातरोगी होता है। शरीर में पीड़ा रहती है। धर्म द्वेष्टा तथा पिता से द्वेष रखनेवाला होता है। लोकनिन्दा और कष्ट प्राप्त होता है। नौकरी करनेवाला होता है। धन की इच्छा से विदेश से व्यापार करे तो नुकसान होता है। विदेशी बैंकों में धन डूबता है। 16 वें वर्ष से भाग्योदय, 9 वें वर्ष में बन्धुकष्ट-बहन की मृत्यु, 22 वें वर्ष में बड़े भाई की मृत्यु, ये फल नवमस्थ राहु के हैं। मिथुन, तुला और कुम्भ राशि मे राहु होने से विवाह सम्बन्ध में जातक जाति या वर्ग का ख्याल नहीं रखता। विजातीय विवाह भी करता है उम्र में अधिक स्त्री या विधवा से विवाह भी अनुकूल माना जाता है। मिथुन, तुला, कुम्भ में राहु होने से जातक की स्त्री पर स्वामित्व की भावना रहती है। पुत्र संतति या तो होती नहीं-हो तो मृत होती है। संतान के लिए द्वितीय विवाह की आवश्यकता होती है। इस भाव के राहु विदेशगमन, विदेशीय स्त्री से विवाह का योग होता है। 5वें वर्ष में भ्रातृमृत्यु 36 वें वर्ष में भाग्योदय होता है। अशुभ फलों का अनुभव पुरुषराशिें में आता है।


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Satve bhav me rahu ka shubh ashubh samanya fal / सातवें भाव में राहु का शुभ अशुभ सामान्य फल

Posted by Dr.Nishant Pareek

Satve bhav me rahu ka shubh ashubh samanya fal 


सातवें भाव में राहु का शुभ अशुभ सामान्य फल

शुभ फल : जातक स्वतन्त्र, चतुर, भ्रमणशील होता है। विवाह जल्दी होता है। स्त्री अच्छी, परस्पर प्रेम रहता है। स्त्रीसुख मिलता है। नौकरी ठीक चलती है। राहु उच्च या स्वगृह में अथवा शुक्र की राशि में होने से प्रवास अच्छे होते हैं और लाभ होता है। राहु केन्द्र या त्रिकोण के स्वामी के साथ होने से जातक मन्त्री-शूर, बलवान्, प्रतापवान् हाथी घोड़े आदि सम्पत्ति का स्वामी या बहुत पुत्रों से युक्त होता है।   

अशुभ फल : पाश्चात्यमत से सप्तमभावस्थराहु होने से जातक का कद बहुत नाटा होता है। अच्छे काम करने पर भी बुराई ही हाथ लगती है। सप्तमस्थराहु के होने से जातक क्रोधी, दूसरों का नुकसान करनेवाला, व्यभिचारिणी स्त्री से संबंध रखनेवाला, दूसरों से झगड़ा करनेवाला, गर्वीला और असंतुष्ट होता है। जातक उग्रस्वभाव होता है अत: वादविवाद में कभी शांत नहीं रह सकता है। जातक जूआ, सट्टा, लाटरी तथा रेस में प्रवीण होता है। जातक दुष्टों के सहवास से सज्जनों को कष्ट देता है। सातवें भाव में राहु होने से जातक दुष्कर्मी, बहुव्यभिचारी, लोभी, बेकार घूमनेवाला, दुराचारी और अल्पमति होता है। सप्तमभाव का राहु सब ओर से भय दिखाता है-धर्म की हानि, निर्दयता देता है।सप्तमभाव का राहु एक प्रकार से पूर्वजन्म का शाप ही होता है। पूर्वजन्म में किसी स्त्री को अकारण कष्ट दिया हो-अथवा किसी स्त्री की घर-गृहस्थी में विघ्न डाला हो अथवा किसी स्त्री का सतीत्व भ्रष्ट किया हो तो उस पाप के प्रायश्चित के रूप में सप्तमभाव का राहु होता है-विवाह होने पर भी परस्पर दापत्य प्रेम का न होना-विवाह विच्छेद होना, अच्छी मनोनुकूलास्त्री का न मिलना-ये फल पूर्वजन्मकृत पापस्वरूप शाप के हैं जो भुगतने पड़ते हैं। 

सप्तम भाव के राहु के फल साधरणत: बुरे हैं-उदाहरण के लिए बहुत देर से विवाह, अन्तर्जातीय विवाह, विधवा से विवाह, अपनी आयु से अधिक उमरवाली स्त्री से विवाह, अवैध संबंध जोड़ना या विवाह का अभाव। स्त्रीपक्ष में सप्तमराहु बहुत कष्टकारक है। गृहस्थी में असंतोष रहता है। प्रथमास्त्री की मृत्यु और द्वितीया से वैमनस्य रहता है। जातक के लिए विवाह का प्रयोजन और उद्देश्य केवल मात्र शारीरिक संबंध ही होता है। जातक स्वयं व्यभिचारी वृत्ति का होता है-दूसरी कुलीन स्त्रियों को भी व्यभिचारमार्ग पर चलने के लिए प्रोत्साहित करता है। विधवा स्त्रियों से अवैध संबन्ध जोड़ता है इस संबंध से गर्भ होने पर गर्भपात आदि जघन्य कर्म करने में भी यत्नशील होता है। जातक धन का दुरुपयोग करने से निर्धनता के चंगुल में फँसता है। सप्तम भाव में राहु होने से जातक को प्रचंड स्वभाव वाली, कुटिला और कुरूपा अथवा झगड़ालू और रोगयुक्ता पत्नी मिलती है, पत्नी से सदा विरोध बना रहता है अथवा पत्नी की मृत्यु हो जाती है। दूसरे शब्दों में सत्पमभावस्थ राहु होने से जातक की गृहिणी मनोनुकूला, आकर्षक रुपवती तथा मनोरमा, मधुरभाषिणी, रूप-यौवनासम्पन्ना और आज्ञाकारिणी नहीं होती है। सप्तमस्थ राहु के प्रभाव से स्त्री सुख प्राप्त नहीं होता है। सप्तम में राहु होने से पत्नी कामेच्छा रहित होती है। सप्तमस्थ राहु स्त्री का नाश करता है-एक से अधिक विवाह होते हैं। सप्तमराहु से जातक के दो विवाह होते हैं पहली स्त्री की मृत्यु होती है। दूसरी स्त्री को गुल्मरोग (पेट का एक रोग-वायुगोला) होता है। पत्नी को प्रदर रोग होता है। जातक को मधुमेह रोग होता है। बुरी स्त्रियों के सहवास तथा संपर्क से जातक रोगी होता है। जातक को देहपीड़ा रहती है। 

राहु की शांति के सरल उपाय

सातवें स्थान के राहु से जातक वातरोगों से पीडि़त रहता है। कमर, वस्ति (कटि से नीचे का भाग), घुटनों में वातरोग-ये दुष्टफल सप्तमराहु के हैं। बन्धु-बांधवों का वियोग और से विरोध होता है। कलंक का विस्तार होता है। लोकनिंदा सर्वदा बने रहते हैं। बन्धुओं से स्थावर अस्थावर सम्पत्ति का विभाजन होने से बन्धु पृथक्-पृथक रहने लगते हैं जिससे भाइयों में वियोग होता है। राहु सप्तम मे होने से जातक स्त्रीसंग के कारण निर्धन होता है। व्यापार हानिदायक, खरीद और विक्री से लाभ नहीं होता है। व्यवसाय या नौकरी दोनों में हानि होती है-धनाल्पता या धननाश होता है। अस्थिरता रहती है। व्यवसाय करे तो नुकसान, नौकरी करे तो ससपैंड होता है डिगरेड होता है-इस तरह कष्ट भोगता है। प्रवास में कष्ट होता है। शत्रुओंकी वृद्धि होती है। सप्तमभाव का राहु अशुभफल देता है। मुख्यत: ये अशुभफल पुरुषराशियों के हैं। सप्तम राहु मिथुन, कन्या, तुला या धनु में होने से प्राय: विवाह नहीं होता है। पापग्रह के साथ राहु होने से गंडमाला (गले में रोग) होता है।


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