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Saturday, 31 December 2022

Shani ka kumbh rashi me gochar / शनि का कुम्भ राशि में गोचर

Posted by Dr.Nishant Pareek

शनि का कुम्भ राशि में गोचर आपके लिए कैसा रहेगा , जानिए इस लेख में 


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Shani ka kumbh rashi me gochar 

मेष राशि 

  जन्म चंद्रमा से शनि का एकादश भाव से गोचर (17 जनवरी 2023 से 29 मार्च 2025 )  इस अवधि में शनि चन्द्रमा से आपके ग्यारहवें भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह आपके लिए शुभ समय है । वित्तीय रुप से समय बहुत अच्छा है । चाहे आप व्यापार में हों या किसी व्यवसाय में, आपको अप्रत्याशित लाभ होने की संभावना है । यह धन लाभ आपके लिए आनन्द व और अधिक लाभ प्राप्त करने के अवसर लेकर आएगा । आपके हर प्रकार के प्रयास सफल होंगे व परियोजना के मनवांछित परिणाम प्राप्त होंगे । इस समय विशेष में जायदाद प्राप्त होने की भी संभावना है । जो व्यक्ति गृह निर्माण सामग्री, कोयला, चमड़े आदि का व्यवसाय करते हैं, वे अपने - अपने व्यापार में और भी अधिक मुनाफे की आशा रख सकते हैं । यदि आप सेवारत हैं तो पदोन्नति की संभावना है । उच्च शिक्षा हेतु यह समय शुभ है । यह आपके सोच को और भी उद्यमशील बनाने का समय है ।  सामाजिक जीवन भी संतोष प्रद रहेगा । समाज में आपका मान, स्तर व प्रतिष्ठा बढ़ने की संभावना है । आपमें से कुछ को समाज द्वारा विशिष्ट पुरस्कार से सम्मानित किया जा सकता है ।  यदि आप विवाहेच्छुक हैं तो आपको मनपसन्द साथी मिल सकता है व विवाह हो सकता है । यदि आप एकल हैं तो विपरीत लिंग वाले मनोहारी व्यक्ति का साथ मिल सकता है । आपके मित्र आपके सहायक होंगे व नए मित्र बन सकते हैं । आपके मालिक व सहयोगियों का आपके प्रति व्यवहार सकारात्मक होगा । पत्नी / पति व बच्चे सुख प्राप्ति के स्त्रोत होंगे । आप परिवार की मनोकामना पूर्ण करने वाली वस्तुएँ प्राप्त करेंगे । स्वास्थ्य अच्छा रहेगा ।

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वृष राशि  

 जन्म चंद्रमा से शनि का दशम भाव से गोचर (17 जनवरी 2023 से 29 मार्च 2025 ) इस अवधि में शनि चन्द्रमा से आपके दसवें भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह स्थिति कष्ट व मानसिक संताप की सूचक है । इससे आपको काम - धंधे व जीवन के अन्य क्षेत्रों में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है ।  व्यापारियों व व्यवसायियों को इस दौरान हानि झेलनी पड़ सकती है । यदि आप कृषि व्यवसाय से जुड़े हैं तो नुकसान से बचने के उपाय करें । आपमें से कुछ अपना व्यवसाय अथवा कार्य क्षेत्र बदलने के विषय में सोच सकते हैं । आपमें से कुछ को नौकरी मिल सकती है परन्तु इस विशेष समय में कार्य करने में कठिनाई आएगी । आप और आपके मालिक के बीच परस्पर विरुचि की भावना पनप सकती है । गुप्त शत्रुओं से सावधान रहें ।  आमदनी से अधिक व्यय आपको निर्धनता के कगार पर लाकर खड़ा कर सकता है । ऋण लेने से बचें ।  स्वास्थ्य की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है । अपने घुटनों व छाती की सही देखभाल करें । आपके माता - पिता बीमार हो सकते हैं । यहाँ तक कि जीवन खतरे में पड़ सकता है ।  घर पर आप व आपकी पत्नी / पति के बीच मानसिक वैमनस्य परस्पर घृणा का कारण बन सकता है । यात्रा का योग है ।  आपमें से कुछ में पाप प्रवृत्ति में लिप्त होने की तीव्र इच्छा पनप सकती है । समाज में अपना मान व प्रतिष्ठा बनाए रखें ।


मिथुन राशि  

   जन्म चंद्रमा से शनि का नवम भाव से गोचर (17 जनवरी 2023 से 29 मार्च 2025 )  इस अवधि में शनि चन्द्रमा से आपके नवें भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह विपत्ति व व्यथा का सूचक है । आपके कार्यक्षेत्र के लिए यह समय कठिनाईपूर्ण है । आपका स्थानान्तरण हो सकता है व कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए अतिरिक्त परिश्रम करना पड़ सकता है । शत्रुओं व अपने नीचे काम करने वाले सहयोगियों से सावधान रहें क्योंकि वे आपको इस समय धोखा दे सकते हैं । किसी भी ऐसी बात से बचें जिसके कारण आपको अपनी कार्यस्थली अथवा समाज में बदनामी मिले। मनवांछित लाभ पाने में और सामान्य दिनों से अधिक समय लग सकता है ।  वित्त के प्रति भी सावधानी बरतनी पड़ेगी । इस दौरान आपके फिजूलखर्ची करने की संभावना है । आपमें से कुछ इसके लिए अतिरिक्त आय भी करेंगे परन्तु अनेक बाधाओं का सामना भी करना पड़ सकता है ।  मुकदमेबाजी, आपराधिक गतिविधियों व धर्मविरोधी कृत्यों से दूर रहें । आपमें से कुछ इस दौरान अपराध जगत फंदे में फँस सकते हैं ।  स्वास्थ्य की ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है । मानसिक रुप से आप पत्नी / पति व बच्चों के कारण व अन्य कारणों से भी अशान्त     व व्यथित रह सकते हैं । आपका पुत्र किसी जानलेवा रोग से ग्रस्त हो सकता है । आपमें से कुछ को किसी निकट सम्बन्धी के दाह - संस्कार में सम्मिलित होना पड़ सकता है । 

 

 

 कर्क राशि 

  जन्म चंद्रमा से शनि का अष्टम भाव से गोचर (17 जनवरी 2023  18:03:34 से 29 मार्च 2025  21:44:37)  इस अवधि में शनि चन्द्रमा से आपके आठवें भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह कठिन समय है । आपमें से अधिकांश को काम-काज, व्यवसाय, व्यापार व किसी भी कार्यक्षेत्र विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है । कई को तो अनेक कारणों से काम-काज से हाथ धोना पड़ सकता है । इस समय आप बुरी लत, जुआ व कुसंगति की ओर आकर्षित हो सकते हैं । यहाँ तक कि आपमें से कुछ को दुर्जन - दुष्ट संगत के चक्कर में पड़कर कारागृह भी जाना पड़ सकता है ।  समाज में आपका नाम व प्रतिष्ठा भी कलंकित हो सकती है । आपमें से कुछ संसार त्यागने का मानस भी बना सकते हैं ।  यात्रा का योग है । इस समय वित्त के प्रति सावधानी बरतें व व्यय पर लगाम कसें ।  स्वास्थ्य इन दिनों चिन्ता का कारण बन सकता है । आप किसी गम्भीर रोग से ग्रसित हो सकते हैं जिससे जीवन खतरे में पड़ सकता है ।  आपको परिवार को भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है । ग्रहों की परिवर्तनशीलता के कारण परिवार के सदस्यों को कठिनाईपूर्ण परिस्थितियों से गुजरना पड़ सकता है । आपमें से कुछ के किसी परिवार के सदस्य अथवा घरेलू पशु की मृत्यु हो सकती है । अपने निकट व अंतरंग व्यक्तियों से तर्क - वितर्क न करें क्योंकि परिवार में नए शत्रु बन सकते हैं । 

 

 सिंह राशि 

  जन्म चंद्रमा से शनि का सप्तम भाव से गोचर (17 जनवरी 2023 से 29 मार्च 2025 ) इस अवधि में शनि चन्द्रमा से आपके सातवें भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह जीवन में उदासी का सूचक है । जीवन के लगभग हर क्षेत्र, हर पहलू पर पहले से अधिक ध्यान केन्द्रित करना पड़ेगा । आमदनी सीमित रहेगी और उस पर भी छल - कपट व धोखाधड़ी से धन - हानि हो सकती है । जो भी हो, ऋण लेने से बचें क्योंकि इस ऋण से मुक्ति मिलने में अत्यधिक समय लग सकता है ।  काम - धंधे में भी अपनी ओर से और अधिक परिश्रम करना पडेगा । अपने गन्तव्य तक पहुँचने के लिए और अधिक दूरी तय करनी होगी । यदि आप साझेदारी में धंधा करते हैं तो छद्मवेशी धोखेबाजों से सावधान रहें ।  यदि सेवारत हैं या किसी पद पर हैं तो उसकी गरिमा बनाए रखें, ऐसा कुछ न करं जो वह छिन जाय ।  विद्यार्थियों को एकाग्रता से पढ़ाई करने में कठिनाई हो सकती है ।  आपमें से कुछ इस दौरान विदेश जाएँगे । वैसे यात्रा पर जाने से बचें क्योंकि आपमें से अधिकांश के लिए यह दु:खदायक सिद्ध होगी । यह समय इस बात का द्योतक है कि आपका अपना घर न रहने के कारण आपको विवश होकर अन्यत्र रहना पड़ेगा ।  स्वास्थ्य पर ध्यान देने की आवश्यकता है । परिवार के स्वास्थ्य का ध्यान रखें । आपमें से कुछ गुर्दे, यौन - अंग तथा मूत्र - नलिका से सम्बन्धित रोगों से ग्रस्त हो सकते हैं । अपनी पत्नी / पति व बच्चों की किसी स्वास्थ्य सम्बन्धी शिकायत हेतु लापरवाही न बरतें क्योंकि बाद में इससे जीवन खतरे में पड़ सकता है ।  घर पर शान्ति व सामन्जस्य बनाए रखना आवश्यक है । पहले जीवनसाथी की मृत्यु के कारण आपमें से कुछ पुनर्विवाह कर सकते हैं । मित्रता को पूर्णतया विकसित होने दें और मित्रों से अच्छा सामन्जस्य बनाए रखें । यदि सावधानी नहीं बरतेंगे तो आपके अंतरंग मित्र आपको त्याग देंगे ।  इस समय मानसिक संतुलन बनाए रखना कठिन है । आपमें से अधिकांश में निरंतर मानसिक क्लेश व अशान्ति की भावना की संभावना है ।  किसी भी प्रकार के मुकदमे आदि से दूर रहना बुद्धिमानी होगी । यह मुकदमा अथवा चुना लड़ने हेतु अच्छा समय नहीं है । 

 

 कन्या राशि 

 जन्म चंद्रमा से शनि का षष्ठ भाव से गोचर (17 जनवरी 2023  18:03:34 से 29 मार्च 2025  21:44:37)  इस अवधि में शनि चन्द्रमा से आपके छठे भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह मुख्य रुप से धन लाभ का सूचक है । इस दौरान आप समस्त बिल, ऋण व शुल्क आदि चुका देंगे । धन सरलता से और आशा से अधिक प्रचुर मात्रा में आएगा । आप भूखण्ड अथवा मकान क्रय कर सकते हैं । यदि आपके पास पहले से ही भूखण्ड है तो मकान बनाने के विषय में सोच सकते हैं । यह समय शत्रुओं को हराकर विजय प्राप्त करने का है । स्वास्थ्य अच्छा रहेगा और आप शान्ति अनुभव करेंगे। व्यावसायिक व सामाजिक दृष्टि से भी आपके लिए अच्छा समय है । आपमें से कुछ के अधिकारी विशेष रुप से आपका समर्थन करेंगे । मित्र भी अभूतपूर्व सहायता करेंगे व सहानुभूति दर्शाएँगे ।  विवाहित व्यक्तियों का दाम्पत्य जीवन सुखमय व प्रेममय होगा और प्रेमियों को परस्पर अनेक भावनात्मक क्षण व्यतीत करने को मिल सकते हैं जो शिशु की इच्छा रखते हैं उन्हें संभव है कि इस समय परिवार में नए सदस्य का स्वागत करने का सुअवसर मिले । आपको ग्रहों के परिवर्तन के कारण आपके सम्बन्धी भी सुखी रहेंगे । 

 

तुला राशि  

  जन्म चंद्रमा से शनि का पंचम भाव से गोचर (17 जनवरी 2023 से 29 मार्च 2025 )  इस अवधि में शनि चन्द्रमा से आपके पाँचवें भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह अवसाद का द्योतक है । इस दौरान आप देखेंगे कि आप मूर्खतापूर्ण प्रक्रियाओं, अपने ही सगे सम्बन्धियों व अन्य लोगों से झगड़े - फसाद व विवाद में उलझ गए हैं । आपमें से कुछ परिवार के सदस्यों के साथ मुकदमेबाजी में भी लिप्त हो सकते हैं साथ ही विपरीत लिंग वालों के साथ आपकी नहीं बनेगी । अपने व्यवहार को संयत रखें क्योंकि उतावलापन समाज में आपकी मान मर्यादा को मिटा सकता है।  वित्तीय मामलों में सावधानी बरतें ।  कामकाज के भी सही संचालन की आवश्यकता है । व्यवसायी नया धंधा हाथ में न लें और हानि उठाने को तैयार रहें । यदि आप निवेश या शेयर बाजार में हैं तो वर्तमान स्थिति संतोषजनक नहीं है । कुछ भी नया आरम्भ न करें क्योंकि मनवांछित परिणाम मिलने की आशा नहीं है ।  आपकी पत्नी / पति व बच्चों के स्वास्थ्य को विशेष देखभाल की आवश्यकता है । अपने बच्चे की किसी भी स्वास्थ्य सम्बन्धी शिकायत के प्रति लापरवाही न बरतें । यह बाद में जानलेवा सिद्ध हो सकता है । यदि स्वास्थ्य सम्बन्धी सावधानियों की अनदेखी की गई तो आपकी पत्नी / पति बीमार पड़ सकती / सकते हैं । आपमें से अधिकांश के मानसिक संताप तथा अस्थिरता झेलने की संभावना है । यदि आप विवाहित हैं तो जीवन साथी के प्रति विमुखता उत्पन्न हो सकती है । घर में सुख - चैन बनाए रखने हेतु आपको कुछ प्रयास करना पड़ेगा । विद्यार्थियों को पढ़ाई अरुचिकर लगने की संभावना है । 

 

 वृश्चिक राशि 

  जन्म चंद्रमा से शनि का चतुर्थ भाव से गोचर (17 जनवरी 2023 से 29 मार्च 2025 )  इस अवधि में शनि चन्द्रमा से आपके चतुर्थ भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह कठिन समय है । जीवन के अन्य पत्तों के अतिरिक्त वित्त व्यवस्था सही ढ़ंग से सम्भालनी होगी । जितना सम्भव हो, ऋण व्यय व पैसे की बर्बादी से बचें । आप में काम - धंधे के प्रति उत्साहहीनता आ सकती है । आपमें से कुछ को अपने कामकाज के प्रति अरुचि के कारण अपने वरिष्ठ व उच्च अधिकारियों का क्रोध झेलना पड़ सकता है । आपमें से कुछ का इस दौरान अन्य जगह स्थानान्तरण भी हो सकता है ।  सामाजिक दृष्टि से भी यह अच्छा समय नहीं है । अपनी लोकप्रियता बनाए रखने के लिए विशेष प्रयत्नशील रहें । ऐसे क्रिया कलापों से बचें जिनमें अपमान होने का भय हो ।  स्वास्थ्य पर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है । आपमें से कुछ अकर्मण्यता, उदर रोग, बादी (वायु रोग) अथवा अन्य छोटी - मोटी व्याधियों से ग्रस्त हो सकते हैं ।  आपमें से कुछ मनोव्यथा, भय, मानसिक उलझन व चिन्ता से ग्रस्त हो सकते हैं । कुछ के मन में न्याय विरोधी विचार पनप सकते हैं जो मन में पापकर्म करने की तीव्र इच्छा जागृत कर सकते हैं ।  शत्रुओं के साथ विवाद से दूर रहें । आपमें से कुछ को मित्रों व शुभचिन्तकों से अलग होना पड़ सकता है ।  घर पर पत्नी व बच्चों के स्वास्थ्य पर ध्यान देना आवश्यक है क्योंकि बीमारी अथवा अन्य कारणों से जीवन जोखिम में पड़ने का खतरा है । आपमें से कुछ परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु के कारण शोकमग्न रहेंगे । अपने सम्बन्धियों व निकटतम प्रिय व्यक्तियों के साथ किसी अप्रिय स्थिति में पड़ने से बचें । इस दौरान संभव है अपने परिवार और सम्बन्धियों में आपके कुछ नए शत्रु बनें। इन दिनों छद्मवेशी शत्रुओं से सावधान रहें ।  फिर भी, आपमें से कुछ घर में नवजात शिशु के आने की आशा कर सकते हैं । 

 

 धनु राशि 

9  जन्म चंद्रमा से शनि का तृतीय भाव से गोचर (17 जनवरी 2023 से 29 मार्च 2025 ) इस अवधि में शनि चन्द्रमा से आपके तृतीय भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह शुभ समय का संकेत है । यह आपके कार्य क्षेत्र के लिए व वित्त हेतु उत्तम समय है । आपमें से अधिकांश अनेक प्रकार से धनोपार्जन करेंगे । इन दिनों आरम्भ किया गया कोई भी व्यापार, परियोजना या काम - धंधा निश्चित रुप से सफल होगा ।  यदि आप मुर्गी पालन अथवा कृषि से जुड़े हुए हैं तो यह विशेष रुप से शुभ समय है तथा अपने अपने कार्य में आपको विशेष लाभ होगा ।  आपमें से कुछ इन दिनों भूमि अथवा अन्य अचल सम्पत्ति क्रय करने के विषय में सोच सकते हैं । कुल मिलाकर धन सम्बन्धी मामलों में यह अच्छा व शुभ समय है ।  यदि आप बेरोजगार हैं तो भाग्य आपका द्वार अवश्य खटखटाएगा और आपके सन्मुख कई लाभप्रद नौकरियों / कार्यों का प्रस्ताव होगा । जो सेवारत है उन्हें वेतन वृद्धि, उच्च पद व अधिकार मिल सकते हैं । आपकी समझ, योग्यता तथा प्रयास सभी का ध्यान आकृष्ट करेंगे ।  सामाजिक दृष्टि से भी यह शुभ समय है क्योंकि आप सामाजिक सफलता की सीढ़ी उत्तरोत्तर चढ़ते ही जाएँगे । आपमें से अधिकांश घर पर नौकरानी और कार्यालय में सहायक नियुक्त करेंगे जो काम-काज में मदद करें । जो भी हो, आप हर प्रकार के तक-वितर्क में अपना पक्ष इतने स्पष्ट रुप में सहजता से रखें कि आप ही विजयी होंगे ।  स्वास्थ्य अच्छा रहेगा और आपको लगेगा कि आपके पैरों में शक्ति व उत्साह के पंख लगे हुए हैं । यदि पूर्व में कोई रोग रहा भी हो तो आप उससे मुक्ति पाकर सुख - चैन अनुभव करेंगे ।  घर पर भी पूर्णतया सुख - चैन का वातावरण होगा । आपकी पत्नी / पति और अधिक प्रेममय व समर्पित रहेंगी / रहेंगे व आपको दाम्पत्य जीवन का पूर्ण आनन्द प्राप्त होगा । आपके भाई - बहनों व बच्चों का व्यवहार अच्छा होगा व वे कार्य में सहायक होंगे ।  शत्रुओं की पराजय होगी व आप पर भाग्यलक्ष्मी की कृपा होगी । आपमें से कुछ को यात्रा करनी पड़ सकती है । 

 

 

मकर राशि 

 जन्म चंद्रमा से शनि का द्वितीय भाव से गोचर (17 जनवरी 2023 से 29 मार्च 2025 ) इस अवधि में शनि चन्द्रमा से आपके द्वितीय भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह सामान्य रुप से आपके लिए कठिन समय है । आपमें से अधिकांश को अपने लक्ष्य व परियोजना के मनवांछित परिणाम नहीं मिलेंगे । यदि आप सेवारत हैं अथवा किसी व्यवसाय में हैं तो सावधानी से एक एक कदम बढ़ाएँ, छलाँग न लगाएँ क्योंकि समय अनुकूल नहीं है ।  यह समय वित्तीय दृष्टि से भी प्रतिकूल है । अपने खर्चों पर लगाम कसें व कारण खोजें कि आपका धन कहाँ जा रहा है घ् आपमें से कुछ अनेक स्त्रोतों से धन अर्जित कर सकते हैं परन्तु वह धन हाथ में रखना कठिन होगा । पैत्रिक सम्पत्ति से सम्बन्धित किसी भी प्रकार के विवाद से दूर ही रहें क्योंकि यह आपके सुखी जीवन व आत्मगौरव को ठेस पहुँचा सकते हैं । इस विशेष समय में आप व्यर्थ के झगड़ों में पड़कर नए शत्रु बना सकते हैं । आपमें से कुछ में नृशंसता / निर्दयता पनप सकती है और संभव है कि आप कोई अपराध कर बैंठे । आपमें से कुछ तो अपने परिवार में ही नए शत्रु बना सकते हैं ।  छोटी - छोटी बातों पर अपने पति / पत्नी को परेशान न करें । बच्चों का ध्यान रखें क्योंकि ग्रह - स्थिति परिवर्तन उनके लिए जोखिम बन सकता है ।  स्वास्थ्य का इस समय सही रुप से ध्यान रखें । आप स्वयं को दुर्बल व निस्तेज अनुभव कर सकते हैं । साथ ही शक्तिहीन भी हो सकते हैं । आपमें से अधिकांश थोड़ा कठिन काम करके ही थकान महसूस करेंगे । साथ ही अपने रुप रंग पर भी ध्यान दें ।  आपमें से कुछ इन दिनों विदेश जा सकते हैं जबकि कुछ के निरुद्देश्य इधर - उधर भटकने की संभावना है ।

 

कुम्भ राशि 

   जन्म चंद्रमा से शनि का प्रथम भाव से गोचर (17 जनवरी 2023 से 29 मार्च 2025 )इस अवधि में शनि चन्द्रमा से आपके प्रथम भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह कठिन चुनौतीपूर्ण समय का सूचक है । वित्त न्यूनतम स्थिति में होगा । व्यर्थ के खर्चे व अनावश्यक ऋण से बचें क्योंकि यह और अधिक ह्रास का कारण बन सकता है ।  व्यक्तिगत रुप से आप निराशावादी हो सकते हैं व बाहर से आपका व्यक्तित्व अप्रियकर हो सकता है । आपमें से कुछ पूर्व निश्चित् उद्देश्यों को पूर्ण करने में कठिनाई महसूस कर सकते हैं । आपमें से कुछ को न्यायिक हिरासत में भी जाना पड़ सकता है ।  स्वास्थ्य की ओर ध्यान दें । अस्वस्थता का कारण रोग न होकर शस्त्र, विष, अग्नि, शारीरिक पीड़ा व थकान हो सकता है । इन वस्तुओं से स्वास्थ्य को खतरा है अत: दूर रहने की चेष्टा करें । आपकी पत्नी/पति को भी शारीरिक पीड़ा, दर्द अथवा बेचैनी हो सकती है अत: उनके स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें ।  आपमें से कुछ को सिर में दर्द हो सकता है या ऐसा भी लग सकता है कि शरीर की समस्त शक्ति व सत्र निकल गया है । इस समय काफी मानसिक व्यथाएँ भी हो सकती है ।  अपनी प्रतिष्ठा व मान बनाए रखने हेतु यह एक चुनौतीपूर्ण समय है अत: ऐसे क्रियाकलापों से बचें जो इन पर प्रभाव डाल सकते हैं ।  इन दिनों यात्रा करनी पड़ेगी । आपको सुदूर स्थानों पर जाना पड़ सकता है तथा आपका स्थानान्तरण विदेश में हो सकता है । परन्तु आपमें से अधिकांश के लिए अपने स्वजनों व प्रियजनों तथा घर की सुख-सुविधाओं से दूर रहना कोई सुखद अनुभव नहीं होगा । घर में सुख शान्ति बनाए रखिए । इस विशेष समय में आपके अपने भाई - बहनों व उनकी पत्नियों / पतियों से झगड़ा हो सकता है । अपनी पत्नी / पति व बच्चें से भी कोई अप्रिय बात न करें व उन्हें जीवन को खतरे में डालने वाली वस्तुओं से दूर रखें । आपको किसी निकटजन का अन्तिम संस्कार सम्पन्न करना पड़ सकता है । आपमें से कुछ को अचानक धोखाधड़ी का शिकार होना पड़ सकता है । मित्रता अमूल्य निधि है जिसे शनि की यह गति विपरीत रुप से प्रभावित कर सकती है अत: मित्रों व मित्रता को सुरक्षित रखें । स्वयं को सतर्क व चुस्त - दुरुस्त रखें क्योंकि इस समय विशेष में आप बुराइयों का शिकार हो सकते हैं । 

 

मीन राशि 

   जन्म चंद्रमा से शनि का द्वादश भाव से गोचर (17 जनवरी 2023  18:03:34 से 29 मार्च 2025  21:44:37)  इस अवधि में शनि चन्द्रमा से आपके बारहवें भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह धन की कमी व वित्तीय रेखा के नीचे की ओर आने का द्योतक है । इस समय व्यर्थ के व्यय व धन बर्बाद करने का खतरा है । यदि आप कृषि अथवा कृषि उत्पादों से सम्बद्ध कार्य करते हैं तो विशेष सावधानी बरतें कि हानि न हो । भोजन - सामग्री भण्डार में संचित कर लें क्योंकि कठिनाई के समय इसकी आवश्यकता पड़ सकती है ।  स्वास्थ्य पर ध्यान देने की आवश्यकता है । किसी भी प्रकार की शारीरिक व्याधि की उपेक्षा न करें क्योंकि यह जानलेवा सिद्ध हो सकती है । आपके पैरों व नेत्रों को विशेष देखभाल की आवश्यकता है ।  काम - धंधे पर भी ध्यान दें । काम - काज में अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखने के प्रति सावधान रहें । आपमें से कुछ को अपने कार्य स्थल पर नेकनामी व पद बनाए रखने में कठिनाई आ सकती है । आपमें से कुछ को अपना धंधा या व्यापार बदलना पड़ सकता है ।  यात्रा का योग है । आपमें से अधिकांश को विदेश यात्रा करनी पड़ सकती है व परिवार से दूर रहना पड़ सकता है । परन्तु अधिकतर व्यक्तियों के लिए यह यात्रा महंगी पड़ेगी ।  घर में शान्ति बनाए रखना आवश्यक है क्योंकि आप स्वजनों से विवाद में पड़ सकते हैं । आपमें से कुछ में गहन चिन्ता, घुतिहीनता व जीवन के प्रति उत्साहहीनता की संभावना है ।  गंभीर निर्णय लेते समय यह असाधारण सावधानी बरतने का समय है । आपमें से कुछ बुद्धि व विचार शक्ति को अनदेखा कर सकते हैं । ऐसा कुछ न करें जिससे प्रतिष्ठा प्रभावित हो ।

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Friday, 16 April 2021

Kumbh rashi ke anya rashi walo se vivah sambandh kaise rahenge / कुंभ राशि के अन्य राशियों से विवाह संबंध कैसे रहेंगें, जानिए इस लेख में

Posted by Dr.Nishant Pareek

Kumbh rashi ke anya rashi walo se vivah sambandh kaise rahenge


कुंभ राशि के अन्य राशियों से विवाह संबंध कैसे रहेंगें, जानिए इस लेख में

कुम्भ - मेष :

अग्नि और वायु का मेल बैठता है। इस योग में स्वामी ग्रह मेष का मंगल और कुंभ का स्वामी शनि अपार उर्जा पैदा करता है। यह उसके रचनात्मक उपयोग पर निर्भर करता है। कुंभ जातक मेष जातक को और मेष जातक कुंभ जातक को अपना मित्र समझेगा। मेष जातक और कुंभ जातक दोनों को नई और परंपरा से भिन्न बातें पसंद आती है। किंतु यदि किसी कुघडी में कुंभ जातक अप्रत्याशित बात कर दे तो इससे मेष जातक धैर्य खोकर चिढ सकता है। अतः यह योग हलचलपूर्ण किंतु अस्थिर रहता है। 

मेष जातक और कुंभ जातिका की पहली भेंट का परिणाम दोनों के बीच आकर्षण ही हो सकता है। घनिष्ठ संपर्क में आने पर मेष जातक को पता चलेगा कि कुंभ स्त्री की दिलचस्पी अन्य व्यक्तियों में भी है। वह इसे सहन नहीं कर पाता। परिणामस्वरूप दोनों में विवाद होता है। और अहम को चोट लगने से मेष जातक अपना सारा क्रोध कुंभ जातिका पर निकालता है। अधिकांश कुंभ जातिकाएं मित्रता के संबंध पसंद करती है। लेकिन मेष जातक के पास इसके लिये समय नही होता। उसके लिये स्त्री केवल स्त्री होती है। और मित्रता समलैंगिक से ही करता है। मेष व्यक्ति को कुंभ स्त्री के स्वतंत्र वृति अपनाने पर आपत्ति होती है। 

वैसे दोनों अधिक कामी नहीं होते। अन्य गतिविधियों में व्यस्त रहने के कारण भागते दौडते ही उनहें मिलने का समय मिल पाता है। वे इसकी अधिक चिंता भी नहीं करते। 

यदि पत्नी मेष हो और पति कुंभ हो तो पति पत्नी को मित्र और पे्रमिका के रूप में देखना चाहेगा। कुंभ जातक मन से सुधारवादी होते है। वे आफिस, मित्रों आदि सभी को बदलने का प्रयास करते है। भले ही वे सफल न हो। अतः पत्नी का सामना असामान्य और सनकी व्यक्तियों से हो सकता है। कुंभ जातक प्रायः हरफनमौला होते है। वे अधिक कामी नहीं होते है। इसके लिये उन्हें समय ही नहीं मिलता। इच्छा होने पर ही वे प्यार जताते है। और पत्नी उन्हें बहुत स्वार्थी पे्रमी समझती है। 

कुम्भ - वृष  - 

यह एकदम भिन्न स्वभाव वाली दो अत्यंत हठी राशियों का मेल है। वृष जातक कुंभ जातक के रहस्यमय स्वभाव को समझने में विफल रहेगा। जब कुंभ जातक कुछ स्वतंत्रता या अलगाव चाहेगा तब वृष जातक उससे चिपकने का प्रयास करेगा। दोनों मेें किसी एक को झुकना पडेगा। कुंभ जातक में अनेक व्यक्तियों को प्रेम करने की सहज भावना होती है। जबकि वृष जातक अपनी भावनाओं में एकांगी होता है। जहां तक हो सके वृष स्त्री को कुंभ पुरूष से विवाह संबंध नहीं बनाने चाहिये। कुंभ जातक परस्पर विरोधी औपचारिकता में विश्वास न करने वाला होता है। वृष जातिका के लिये महत्वपूर्ण सुरक्षा तथा भौतिक साधन उसके लिये कोई महत्व नहीं रखते है। वह अपनी बुद्धि प्रखर करने के लिये काम करना पसंद करता है। और इसके लिये अपने कार्य क्षेत्र में बार बार परिवर्तन भी करता है। पत्नी के भावनात्मक उबाल का उस पर कोई प्रभाव नहीं होता। वह मतभेदों पर ठण्डे दिमाग से और ईमानदारी से चर्चा करना चाहता है। 

lifetime kundli in 300 only


जब वह अपने मित्रों की समस्याएं हल करने का या सुधार कार्यों में लगने का प्रयास करता है तो वृष पत्नी के मन में ईष्र्या जाग उठती है। लेकिन उसकी कोई सुनवाई नहीं होती। कुंभ जातक समय की पाबंदी बिल्कुल पसंद नहीं करता और पत्नी को उसके इस स्वभाव के साथ निर्वाह किए बिना कोई चारा नहीं। कुंभ पति के जीवन में यौन का अधिक महत्व नहीं होता। यद्यपि वह उससे दूर नहीं भागता। वृष जातिका को इससे चिढ लग सकती है। वह नहीं चाहती कि दुनिया भर की समस्याएं उसके शयनकक्ष तक में घुस आये। पति के लिये उसकी यौन की भूख अत्यधिक हो सकती है। 

यदि पति वृष जातक है और पत्नी कुंभ हो तब भी उनके दृष्टिकोणों में मौलिक अंतर के कारण उनके संबंध सफल होने की आशा बहुत कम है। पति घर की चहारदीवारी में बंद हो सकता है और पत्नी बाहर किसी प्रदर्शन या जुलूस में भाग ले रही होती है। पति प्रबल कामेच्छा से पीडित हो रहा होता है और पत्नी बाहरी दुनिया के विचारों में खोई रहती है। रूपये पैसे को खर्च करने के प्रश्न पर भी पति पत्नी के बीच चिक चिक चलती रहती है। स्थिति में सुधार न होने पर पति अपनी संतुष्टि के लिये अन्य सहारा तलाश सकता है और पत्नी को अपनी व्यस्तता के कारण इस बात का पता नहीं लगता है। जब पता चलता है, तब तक पानी सर से उपर चला जाता है। 

कुम्भ - मिथुन  -

वायु का वायु से अच्छा मेल होता है। किन्तु इन दोनों राशियों के स्वामी ग्रह बहुत भिन्न स्वभावों और दृष्टिकोणों को जन्म देते है। मिथुन जातक कुंभ जातक के उदासीन या रहस्यमय मूड को स्वीकार कर सकता है। वह उसकी मौलिकता और खोजी प्रवृत्ति, दोनों से ही प्रभावित होता है। यह संबंध अपनी परस्पर विहीन तथा परिवर्तनशील गुण के कारण अत्यंत दिलचस्प हो सकता है। कुंभ जातक को पूरी दुनिया की चिंता रहती है। वह एक असाध्य सुधारक होता है। अतः यदि मिथुन पत्नी हो और कुंभ पति हो तो पति पत्नी से हर समय बौद्धिक विवाद के लिये तैयार रहने की आशा करेगा। मिथुन पत्नी को यह अच्छा लग सकता है क्योंकि इससे उसे कुछ अप्रिय कामों से छुट्टी मिलेगी। लेकिन  उसे प्रतीक्षा करने से चिढ है। विशेषकर जब पति किसी मित्र की समस्या को सुलझाने में संलग्न हो। पति के लिये यह एक साधारण सी बात होगी। 

कुंभ पति, मिथुन पत्नी के हर काम में रूचि लेगा और उसके व्यक्तित्व के सुखद पक्ष को ही देखने का प्रयास करेगा। किन्तु बाहरी गतिविधियों के कारण उन्हें अपने यौन जीवन के लिये बहुत कम समय मिल पाएगा। मिथुन पत्नी कभी कभी इस अभाव को महसूस कर सकती है। वह इतनी व्यस्त रहेगी कि इस पर वह अधिक ध्यान नहीं देगी। लगभग यही स्थिति तब होगी जब पति मिथुन और पत्नी कुंभ हो। इस जोडी के सम्मुख सबसे बडी कठिनाई आर्थिक तौर पर आती है। उनके यौन संबंध काफी गहरे होने की संभावना है। नित्यचर्या का उनके यौन जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड पायेगा क्योंकि मिथुन पति इतना आवेगी हो सकता है कि उसके लिये रात की प्रतीक्षा करना भी आवश्यक नहीं होगा। 

कुम्भ -कर्क-

कर्क के स्वामी चन्द्र और कुम्भ के स्वामी यूरेनस के बीच कोई समानता नहीं है । कर्क जातक की संवेदनशील और चिपकू भावनाएं जातक को परेशान कर सकती हैं। उसे स्वतन्त्र और बेलगाम कार्यवाही के लिये समय चाहिए। एक प्रकार से कुम्भ जातक व्यक्ति-प्रेमी न होकर विश्व प्रेमी होता है, जो मित्रों तथा मानवता को अपनी दिलचस्पियां और प्यार बांटना चाहता है।

यदि पत्नी कर्क जातिका है और पति कुम्भ जातक हो तो पति दुनिया के साथ-साथ अपनी पत्नी को सुधारने का भी बीड़ा उठाएगा। जिद्दी पत्ना भला इस कैसे स्वीकार कर सकती है ! उसे अपने अतीन्द्रिय ज्ञान पर गर्व है और पति का अपने तर्क पर। मतभेद होना ही है। कुम्भ जातक सत्य को सर्वोपरि समझता है। पत्नी के मन में इससे गलतफहमी हो सकती है। उसे अपने गिले-शिकवे अधिक सही लगते हैं और अधिकांश का लक्ष्य बेचारा पति ही होता है ।

यौन की भूख दोनों में प्रायः समान होती है, किन्तु पत्नी को सीखना होगा कि पति को किस प्रकार घर में रखा जाए । अन्यथा कोई अन्य दिलचस्पी उसे बाहर खींच ले जाएगी।

यदि पति कर्क जातक है और पत्नी कुम्भ जातिका, तो पति के सामने पत्नी को घर में बांधे रखने की समस्या होगी। पत्नी मिनटों में घर का काम निपटाकर किसी सभा-समारोह में जाने की प्रवृत्ति दिखाएगी और पति चाहेगा कि वह घर को अधिक समय दे। पति की अधिकार-भावना का भी उस पर कोई प्रभाव नहीं होगा। आर्थिक दृष्टिकोण उनके बीच तनाव का एक और कारण होगा। कर्क पति पैसे को दांतों से पकड़ता है और कुम्भ पत्नी के पास रुपए-पैसे के बारे में सोचने को शायद ही समय हो। घर में भी दोनों की रुचियां भिन्न होंगीं । पति विगत के बारे में सोचेगा, सुन्दर पूरा वस्तुएं एकत्र करेगा। पत्नी केवल भविष्य की बात सोचेगी।

यौन-सम्बन्ध भी स्थिति को संभालने में अधिक सहायक नहीं होंगे। पति की संवेदना पत्नी के लिए अत्यन्त तीव्र हो सकती है। अधिक रूमानीपन दिखाने पर पत्नी केवल उपहास ही कर सकती है जिससे पति की भावना चोट पहुंचेगी।

 कुम्भ - सिंह-

राशिचक्र में ये राशियां आमने-सामने होने के कारण प्रारम्भ में सिंह जातक तथा कुम्भ जातक के बीच प्रबल आकर्षण पैदा हो सकता है जो कभी-कभी इतने ही प्रबल विकर्षण में बदल सकता है। दोनों स्थिर मत वाले, दृढ़ संकल्प वाले और अपने-अपने विचारों वाले होते हैं। अतः समझौते के बिना उनमें टकराव होता रहेगा। सिंह जातक चाहेगा कि उसके साथी का अधिकांश ध्यान उसी की ओर हो। कुम्भ जातक अपनी रुचियां, अपने आदर्श, अपना प्यार एक से अधिक व्यक्तियों को बांटेगा। सिंह जातक यह नहीं समझ पाएगा कि कुम्भ जातक इतना रहस्यपूर्ण, इतना विरक्त और इतना दूर क्यों है, और वह भी जब इसकी बिल्कुल आशा न हो।

जब पत्नी सिंह जातिका हो और पति कुम्भ जातक, तो उनमें दो बड़ी समानताएं मिलती है- निश्चित विचार और अभिमान । इसके कारण उनमें अनेक झगड़े पैदा हो सकते हैं। पति मानवतावादी है और अपने आदर्शों के लिए भौतिक लाभों की चिन्ता नहीं करता। पत्नी के लिए आर्थिक सफलता पहली आवश्यकता है। पति के आदर्शों को वह बेकार समझती है, हालांकि जब पति उदास होकर घर लौटता है तो सबसे पहले उसे प्यार और धीरज वही देती है। साथ ही वह यह कहने से भी नहीं चूकती मैंने तुमसे पहले नहीं कहा था ! वह शीघ्र समझ जाएगी कि उसे इस व्यक्ति की सहयोगिनी पहले बनना चाहिए और प्रेमिका बाद में । उसे पति की इच्छा की नई रुचियों में भाग लेना होगा।

यदि कुम्भ पति छोटे विचारों वाला है तो उनके बीच तेज झड़पें हो सकती हैं। सिंह पत्नी अपनी बात मनवाने के लिए लड़ने से झिझकती नहीं। उधर कुम्भ पति उसका रौद्र रूप देखकर कायरतापूर्वक हथियार डाल देगा। इससे पत्नी की दृष्टि में उसका सम्मान जाता रहेगा और उनके सम्बन्ध टूटने का खतरा हो सकता है।

इस युगल को अपने यौन सम्बन्धों के लिए अधिक समय नहीं मिलेगा। पति सदा किसी-न-किसी दूसरी दिलचस्पी में उलझा होगा और पत्नी को निराश करेगा। पति के लिए पत्नी की भूख बहुत अधिक हो सकती है जबकि पत्नी को पति अमानव दिखाई देगा।

यदि पति सिंह जातक है और पत्नी कुम्भ जातिका, तो तो भी दोनों के बीच शिकायतों के अनेक कारण रहेंगे। सिंह पति कामी होता है और पत्नी की विरक्ति से उसे चोट पहुंच सकती है। अपने अभिमान में वह उसका कारण जानने का प्रयास भी नहीं करेगा। उसे सदा यह महसूस होना चाहिए कि अपनी पत्नी के जीवन में उसी का सबसे अधिक महत्व है। ऐसा न होने पर उसका व्यवहार उदंडतापूर्ण हो जाएगा।

सिह पति में कुम्भ पत्नी की यौनेच्छा को जगाने की क्षमता होती है, किन्तु कभी-कभी उसके लिए पति की प्रबल भूख को शान्त कर पाना कठिन होता है। वह सांस लेने के लिए उसके बाहूपाश से छूटने का प्रयास करती है और पति इसे अपने पौरुष का अपमान समझता है। पति प्रशंसा पाने की अपनी भावना को यौन-व्यवहार में तुष्ट करना चाहता है। यदि ऐसे समय पत्नी उसकी आलोचना कर दे तो उसके लिए इससे अधिक बुरा अन्य कुछ नहीं हो सकता। दोनों के सम्बन्ध तूफानी रहने की सम्भावना है।

कुम्भ - कन्या-

दोनों राशियों में मौलिक असमानताएं हैं। कन्या जातक समझदार, तर्कसंगत, विश्लेषक और कभी-कभी रूखे होते हैं। कुम्भ जातक उदासीन, विरक्त, वीतराग हो सकते हैं। कन्या जातक सावधान, आत्म-संयमी तथा परम्परावादी होते हैं किन्तु कुम्भ जातक रहस्यमय, मूडी तथा कभी-कभी परम्परा से हटकर हो सकते हैं। कन्या जातक के तार्किक मस्तिष्क के लिए कुम्भजातक के दिमाग की उलझन समझना सम्भव नहीं है।

कन्या पत्नी तथा कुम्भ पति दोनों को ही मानसिक प्रेरणा चाहिए, किन्तु जहा पत्नी रुचियों की समानता तथा वर्तालाप के द्वारा अपने सम्बन्धों की परिधि में ही इसे खोजती है. वहां पति को बाहरी कार्यकलापों से प्रेरणा मिलती है। हो सकता है एक शाम पत्नी पति के साथ कहीं जाने का कार्यक्रम बना रही हो और पति किसी मित्र की समस्या को लेकर घर में घुसे तथा पत्नी से बिना कुछ कहे बाहर चला जाए। एक-दो बार पत्नी इसे सहन कर सकती है, किन्तु फिर उका आपत्ति करना स्वाभातिक है। बोलने में वह तेज होती है। जिससे खासा दृश्य उपस्थित होने का खतरा पैदा हो सकता है। 

यौन की भूख दोनों की लगभग समान ही होती है। किन्तु खतरा बाहरी प्रभावों से है। दुनिया की समस्याओं से पति का ध्यान हटाकर अपने यौन जीवन की ओर उन्मुख करने में पत्नी को काफी कठिनाई हो सकती है। इसमेें उसे अपने नारी सुलभ दांव पेंचों से काम लेना होगा। 

यदि पति कन्या जातक है और पत्नी कुंभ जातिका है तो जहां पत्नी दुनिया को सुधारने की बात सोचेगी वहां पति पत्नी को सुधारने का प्रयास करेगा। पति की आलोचक दृष्टि पत्नी को सबसे अधिक खटकने लगेगी। पति चाहेगा कि पत्नी घर की तरफ ध्यान दें और पत्नी चाहेगी कि पति भी घर के कामों में हाथ बढाये। पत्नी बजट बनाकर पैसा खर्च करने और एक एक पैसे का हिसाब देने से मना करेगी। जिससे पति का पारा चढने में देर नहीं लगेगी और दोनों में प्रायः बहस होगी। प्रबल शारीरिक आकर्षण के बजाय बौद्धिक कार्यकलाप और विचारों का आकर्षण इस संबंध की नींव होगी। एक ही बिस्तर पर दो आलोचकों की क्या स्थिति होगी, यह स्वतः ही सोचा जा सकता है। 

कुम्भ - तुला -

वायु का वायु से तालमेल है। इन दोनों राशियों के जातक स्वभावतः मित्रता में विश्वास करते हैं और उन्हें अन्य लोगों का साथ चाहिए। दोनों मिलकर इस आनन्द को बांट सकते हैं। तुला जातक का प्रेम व्यक्तिपरक होता है जबकि कुम्भ जातक का विश्वपरक। जब कुम्भ जातक विरक्त या रहस्यमय होने लगता है तो तुला जातक उसे आकर्षित करने के लिए रोष के स्थान पर नीति से काम लेता है। दोनों की एक दूसरे से कोई असम्भव अपेक्षा नहीं होगी, फिर भी तुला जातक को कुम्भ जातक के सामाजिक कार्यों के लिए छूट देनी होगी।

यदि पत्नी तुला जातिका है और पति कुम्भ जातक, तो पत्नी पति के परोपकारी कार्यों में पूरी रुचि लेगी, यद्यपि दोनों के बीच कभी-कभी कुछ अनखनाहट हो सकती है। यह तब होगा जब पत्नी की भावना पति के तर्कों से टकराए । जहां तक यौन सम्बन्धों का प्रश्न है, केवल तुला पत्नी ही कुम्भ पति के वैरागी स्वभाव को बदल सकती है। वह उसे बता सकती है कि थोड़ा-सा दिमाग लगाने से यौन सम्बन्ध कितने मधुर हो सकते हैं।

यदि पति तुला जातक है और पत्नी कुम्भ जातिका, तो पति को तब तक पत्नी की स्वतंत्रता से कोई आपत्ति नहीं होगी जब तक वह सजी-संबरी नारी बनी रहे। वह अपने सम्बन्धों को स्थायी रूप से रूमानी बनाए रखने का प्रयास करेगा। पत्नी भी इससे प्रसन्न रहेगी। कभी-कभी दोनों इधर-उधर मुंह मारने को भी आपत्तिजनक नहीं समझेंगे।

वायु जातकों की भावनाएं तथा इच्छाएं आमतौर से सत्य ही होती है। किन्तु मन से उत्तेजना पाकर इस युगल में यौन भूख प्रबल हो सकती है। अपने यौन सम्बन्धों में वे उस क्षण के मूड, विविधता, नयापन और नए-नए परा से प्रभावित होंगे। वे साफ मन से किसी तीसरे व्यक्ति को भी अपने जीवन में ला सकते हैं।

 कुम्भ - वृश्चिक-

दोनों दृढ़ इच्छा शक्ति वाली हैं। यदि अपनी शक्तियों को एक समान उद्देश्य के लिए मिला सकें तो भारी सफलता प्राप्त कर सकती हैं। वृश्चिक अत्यंत भावुक और स्वकेन्द्रित है। कुम्भ मित्रों के साथ मिल-बांटने में विश्वास करती है। वृश्चिक द्वारा कुम्भ पर हावी होने का प्रयास किए जाने पर कुम्भ विद्रोह कर सकती है। गम्भीर दरार पड़ने पर वह शीघ्र सम्बन्ध-विच्छेद कर लेगी । वृश्चिक के लिए प्रेम अत्यंत निजी मामला है । कुम्भ प्रेम को अधिक व्यापक रूप में देखती है । इस महत्वपूर्ण भावनात्मक अंतर को स्पष्ट रूप से न समझ पाने पर वृश्चिक कुम्भ को अत्यंत उदासीन महसूस करेगी।

कुम्भ -धनु-

अग्नि और वायु के बीच काफी तालमेल है। दोनों राशियों के स्वामी-ग्रह गर्जन के देवता गुरु और विद्युत के देवता यूरेनस के बीच भी अच्छा तालमेल है। इन राशियों के जातक एक दूसरे पर प्रबल प्रभाव डाल सकते हैं। आवश्यक होने पर वे एक-दूसरे को अकेला भी छोड़ सकते हैं। दोनों को स्वतंत्रता चाहिए, इसलिए एक-दूसरे के क्षेत्र का अतिक्रमण नहीं करेगा। दोनों राशियों के जातक निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर उच्च आदर्शों में विश्वास करते हैं। दोनों मैत्री में विश्वास करते हैं और बड़ी संख्या में लोगों को आकर्षित करते हैं। इसका आनन्द और लाभ दोनों को मिल सकता है। किन्तु, यदि पत्नी धनु जातिका है और पति कुम्भ जातक, तो ऐसे अवसर भी आ सकते हैं जब पति के सामाजिक कार्यों में अत्यधिक व्यस्त होने के कारण पत्नी स्वयं को उपेक्षित और प्रेम वंचिता अनुभव करे। आर्थिक भविष्य की योजना बनाने की योग्यता दोनों में से किसी में नहीं होती, शायद पति को ही इस दिशा में पहल करनी पड़े।

पत्नी यौन-वर्जनाओं और उनके परिणामों से युक्त होती है । यौन की भूख भी उसमें पति की अपेक्षा अधिक होती है, पति के पूर्ण विश्वास और उसमें ईष्र्या भावना के अभाव का वह यह अर्थ लगा सकती है कि पति उसे गहराई तक प्यार नहीं करता। उसकी इस धारणा का लाभ उठाकर कोई तीसरा व्यक्ति बहका सकता है।

दूसरी ओर, पति के धनु जातक और पत्नी के कुम्भ जातिका होने पर कालांतर में पति के स्वतंत्रता-प्रेम और अन्य महिलाओं को आकर्षित करने में उसकी योग्यता से कुम्भ-पत्नी में उसके स्वभाव के विरुद्ध ईष्र्या-भावना जन्म ले सकती है। कभी-कभी पत्नी की विरक्ति को पति उसका रूखापन समझ और इससे उसे अन्य साथी खोजने की इच्छा हो सकती है।

आर्थिक अराजकता भी दोनों के सम्बन्धों में तनाव पैदा कर सकती है, लेकिन पति पत्नी को स्वतंत्र वृत्ति अपनाने में पूरी सहायता देगा। पति की यौनभूख पत्नी की अपेक्षा अधिक होगी। पत्नी को उसके विवाहेतर सम्बन्ध स्वीकार करने को तैयार रहना चाहिए। देर-सवेर दोनों को यह समझौता करना ही होगा कि एक-दूसरे की भावनाओं को ठेस पहुंचाए बिना वे कहां तक आगे बढ़ सकते हैं।

कुम्भ -  मकर -  

पृथ्वी और वायु के बीच कोई तालमेल नहीं है । न मकर के स्वामी सतर्क शनि और कुम्भ के स्वामी गैर-परम्परावादी यूरेनस के बीच कोई समानता है। कुम्भ जातक निजी विचारों के बारे में स्वतंत्र तथा जिद्दी होता है। मकर जातक अपने लक्ष्यों तथा विश्वासों से चिपकने वाला होता है । मकर जातक यह बात कभी नहीं समझ पाएगा कि कुम्भ जातक कभी-कभी इतना रहस्यपूर्ण क्यों हैं

हो उठता है । उसके व्यवहार से मकर जातक की स्थायित्व तथा सुरक्षा की भावना को ठेस लगती है। कम्भ जातक परिणाम की चिन्ता किए बिना किस नए, रोमांचक परीक्षण का आनन्द उठाना चाहता है। मकर जातक के लिए यह एकदम अनावश्यक है।

दोनों में से यदि पत्नी मकर जातिका है और पति कुम्भ जातक, तो पत्नी निजी समस्याओं में व्यस्त रहना चाहेगी जबकि पति बाहरी समस्याओं में रुचि प्रदर्शित करेगा। जरूरतमंद मित्र हर समय घर में टपक सकते हैं । पति उनका आगे बढ़कर स्वागत करेगा जबकि पत्नी मौन रहकर उनकी घुसपैठ पर रोष दिखाएगी। कुम्भ पति नई-नई वृत्तियां अपनाएगा, जबकि मकर पत्नी चाहेगी कि वह एक ही स्थान पर बना रहकर ऊंचा पद प्राप्त करे। मकर पत्नी की आर्थिक सुरक्षा भावना कुम्भ पति की समझ में नहीं आ सकती। यह चिन्ता करना उसके लिए सम्भव नहीं है।

यौन-व्यवहार में भी टकराव अनिवार्य है। पत्नी को निराशा का दौरा पड़ने पर जब प्यार चाहिए तब पति कहीं और किसी की समस्या सुलझाने में व्यस्त होता है । उसे खींचकर घर में बैठाना भी एक समस्या है। पत्नी अपने हाव-भावों से ऐसा कर पाएगी, इसका भी भरोसा नहीं किया जा सकता।

दूसरी ओर, पति मकर जातक और पत्नी कुम्भ जातिका होने पर यह भूमिका उलट जाएगी। पत्नी के पति के काम में दिलचस्पी न दिखाने पर उनके बीच तेज झड़पों को जन्म मिलेगा। पत्नी पति के अतीत-प्रेम, भावनात्मकता तथा रूमानीपन से भी चिढ़ सकती है। वह प्रगतिशील और आधुनिका है। मकर पति को दूसरे लोगों से अधिक मिलना-जुलना पसंद नहीं होता। जब वह पत्नी के मित्रों को देर रात तक घर में बैठे देखता है तो कड़ी आपत्ति करता है । वह पत्नी से छिपा कर धन बचाने का प्रयास करेगा और पत्नी उस पर कंजूसी का आरोप लगाएगी। तब पति का क्रोध उबाल खा सकता है।

यौन की भूख दोनों में से किसी में प्रबल नहीं होती। वे अपनी बाहर की ही दिलचस्पियों में व्यस्त रहते हैं । अतः यौन के आनंद का उनके जीवन में विशष महत्व नहीं होता और न किसी को इसकी अधिक चिन्ता होती।

कुम्भ - कुम्भ -

कुम्भ राशि का स्वामी शनि मौलिक, खोजी और परम्परा से हटकर असामान्य व्यवहार करने वाला है। अन्य राशि वाले इस जोड़ी के सम्बन्धों को नहीं समझ पाएंगे । कुम्भ जातक को कुम्भ जातक ही समझ सकता है। बहुत कुछ इस बात पर निर्भर है कि कौन इस राशि के कितने लक्षणों से युक्त है। देर-सवेर असामान्य, आश्चर्यजनक, परिवर्तनशील अथवा विध्वंसक पार स्थितियां प्रकट हो सकती हैं।

पति-पत्नी के विरक्त भाव से बाहर के लोग समझ सकते हैं कि उन सम्बन्ध सौहार्दपूर्ण नहीं हैं, किन्तु कम-से-कम उनके लिए ऐसा समझना नहीं होगा। दोनों को अपने सम्बन्ध सन्तोष प्रदान कर सकते हैं। पत्नी अपने चिन्तन की दिशा उतनी ही शीघ्रता से बदल सकेगी जितनी शीघ्रता से पति। उनके लिए एक चुनौती होगा। आर्थिक मामले उनमें तनाव पैदा कर सकते है। क्योंकि वे इधर अधिक ध्यान नहीं दे पाएंगे। पत्नी घर से बंधे रहना पसन्द नहीं करेगी। पति को इससे कोई शिकायत नहीं होगी क्योंकि उसके मन में हीन-भावना जैसी कोई बात नहीं है।

यौन की उनके जीवन में बड़ी भूमिका की सम्भावना नहीं है । दोनों घर के बाहर ही काफी व्यस्त रहेंगे। एक-दूसरे की शारीरिक कमी या तो उनकी निगाह में नहीं आएगी या उसे वे इतना महत्त्व नहीं देंगे कि सम्बन्धों में तनाव पैदा हो।

कुम्भ - मीन -

वायु प्रधान कुम्भ और जल प्रधान मीन- इससे अधिक असाधारण जोड़ी मिलना कठिन है। इनके स्वामी अपने जातकों को ऐसे गुण प्रदान करते हैं जो अन्य राशियों के जातकों में नहीं मिलते। इन राशियों के जातकों की पटरी इन्हीं राशियों के जातकों के साथ बैठ सकती है । इस जोड़ी के कम से कम दो पक्ष होंगे-सम्बन्धों की ऊपरी पर्त बहुत सामान्य दिखाई देगी जबकि मनोवैज्ञानिक शक्तियों का गुप्त अंतः सम्बन्ध अत्यन्त जटिल होगा। दीर्घकाल तक साथ रहने पर भी दोनों के लिए एक दूसरे की गहराई अथाह रहेगी।

मीन जातक का चरित्र जटिल होता है। आमतौर से उसकी अभिलाषा अपनी पत्नी के जीवन का केन्द्र-बिन्दु बनने की होगी । कुम्भ पत्नी के लिए यह समझ पाना अत्यन्त कठिन है। उसे अपने ही व्यक्तित्व का विकास चाहिए। मीन पति भावुक होता है । जब वह महसूस करता है कि पत्नी उसकी भावात्मक आवश्यकता को पूरा नहीं कर सकती तो वह उससे अलग रहकर अपनी भावी दिशा के बारे में सोचने लगता है। पत्नी के गैर परम्परागत विचारों से उसे आघात पहुंच सकता है और पति के व्यवहार से पत्नी अकेलापन महसूस कर सकती है। आर्थिक पक्ष की दोनों उपेक्षा करना चाहेंगे लेकिन आमतौर से कुम्भ जातक इस दिशा में अधिक समझदार न होने से अन्ततः पत्नी को ही यह भार उठाना होगा।

कुम्भ पत्नी की शारीरिक भूख मीन-पति जितनी प्रबल नहीं होती और उसका व्यवहार पति को असुविधाजनक और अधूरा लग सकता है।

दूसरी ओर, यदि पति कुम्भ-जातक है और पत्नी मीन जातिका तो पति की विरक्ति पत्नी की तीव्र भावनाओं को ठेस पहुंचा सकती है और अंततः वह महसूस करने लगेगी कि पति उसे उतना प्यार नहीं करता जितना वह पति को करती है। पति को प्रेम के लम्बे-चैड़े वादों के बजाय पत्नी की मित्रता चाहिए। किसी एक को दूसरे से विदा लेने में अधिक समय नहीं लगेगा। कुम्भ-जातक भौतिकवादी नहीं होता, किन्तु जब वह आर्थिक मामलों में पत्नी को एकदम उत्तरदायित्वहीन पाएगा तो यह भार स्वयं सम्भाल लेगा। दोनों का यौन-जीवन भी सुखी रहने की आशा नहीं है।


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Kumbh rashi ka sampurn parichay / कुंभ राशि का संपूर्ण परिचय जानने के लिये क्लिक करे।

Posted by Dr.Nishant Pareek

Kumbh Rashi ka sampurn parichay


कुंभ राशि का संपूर्ण परिचय 

कुंभ राशि के अंतर्गत आने वाले नामाक्षर निम्न हैः- गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा।

कुम्भ राशिचक्र की ग्यारहवीं राशि है। इसके कुछ अन्य पर्याय इस प्रकार है

ब, कुट, घट, निप, कलश, कुम्भेभृत, घटभृत, तोयभृत, हृद्रोग, कुम्भधर, घटधर, घटरूप, चित्तामय, चेतोगद, पयोधर। अंग्रेजी में इसे एक्वेरियस कहते हैं।

कुम्भ राशि का प्रतीक कंधे पर रिक्त कलश लिए पुरुष है, किन्तु पश्चिम के ज्योतिषियों के अनुसार उक्त पुरुष घट से पानी गिरा रहा है। इस राशि का विस्तार राशिचक्र के 300 अंश से 330 अंश तक है। इसका स्वामी भारतीय ज्योतिष के अनुसार शनि और पश्चिमी ज्योतिष के अनुसार यूरेनस है। यह स्थिर तथा पुरुष राशि है। इसका तत्व वायु है। इसके तीन द्रेष्काणों के स्वामी क्रमशः शनि, बुध तथा शुक्र हैं। इसके अन्तर्गत धनिष्ठा के अन्तिम दो चरण, शतभिषा के चारों चरण तथा पूर्वा भाद्रपद के प्रथम तीन चरण आते हैं। इन चरणों के स्वामी क्रमशः इस प्रकार हैं:- धनिष्ठा तृतीय चरण के स्वामी मंगल-शुक्र, चतुर्थ चरण के स्वामी मंगल-मंगल, शतभिषा प्रथम चरण के स्वामी राहु-गुरु, द्वितीय चरण के स्वामी राहु-शनि, तृतीय चरण के स्वामी राहु-शनि, चतुर्थ चरण के स्वामी राहु-गुरु, पूर्वाभाद्रपद प्रथम चरण के स्वामी गुरु-मंगल, द्वितीय चरण के स्वामी गुरु-शुक्र, तृतीय चरण के स्वामी गुरु-बुध। इन चरणों के नामाक्षर इस प्रकार हैं - गू गे, गो सा सी सू से सो दा।

त्रिशांश विभाजन में 0-5 मंगल (मेष) के, 5-10 शनि (कुम्भ) के, 10-18 गुरु (धनु) के, 18-25 बुध (मिथन) के और 25-30 शुक्र (तुला, के हैं।

जिन व्यक्तियों के जन्म के समय निरयण चन्द्र कुम्भ राशि में संचार कर रहा होता है उनकी जन्म राशि कुम्भ मानी जाती है। उन्हें गोचर के फलादेश इसी राशि के अनुसार देखने चाहिए । जन्म के समय लग्न कुम्भ राशि में होने पर भी यह अपना प्रभाव दिखाती है। सायन सूर्य 21 जनवरी से 16 फरवरी तक कुम्भ राशि में रहता है। यही अवधि शक सम्वत् के माघ मास की है। ज्योतिषियों के मतानुसार इन तिथियों में दो-एक दिन का हेर-फेर हो सकता है । जिन व्यक्तियों की जन्मतिथि इस अवधि के बीच है, वे पश्चिमी ज्योतिष के आधार पर फलादेशों को कुम्भ राशि के अनुसार देख सकते हैं । निरयण सूर्य लगभग 18 फरवरी से 18 मार्च तक कुम्भ राशि में रहता है।

जिन व्यक्तियों के पास अपनी जन्म-कुण्डली नहीं है अथवा वह नष्ट हो चुकी है, तथा जिन्हें अपनी जन्मतिथि और जन्मकाल का भी पता नहीं है, वे अपने प्रसिद्ध नाम के प्रथम अक्षर के अनुसार अपनी राशि स्थिर कर सकते हैं। कुम्भ राशि के नामाक्षर हैं - गू गे गो सा सी सू से सो दा।

इस प्रकार कुम्भ जातकों को भी हम चार वर्गों में बांट सकते हैं - चन्द्र-कुम्भ, लग्न-कुम्भ, सूर्य-कुम्भ तथा नाम-कुम्भ । इन चारों वर्गों में कुम्भ राशि की कुछ-न-कुछ प्रवृत्तियां अवश्य पाई जाती हैं।

ग्रह-मैत्री चक्र के अनुसार कुम्भ राशि शुक्र के लिए मित्र राशि, चन्द्र, मंगल, बुध तथा गुरु के लिए सम राशि और सूर्य के लिए शत्रु राशि है। इस राशि में न कोई ग्रह अपनी उच्च स्थिति को प्राप्त होता है और न नीच स्थिति को। सूर्य के लिए यह अस्त राशि है ।

प्रकृति और स्वभावः-

राशिचक्र की बारहों राशियों में कुम्भ सबसे अधिक मानवीय है । कुम्भ जातक मानवीय गुणों से भरपूर और अपने उद्देश्य के प्रति पूर्ण ईमानदार तथा प्रतिबद्ध होते हैं । वे अतिवादी नहीं होते। उनका ज्ञान व्यापक और मन धैर्य तथा करुणा से ओतप्रोत होता है।

कुम्भ राशि में उच्च विकसित मानव के बीज छिपे रहते हैं। आज का मानव-समाज उसके पूर्ण प्रभाव को समझ पाने में असमर्थ है। अतः कुम्भ जातक के अनेक गुण ठीक से प्रकट नहीं हो पाते। मैत्री उसकी प्रकृति है। वह प्रायः दीर्घकालीन होती है। उसके मित्रों की संख्या भी कम नहीं होती। साथ ही उसके स्वभाव में एक प्रकार की विरक्ति भी पाई जाती है।

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कुम्भ जातक दृढ़ इच्छाशक्ति वाले और हर बात में निश्चित मत रखने वाले होते हैं। वे दूसरों की बातों में सहज ही नहीं आते और अपने विचारों पर दृढ़ रहते हैं। वे संयम और गम्भीरता से समस्याओं, तनावों तथा प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करते हैं। वे समस्या को पूरी तरह सोच-समझकर ही कोई निर्णय करते हैं और जब तक अनिवार्य न हो तत्काल कोई निर्णय नहीं करते। उनका एक खोजी और वैज्ञानिक दृष्टिकोण होता है। उनके कुछ विचार इतने प्रगतिशील समझे जाते हैं कि लोग उन्हें अगले युग का प्राणी समझ बैठते हैं और वे स्वयं को अपने समकालीन समाज के अनुरूप नहीं पाते। जब उनके विचार अन्य लोगों के विचारों या परिस्थितियों से टकराते हैं तो वे आवेश में आ जाते हैं।

कुम्भ राशि का स्वामी शनि इसे अत्यन्त रहस्यमय बनाता है। कभी कभी कुम्भ जातक में इतना अप्रत्याशित और अकस्मात् परिवर्तन होता है कि वह स्वयं चकित रह जाता है।

कुम्भ सुधारक राशि है । अतः कुम्भ जातक नये विचारों, मौलिकता शीघ्र परिणामों तथा परम्परा से अलग प्रवृत्तियों में विश्वास करने वाले होते हैं। उन्हें निजी सम्बन्धों की सीमा में काम करने के बजाय दल, संस्था या उद्देश्य के लिए काम करने में अधिक सन्तोष मिलता है। इसके लिए उन्हें व्यक्तिगत बन्धनों से स्वतन्त्रता चाहिए।

वे सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों को अपने अतीन्द्रिय ज्ञान से सही-सही पहचान सकते हैं, किन्तु उनके मन को चोट न पहुंचाने की भावना से अपनी राय प्रकट करना उचित नहीं समझते। कभी उगल देते हैं तो मन में बुरी तरह से पछताते हैं और उसकी पूरी क्षतिपूर्ति का प्रयास करते हैं।

कुम्भ जातकों में आम जन का भला करने की उत्कट भावना होती है। वे प्रायः जन-आन्दोलनों और राष्ट्रीय हित के समारोहों में भाग लेते दिखाई देंगे। स्वयं मानसिक तनाव में रहते हुए भी मानसिक रूप से उत्तेजित अन्य व्यक्तियों अथवा रोगियों को सांत्वना प्रदान करेंगे। उनके इन गुणों के कारण कुछ लोग उनसे अनुचित लाभ उठाने का प्रयास करेंगे। अतः मित्रों तथा सहयोगियों के चुनाव में उन्हें विशेष सावधान रहने की आवश्यकता है।

कुम्भ जातक तीव्र तर्क-बुद्धि वाले होते हैं। वे तर्क से ही मतभेद दूर करने में विश्वास करते हैं। उनमें बहुत बढ़िया व्यापार बुद्धि होती हैं । वे जिस क्षेत्र में भी रहें, दूसरों को लाभ पहुंचाने का प्रयास करते हैं। यदि संवेदनशीलता पर काबू पा सकें और आत्मविश्वास से काम लें तो ऐसा कोई पद नहीं जिसे वे पा न सकें। यदि नैतिक दृष्टि से ठीक समझते हों तो वे कोई असाधारण या नियम विरुद्ध कार्य करने से भी नहीं हिचकेंगे। संक्षेप में कुम्भ-जातकों को मानवता की आशा कहा जाता है।

कुम्भ जातकों में जब कुप्रवृत्तियों का विकास होता है तो वे अपने विचारों के जंगल में इस तरह खो जाते हैं कि अनिर्णय के फलस्वरूप कुछ नहीं कर पाते । उनमें कायरता भी घर कर लेती है।

कुम्भ जातिका आकर्षक होते हुए भी अपने स्वतन्त्र तथा निष्पक्ष विचारों के कारण पुरुषों की ईर्ष्या की पात्रा बन सकती है। वह अपने प्रेमी को विवाह के लिए बरसों टरका सकती है और विवाह के बाद भी उससे यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह पति को पूर्ण शारीरिक तुष्टि दे पाएगी। उसकी प्रवृत्तियां प्रायः उसे सामाजिक तथा जन-कल्याण के कार्यों में लगाए रखती हैं और उसे घर से बांधे रखना कठिन है।

आर्थिक गतिविधियां और कार्यकलापः-

कुम्भ जातक किसी भी परिस्थिति के अनुकूल अपने को ढाल सकते हैं । वे मानव प्रकृति के असाधारण पारखी होते हैं। अतः जीवन के प्रायः किसी भी क्षेत्र में उनसे रचनात्मक भूमिका निभाने की आशा की जा सकती है। वे आर्थिक मामलों में सफल रहते हैं, किन्तु पैसा उनके लिए साध्य नहीं, साधन है और उसका उपयोग उनकी अपेक्षा दूसरों की भलाई में अधिक होता है। व्यापार उनके बस का काम नहीं है। उससे उन्हें बचना ही चाहिए। शनि का प्रभाव भाग्य में बड़े-बड़े और आकस्मिक उतार-चढ़ाव ला सकता है। एक बार अप्रत्याशित और विचित्र ढंग से भारी धन लाभ भी हो सकता है। न्यासों, बीमा कम्पनियों, बैंकों, रेलवे कम्पनियों बिजली संस्थानों, उड्डयन और नई-नई खोज परियोजनाओं में अधिक सफलता की आशा की जा सकती है।

मैत्री, प्रेम, विवाह सम्बन्धः-

मित्रता कुम्भ जातकों का एक सहज गुण होते हुए और उनके मित्रों की बड़ी संख्या होते हुए भी यह विचित्र बात है कि दीर्घकालीन सम्पर्कों के बावजूद मित्रगण इन लोगों को पूरी तरह नहीं समझ पाते। इसका कारण इनका अत्यन्त जटिल और अथाह व्यक्तित्व ही है।

कुम्भ जातकों की मित्रता का आधार उनकी व्यक्तिगत परख होती है। फिर भी उनसे स्थायी सम्बन्धों की अपेक्षा नहीं की जा सकती। अपने भुलक्कड़पन के स्वभाव के कारण कभी-कभी वे बड़ी विचित्र स्थिति पैदा कर लेते हैं । वे अपने साथियों से सीखने के लिए सदा तैयार रहते हैं। उनमें किसी प्रकार का पूर्वाग्रह नहीं होता और अपनी गलती मालूम होने पर सहर्ष उसे स्वीकार कर लेते हैं और अपनी पूर्व धारणाओं को बदल लेते हैं।

उनका घर मित्रों के लिए सदा खाली रहता है। अतः उनका स्वागत के लिए वे उसे सदा सजा-संवरा रखते हैं। उसमें नए ढंग से सजाई गई प्राचीन वस्तुएं और अति आधुनिक विद्युत यन्त्र भी हो सकते हैं। उनके प्रेम-सम्बन्धों का सूत्रपात मित्रता से ही होता है। कुम्भ जातक ऐसा जीवन साथी चुनना पसन्द करते हैं जो साथी तथा प्रेमी दोनों हो और जो विचारों के ओछेपन से मुक्त हो । प्रबल यौन भूख वाला साथी उन्हें रास नहीं आता, क्योंकि उनके विचार से यौन-जीवन का केवल एक अंग होता है जिसे पूरे जीवन पर हावी नहीं होने देना चाहिए।

स्वास्थ्य और खानपानः-

कुम्भ जातकों का कद लम्बा और शरीर सुगठित होता है । उनका चेहरा अंडाकार होता है । पुरुषों का महिलाओं जैसी आकृति लिए हुए और महिलाओं का बच्चों जैसा। बांहें लम्बी, आंखें दूर-दूर, ऊपरी होंठ पतला ओर कान छोटे होते हैं । बालों का रंग कुछ भूरापन लिए हुए होता है महिलाओं के वक्ष छोटे होते हैं । वे अट्टहास करने में विश्वास नहीं करते, किन्तु उनके मुख पर एक बाल सुलभ मुस्कान खेलती रहती है।

कुम्भ राशि कालपुरुष की पिंडलियों तथा एडियों और रक्त-संचार का प्रतिनिधित्व करती है । रक्त-संचार धीमा होने पर हाथ-पांव ठंडे रह जाते हैं। रक्त-दोष से अधिक गम्भीर परेशानी पैदा हो सकती है । उससे सावधान रहना चाहिए और स्वच्छ वायु का अधिक-से-अधिक सेवन करना चाहिए। दांत, हृदय और गला भी इसके प्रभाव क्षेत्र में आते है। दांतों और टांसिल के रोग हो सकते हैं । गठिया से भी सावधान रहना चाहिए। सबसे अधिक खतरा इन्हें इम्फैक्शन से रहता है । यदि स्वास्थ्य ठीक न हो अथवा थोड़े से ही श्रम से थकान आ जाती हो, अथवा अनिद्रा का रोग हो, तो डाक्टर से परामर्श लेना चाहिए । सादा और पुष्टिकारक भोजन करना भी अच्छा रहेगा। पांव गरम रखने चाहिएं । चोट-फेट या रक्त दोष की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए । मलेरिया वाले वातावरण में भी नहीं रहना चाहिए।

कुम्भ जातकों के नसों, आमाशय, जिगर और पित्ताशय के रोगों से भी ग्रस्त होने की सम्भावना रहती है। डाक्टरों के लिए उनका निदान और उपचार कठिन है। वे विज्ञापन वाली बाजारी दवाएं खरीदते दिखाई देते हैं। मित्रों की हर बीमारी के लिए उनके पास कोई-न-कोई गोली या बलवर्धक दवा मिल जाएगी। बुढ़ापे में रक्त-संचार में गड़बड़ी और रक्त की कमी, सिर और पीठ में दर्द, दिल की धड़कन में तेजी और कमजोरी, पांव में अजीब दुर्घटनाओं, एड़ियों में मोच या हड्डी टूटने जैसी परेशानियों के शिकार हो सकते हैं।

द्रेष्काण, नक्षत्र, त्रिशांशः-

लग्न प्रथम द्रेष्काण में होने पर जातक दुहरे शनि के प्रभाव में रहता है और उसमें कुम्भ राशि के लक्षण अधिक प्रखरता से उभरते हैं । दूसरे द्रेष्काण में लग्न होने से उसके मानसिक पक्ष तथा तीसरे द्रेष्काण में होने से उसके कलात्मक तथा भावनात्मक पक्ष का अधिक विकास होता है।

चन्द्र या नामाक्षर धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण में होने पर जातक में आत्म-विश्वास में वृद्धि होती है। चैथे चरण में होने पर उनके रहस्यमय स्वभाव को समझना और कठिन हो जाता है। शतभिषा के प्रथम चरण में होने पर वह अधिक बहिर्मुखी और द्वितीय चरण में होने पर अंतर्मुखी होकर जन कल्याण की योजनाएं बनाता है। तृतीय चरण में होने पर वह प्रायः किसी आंदोलन का नेतृत्व करता मिलता है। चतुर्थ चरण में होने पर वह बीच-बीच में लम्बे समय तक अतर्मुखी हो जाता है। पूर्वा भाद्रपद के प्रथम चरण में होने पर उसमें नेतृत्व की प्रतिभा का विकास होता है। द्वितीय चरण में होने पर वह अपना धन परोपकारी कार्यों में खर्च करता है। तृतीय चरण में होने पर यह अपनी लेखनी और विचारों से नए युग के बीज बोता है।

कुम्भ जातिका की लग्न यदि मंगल के त्रिंशांश (0-5) में हो तो वह अनेक प्रकार से शोकग्रस्त होती है। यदि शनि के त्रिशांश (5-10) में हो तो वह सौभाग्य से हीन होती है और पति के साथ उसकी कलह रहती है । यदि गुरु के त्रिंशांश (10-18) में हो तो अपने कुल की परम्पराओं का पालन करने वाली होती है। यदि बुध के त्रिशांश (18-25) में हो तो उसे विविध विषयों का सुख होता है और उसकी प्रवृत्तियां घर के बाहर अधिक रहती हैं। यदि शुक्र के त्रिशांश (25-30) में हो तो उसे सन्तान-सुख नहीं होता।

अन्य ज्ञातव्य बातेंः-

भारतीय आचार्यों ने कुम्भ राशि का वर्ण वभ्र (नेवले के सदृश रंग) कहा है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार इसके स्वामी शनि का वर्ण श्याम या काला है। शनि का रत्न नीलम है जिसे लोहे में धारण किया जाना चाहिए । पश्चिमी ज्योतिष के अनुसार इसका स्वामी यूरेनस है। उसे सूर्य से संयुक्त किया गया है और उसकी धातु यूरेनियम है।

कुम्भ राशि पश्चिम दिशा की द्योतक है। वारों में कुम्भ राशि शनिवार का प्रतिनिधित्व करती है। इसके भारतीय स्वामी शनि का मूलांक 8 और पश्चिमी स्वामी यूरेनस का मूलांक 4 है। ये दोनों अंक भाग्यवादी हैं। कुम्भ राशि के जातकों के जीवन में ये दोनों अंक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और उसके भाग्य में आकस्मिक उतार-चढ़ाव लाते हैं।

कुम्भ राशि निम्न वस्तुओं, स्थानों तथा व्यक्तियों की संकेतक हैः-

रक्षा-विभाग, उद्योग, थोक व्यापार, मोटरगाड़ी, ऊन, रेशम, सन, बिजली के साधन, नौका, पुल, जल-विद्युत, पीढ़ी आदि। पहाड़ी तथा ऊबड़-खाबड़ स्थान, स्रोतों के निकट के स्थान, गुफाए, छज्ज, खान, हाल में खोदी हुई भूमि, खंदकें, सुरंगें, खिड़कियां, बिजली का सामान रखने के स्थान, मन्दिर। धातु-व्यापारी, शल्य-चिकित्सक, दानी, धनी तथा समाज सेवी, मछलीविक्रेता, शिकारी, धोबी, शराब खींचने वाले, चिड़ीमार, चोर-डाकू, गड़रिए, हत्यारे, निम्न लोग, धर्म तथा परम्परा के विरोधी लोग, वकील, जन्म-मृत्यु पंजीयक, व्याख्याता आदि।


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