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Wednesday, 2 November 2022

कालसर्प योग किस उम्र में पीडा देगा ? जानिए इस लेख में / kalsarp yoga kis umar me pida dega , Janiye is lekh me

Posted by Dr.Nishant Pareek

 कालसर्प योग किस उम्र में पीड़ा देगा ? जानिए इस लेख में 





Kundli me kalsarp yoga kis umar me pida dega , Janiye is lekh me


सभी व्यक्तियों का संपूर्ण जीवन नवग्रहों के प्रभाव से ही संचालित है। हर घटना तथा हर गतिविधि, उपलब्धि, हानि, सुख, संताप, निन्दा अथवा सम्मान, मान, अपमान, व्याधि अथवा उत्तम स्वास्थ्य, व्यवसाय में प्रगति अथवा अवनति आदि सब व्यक्ति की कुंडली में विद्यमान ग्रहों पर ही आधारित होती है। 

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जब सभी ग्रह राहु और केतु के मध्य स्थित हों, तो इस तथ्य को इस प्रकार समझना चाहिए कि यह सभी सात ग्रह कालसर्प नामक योग के दुष्प्रभाव में जा रहे है। कालसर्प योग में ग्रहों का प्रभाव तो मिलता है परन्तु जिस तरह से विषैला सर्प शुभ प्रभावों को एक बार अपने भीतर रखकर उगल दे, उसी तरह से शुभ ग्रहों के प्रभाव में भी विष मिल जाता है जो उनकी दशाओं और अन्तरदशा समय-समय पर जीवन को अनेक प्रकार से पीडित करता रहता है। कभी संतान सुख प्राप्त नहीं होता, कभी अनेक पुत्रियों का जन्म होता है। पुत्र संतान की प्राप्ति नही होती है तो कभी पारिवारिक अशान्ति तथा कलह जीवन में दाम्पत्य सुख का अभाव उत्पन कर देती है। कभी स्वास्थ्य निरन्तर पीड़ित करता है तो कभी दरिद्रता, धनार्जन होते हुए भी धनाभाव से चिंता बनी रहती है तो कभी अकाल मृत्यु जैसे क्रूर तथा अशुभ फल प्राप्त होते हैं तथा यह सभी अशुभ प्रभाव जीवन की प्रसन्नता, हर्ष और उल्लास को तो ग्रहण लगाते ही हैं। 

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जब सभी ग्रह राहु और केतु के बीच आ जाते है तो उनकी दशाओं-अन्तरदशाओं में शुभता का अभाव तथा अशुभता का प्रभाव दिखाई देने लगता है।। जब राहु की महादशा व्यक्ति के जीवन में प्रवेश करेगी, तो राहु की महादशा का 18 वर्ष का समय अधिक अशुभ, कष्टप्रद, चिंताकारक, वेदनापूर्ण तथा दारुण दुःखों की वेदना प्रदान करने वाला सिद्ध होगा। इसी तरह से केतु की महादशा के भी 7 वर्ष भी असहनीय पीडादायक होते है। निरन्तर संघर्ष करना पडता है।। जीवन में अनेक प्रकार की बाधाएं आती है। पदोन्नति, प्रगति, विपत्तियों से घिर जायेंगी या निलम्बन अथवा पदच्युति की स्थिति भी उत्पन्न होने की संभावना होती है। केतु यदि आक्रान्त हो, मंगल अथवा शनि के साथ स्थित हो तथा अशुभ भावों में हो, तो मेरा अनुभव है कि केतु की दशा में आयकर, सी०बी०आई०, सेल्सटैक्स आदि की गंभीर चिंता उत्पन्न होती है। यहाँ तक कि छापा पड़ने की संभावना को भी निरस्त नहीं किया जा सकता। अनेक आरोप-प्रत्यारोप से व्यक्ति का जीवन सुचारु रूप से प्रगति नहीं करता। नींद नहीं आती, तो कभी प्रयास बार-बार विफल होते हैं। धन का अभाव होता है। जिन लोगों को ऋण दिया है उनसे ऋण वापस नहीं मिलता तथा जिनसे ऋण लिया है उनका निरन्तर दबाव कलह का स्थिति उत्पन्न करता है। न्यायालय में दोषी ठहराया जाना भी सम्भव है। जो त्रुटि नहीं की है उसका आरोप लगता है तथा जो कार्य सामान्यतः स्वयं ही पूरे हो जाने चाहिए, वह अपूर्ण पड़े रहते हैं इसलिए राहु और केतु की महादशा में कालसर्प योग का अधिकतम अशुभ प्रभाव दिखाई देता है। कई बार केतु की महादशा में यदि केतु सप्तमस्थ हो तो पत्नी की मृत्यु तक हो जाती है। ऐसा ही भयानक अभिशाप है कालसर्प योग।  

वैसे तो कालसर्प योग का प्रभाव जीवनपर्यन्त बना रहता है परन्तु राहु और केतु की महादशा में सर्वाधिक परेशान करता है।

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जब गोचर के राहु और केतु कुंडली में अशुभ भाव में भ्रमण करते हैं तब कालसर्प योग का प्रभाव और भी विषैला हो उठता है। उल्लेखनीय है कि राहु और केतु की धुरी पर गोचर के शनि का भ्रमण बहुत ही पीडादायक होता है। यदि राहु और केतु की धुरी पर सूर्य स्थित हो तथा उसके ऊपर से गोचर का शनि भ्रमण करे, तो परिस्थितियाँ और भी अधिक कष्टप्रद होती हैं। यदि राहु के साथ शनि तथा केतु के साथ मंगल अथवा राहु के साथ मंगल तथा केतु के साथ शनि स्थित हों तथा गोचर के शनि अथवा मंगल का भ्रमण इस धुरी पर से हो, तो दुर्घटना की संभावना अत्यधिक होती है तथा जिन राशियों तथा भावों में यह ग्रह स्थित हों, उन राशियों तथा भावों द्वारा प्रदर्शित शरीर के अंग को गोचर का मंगल रोग पीडा अथवा चोट करता है। इसी प्रकार से यदि उपर्युक्त संदर्भित ग्रह स्थिति के ऊपर से राहु के ऊपर से केतु तथा केतु के ऊपर से राहु का भ्रमण हो, तो कालसर्प योग के प्रभाव में वृद्धि होती है तथा यह अशुभता उस समय और भी बढ़ जाती है जब राहु और केतु या शनि के अंशों के ऊपर से गोचर के राहु और केतु का भ्रमण होता है।

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 गोचर के ग्रह कालसर्प योग के प्रभाव में कब और कैसे वृद्धि करते हैं तथा कितना अशुभ प्रभाव दे सकते हैं यह सब कुंडली में ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करता है। कालसर्प योग से पीडित कुंडलियों में गोचर के राहु और केतु का शुभ भ्रमण लाभप्रद स्थिति भले ही न उत्पन्न करे, परन्तु कालसर्प योग के प्रभाव में न्यूनता अवश्य लाता है। जहाँ पर कालसर्प योग विद्यमान हो तथा राहु तीसरे, छठे या ग्यारहवें भाव में भ्रमण कर रहा हो, तो कालसर्प योग का प्रभाव उस समय जीवन को आतंकित और भयभीत नहीं करता। घटना-क्रम को अवरुद्ध नहीं करता, बल्कि सामान्य स्थिति को बल प्रदान करता है। 

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राहु और केतु के गोचर के भ्रमण के वास्तविक प्रभाव के साथ जन्मकालीन ग्रह स्थितियों के साथ सम्बन्ध तथा प्रभाव के कारण किस तरह का फल प्रतिरूपित करेगा, किन घटनाओं को जन्म देगा तथा वे घटनाएँ जीवन के किस क्षेत्र को बल प्रदान करेंगी तथा किस क्षेत्र का हास करेंगी, यह अध्ययन करने हेतु गोचर के राहु ओर केतु के प्रभाव को भलीभाँति समझ लेना उचित होगा। यहाँ हम यह विश्लेषित करने का प्रयास करेंगे कि कालसर्प योग का अभिशाप गोचर के राहु ओर केतु से किस तरह प्रभावित होता है, कब कालसर्प योग के अशुभ प्रभाव शिथिल हो जाते हैं तथा कब उनका आतंक अधिक भयावह हो उठता है।

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कालसर्प योग यदि कुंडली के उत्तरार्ध में अर्थात् सप्तम भाव में राहु तथा लग्न में केतु स्थित हों तथा शेष ग्रह 8, 9, 10, 11 एवं 12 भावों में विद्यमान हों, तो 28वें वर्ष के पश्चात् कालसर्प योग का विशेष प्रभाव जीवन में परिलक्षित होता है तथा सप्तम से लग्न तक जिस काल सर्प योग का निर्माण होता है वह अधिक अशुभ कष्टप्रद सिद्ध होता है क्योंकि यहाँ पर कालसर्प योग कर्म भाव, भाग्य भाव, लाभ आदि सभी उन महत्त्वपूर्ण भावों को आक्रान्त तथा दूषित करता है। और यही भाव जीवन के महत्वपूर्ण पडाव में काम आते है। इसलिये कालसर्प दोष की अशुभता 28 वर्ष के पश्चात् अशुभ प्रभाव में वृद्धि करती है। 


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Thursday, 30 September 2021

Kundli ke in bhavon me bana kalsarp yog deta hai santanhinta, kahi aap bhi to nahi hai iske shikar ?/ कुंडली के इन भावों में बना कालसर्प योग देता है संतानहीनता। कहीं आप भी तो नहीं है इसके शिकार ? जानिए इस लेख में

Posted by Dr.Nishant Pareek

 Kundli ke in bhavon me bana kalsarp yog deta hai santanhinta, kahi aap bhi to nahi hai iske shikar ?



 कुंडली के इन भावों में बना कालसर्प योग देता है संतानहीनता। कहीं आप भी तो नहीं है इसके शिकार ? जानिए इस लेख में,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

काल और सर्प शब्द के मिलने से जो योग बनता है, वह कालसर्प योग कहलाता है। जो कि किसी की भी कुंडली में सर्वाधिक चर्चित बिन्दुओं में से एक है। स्वाभाविक है कि ज्योतिषशास्त्र के आरंभ से वर्तमान समय तक कालसर्पयोग विभिन्न रूपों में व्यक्ति के मन को उद्विग्न करता आ रहा है। इस परिदृश्य में सत्य और असत्य, पाखण्ड आदि भी सम्मिलित हो ही जाते है। क्योंकि इससे फिर कुछ फर्जी ज्योतिषी फायदा भी उठाने लग जाते है। और लूटने लग जाते है। जिसके कारण वास्तविक ज्योतिषी भी बदनाम होते है और जो लोग वास्तव में कालसर्प योग से परेशान है, वो भी इसका उपाय कराने से पीछे हटने लग जाते है और जीवनभर परेशान भी रहते है। परंतु वह उपाय नहीं कराते है। क्योंकि उनको अपने साथ धोखा होने का डर रहता है। और विधि विधान में कुछ गलत होने पर अशुभ होने का डर होता हैै, वो अलग। इसलिये लोग इस योग के अशुभ फल को जीवनभर झेलते ही रहते है। 

राहु केतु को छायाग्रह माना गया है। जो कि कालसर्पयोग के दो ध्रुव हैं। इसलिये सबसे पहले  इनका प्रारंभिक ज्ञान आवश्यक है। जब समस्त ग्रह राहु और केतु की धुरी के एक ओर हों तथा शेष भाग ग्रह से रिक्त हो तो कालसर्पयोग का निर्माण होता है। राहु और केतु हमेशा एक दूसरे से सात राशि की दूरी पर रहते है।  इनमें 180 अंश का अन्तर होता है। राशि चक्र 360 अंश का होता है। यदि सभी ग्रह 180 अंश के क्षेत्र, अर्थात् राहु एवं केतु की धुरी के एक तरफ हों, तो दूसरा 180 अंश का क्षेत्र खाली होगा। कुंडली में इस ग्रह स्थिति को ही कालसर्पयोग कहते है।

कालसर्प योग का नाम सुनते ही मन में एक अजीब सा भय व्याप्त हो जाता है। मन में तरह तरह के विचार आने लगते है। फिर जीवन की सभी परेशानियों का कारण वह कालसर्प योग ही प्रतीत होने लगता है। परंतु ऐसा नहीं होता। जीवन में परेशानियां भी बहुत है और उनके कुंडली में दोष भी बहुत होते है। कोई एक ही दोष सभी समस्याओं का कारण नहीं होता है।  

यदि कुंडली में कालसर्प योग विद्यमान हो, तो इसे पूर्व जन्म के किसी पाप का अनिवार्य अशुभ फल मानना चाहिये। क्योंकि किए हुये कर्म का फल अवश्य भुगतना होता है। चाहे शुभ हो या अशुभ फल हो।  यदि सन्तान न हो, तो उसका कारण भी कालसर्प योग बन जाता है। मात्र पुत्रियों का ही जन्म हो तथा पुत्र सुख से वंचित हों, या पुत्र जन्म के पश्चात् उसकी हानि हो, तो उसका कारण कालसर्प योग को ही समझना चाहिए। परन्तु, ऐसा तभी सम्भव है जब काल सर्प योग में राहु पंचम भाव में स्थित हो तथा केतु एकादश भाव में। राहु के साथ शनि अथवा मंगल या सूर्य स्थित हो तथा पंचमेश क्रूर ग्रहों के प्रभाव में हो। यह कालसर्प योग तभी प्रभावी होगा, जब शेष ७ ग्रह षष्ठ भाव से लेकर दशम भाव तक या पंचम भाव से लेकर एकादश भाव तक स्थित होंगे।


इस प्रकार की ग्रह स्थिति होने पर यह कालसर्प योग संतान के विषय में चिंतित रखता है। संतान होने में परेशानी आती है अथवा संतान होती ही नहीं है। यदि इस प्रकार की ग्रह स्थिति में कुछ कमी हो, एक या दो ग्रह राहु केतु से बाहर निकल रहें हो तो इस योग का प्रभाव कुछ कम हो जाता है। परंतु प्रभाव रहता अवश्य है। यदि संतान संबंधी परेशानी हो तो अपनी जन्मपत्रिका में कालसर्प योग का विचार किसी अच्छे ज्योतिषी से अवश्य करवा लेना चाहिये और समय रहते उसका उपाय भी कर लेना चाहिये। जिससे संतान उत्पत्ति में किसी तरह की बाधा न आये। 
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Tuesday, 21 September 2021

kalsarp yog se kaisi pareshani aati hai ?/ कालसर्प योग से कैसी परेशानी आती है ? जानिए इस लेख में

Posted by Dr.Nishant Pareek

kalsarp yog se kaisi pareshani aati hai ?



कालसर्प योग से कैसी परेशानी आती है ? जानिए इस लेख में 

कालसर्प योग जीवन में अनेक प्रकार की बाधा और दुर्भाग्य उत्पन्न करता है। यह मानना अनुचित नहीं है। यदि किसी भी व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प योग बन रहा हो रही हो तथा अन्य ग्रह योगों के कारण कालसर्प योग प्रभावहीन न हो रहा हो, तो व्यक्ति को अनेक प्रकार के अवरोध, विसंगतियों और दुर्भाग्य से जीवनपर्यन्त संघर्ष करना पड़ता है। उसके जीवन में पग पग पर बाधा आती रहती है। किस प्रकार की बाधा व अवरोध उस व्यक्ति के जीवन को बाधित करेगी, यह तथ्य ग्रहों की जन्मांग में संस्थिति पर निर्भर करता है।

सूक्ष्मता से देखें तो संतानहीनता, पारिवारिक विसंगतियाँ, कलहपूर्ण दाम्पत्य जीवन, आर्थिक विषमता अथवा विपन्नता, धन हानि, स्वास्थ्य, निरन्तर अथवा असाध्य व्याधि से पीड़ा, व्यवसाय तथा व्यापार में अवनति, हानि अथवा प्रगति का अवरुद्ध हो जाना भी कालसर्प योग का प्रतिफल है। कुटुंब में सम्पत्ति सम्बन्धी कलह, विवाह में विलम्ब अथवा विवाह में अवरोध, सन्ततिहीनता, धनहीनता तथा व्यवसायहीनता आदि से सम्बन्धित दुर्भाग्य कालसर्प योग के परिणाम के अन्तर्गत आता है। इस विषय में एक महत्त्वपूर्ण परामर्श यह है कि कालसर्प योग की शान्ति के अतिरिक्त जन्मांग में विद्यमान धनहीनता, सन्तानहीनता अथवा अन्य प्रकार की बाधाओं के शमन हेतु समुचित तथा अनुकूल मंत्र चयन करने के पश्चात् सम्बन्धित अनुष्ठान किसी योग्य, अनुभवी और विद्वान् आचार्य द्वारा सम्पन्न कराना चाहिए अथवा संपुटित मंत्रों का जप स्वयं विधिविधान सहित करना चाहिए। इसी कारण इस कालसर्प योग सीरीज के अन्त में कालसर्प योग शमन विधान के पश्चात् मैं विभिन्न विसंगतियों, अवरोधों, विषमताओं, वैवाहिक विलम्ब, धनहीनता आदि की अशुभता को निर्मूल करने हेतु अनेक मंत्र तथा सम्बन्धित प्रयोग आदि का उल्लेख अवश्य करूंगा। इसलिये आप निरंतर जुडे रहिये। 

यह भी देखने में आता है कि शनिकृत पीड़ा अथवा व्याधि अथवा अथवा मंगली दोष के कारण उत्पन्न होने वाली विघटनकारी स्थितियाँ, जैसे- वैधव्य कारक व्याधियों का भी कारण कालसर्प योग को ही मान लिया जाता है। यह उचित जन्मांग के भलीभाँति अध्ययन करने के पश्चात् यह सुनिश्चित करना चाहिए कि समस्या का कारण क्या है तथा उसका समाधान कैसे होगा। यदि शनिकृत वेदना जीवन में बाधा कर रही है तथा उसकी प्रगति, प्रतिष्ठा और प्रफुल्लता, अवरुद्ध हो गयी है तो कालसर्प योग की शान्ति के पश्चात् भी व्यक्ति की परेशानी में न्यूनता नहीं आयेगी। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए जीवन में उत्पन्न होने वाले अवरोधों के शमन और निवृत्ति हेतु सम्बन्धित विषयों तथा उनके समाधान का उल्लेख भी इसी क्रम में आने वाले लेखों में किया जायेगा।

कालसर्प योग के कारण उत्पन्न होने वाली विसंगतियाँ तथा दुर्भाग्य की परिकल्पना परिसीमित है तथा उसकी अवधि और परिधि का सम्यक् ज्ञान नितान्त अनिवार्य है जिसका शास्त्रसंगत उल्लेख अगले लेख कालसर्प योग और संतानहीनता, में किया जायेगा। 


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