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Tuesday, 13 October 2020

Vrash rashi ke anya rashi walo se vivah sambandh kaise rahenge, janiye is lekh me./ वृष राशि के अन्य राशि वालों से विवाह संबंध कैसे रहेंगे, जानिये इस लेख मेंः-

Posted by Dr.Nishant Pareek

Vrash rashi ke anya rashi walo se vivah sambandh kaise rahenge, janiye is lekh me.


वृष राशि के अन्य राशि वालों से विवाह संबंध कैसे रहेंगे, जानिये इस लेख मेंः-

वृष - मेष :- 

अग्नि तत्व और जल तत्व की आवश्यकताओं और स्वभाव में इतनी भिन्नता है कि उनकी पटरी ठीक से बैठ पाना सरल नहीं है। दोनों में से किसी के झुकने के लिये तैयार न होने पर कठिनाई सामने आयेगी। मेष को नए नए उद्यम और चुनौतियां चाहिये। जबकि वृष जातक शांति और सुस्थिरता चाहते है। वृष जातकों की मंदगति और एक ही स्थान पर ठहरे रहने की प्रवृति पर मेष जातक अपना धैर्य खो बैैठते है।

यदि पति मेष राशि है और पत्नी वृष, तो पत्नी को समझ लेना चाहिये कि वह पति को अपनी मनमर्जी से झुका नहीं सकती है। लेन देन की भावना का अभाव दोनों की कमजोरी है। दोनों अपनी अपनी फायदा या सुख देखेंगे। यदि दोनों अपने अपने रूख पर अडे रहे तो ऐसा भी हो सकता है कि उनके बीच संभोग संबंध समाप्त हो जाये अथवा संभोग के समय लडाई झगडा हो। 

यदि पति वृष हो और पत्नी मेष हो तो भी दोनों के संबंध मधुर रहने की संभावना बहुत कम होती है। किसकी मर्जी चलेगी, इस बात पर दोनों में टकराव होता है। पत्नी अपने नये नये विचार पति पर थोपने का प्रयास करती है और पति को वह विचार समझ से परे लगते है। वह हर बात को तर्कपूर्ण तरीके से सोचना चाहता है। वह हर काम में सुरूचि भी खोजता है। भोजन बनाना तक उसके लिये कला का काम है। जिसमें उसकी पत्नी को अपनी सुरूचि का परिचय देना चाहिये। पत्नी के लिये इन सब बातों का कोई महत्व नहीं है और उसकी दिलचस्पी कहीं और ही रहती है। 

शारीरिक संबंधों में भी पत्नी पति से उससे कहीं अधिक अपेक्षा करेगा जितना वह उसे दे सकती है। पति के लिये यौन संतुष्टि सबसे महत्वपूर्ण है जबकि पत्नी को बाहय संतुष्टि के बिना यौन संबंधों में रस नहीं मिल सकता। 

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वृष- वृषः- 

वृष जातक स्थिर राशि में जन्म लेने के कारण परंपरावादी होते है। वे यथास्थिति बनाए रखना चाहते है। अतः दोनों की अच्छी पट सकती है। किन्तु दोनों में ईष्र्या और अधिकार की भावना होती है। यदि इन पर चोट पडे तो उनके शांत जीवन में तूफान आ सकता है। उनका जिद्दी स्वभाव भी आडे आ सकता है। तब वे एक दूसरे की हर गतिविधि को संदेह की दृष्टि से देखेंगे और उनमें तेज झगडा होगा। वृष जातक वृष जातिका की घर चलाने की सुचारू व्यवस्था से विशेष प्रभावित होगा। सोच समझकर पैसा खर्च करने और उसकी सहज व्यापारिक वृद्धि का भी वह कायल होगा। वृष महिला अतिथि सत्कार में बहुत कुशल होती है। वह एक बडे भोज का प्रबन्ध भी उतनी ही कुशलता से कर सकती है, जितनी कुशलता से दो मेहमानों के खाने का प्रबन्ध करती है। दोनों के संबंधों को प्रगाढ बनाने के लिये उसका यह गुण बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि अतिथि सत्कार उनके जीवन का एक आवश्यक अंग है। 

शारीरिक संतुष्टि की भूख दोनों में समान रूप से होती है। उनका आधा समय रसोई में ही निकल जाता है। बिना लाग लपेट का यौन जीवन उनके लिये महत्वपूर्ण है - एक दूसरे तक सीमित दो स्थूल व्यक्तियों का सुखी परिवार। अच्छे और बुरे गुणों में समानता के कारण यह जोडी उत्तम रहेगी या एकदम चैपट हो जायेगी। 

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वृष - मिथुन -

वृष सबसे अधिक पृथ्वी तत्व वाली राशि है। मिथुन वायु तत्व वाली राशि चंचल और परिवर्तनशील है। दोनों की मूल आवश्यकताएं आकांक्षाएं परस्पर विरोधी है। मिथुन में निरन्तर परिवर्तन तथा विविधता की भावना से स्थिरता चाहने वाली वृष परेशान हो सकती है। वृष के लिये मिथुन को रोके रखना प्रायः असंभव होगा। 

यदि पत्नी वृष है और पति मिथुन जातक है तो पत्नी को कलाओं में दिलचस्पी अपने तक ही सीमित रखनी चाहिये। जब तक उसमें उच्च कोटि की कला प्रतिभा नहीं होगी, तब तक पति पर उसके कला पे्रम का कोई प्रभाव नहीं पडेगा। उसे घरेलू ढंग की पत्नी भी पसंद नहीं आती। मिथुन जातक ऐसी पत्नी चाहता है जो धुंआधार सामाजिक जीवन में भी उसका साथ दे सके। वृष जातिका का अतिथि सत्कार का गुण उसे अच्छा लग सकता है। किन्तु ऐसी पत्नी ईष्र्यावश उसके अन्य महिलाओं से मिलने जुलने को पसंद नहीं करेगी। उसकी दिमागी भूख को समझे बिना वह उस पर अधिकार जताने का प्रयास करेगी। जिससे उनके संबंधों में तनाव पैदा होगा। वृष पत्नी की अपने साज श्रृंगार पर ध्यान देने और संगठन की प्रतिभा का प्रदर्शन करने की मिथुन पति अवश्य सराहना करेगा। कभी कभी वह उसके चरित्र बल की प्रशंसा भी करेगा। जब दुनिया उसे धकियाती दिखाई देती है तो वह पत्नी की गोद में ही जाकर शरण लेगा। इससे उनके शिथिल दाम्पत्य को कुछ बल मिलेगा। 

पति पत्नी के गिरगिट जैसे रंगों से बहुत परेशान रहेगी। एक दिन वह शरारती बालक जैसा व्यवहार करेगा तो दूसरे दिन पशु जैसा। उसे विविधता चाहिये, जो यदि घर में नहीं मिलती तो वह बाहर तलाश करता है। यदि पति वृष जातक है और पत्नी मिथुन है तो कभी कभी मौज मस्ती की तरंग में वेे एक दूसरे के प्रति आकर्षित हो सकते है। बाद में पति की मंद और परंपरागत चाल से तथा अपने रंग ढंग में कोई परिवर्तन न करने की जिद से पत्नी उखड जायेगी। इसे वह अदूरदर्शिता समझेगी। कभी कभी घर भी उसे अच्छा लग सकता है किन्तु घर ही उसके लिये पूरी दुनिया नहीं होती। वह खुला जीवन जीना चाहती है। पति चाहेगा कि वह सारा समय घर में ही बिताये। और उसके लिये सुख सुविधायें जुटाए। ऐसा न होने पर संबंधों में दरार आने का खतरा होता है। 

वृष व्यक्ति में यौन समागम की प्रबल इच्छा होती है। लेकिन अपनी बिना लाग लपेट वाली पहल व ईष्र्यालु स्वभाव के कारण वह मिथुन पत्नी को अपने से दूर कर देगा। पे्रमाचार के मामले में दोनों की पहल में इतनी भिन्नता होगी कि उनके लिये एक दूसरे को संतुष्ट कर पाना प्रायः असंभव होगा। 

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वृष - कर्क - 

पृथ्वी तत्व और जल तत्व के बीच सहज आकर्षण होता है। दोनों में अनेक समानताएं होती है। दोनों के लिये भावनाओं तथा प्रेम का भारी महत्व है। दोनों मूल रूप से परंपरावादी है। अतः परस्पर विरोधी रूचियों के कारण संघर्ष की संभावना कम ही है। भावनाओं का उबाल आने पर समझदारी और तर्क से उसे शांत किया जा सकता है। लेन देन की भावना से इस संबंध को अच्छा बनाया जा सकता है। 

यदि पत्नी वृष जातिका है और पति कर्क जातक है तो पति पत्नी के मन में यह बात बैठा सकता है कि वह उसके जीवन में सब कुछ है। यही आशा वह पत्नी से करता है। दोनों में घरेलूपन की भावना मिलती है और उनका अधिकांश समय घर में ही निकलता है। कर्क जातक सदैव कल्पनाशील रहता है। वह पत्नी में देवी की छति देखना चाहता है। अतः उसकी दुर्बलता सामने आने पर उसे बहुत सदमा सा लगता है। वह अपने में ही खोया रहने लग जाता है। वृष महिला बहुत व्यवहार कुशल नहीं होती। पति को कुरेदकर बाहर निकालने के उसके प्रयासों का उल्टा ही परिणाम होता है। लेकिन वृष महिला में ममता भरपूर होती है। पति के बुरे दिनों में अपनी ममता का सहारा देकर वह उसे भारी प्रात्साहन दे सकती है। 

इस संबंध में समय और समय और परिश्रम से सुधार हो जाता है। उनके यौन जीवन पर शाम की घटनाओं का भारी प्रभाव पडता है। यदि कोई दुखद घटना घट जाये तो पति के लिये प्रेमाचार असंभव हो जाता है। उस समय पत्नी उसे कुरेद कर नाराजगी ही पैदा करेगी। यदि पति वृष है और पत्नी कर्क हो तो घरेलूपन की भावना दोनों के जीवन को सुखी बनाये रखेगी। सबसे बडा संकट नीरस दिनचर्या के फलस्वरूप उबाउपन आने का है। उनका यौन जीवन भी मशीन जैसा बन सकता है। अतः कल्पना का सहारा लेकर जीवन में विविधता और सरसता लाने का प्रयास करना जरूरी है। 

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वृष - सिंह - 

दो इतनी दृढ इच्छा शक्ति वाली राशियों में पृथ्वी तत्व का अग्नि तत्व से मेल टकराव और विरोध पैदा कर सकता है। सिंह जातक चाहता है कि उस पर पूरा ध्यान दिया जाये। वृष में में यह गुण विद्यमान है। वृष जातक प्रायः सिंह के दबदबे को सहन करता है और फिर एक दिन उलट कर वार कर सकता है। सिंह के के लम्बे चैडे विचार परंपरावादी वृष को हैरान कर सकते है। सामान्यतः यह एक बेमेले जोडी है। यह संबंध आमतौर से अन्धाकर्षण से शुरू होता है, जो अधिक आगे तक शायद ही बढ पाता है। 

सिंह जातक में ऐसे अनेक गुण होते है जो वृष जातिका को आकर्षित किये बिना और पे्रमजाल में फंसाए बिना नहीं रहते। जैसे उसकी शक्ति, सौहार्दता, उदारता। सिंह जातक वृष जातिका की सुरूचि तथा सहज वित्तीय योग्यता से प्रभावित होता है। उसकी वाक्पटुता से आकर्षित हो वह उसकी कमियों को नहीं देख पाता। फिर एक दिन वृष जातिका ऐसा महसूस कर सकती है कि उसका सिंह पति उस पर भारी पड रहा है। इससे उसमें उपेक्षा की भावना उत्पन्न होने लगती है और उसकी विरोधी स्वभाव वाली नारी जाग जाती है। पति उसको सभी सांसारिक सुख सुविधाएं प्रदान करता है, लेकिन इससे पत्नी भी भावनात्मक भूख नहीं मिटती है। यह भूख उनके यौन जीवन में प्रवेश कर जाती है। पति को लगता है कि पत्नी ने उसके विरूद्ध असहयोग की लडाई छेड दी है। यह स्थिति न आ जाये कि इसके लिये पति पत्नी को अपनी मौज मस्ती को कायम रखना होगा। 

यदि पत्नी सिंह है और पति वृष है तो इससे अधिक जिददी लोगों की जोडी मिलना असंभव है। यह संबंध तभी बनाना चाहिये, जब दोनों एक दूसरे को बदलने का प्रयास न करने का निश्चय ले। निजी रायों के बारे में दोनों की जिद उनके सुखी जीवन में सबसे बडी बाधा होगी। पति कर्जे के नाम से ही घबरायेगा और पत्नी का हाथ इतना खुला होगा कि यदि उस पर अंकुश न लगा हो तो पति को क्रोधी रूप देखने को मिलेगा। लेकिन मेहमानों के सत्कार में दोनों की रूचि रहेगी। वृष पति में यौन की बलवती इच्छा रहेगी, लेकिन पत्नी की यौन की भूख भी कम नहीं होगी, अतः इस संबंध में समस्याएं पैदा होने की संभावना नहीं है। उनका यौन जीवन बिना किसी लाग लपेट वाला होगा और अत्यंत संतोषजनक भी हो सकता है। किन्तु असली झगडा शयन कक्ष के बाहर होगा। दोनों का स्वभाव एक दूसरे के विरोधी है। 

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वृष - कन्या - 

       पृथ्वी तत्व के पृथ्वी तत्व से मेल का अर्थ है कि अनेक बातों में दोनों का समान दृष्टिकोण है। दोनों व्यवहार कुशल, यथार्थवादी, सक्षम और व्यवस्थाप्रिय है। किन्तु उनकी भावनात्मक प्रकृति में काफी अन्तर है। वृष में गहरी अधिकार भावना और आवेश पाया जाता है। जबकि कन्या में भावनाएं अधिक नियंत्रित रहती है। दोनों के लक्ष्यों में काफी समानता है। दोनों ही भौतिक सफलता और सुरक्षा चाहते है। यदि धैर्य से काम ले तो यह एक आदर्श जोडी बन सकती है। 

यदि पत्नी वृष जातिका हो और पति कन्या जातक हो तो उनके जीवन में बच्चों की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। यह जोडी आदर्श होने पर भी किसी को एकदम पूर्ण नहीं कहा जा सकता है। पति आफिस में या घर पर देर तक कठोर परिश्रम करता है और पत्नी उसके काम की सराहना करना तो दूर, उलटे उसके दावा करती है कि वह उससे बेहतर काम केवल आधे समय में कर देती है। इसी प्रकार जब पति अपने स्वभाव के अनुसार पत्नी के किसी काम की कडी आलोचना करता है तो वृष जातिका अपने दोषों सहज स्वीकार नहीं करती। यह दोनों के बीच तनाव का कारण बनता है। बहुत दिनों बाद उसकी समझ में आ जाता है कि ऐसी आलोचना पर ध्यान नहीं देना चाहिये। कन्या जातकों की अपनी एक चर्या और जीने के नियम होते है। वृष जातिकाओं में भी यह प्रवृति पाई जाती है। जिससे दोनों की पटरी बैठ जाती है। कन्या जातक के मन में कु वर्जनाएं होती है। जिससे दोनों की पटरी बैठ जाती है। कन्या जातक के मन कुटिलता होती है। लेकिन वृष जातिका उसके अधिक से अधिक गुणों को प्रकाश में लाने में समर्थ होती है। कन्या राशि का व्यक्ति यौन के विषय में भी अधिक सक्रिय नहीं होता। किन्तु वृष जातिका उसकी वर्जनाओं को दूर कर उसकी यौन वृत्तियां जगा देती है। 

 यदि पति वृष हो और पत्नी कन्या हो तो भी अनेक बातों पर दोनों का समान दृष्टिकोण होने से उनके बीच ठोस संबंधों का आधार तैयार होता है। दोनों पूरे विस्तार के साथ अपने भविष्य की योजना बनाते है। कन्या जातिका यद्यपि वृष जातिका की भांति गृहकार्य में दक्ष नहीं होती। परंतु वह घर तो कुशलता पूर्वक चलाती है। पति की सुख सुविधाओं का ध्यान रखती है। भावनात्मक दृष्टि से यद्यपि वृष जातक की भावनाएं अधिक गहरी होती है। तथापि कालान्तर में वह कन्या जातिका में अधिक गहरी भावनाएं पैदा करने में सफल होता है। उसकी ईष्र्या तनाव का कुछ कारण हो सकती है। किन्तु कन्या जातिका उसे इसके लिये अवसर नहीं देती। मतभेद का एक कारण पति का आलसीपन हो सकता है। जिसे पत्नी प्रायः क्षमा नहीं करती है। दूसरा खतरा उनके जीवन में गतिरोध और नीरसता आ जाने का है। 

इस जोडी का यौन जीवन भी बहुत सक्रिया रहेगा। वह अधिक लाग लपेट वाला नहीं होगा। पत्नी में इतनी बुद्धि अवश्य होगी कि पति के किसी सुझाव का विरोध न करे। पति पत्नी दोनों एक दूसरे के लिये जीने का प्रयास करे। 

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वृष - तुला - 

 पृथ्वी तत्व और वायु तत्व में कोई मेल नहीं है, किन्तु दोनों राशियों का स्वामी शुक्र ही है। अतः यह संबंध भावनाओं पर निर्भर करेगा, जिसमें सौन्दर्य भावना की परख भी है। दोनों राशियों शांति और प्रेम से रहना चाहती है, अतः कोई पक्ष विवाद में पडना नहीं चाहेगा। कूटनीति कुशल तुला जातक जिददी वृष जातक से नीति पूर्वक निभा ले जा सकता है। दोनों को आनंद और भोग चाहिये। जिसके लिये बजट में व्यवस्था करनी होगी। 

इसके बाद भी यदि पत्नी वृष है और पति तुला है तो नित्य जीवन में पति पत्नी को उसकी सहन शक्ति की सीमा से अधिक नाराज कर सकता है। एक सप्ताह वह अपने काम में इतना व्यस्त रहता है कि उसे पत्नी के अस्तित्व तक का भान नहीं रहता और दूसरे सप्ताह वह पूरे आलस में डूब जाता है और कोई काम नहीं करता। वृष जातिका योजनाबद्ध तरीके से अपना जीवन चलाना चाहती है, जबकि तुला जातक एक घंटे से आगे की नहीं सोचता। उसे कुरेदने का अर्थ दोनों के बीच तीव्र झडप ही हो सकता है।  तुला जातक में एक हरजाईपन पाया जाता है। जिसका कोई इलाज नहीं हो सकता। इसके पीछे आत्म तुष्टि का ही कारण रहता है। वृष जातिका की ईष्र्या इसे सहने की अनुमति नहीं देती। फिर भी तुला जातक आम तौर पर उसके उबाल को पचा जाता है। प्रारंभ में प्रबल यौनाकर्षण के कारण उनकी व्यक्तित्व संबंधी समस्याएं उभर कर सामने नहीं आ पाती। धीरे धीरे यह आकर्षण कम होता जाता है। लेकिन उसके रहते वे तरह तरह के परीक्षणों के दौर से गुजरते है। 

यदि पति वृष जातक है और पत्नी तुला है तो केवल कलाएं और सौंदर्य बोध उन्हें आपस में बांध कर रखने के लिये पर्याप्त नहीं होगा। पति पत्नी को घर में रखना चाहता है। कुछ समय तक पत्नी को यह दर्शन अच्छा लग सकता है। परंतु अधिक दिन तक यह नहीं चल सकता। उसका स्वतंत्रता प्रेमी मन शीघ्र भटकने लगता है। पति पत्नी के बीच तनाव बढता जाता है। पति को पत्नी के चरित्र पर संदेह होने लगता है। धन की दृष्टि से भी दोनों के विचारों में बहुत अंतर होता है। पति में सुरक्षा की भावना मुख्य होती है तथा वह भविष्य के लिये बचाकर रखना चाहता है। पत्नी केवल तात्कालिक आवश्यकताओं की बात सोचती है और व्यय की अधिक चिन्ता नहीं करती। तुला जातिका वृष जातक को पति पाकर आरंभ में तो बहुत प्रसन्न रहती है। वृष जातक की यौन की भूख प्रबल होती है। बाद में पत्नी अनुभव करती है कि पति केवल अपनी भूख मिटाने में ही विश्वास रखता है। जबकि उसे स्वयं मानसिक उत्तेजना चाहिये। उसके मन में विद्रोह जन्म ले सकता है और वह उससे सहयोग से इन्कार कर सकता है। यदि पति अपने रूख पर अडा रहा तो वह अन्यत्र भी संतुष्टि की तलाश कर सकती है। दोनों की जोडी काफी तूफानी रहने की संभावना है। 

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वृष - वृश्चिक - 

पृथ्वी तत्व की प्रायः जल तत्व के साथ पटरी बैठ जाती है। किन्तु राशिचक्र में ये दो राशियां एक दूसरे के आमने सामने होने के कारण प्रारंभ में उनमें प्रबल आकर्षण उत्पन्न होता है। बाद में आकर्षण घटने पर इसका उलटा भी हो सकता है। दोनों राशियां ईष्र्या तथा अधिकार की भावना से ग्रस्त है। अतः उनमें परस्पर विश्वास होना आवश्यक है। गहन भावनाओं के कारण कभी कभी तूफानी पे्रम या घृणा संबंध जन्म ले सकते है। 

यदि पत्नी वृष और पति वृश्चिक हो तो पति का पत्नी की निष्ठा पर बहुत अधिक बल होता है। उसके लिये सारी दुनिया बहुत क्रूर, अविश्वसनिय व शत्रुतापूर्ण दिखाई देती है। वह घर से ही उसका सुधार करना चाहता है। जिसे उसकी वृष पत्नी शायद पसंद नहीं करती। यदि वह उस पर अंकुश लगाने का प्रयास करती है तो उसमें जलन, ईष्र्या, तथा अधिकार की भावना प्रबल हो जाती है। कभी कभी वह क्रूर भी हो सकता है। ये ही विशेषताएं वृष पत्नी के स्वभाव में होती है। अतः उनके संबंध नाटकिय हो सकते है। यदि वे एक दूसरे को बहुत चाहते है तो इस तनाव को पार कर सकते है। और रोज रोज के झगडों को मजाक में लेजा सकते है। वृष पत्नी यदि आग और तूफान का जीवन पसंद करती है तो उसे ऐसा ही पति चाहिये। 

यौन जीवन में दोनों ही बहुत संवेदनशील होते है। लेकिन उनकी अपनी अपनी धारणाएं होती है और दोनों चाहते है कि दूसरा उसके आगे झुके। खाने पीने में दोनों ही अति करते है। जिसका उनके यौन जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है। 

यदि पति वृष और पत्नी वृश्चिक हो तो दोनों के जिद्दी स्वभाव से अनेक समस्याएं पैदा हो सकती है। उनमें जरा सी बात को लेकर खींचतान हो सकती है कि कौनसी फिल्म देखनी चाहिये। किन्तु उनके बीच आर्थिक समस्याएं उठना संभव नहीं है। क्योंकि दोनों ही पैसे को सोच समझकर खर्च करने वाले होते है। उनके बीच तनाव का एक अन्य कारण यह भी हो सकता है कि जहां वृश्चिक पत्नी में भावना पक्ष प्रबल रहता है, वहीं वृष जातक में यथार्थ प्रबल होता है। फिर भी एक पक्की गृहस्थी की चाह दोनों को जोडे रख सकती है। उनका यौन जीवन भी अस्थिर रहेगा। दोनों में यौन की भूख प्रबल रहती है। ऐसे अवसर कम ही आते है, जब दोनों की यह भूख एक ही समय पर जागे। 


वृष - धनु - 

यह बहुत ही बेमेल जोडा होता है। वृष सबसे स्थिर राशियों में है और वृष जातक जीवन सुस्थिर होने पर ही स्वयं को सुरक्षित समझ सकता है। उसकी घरेलू तथा अधिकार भावना भी धनु जातक की स्वतत्रता भावना से टकरा सकती है। धनु जातक चंचल और परिवर्तन पसंद होता है। वह दूर की उडानें भरता है जिसके लिये उसे विशाल मानसिक और भौतिक क्षितिज चाहिये। वृष जातक के लिये इसे सहन कर पाना बहुत मुश्किल होता है। वृष स्त्री और धनु पुरूष की मित्रता तो निभ सकती है लेकिन इससे आगे पे्रम संबंध स्थापित होने पर कठिनाइयां आरंभ हो जायेगी। धनु जातक के लिये पे्रम को अधिक समय तक निभा पाना कठिन होता है। उसमें खिलाडीपन और दुस्साहस की भावना होती है। जबकि वृष स्त्री उसके साथ घर से बाहर निकलने को प्रस्तुत नहीं होती। धनु जातक वृष स्त्री की बात सुन सकता है उसकी आलोचना सहन कर सकता है। कुछ सीमा तक अपने में परिवर्तन ला सकता है। किन्तु उसका पालतु नहीं बन सकता। यौन संबंधों में भी वृष स्त्री के लिये धनु जातक के विचित्र असामान्य सुझावों को स्वीकार करना संभव नहीं होगा। 

यदि पति वृष हो और पत्नी धनु हो तो आरंभ में विरोधी प्रवृतियों के कारण उनके बीच आकर्षण पैदा हो सकता है। किन्तु बाद में यही आकर्षण संघर्ष का कारण बन जायेगा। एक दिन पति महसूस करेगा कि उसकी पत्नी बहुत स्वच्छंद स्वभाव की है और पूर्ण रूप से उसकी नहीं हो सकती। उधर पत्नी पति के परंपरावादी स्वभाव से वह उबने लगती है। पति की ईष्र्या से दोनों के संबंध टूटने प्रारंभ हो जायेंगे। दोनों के आर्थिक दृष्टिकोण में भी भारी अंतर रहेगा। 


वृष - मकर - 

पृथ्वी तत्व और पृथ्वी तत्व का यह मेल अच्छा रहेगा। सुरक्षा भावी वृष जातक को मकर जातक का व्यावहारिक दृष्टिकोण और धैर्यपूर्वक काम करने की प्रवृति रास आयेगी। दोनों परंपरावादी और उत्तरदायित्व निभाने वाले है। बाहरी भोगों को उनमें से कोई वास्तविक महत्व प्रदान नहीं करता। अतः जीवन कभी कभी उनके लिये काफी गंभीर हो उठेगा। 

यदि पत्नी वृष है और पति मकर है तो दोनों के बीच सहज अनुभूति विद्यमान रहती है। जिससे वे एक दूसरे की भावनाओं को आशा - निराशाओं को और परिहास भावना को समझ सकते है। दोनों स्थायी, सुरक्षित और प्रेमपूर्ण गृहस्थ जीवन पसंद करते है। प्रारंभ में मकर पति अपने को ठीक से व्यक्त नहीं कर पाता। किन्तु कालांतर में वृष पत्नी समझ लेती है कि उसकी भावनाओं को उसके कार्यों से समझना चाहिये, चिकनी चुपडी बातों से नहीं। 

पति की संभोग इच्छा में बहुत उतार चढाव आता रहता है। एक दिन उसमें प्रबल संभोग का वेग रहता है तो दूसरे दिन वह एकदम निढाल हो जाता है। उसके यौन संबंधों पर बाहरी तनावों का भारी प्रभाव पडता है। वृष पत्नी को चाहिये कि उसके तनाव की अनुभूति कर उसके साथ चर्चा करे। इससे उसमें कमी होगी। इस जोडी का जीवन ठीक तरह निभाने की काफी संभावना है। यही बात उस अवस्था में होगी जब पति वृष हो और पत्नी मकर हो। शारीरिक आकर्षण उनके व्यक्तित्व के अंतर को कम कर देगा। दोनों एक दूसरे की रूचियों में दिलचस्पी लेना सीखेंगे। वे पुरातत्व की वस्तुएं एकत्र कर सकते है। क्योंकि दोनों की अतीत में कुछ न कुछ दिलचस्पी होगी। बागवानी में या घर से बाहर छुट्टियां बिताने में भी उनकी रूचि हो सकती है। खतरा यही है कि वे घर में इतने बंध जायेंगे कि बाहरी दुनिया से बिल्कुल कट जायेंगे। 

यौन संबंधों में यह मकर स्त्री के लिये सर्वोत्तम रहेगा। मकर पति अन्य राशि पतियों की अपेक्षा उसमें अधिक यौन भावना जगा सकता है और वह अपने पति को संतुष्ट करना सीख सकती है। 


वृष और कुंभ - 

यह एकदम भिन्न स्वभाव वाली दो अत्यंत हठी राशियों का मेल है। वृष जातक कुंभ जातक के रहस्यमय स्वभाव को समझने में विफल रहेगा। जब कुंभ जातक कुछ स्वतंत्रता या अलगाव चाहेगा तब वृष जातक उससे चिपकने का प्रयास करेगा। दोनों मेें किसी एक को झुकना पडेगा। कुंभ जातक में अनेक व्यक्तियों को प्रेम करने की सहज भावना होती है। जबकि वृष जातक अपनी भावनाओं में एकांगी होता है। जहां तक हो सके वृष स्त्री को कुंभ पुरूष से विवाह संबंध नहीं बनाने चाहिये। कुंभ जातक परस्पर विरोधी औपचारिकता में विश्वास न करने वाला होता है। वृष जातिका के लिये महत्वपूर्ण सुरक्षा तथा भौतिक साधन उसके लिये कोई महत्व नहीं रखते है। वह अपनी बुद्धि प्रखर करने के लिये काम करना पसंद करता है। और इसके लिये अपने कार्य क्षेत्र में बार बार परिवर्तन भी करता है। पत्नी के भावनात्मक उबाल का उस पर कोई प्रभाव नहीं होता। वह मतभेदों पर ठण्डे दिमाग से और ईमानदारी से चर्चा करना चाहता है। 

जब वह अपने मित्रों की समस्याएं हल करने का या सुधार कार्यों में लगने का प्रयास करता है तो वृष पत्नी के मन में ईष्र्या जाग उठती है। लेकिन उसकी कोई सुनवाई नहीं होती। कुंभ जातक समय की पाबंदी बिल्कुल पसंद नहीं करता और पत्नी को उसके इस स्वभाव के साथ निर्वाह किए बिना कोई चारा नहीं। कुंभ पति के जीवन में यौन का अधिक महत्व नहीं होता। यद्यपि वह उससे दूर नहीं भागता। वृष जातिका को इससे चिढ लग सकती है। वह नहीं चाहती कि दुनिया भर की समस्याएं उसके शयनकक्ष तक में घुस आये। पति के लिये उसकी यौन की भूख अत्यधिक हो सकती है। 

यदि पति वृष जातक है और पत्नी कुंभ हो तब भी उनके दृष्टिकोणों में मौलिक अंतर के कारण उनके संबंध सफल होने की आशा बहुत कम है। पति घर की चहारदीवारी में बंद हो सकता है और पत्नी बाहर किसी प्रदर्शन या जुलूस में भाग ले रही होती है। पति प्रबल कामेच्छा से पीडित हो रहा होता है और पत्नी बाहरी दुनिया के विचारों में खोई रहती है। रूपये पैसे को खर्च करने के प्रश्न पर भी पति पत्नी के बीच चिक चिक चलती रहती है। स्थिति में सुधार न होने पर पति अपनी संतुष्टि के लिये अन्य सहारा तलाश सकता है और पत्नी को अपनी व्यस्तता के कारण इस बात का पता नहीं लगता है। जब पता चलता है, तब तक पानी सर से उपर चला जाता है। 


वृष - मीन - 

पृथ्वी तत्व और जल तत्व का यह मेल बहुत अनुकूल रह सकता है। इन राशियों के स्वामी शुक्र और वरूण में कोई टकराव नहीं है। वृष जातक तथा मीन जातक दोनों सौन्दर्य, कला, आनंद, भोग आदि को पसंद करने वाले है। वृष व्यावहारिक है जबकि मीन प्रायः बादलों में विहार करता है। इनका मेल यथार्थवादी और स्वप्नदर्शी का मेल है। जब उनके बीच समस्याएं पैदा होती है तो भावनाओं का वेग स्पष्ट चिंतन को ढक लेता है।  

पत्नी वृष हो और पति मीन हो तो पत्नी को आरंभ में ऐसा लगता है कि पति उसकी हर बात मानने को तैयार है। बाद में उसे पता चलता है कि एक क्षण वह कुछ चाहता है और दूसरे ही क्षण उससे विपरीत मांग रखता है। पति अपने अतिरिक्त किसी दूसरे की राय सुनना पसंद ही नहीं करता। जब समस्याएं खडी हो जाती है तो मीन पति उन पर समझदारी से चर्चा करने की बजाय पीछा छुडाकर भागता है और उम्मीद करता है कि वह समस्या स्वयं ही हल हो जाये। तनाव बढने पर वह किसी शांत स्थान की तलाश करता है। अपने गम भुलाने के लिये नशा करने लगता है। निरंतर दो विरोधी विचारधाराओं में झूलते रहने के कारण वह कोई भी निर्णय करने में असमर्थ रहता है। वृष पत्नी को इसके लिये तैयार रहना चाहिये। 

यौनसंबंधों में मीन पति अपनी वृष पत्नी की इच्छाओं के प्रति बहुत संवेदनशील रहता है औरउसे प्रसन्न करने का पूरा प्रयास करता है। इस पर भी यदि वह विफल रहे और पत्नी की आलोचना का शिकार बने तो शयया से उठकर चल देता है। 

यदि पति वृष और पत्नी मीन हो तो पत्नी का रोमांस प्रिय मन पति के यथार्थवाद से टकरायेगा। दूसरे की समस्याओं में स्वयं को उलझा लेने की उसकी प्रवृति से कठिनाइयां पैदा हो सकती है। विशेषकर जहां रूपये पैसे का सवाल होता है। जिस पर भी दया आ जाये, वह उसकी आर्थिक सहायता के लिये तैयार रहती है। व्यावहारिक पति को यह कैसे सहन हो सकता है ? यदि पत्नी की वृत्ति का उसके गृहस्थ जीवन पर प्रभाव पडता हो तब भी वृष पति की ईष्र्या और जिद आडे आ सकती है। पत्नी के स्वतंत्र होने के प्रयास से उसके पौरूष को चोट पहंुचती है। इससे स्थिति कभी कभी अत्यन्त तनावपूर्ण हो उठती है। यौन जीवन में भी ऐसी समस्याएं आ सकती है। जब पत्नी रोमांटिक मूड में हो और पति का प्रेम करने का ढंग एकदम पशु समान हो तो पत्नी की संवेदनशीलता हो आघात लगता है। कठिनाई यह है कि वृष पति किसी भावनात्मक परिवर्तन को स्वीकार नहीं करता और पत्नी की ओर से चमत्कार की आशा लगाए रहता है। 


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Sunday, 27 September 2020

Vrish rashi ka parichay / वृष राशि का संपूर्ण परिचय

Posted by Dr.Nishant Pareek

 Vrish rashi ka Parichay


वृष राशि का संपूर्ण परिचय

वृष राशि के अंतर्गत आने वाले नामाक्षर निम्न हैः- ई, ऊ, ए, ओ, बा, बी, बू, बे, बो।

राशि चक्र में वृष राशि दूसरे क्रम पर आती है। इसका प्रतीक बैल है। बैल स्वभाव से परिश्रमी और बहुवीर्यवान होता है। सामान्य रूप से वह शांत होता है, लेकिन क्रोध आने पर वह बहुत उग्र हो जाता है। उस समय उसे नियंत्रण करना कठिन होता है। 

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वृष राशि का विस्तार राशिचक्र के तीस अंश से साठ अंश तक कुल तीस अंश का होता है। इसका स्वामी ग्रह शुक्र है। इसके तीन द्रेष्काणों के स्वामी क्रमशः शुक्र- शुक्र, शुक्र- बुध, तथा शुक्र-शनि होते है। इसके अंतर्गत कृत्तिका नक्षत्र के तीन चरण, रोहिणी के चार चरण, तथा मृगशिरा के पहले दो चरण आते है। इन चरणों के स्वामी क्रमशः कृतिका द्वितीय चरण- सूर्य शनि,तृतीय चरण - चंद्र शनि, चतुर्थ चरण - सूर्य गुरू, रोहिणी प्रथम चरण- चंद्र मंगल, द्वितीय चरण - चंद्र शुक्र, तृतीय चरण- चंद्र बुध, चतुर्थ चरण - चंद्र चंद्र। मृगशिरा प्रथम चरण - मंगल सूर्य, द्वितीय चरण- मंगल बुध, इन चरणों के नामाक्षर क्रमशः ई, ऊ, ए, ओ, बा, बी, बू, बे, बो है। 

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त्रिशांश विभाजन में प्रथम पांच अंश वृष के, पांच से बारह अंश तक कन्या के, बारह से बीस अंश तक मीन के, बीस से पच्चीस अंश तक मकर के, तथा पच्चीस से तीस अंश तक वृश्चिक राशि के है। 

जिन व्यक्तियों के जन्म के समय निरयण चंद्र वृष राशि में संचरण कर रहा होता है, उनकी जन्म राशि वृष मानी जाती है। उन्हें गोचर के अपने फलादेश इसी राशि के अनुसार देखने चाहिये। जन्म के समय वृष राशि होने से भी यह अपना प्रभाव दिखाती है। 

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प्रकृति और स्वभावः-

वृष पृथ्वी तत्व वाली स्थिर राशि है। पंचम त्रिकोण वृष कन्या मकर की यह पहली राशि है। किन्तु इसके स्वामी शुक्र का संबंध जल तत्व से है। इसलिये वृष जातक उपर से पृथ्वी की भांति गंभीर तथा जल की भांति शांत भले ही दिखाई दें, परंतु उसके अहम् पर जरा सी चोट लगते ही या उनकी इच्छा के विरूद्ध कोई काम होता है तो ये बैल की तरह नथुने फुलाकर फुफकारने लगते है। वृष काल पुरूष का दूसरा भाव है। जो कंठ का प्रतिनिधित्व करती है। अतः अपनी इच्छा अनिच्छा व्यक्त करने में वे कंठ शक्ति का पूरा प्रयोग करते है। 

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वृष पुरूषों के कन्धे आमतौर पर चैडे, गर्दन मोटी तथा माथा चैडा होता है। महिलाएं प्रायः उन्नत उरोजों तथा छोटे हाथ पैरों वाली होती है। प्रौढावस्था में उन पर मोटापा चढनें की प्रवृति देखने को मिली है। वृष जातक स्थिर और दृढ स्वभाव के तथा काम के प्रति भारी लगन वाले होते है। उनमें भारी शारीरिक व मानसिक सहन शक्ति रहती है। जब तक संकल्प रहता है तब तक कितना भी तनाव सह सकते है। धीरे धीरे अपना काम करते रहते है। स्वभाव से जिद्दी होते है। बार बार परिवर्तन पसंद नहीं करते। शांतिपूर्ण तरीके से जीवन जीना पसंद करते है। अकस्मात कोई परिवर्तन आने पर वे परेशान हो जाते है। उनके लिये विरोधियों या परिस्थितयों से समझौता करना कठिन होता है। इसके कारण उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना भी करना पडता है। 

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वृष जातक बहुत सामाजिक होते है। मित्र बांधवों का सत्कार करने में उनको विशेष आनंद मिलता है। वे सुख और विलास का जीवन पसंद करते है। सौन्दर्य, कला और संगीत से भी उनका गहरा प्रेम होता है। वे सुंदर वातावरण में रहना चाहते है। बागवानी में रूचि रखते है। कलात्कम साज सज्जा में निपुण और हर वस्तु को करीने से रखने वाले होते है। उनमें नाटकीय प्रदर्शन की गहरी समझ होती है। अवसर के अनुकूल जीवन के मंच पर वे किसी भी भूमिका को सफलता से निभा सकते है। सफल संगीतज्ञों, अभिनेताओं, तथा कलाकारों में अनेक वृष राशि वाले है।  

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वृष जातकों का प्रेमी स्वभाव उनमें अधिकार की भावना भी पैदा करता है। इससे ईष्र्या और द्वेष की भावना का भी जन्म हो सकता है। प्रायः इसके पीछे कोई तर्कसंगत कारण नहीं होता। अपने प्रेम पात्र के लिये बडे से बडे बलिदान को करने से भी नहीं चूकते। किंतु जिनसे घृणा करते है, उन्हें जीवनभर क्षमा नहीं कर पाते। कभी कभी इसका ज्वार उतरने पर पछताते है। थोडी सी सहानुभूति या दया दिखाने पर पिघल जाते है। सारा गुस्सा भूल जाते है। लोग उनकी इस कमजोरी का भरपूर फायदा उठाते है और उनको मूर्ख बनाते है। 

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आर्थिक क्षेत्र:-

वृष राशि के जातक यर्थाथवादी होते है तथा आदर्शो में विश्वास नहीं रखते है। आदर्श उनके लिये धन कमाने या व्यापार में लाभ कमाने का साधन होते है। उनमें धन कमाने और सम्पत्ति जमा करने की प्रबल इच्छा रहती है। उनमें अपने प्रिय पात्रों की आर्थिक सहायता करने की भावना भी रहती है। कभी कभी इसका उन्हें कटु अनुभव मिलता है। ऐसे जातक अच्छे सरकारी कर्मचारी, सेना या नौसेना में उच्च अधिकारी, अच्छी नर्स या डाक्टर बनते है। महिलाएं आमतौर पर सम्पन्न घरों में विवाह करती है। वे अच्छी व्यावसायिक योग्यता और संगठन शक्ति का परिचय देती है। वे प्रायः ऐसे व्यवसाय अपनाती है जिनमें उपायोगिता की प्रमुखता हो, किन्तु उनका कलापे्रम उसमें भी झलकने लगता है। 

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निम्न व्यवसायों में वृष जातक विशेष सफलता प्राप्त करते है- प्रसाधन सामग्री, आभूषण, विलासी वस्तुएं, साहूकार, खजांची, सटोरिया, जुआरी, घुडदौड, किसानी, बागवानी, अभिनेता, फिल्म निर्माता, दर्जी, पेंटर, साज सज्जा करने वाले, बीमा एजेंट, बस मालिक, दूध और उससे जुडे व्यवसाय, धन्धे, आयकर या बिक्री कर विभाग आदि। आमतौर पर वे वास्तव से कहीं अधिक अमीर समझे जाते है। उनके हर काम में दिखावा अधिक होता है।

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मैत्री, प्रेम , विवाह आदिः

वृष जातक अत्यंत निष्ठावान मित्र होते है। शुक्र प्रेम  का ग्रह है, अतः उनमें प्रेम भावना की कोई कमी नहीं रहती। फिर भी वृष पृथ्वी तत्व राशि होने के कारण वे शीघ्र भावावेश में आने वाले नहीं होते। वे काफी सोच समझकर जीवन साथी के विषय में निर्णय लेते है। किंतु एक बार निर्णय लेने पर उस पर अडिग रहते है। उसे प्राप्त करने में कोई कसर नहीं छोडते। वे प्रायः प्रेम जाल में भी फंसते रहते है। ऐसा होने पर वे अपने पे्रमपात्र के प्रति अन्त तक समर्पित रहते है। 

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वृष राशि के पुरूष और स्त्रियों में यौवन के लक्षण शीघ्र ही प्रकट होने लगते है। कभी कभी वे शीघ्र विवाह कर लेते है। ऐसा करना उनके लिये प्रायः हितकर नहीं होता। ऐसे समाजों में जहां तलाक और पुनर्विवाह प्रचलित है, ऐसी जातिकायें एक से अधिक विवाह भी करती है। किन्तु ऐसा बहुत कम होता है। वृष जातिकाऐं पति से भी अधिक अपने के प्रति समर्पित होती है। तलाक की बात उनके दिमाग में बहुत मुश्किल से घुस पाती है। हर परिस्थिति में उनके मन में अपने पति की देखभाल करने और उसे संरक्षण प्रदान करने की भावना रहती है। यह विचित्र बात है कि वृष जातक यद्यपि अपने सामाजिक जीवन में दिखावट पसंद करते है तथापि पे्रम प्रदर्शन के मामले में उनकी इस प्रवृति का न जाने कहां लोप हो जाता है। बच्चों को अवश्य बहुत प्यार करते है। और इस प्यार का एक अंश जीवनसाथी को भी मिल जाता है। इसलिये वृष जातकों के जीवन में बच्चों का भारी महत्व होता है। यदि अन्य कोई बाधा न हो तो वृष व्यक्ति अधिक संतान वाले भी होते है। सब मिलकर पे्रम और कलाप्रियता उनके जीवन का मूलमंत्र होता है। 

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स्वास्थ्य और खानपानः- 

वृष जातकों का शरीर आमतौर पर गठीला और मोटापा लिये हुये होता है। वे मध्यम उंचाई के होते है अथवा अन्य परिजनों की तुलना में नाटे भी हो सकते है। शुक्र ग्रह उन्हें अपार जीवनी शक्ति प्रदान करता है। इससे वे यांत्रिक तथा श्रमसाध्य कार्यों में उपयुक्त रहते है। उन्हें दर्द भी कम महसूस होता है और वे शारीरिक अक्षमता से हार नहीं मानते है। उनकी शक्ति का उपयोग रचनात्मक कार्यों में करना आवश्यक है। आलस और आत्मरति उनके स्वास्थ्य के दो सबसे बडे शत्रु होते है। बीमार होने पर वे बहुत दिनों तक किसी को पता भी नहीं लगने देते। लेकिन उनके पुनः स्वस्थ होने में भी अधिक समय लगता है। वृष जातकों को आमतौर पर टोंसिल, डिप्थीरिया, पायरिया, जैसी गले व गर्दन के रोग होते है। बुढापे में जलोदर रोग होने की संभावना होती है। इन्हें मिर्गी के दौरे भी पड सकते है। अथवा सिर की ओर बडी मात्रा में रक्त बहने से पक्षाघात भी हो सकता है। अन्य बीमारियां जैसे कब्ज, फुंसी, मुंहासे, आंख में पीडा, गुर्दे व जनन अंग में गडबडी आदि रोग जिनके वे शिकार हो सकते है। 

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वृष जातक प्रायः भोजन के प्रिय होते है। वे मद्यपान की ओर प्रवृत भी होते है। वे मिठाई के भी शौकीन होते है। वस्तुतः भोजन और काम उनकी दो सबसे बडी कमजोरियां होती है। ये ऐसी पत्नियों से ही प्रसन्न होते हैं जो इन दो बातों में इन्हें संतुष्ट कर सके। वृष जातिकाओं के समय का एक बडा भाग रसोईघर में व्यतीत होता है। 

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द्रेष्काण , नक्षत्र, तथा त्रिशांशः- 

वृष राशि के पहले द्रेष्काण पर दुगने शुक्र का प्रभाव रहता है। इस द्रेष्काण में लग्न की स्थिति होने पर जातक में वृष की प्रवृतियां विशेष रूप से दिखाई देती है। मध्य दे्रष्काण में लग्न की स्थिति होने पर उस पर शुक्र के साथ बुध का भी प्रभाव होता है। बुध भौतिक प्रवृतियों को कुछ सीमा तक कम करता है और जातक में मानसिक प्रवृतियां उभरती है। इससे जातक में अधिक आशावाद आएगा और वह अंतर्मुखी होने के साथ साथ कुछ बहिर्मुखी होने का प्रयास करेगा। तीसरे द्रेष्काण  में लग्न होने पर उस पर शुक्र के साथ साथ शनि का भी प्रभाव होगा जो जातक को अधिक गंभीर बनायेगा। 

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वृष राशि के अंतर्गत कृतिका नक्षत्र के तीन चरण, रोहिणी के चारों चरण तथा मृगशिरा के पहले दो चरण आते है। कृतिका के दूसरे तथा तीसरे चरण में सूर्य और शनि का संयुक्त प्रभाव जातक को अधिक गंभीर बनाएगा। जबकि चतुर्थ चरण में सूर्य और गुरू का संयुक्त प्रभाव उसमें आशावाद का संचार करेगा। रोहिणी का प्रथम चरण चंद्र मंगल के प्रभाव में है। वह जातक में मानसिक अस्थिरता ला सकता है। दूसरा चरण चंद्र शुक्र के प्रभाव से जातक को अधिक सौन्दर्यबौधी व कलाप्रिय बनाएगा। तीसरा चरण चंद्र बुध के प्रभाव से उसकी मानसिक प्रवृतियों को तीव्र करेगा। चैथा चरण दुगने चंद्रमा के प्रभाव में होने से उसके मन में उतार चढाव की प्रवृति रहेगी। मृगशिरा का पहला चरण मंगल व सूर्य के प्रभाव से जातक को अधिक जिद्दी व दम्भी बनायेगा। दूसरा चरण मंगल व बुध के प्रभाव से उसके मस्तिष्क में विचित्र विचार पैदा करेगा। 

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वृष राशि की स्त्री के लिये शुक्र का त्रिशांश 0-5 डिग्री उसे सुंदर और लोकप्रिय बनायेगा। बुध का त्रिशांश 5-12 डिग्री उसे कलाओं तथा संगीत में निपुण बनाता है। गुरू का त्रिशांश 12 - 20 डिग्री होने पर स्त्री सच्चरित्र और पुत्रवती होती है। शनि का त्रिशांश 20 - 25 डिग्री होने पर उसके पुनर्विवाह की संभावना अधिक होती है। और मंगल का त्रिशांश 25 - 30 डिग्री होने पर उसमें कलह की प्रवृति पैदा होती है। 

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विशेष:-

वृष राशि का वर्ण सफेद है। इसका स्वामी शुक्र का रंग चितकबरा सफेद कहा है। इसका रत्न हीरा और उपरत्न जरकन, ओपेल, स्फटिक आदि है। यह राशि दक्षिण दिशा की स्वामी है। इसका मूलांक 6 है। यह अंक कलात्मक अभिव्यक्ति वाला अंक है। वृष जातकों के जीवन में यह अंक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वारों में यह राशि शुक्रवार का प्रतिनिधित्व करती है। वृष राशि निम्न तत्वों की संकेतक हैः-

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सफेद फूल, समुद्री व्यापार, गोधन, जल जीव, सिले हुये वस्त्र, फल, रत्न आदि। अस्तबल, गोशालाएं, फर्नीचर की दुकानें, घर से दूर के चारागाह, वन, साफ किये गये क्षेत्र, निकटस्थ पेड, पर्वत आदि। वेदपाठी ब्राहमण, वैयाकरण, खनक, कुम्हार, पुजारी, ज्योतिषी, राजा, धनिक, योगी, गाडीवान, कृषक, अधिकारीगण, संगीतकार, पे्रमी, आदि।  


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