Kundli ke in bhavon me bana kalsarp yog deta hai santanhinta, kahi aap bhi to nahi hai iske shikar ?
कुंडली के इन भावों में बना कालसर्प योग देता है संतानहीनता। कहीं आप भी तो नहीं है इसके शिकार ? जानिए इस लेख में,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
काल और सर्प शब्द के मिलने से जो योग बनता है, वह कालसर्प योग कहलाता है। जो कि किसी की भी कुंडली में सर्वाधिक चर्चित बिन्दुओं में से एक है। स्वाभाविक है कि ज्योतिषशास्त्र के आरंभ से वर्तमान समय तक कालसर्पयोग विभिन्न रूपों में व्यक्ति के मन को उद्विग्न करता आ रहा है। इस परिदृश्य में सत्य और असत्य, पाखण्ड आदि भी सम्मिलित हो ही जाते है। क्योंकि इससे फिर कुछ फर्जी ज्योतिषी फायदा भी उठाने लग जाते है। और लूटने लग जाते है। जिसके कारण वास्तविक ज्योतिषी भी बदनाम होते है और जो लोग वास्तव में कालसर्प योग से परेशान है, वो भी इसका उपाय कराने से पीछे हटने लग जाते है और जीवनभर परेशान भी रहते है। परंतु वह उपाय नहीं कराते है। क्योंकि उनको अपने साथ धोखा होने का डर रहता है। और विधि विधान में कुछ गलत होने पर अशुभ होने का डर होता हैै, वो अलग। इसलिये लोग इस योग के अशुभ फल को जीवनभर झेलते ही रहते है।
राहु केतु को छायाग्रह माना गया है। जो कि कालसर्पयोग के दो ध्रुव हैं। इसलिये सबसे पहले इनका प्रारंभिक ज्ञान आवश्यक है। जब समस्त ग्रह राहु और केतु की धुरी के एक ओर हों तथा शेष भाग ग्रह से रिक्त हो तो कालसर्पयोग का निर्माण होता है। राहु और केतु हमेशा एक दूसरे से सात राशि की दूरी पर रहते है। इनमें 180 अंश का अन्तर होता है। राशि चक्र 360 अंश का होता है। यदि सभी ग्रह 180 अंश के क्षेत्र, अर्थात् राहु एवं केतु की धुरी के एक तरफ हों, तो दूसरा 180 अंश का क्षेत्र खाली होगा। कुंडली में इस ग्रह स्थिति को ही कालसर्पयोग कहते है।
कालसर्प योग का नाम सुनते ही मन में एक अजीब सा भय व्याप्त हो जाता है। मन में तरह तरह के विचार आने लगते है। फिर जीवन की सभी परेशानियों का कारण वह कालसर्प योग ही प्रतीत होने लगता है। परंतु ऐसा नहीं होता। जीवन में परेशानियां भी बहुत है और उनके कुंडली में दोष भी बहुत होते है। कोई एक ही दोष सभी समस्याओं का कारण नहीं होता है।
यदि कुंडली में कालसर्प योग विद्यमान हो, तो इसे पूर्व जन्म के किसी पाप का अनिवार्य अशुभ फल मानना चाहिये। क्योंकि किए हुये कर्म का फल अवश्य भुगतना होता है। चाहे शुभ हो या अशुभ फल हो। यदि सन्तान न हो, तो उसका कारण भी कालसर्प योग बन जाता है। मात्र पुत्रियों का ही जन्म हो तथा पुत्र सुख से वंचित हों, या पुत्र जन्म के पश्चात् उसकी हानि हो, तो उसका कारण कालसर्प योग को ही समझना चाहिए। परन्तु, ऐसा तभी सम्भव है जब काल सर्प योग में राहु पंचम भाव में स्थित हो तथा केतु एकादश भाव में। राहु के साथ शनि अथवा मंगल या सूर्य स्थित हो तथा पंचमेश क्रूर ग्रहों के प्रभाव में हो। यह कालसर्प योग तभी प्रभावी होगा, जब शेष ७ ग्रह षष्ठ भाव से लेकर दशम भाव तक या पंचम भाव से लेकर एकादश भाव तक स्थित होंगे।