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Thursday, 2 April 2020

Chathe bhav me guru ka shubh ashubh samanya fal / छठे भाव में गुरु का शुभ अशुभ फल

Posted by Dr.Nishant Pareek

छठे भाव में गुरु का शुभ अशुभ फल 




शुभ फल : छठे भाव में गुरु बलवान् होने से शारीरिक प्रकृति अच्छी अर्थात नीरोगी होती है। शरीर में चिन्ह होता है। जातक मधुरभाषी, सदाचारी, पराक्रमी, विवेकी, उदार होता है। सुकर्मरत, लोकमान्य, प्रतापी, विख्यात और यशस्वी होता है। जातक विद्वान, ज्योतिषी, तथा संसारी विषयों से विमुख और विरक्त होता है। जारण-मारण आदि मन्त्रों में कुशल होता है। जातक संगीत विद्या का प्रेमी होता है। सार्वजनिक स्वास्थ्य के विषय में जातक प्रवीण होता है। 

छठे स्थान पर बैठा बृहस्पति जातक को स्त्री पक्ष का पूरा सुख देता है।सुन्दरी स्त्री से रति सुख मिलता है। गुरु भाई बहनों के लिए तथा मामा के लिए सुखकारी होता है। पुत्र और पुत्र के पुत्र (पौत्र) देखने का सुख मिलता है। राज-काज में, विवाद में विजय कराता है। जातक शत्रुहंता तथा अजातशत्रु होता है। अर्थात शत्रु नहीं होते। नौकर अच्छे मिलते हैं। वैद्य, डाक्टरों के लिए यह गुरु अच्छा होता है। स्वास्थविभाग की नौकरी में जातक यशस्वी होता है। स्वतंत्र व्यवसाय की अपेक्षा नौकरी के लिए यह गुरु अनुकूल होता है। भैंस-गाय-घोड़ा कुत्ते आदि चतुष्पदों (चारपाए जानवरों) का सुख मिलता है। गुरु स्वगृह में या शुभग्रह की राशि में होने से शत्रुनाशक होता है।   
अशुभफल : जातक कृश शरीर अर्थात दुर्बल होता है। सामान्यत: षष्ठ भाव के गुरु होने से जातक के के बारे में लोग संदिग्ध और संशयात्मा रहते हैं। निष्ठुर, हिंसक, आलसी, घबड़ाने वाला, मूर्ख तथा कामी होता है। जातक के काम में विघ्न आते हैं। जिस काम को हाथ में लेता है उसे समाप्त करने में शीघ्रता नहीं करता है अर्थात् आलस करता है। 

जन्मलग्न से छठे स्थान में बृहस्पति होने से जातक रोगार्त रहता है। नानाविध रोगों से रुग्ण रहता है। जातक को नाक के रोग होते हैं। जातक की माता भी रोग पीडि़त रहती हैं। माता के बन्धु वर्गों में भी (मामा आदि में भी) कुशल नहीं रहता है। जातक के मामा को सुख नहीं होता है। शत्रु बहुत होते हैं। शत्रुओं से कष्ट होता है। 40 वें वर्ष शत्रुओं का भय होता है। छठागुरु भाइयों और मामा के लिए मारक होता है। छठागुरु अपमान, पराभव और व्याधि देता है। छठवें और बारहवें वर्ष ज्वर होता है। कामी, और शोक करने वाला होता है। जातक स्त्री के वश में रहता है। जातक की भूख कम होती है-पौरुष कम होता है। गुरु धनेश होकर छठे होने से पैतृकसंपत्ति नहीं मिलती।       

गुरु पुरुषराशियों में होने से जातक सदाचारी नहीं होते-इन्हें जुआ, शराब और वेश्या में प्रेम होता है। मधुमेह, बहुमूत्र, हार्निया, मेदवृद्धि आदि रोग होते हैं। गुरु कन्या, धनु या कुंभ मे होने से जातक के लिए भाग्योदय में रुकावट डालनेवाला है। गुरु अशुभ योग में होने से यकृत के विकार, मेदवृद्धि-तथा खाने-पीने की अनियमितता से अन्यरोग होते हैं।  पापग्रह का योग होने से या पापग्रह के घर में गुरु होने से वात के तथा शीत के रोग होते हैं।       शास्त्रकारों के बताये अशुभफल पुरुषराशियों में अनुभव मे आते हैं।
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