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Saturday, 4 April 2020

dasve bhav me guru ka shubh ashubh samanya fal / दसवें भाव में गुरु का शुभ अशुभ फल

Posted by Dr.Nishant Pareek
दसवें भाव में गुरु का शुभ अशुभ फल  

शुभ फल : दसवें स्थान में बृहस्पति स्थित होने से जातक सच्चरित्र, स्वतन्त्र विचारक, विचार विवेक-सम्पन्न, न्यायी, सत्यवादी होता है। दसवें भाव में गुरु होने से जातक सत्कर्मी, पुण्यात्मा, साधु, प्रसन्न, शास्त्रों का ज्ञाता, ज्योतिष-प्रेमी होता है। जातक अपने गुणों के कारण समाज में पूजित, अपने प्रभाव से सर्वत्र सम्मान प्राप्त करने वाला होता है। जातक की कीर्ति अतुल होती है अर्थात् इसके समान दूसरे लोग यशस्वी नहीं होते हैं।

जातक का प्रताप अपने बाप-दादा आदि से भी अधिक होता है। जातक को कामों के आरंभ में ही सफलता मिलती है। जातक गीता पाठ करता है, योग्य, उज्वल यशवाला और बहुत मनुष्यों का पूजनीय होता है। जातक मातृ-पितृ-भक्त, और पिता का प्रिय होता है। भूमि का सुख और भूमि से लाभ पूरी तरह मिलता है। घर रत्नों से शोभायमान होता है। जातक के पास उत्तम वाहन होते हैं।

 दशम में गुरु होने से बहुत धन प्राप्त होता है। ऐश्वर्यवान्, समृद्ध, सुखी, धनी होता है। सुंदर वस्त्र तथा आभूषणों से युक्त होता है। दशम में गुरु होने से भाई से धन मिलता है। स्त्री-पुत्र का सुख सामान्य प्राप्त होता है। स्वास्थ्य सुख सामान्य होता है। घर पर बहुत मनुष्य भोजन करते हैं। परलोक की गति के बारे में चिन्ता करने वाला होता है। दशमस्थ गुरु किन व्यवसायों के लिए लाभकारी है यह निश्चयात्मक कहना कठिन है। इसमें सभी प्रकार के व्यवसायी पाए जाते हैं-भिक्षुक भी हैं, व्यापारी और जज भी हैं-आयात-निर्यात के व्यापारी भी पाए जाते हैं।  1, 2, 5, 6, 8, 9, 10, 12 राशियों में शुभ फल मिलते हैं। यह गुरु सम्मान, कीर्ति, भाग्य, यश आदि के लिए शुभ है।       दशमेश बलवान् ग्रहों से युक्त होने से यज्ञ करने वाला होता है।
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अशुभफल : संतानसुख बहुत थोड़ा होता है। अपने कुपुत्रों अर्थात् दुष्टपुत्रों के सुख से सुखी नहीं होता है। अर्थात् दुष्टपुत्र होते हैं। दशमेश पापग्रह युक्त होने से, या पापग्रह के घर में होने से काम में विघ्न पड़ते हैं, दुष्टकाम किये जाते हैं, यात्रा में लाभ नहीं होता है। दशमस्थान में गुरु पुरुषराशि में होने से संतान थोड़ी होती है।
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