इस
धरती पर इंसान जानवर आदि प्रजाति के साथ भूत प्रेत आदि भी निवास करते है।
ये बात अलग है कि कुछ लोग इस बात को मानते है और कुछ लोग नहीं मानते। कुछ
लोग इसलिए मानते है कि वो इन शक्तियों को अनुभव कर चुके होते है। और जिनको
इनका अनुभव नहीं हो पाता, वो लोग इनको नहीं मानते। इनके प्रभाव से व्यक्ति
का जीवन मुसीबतों से भर जाता है। ऐसी ऐसी परेशानियाँ आती है, जिनके बारे
में कभी सोचा भी नहीं होगा। इन अदृश्य शक्तियों को कुछ लोग ऊपरी बाधा भी
कहते है।
ज्योतिष शास्त्र में कुछ ऐसे योग प्रतिपादित है
जिनके कुंडली में विद्यमान होने से ये शक्तियां उस व्यक्ति पर हावी होने लगती हैं और उन व्यक्तियों के जीवन पर विपरीत प्रभाव डालती है।
यहाँ ऊपरी बाधा या भूत प्रेत पिशाच आदि से संबंधित योगों की विस्तृत चर्चा की जा रही है।
1. यदि किसी व्यक्ति के लग्न में राहु -चन्द्रमा साथ हो तथा त्रिकोण में मंगल व शनि हो तो व्यक्ति प्रेत दोष से पीड़ित होता है।
2. यदि चन्द्रमा पाप ग्रह द्वारा देखा जाता हो , शनि सातवें भाव में हो, इसके साथ कोई शुभ ग्रह चर राशि में हो तो भूत का डर लगा रहता है।
3. यदि किसी की कुंडली में शनि तथा राहु लग्न में विराजमान हो, तो उस व्यक्ति को भूत का भय रहता है।
4 . यदि लग्न के स्वामी या चन्द्रमा के साथ राहु लग्न में हो, तो प्रेत योग होता है।
5. यदि दसवें भाव का मालिक आठवें या ग्यारहवें भाव में हो और उससे जुड़े भाव के स्वामी से देखा जाता हो, तो उस स्थिति में भी प्रेत योग होता है।
6 . अगर कुण्डली के प्रथम भाव में चन्द्रमा और राहु हो तथा पांचवे और नौवें भाव में क्रूर ग्रह स्थित हों।
इस योग वाले जातक के जब चन्द्रमा या राहू की दशा- अंतर्दशा आएगी तब व्यक्ति पर भूत-प्रेत या उपरी
हवा का प्रभाव जल्दी होता है।
7 . यदि किसी की कुण्डली में शनि, राहु, केतु या मंगल साथ में या इनमें से कोई भी एक ग्रह सप्तम भाव में हो तो ऐसा व्यक्ति ऊपरी बाधा से परेशान रहता है।
8. यदि किसी व्यक्ति की कुण्डली में शनि-मंगल-राहु की एक स्थान में एक साथ हो तो उसे ऊपरी बाधा परेशान करती है।
जब व्यक्ति शाम के समय दूध पीकर या सफेद मिठाई बर्फी , मावा , रसगुल्ला आदि खाकर या सेंट, इत्र आदि लगाकर किसी चौराहे को अपने दायीं तरफ से पार करता है , तो वह किसी अदृश्य शक्ति की चपेट में आ जाता है। चौराहा पार करते समय सदैव अपने दाहिने तरफ से पार करे . क्योंकि अदृश्य शक्तियां सदैव उलटे काम करने पर ही परेशान करती है ,
ये शक्तियां रजस्वला स्त्रियों को भी अपने आगोश में ले लेती है। मासिक धर्म के समय स्त्री का चंद्र व मंगल दोनों निर्बल हो जाते हैं। ये दोनों राहु व शनि के शत्रु हैं। मासिक धर्म के समय में स्त्री अशुद्ध होती है और अशुद्धता राहु की द्योतक है। ऐसी स्थिति में ऊपरी शक्तियां जल्दी पकड़ती है। रविवार,मंगलवार,शनिवार और अमावस्या को बुरी आत्मायें प्रबल होती है और किसी भी कमजोर व्यक्ति जो जल्दी पकड़ती है।
किसी अनजान या निर्जन स्थान में मल-मूत्र करने से वहां पर थूकने से भी ऐसे परेशानी आ जाती है अतः ऐसे स्थान पर कुछ करने से पहले जोर से ताली बजाए या जोर से खासें फिर अपना कार्य करें और मन ही मन में माफ़ी जरुर मांगे .
कुंडली में उपरोक्त ग्रह की दशा में ही या जब ग्रह गोचर में भ्रमण करता है तो पीड़ा होती है, इसके उपचार हेतु योगकारक ग्रहों के उपाय करना चाहिए।।
इस बाधा के निवारण के लिए किसी तान्त्रिक, मौलवी या ओझा के पास जाने से कोई फायदा नहीं है। .
इस बाधा के निवारण हेतु पान, पुष्प, फल, हल्दी, पायस एवं इलाइची के मिश्रण के हवन से दुर्गासप्तशती के बारहवें अध्याय के तेरहवें श्लोक सर्वाबाधा……..न संशयः मंत्र से संपुटित नवचंडी प्रयोग कराएं।
दुर्गा सप्तशती के चौथे अध्याय के चौबीसवें श्लोक का पाठ करते हुए पलाश की समिधा से घृत और
सीलाभिष की आहुति दें, कष्टों से रक्षा होगी।
ज्योतिष शास्त्र में कुछ ऐसे योग प्रतिपादित है
जिनके कुंडली में विद्यमान होने से ये शक्तियां उस व्यक्ति पर हावी होने लगती हैं और उन व्यक्तियों के जीवन पर विपरीत प्रभाव डालती है।
यहाँ ऊपरी बाधा या भूत प्रेत पिशाच आदि से संबंधित योगों की विस्तृत चर्चा की जा रही है।
1. यदि किसी व्यक्ति के लग्न में राहु -चन्द्रमा साथ हो तथा त्रिकोण में मंगल व शनि हो तो व्यक्ति प्रेत दोष से पीड़ित होता है।
2. यदि चन्द्रमा पाप ग्रह द्वारा देखा जाता हो , शनि सातवें भाव में हो, इसके साथ कोई शुभ ग्रह चर राशि में हो तो भूत का डर लगा रहता है।
3. यदि किसी की कुंडली में शनि तथा राहु लग्न में विराजमान हो, तो उस व्यक्ति को भूत का भय रहता है।
4 . यदि लग्न के स्वामी या चन्द्रमा के साथ राहु लग्न में हो, तो प्रेत योग होता है।
5. यदि दसवें भाव का मालिक आठवें या ग्यारहवें भाव में हो और उससे जुड़े भाव के स्वामी से देखा जाता हो, तो उस स्थिति में भी प्रेत योग होता है।
6 . अगर कुण्डली के प्रथम भाव में चन्द्रमा और राहु हो तथा पांचवे और नौवें भाव में क्रूर ग्रह स्थित हों।
इस योग वाले जातक के जब चन्द्रमा या राहू की दशा- अंतर्दशा आएगी तब व्यक्ति पर भूत-प्रेत या उपरी
हवा का प्रभाव जल्दी होता है।
7 . यदि किसी की कुण्डली में शनि, राहु, केतु या मंगल साथ में या इनमें से कोई भी एक ग्रह सप्तम भाव में हो तो ऐसा व्यक्ति ऊपरी बाधा से परेशान रहता है।
8. यदि किसी व्यक्ति की कुण्डली में शनि-मंगल-राहु की एक स्थान में एक साथ हो तो उसे ऊपरी बाधा परेशान करती है।
जब व्यक्ति शाम के समय दूध पीकर या सफेद मिठाई बर्फी , मावा , रसगुल्ला आदि खाकर या सेंट, इत्र आदि लगाकर किसी चौराहे को अपने दायीं तरफ से पार करता है , तो वह किसी अदृश्य शक्ति की चपेट में आ जाता है। चौराहा पार करते समय सदैव अपने दाहिने तरफ से पार करे . क्योंकि अदृश्य शक्तियां सदैव उलटे काम करने पर ही परेशान करती है ,
ये शक्तियां रजस्वला स्त्रियों को भी अपने आगोश में ले लेती है। मासिक धर्म के समय स्त्री का चंद्र व मंगल दोनों निर्बल हो जाते हैं। ये दोनों राहु व शनि के शत्रु हैं। मासिक धर्म के समय में स्त्री अशुद्ध होती है और अशुद्धता राहु की द्योतक है। ऐसी स्थिति में ऊपरी शक्तियां जल्दी पकड़ती है। रविवार,मंगलवार,शनिवार और अमावस्या को बुरी आत्मायें प्रबल होती है और किसी भी कमजोर व्यक्ति जो जल्दी पकड़ती है।
किसी अनजान या निर्जन स्थान में मल-मूत्र करने से वहां पर थूकने से भी ऐसे परेशानी आ जाती है अतः ऐसे स्थान पर कुछ करने से पहले जोर से ताली बजाए या जोर से खासें फिर अपना कार्य करें और मन ही मन में माफ़ी जरुर मांगे .
कुंडली में उपरोक्त ग्रह की दशा में ही या जब ग्रह गोचर में भ्रमण करता है तो पीड़ा होती है, इसके उपचार हेतु योगकारक ग्रहों के उपाय करना चाहिए।।
इस बाधा के निवारण के लिए किसी तान्त्रिक, मौलवी या ओझा के पास जाने से कोई फायदा नहीं है। .
इस बाधा के निवारण हेतु पान, पुष्प, फल, हल्दी, पायस एवं इलाइची के मिश्रण के हवन से दुर्गासप्तशती के बारहवें अध्याय के तेरहवें श्लोक सर्वाबाधा……..न संशयः मंत्र से संपुटित नवचंडी प्रयोग कराएं।
दुर्गा सप्तशती के चौथे अध्याय के चौबीसवें श्लोक का पाठ करते हुए पलाश की समिधा से घृत और
सीलाभिष की आहुति दें, कष्टों से रक्षा होगी।