Kumbh Rashi ka sampurn parichay
कुंभ राशि का संपूर्ण परिचय
कुंभ राशि के अंतर्गत आने वाले नामाक्षर निम्न हैः- गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा।
कुम्भ राशिचक्र की ग्यारहवीं राशि है। इसके कुछ अन्य पर्याय इस प्रकार है
ब, कुट, घट, निप, कलश, कुम्भेभृत, घटभृत, तोयभृत, हृद्रोग, कुम्भधर, घटधर, घटरूप, चित्तामय, चेतोगद, पयोधर। अंग्रेजी में इसे एक्वेरियस कहते हैं।
कुम्भ राशि का प्रतीक कंधे पर रिक्त कलश लिए पुरुष है, किन्तु पश्चिम के ज्योतिषियों के अनुसार उक्त पुरुष घट से पानी गिरा रहा है। इस राशि का विस्तार राशिचक्र के 300 अंश से 330 अंश तक है। इसका स्वामी भारतीय ज्योतिष के अनुसार शनि और पश्चिमी ज्योतिष के अनुसार यूरेनस है। यह स्थिर तथा पुरुष राशि है। इसका तत्व वायु है। इसके तीन द्रेष्काणों के स्वामी क्रमशः शनि, बुध तथा शुक्र हैं। इसके अन्तर्गत धनिष्ठा के अन्तिम दो चरण, शतभिषा के चारों चरण तथा पूर्वा भाद्रपद के प्रथम तीन चरण आते हैं। इन चरणों के स्वामी क्रमशः इस प्रकार हैं:- धनिष्ठा तृतीय चरण के स्वामी मंगल-शुक्र, चतुर्थ चरण के स्वामी मंगल-मंगल, शतभिषा प्रथम चरण के स्वामी राहु-गुरु, द्वितीय चरण के स्वामी राहु-शनि, तृतीय चरण के स्वामी राहु-शनि, चतुर्थ चरण के स्वामी राहु-गुरु, पूर्वाभाद्रपद प्रथम चरण के स्वामी गुरु-मंगल, द्वितीय चरण के स्वामी गुरु-शुक्र, तृतीय चरण के स्वामी गुरु-बुध। इन चरणों के नामाक्षर इस प्रकार हैं - गू गे, गो सा सी सू से सो दा।
त्रिशांश विभाजन में 0-5 मंगल (मेष) के, 5-10 शनि (कुम्भ) के, 10-18 गुरु (धनु) के, 18-25 बुध (मिथन) के और 25-30 शुक्र (तुला, के हैं।
जिन व्यक्तियों के जन्म के समय निरयण चन्द्र कुम्भ राशि में संचार कर रहा होता है उनकी जन्म राशि कुम्भ मानी जाती है। उन्हें गोचर के फलादेश इसी राशि के अनुसार देखने चाहिए । जन्म के समय लग्न कुम्भ राशि में होने पर भी यह अपना प्रभाव दिखाती है। सायन सूर्य 21 जनवरी से 16 फरवरी तक कुम्भ राशि में रहता है। यही अवधि शक सम्वत् के माघ मास की है। ज्योतिषियों के मतानुसार इन तिथियों में दो-एक दिन का हेर-फेर हो सकता है । जिन व्यक्तियों की जन्मतिथि इस अवधि के बीच है, वे पश्चिमी ज्योतिष के आधार पर फलादेशों को कुम्भ राशि के अनुसार देख सकते हैं । निरयण सूर्य लगभग 18 फरवरी से 18 मार्च तक कुम्भ राशि में रहता है।
जिन व्यक्तियों के पास अपनी जन्म-कुण्डली नहीं है अथवा वह नष्ट हो चुकी है, तथा जिन्हें अपनी जन्मतिथि और जन्मकाल का भी पता नहीं है, वे अपने प्रसिद्ध नाम के प्रथम अक्षर के अनुसार अपनी राशि स्थिर कर सकते हैं। कुम्भ राशि के नामाक्षर हैं - गू गे गो सा सी सू से सो दा।
इस प्रकार कुम्भ जातकों को भी हम चार वर्गों में बांट सकते हैं - चन्द्र-कुम्भ, लग्न-कुम्भ, सूर्य-कुम्भ तथा नाम-कुम्भ । इन चारों वर्गों में कुम्भ राशि की कुछ-न-कुछ प्रवृत्तियां अवश्य पाई जाती हैं।
ग्रह-मैत्री चक्र के अनुसार कुम्भ राशि शुक्र के लिए मित्र राशि, चन्द्र, मंगल, बुध तथा गुरु के लिए सम राशि और सूर्य के लिए शत्रु राशि है। इस राशि में न कोई ग्रह अपनी उच्च स्थिति को प्राप्त होता है और न नीच स्थिति को। सूर्य के लिए यह अस्त राशि है ।
प्रकृति और स्वभावः-
राशिचक्र की बारहों राशियों में कुम्भ सबसे अधिक मानवीय है । कुम्भ जातक मानवीय गुणों से भरपूर और अपने उद्देश्य के प्रति पूर्ण ईमानदार तथा प्रतिबद्ध होते हैं । वे अतिवादी नहीं होते। उनका ज्ञान व्यापक और मन धैर्य तथा करुणा से ओतप्रोत होता है।
कुम्भ राशि में उच्च विकसित मानव के बीज छिपे रहते हैं। आज का मानव-समाज उसके पूर्ण प्रभाव को समझ पाने में असमर्थ है। अतः कुम्भ जातक के अनेक गुण ठीक से प्रकट नहीं हो पाते। मैत्री उसकी प्रकृति है। वह प्रायः दीर्घकालीन होती है। उसके मित्रों की संख्या भी कम नहीं होती। साथ ही उसके स्वभाव में एक प्रकार की विरक्ति भी पाई जाती है।
कुम्भ जातक दृढ़ इच्छाशक्ति वाले और हर बात में निश्चित मत रखने वाले होते हैं। वे दूसरों की बातों में सहज ही नहीं आते और अपने विचारों पर दृढ़ रहते हैं। वे संयम और गम्भीरता से समस्याओं, तनावों तथा प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करते हैं। वे समस्या को पूरी तरह सोच-समझकर ही कोई निर्णय करते हैं और जब तक अनिवार्य न हो तत्काल कोई निर्णय नहीं करते। उनका एक खोजी और वैज्ञानिक दृष्टिकोण होता है। उनके कुछ विचार इतने प्रगतिशील समझे जाते हैं कि लोग उन्हें अगले युग का प्राणी समझ बैठते हैं और वे स्वयं को अपने समकालीन समाज के अनुरूप नहीं पाते। जब उनके विचार अन्य लोगों के विचारों या परिस्थितियों से टकराते हैं तो वे आवेश में आ जाते हैं।
कुम्भ राशि का स्वामी शनि इसे अत्यन्त रहस्यमय बनाता है। कभी कभी कुम्भ जातक में इतना अप्रत्याशित और अकस्मात् परिवर्तन होता है कि वह स्वयं चकित रह जाता है।
कुम्भ सुधारक राशि है । अतः कुम्भ जातक नये विचारों, मौलिकता शीघ्र परिणामों तथा परम्परा से अलग प्रवृत्तियों में विश्वास करने वाले होते हैं। उन्हें निजी सम्बन्धों की सीमा में काम करने के बजाय दल, संस्था या उद्देश्य के लिए काम करने में अधिक सन्तोष मिलता है। इसके लिए उन्हें व्यक्तिगत बन्धनों से स्वतन्त्रता चाहिए।
वे सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों को अपने अतीन्द्रिय ज्ञान से सही-सही पहचान सकते हैं, किन्तु उनके मन को चोट न पहुंचाने की भावना से अपनी राय प्रकट करना उचित नहीं समझते। कभी उगल देते हैं तो मन में बुरी तरह से पछताते हैं और उसकी पूरी क्षतिपूर्ति का प्रयास करते हैं।
कुम्भ जातकों में आम जन का भला करने की उत्कट भावना होती है। वे प्रायः जन-आन्दोलनों और राष्ट्रीय हित के समारोहों में भाग लेते दिखाई देंगे। स्वयं मानसिक तनाव में रहते हुए भी मानसिक रूप से उत्तेजित अन्य व्यक्तियों अथवा रोगियों को सांत्वना प्रदान करेंगे। उनके इन गुणों के कारण कुछ लोग उनसे अनुचित लाभ उठाने का प्रयास करेंगे। अतः मित्रों तथा सहयोगियों के चुनाव में उन्हें विशेष सावधान रहने की आवश्यकता है।
कुम्भ जातक तीव्र तर्क-बुद्धि वाले होते हैं। वे तर्क से ही मतभेद दूर करने में विश्वास करते हैं। उनमें बहुत बढ़िया व्यापार बुद्धि होती हैं । वे जिस क्षेत्र में भी रहें, दूसरों को लाभ पहुंचाने का प्रयास करते हैं। यदि संवेदनशीलता पर काबू पा सकें और आत्मविश्वास से काम लें तो ऐसा कोई पद नहीं जिसे वे पा न सकें। यदि नैतिक दृष्टि से ठीक समझते हों तो वे कोई असाधारण या नियम विरुद्ध कार्य करने से भी नहीं हिचकेंगे। संक्षेप में कुम्भ-जातकों को मानवता की आशा कहा जाता है।
कुम्भ जातकों में जब कुप्रवृत्तियों का विकास होता है तो वे अपने विचारों के जंगल में इस तरह खो जाते हैं कि अनिर्णय के फलस्वरूप कुछ नहीं कर पाते । उनमें कायरता भी घर कर लेती है।
कुम्भ जातिका आकर्षक होते हुए भी अपने स्वतन्त्र तथा निष्पक्ष विचारों के कारण पुरुषों की ईर्ष्या की पात्रा बन सकती है। वह अपने प्रेमी को विवाह के लिए बरसों टरका सकती है और विवाह के बाद भी उससे यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह पति को पूर्ण शारीरिक तुष्टि दे पाएगी। उसकी प्रवृत्तियां प्रायः उसे सामाजिक तथा जन-कल्याण के कार्यों में लगाए रखती हैं और उसे घर से बांधे रखना कठिन है।
आर्थिक गतिविधियां और कार्यकलापः-
कुम्भ जातक किसी भी परिस्थिति के अनुकूल अपने को ढाल सकते हैं । वे मानव प्रकृति के असाधारण पारखी होते हैं। अतः जीवन के प्रायः किसी भी क्षेत्र में उनसे रचनात्मक भूमिका निभाने की आशा की जा सकती है। वे आर्थिक मामलों में सफल रहते हैं, किन्तु पैसा उनके लिए साध्य नहीं, साधन है और उसका उपयोग उनकी अपेक्षा दूसरों की भलाई में अधिक होता है। व्यापार उनके बस का काम नहीं है। उससे उन्हें बचना ही चाहिए। शनि का प्रभाव भाग्य में बड़े-बड़े और आकस्मिक उतार-चढ़ाव ला सकता है। एक बार अप्रत्याशित और विचित्र ढंग से भारी धन लाभ भी हो सकता है। न्यासों, बीमा कम्पनियों, बैंकों, रेलवे कम्पनियों बिजली संस्थानों, उड्डयन और नई-नई खोज परियोजनाओं में अधिक सफलता की आशा की जा सकती है।
मैत्री, प्रेम, विवाह सम्बन्धः-
मित्रता कुम्भ जातकों का एक सहज गुण होते हुए और उनके मित्रों की बड़ी संख्या होते हुए भी यह विचित्र बात है कि दीर्घकालीन सम्पर्कों के बावजूद मित्रगण इन लोगों को पूरी तरह नहीं समझ पाते। इसका कारण इनका अत्यन्त जटिल और अथाह व्यक्तित्व ही है।
कुम्भ जातकों की मित्रता का आधार उनकी व्यक्तिगत परख होती है। फिर भी उनसे स्थायी सम्बन्धों की अपेक्षा नहीं की जा सकती। अपने भुलक्कड़पन के स्वभाव के कारण कभी-कभी वे बड़ी विचित्र स्थिति पैदा कर लेते हैं । वे अपने साथियों से सीखने के लिए सदा तैयार रहते हैं। उनमें किसी प्रकार का पूर्वाग्रह नहीं होता और अपनी गलती मालूम होने पर सहर्ष उसे स्वीकार कर लेते हैं और अपनी पूर्व धारणाओं को बदल लेते हैं।
उनका घर मित्रों के लिए सदा खाली रहता है। अतः उनका स्वागत के लिए वे उसे सदा सजा-संवरा रखते हैं। उसमें नए ढंग से सजाई गई प्राचीन वस्तुएं और अति आधुनिक विद्युत यन्त्र भी हो सकते हैं। उनके प्रेम-सम्बन्धों का सूत्रपात मित्रता से ही होता है। कुम्भ जातक ऐसा जीवन साथी चुनना पसन्द करते हैं जो साथी तथा प्रेमी दोनों हो और जो विचारों के ओछेपन से मुक्त हो । प्रबल यौन भूख वाला साथी उन्हें रास नहीं आता, क्योंकि उनके विचार से यौन-जीवन का केवल एक अंग होता है जिसे पूरे जीवन पर हावी नहीं होने देना चाहिए।
स्वास्थ्य और खानपानः-
कुम्भ जातकों का कद लम्बा और शरीर सुगठित होता है । उनका चेहरा अंडाकार होता है । पुरुषों का महिलाओं जैसी आकृति लिए हुए और महिलाओं का बच्चों जैसा। बांहें लम्बी, आंखें दूर-दूर, ऊपरी होंठ पतला ओर कान छोटे होते हैं । बालों का रंग कुछ भूरापन लिए हुए होता है महिलाओं के वक्ष छोटे होते हैं । वे अट्टहास करने में विश्वास नहीं करते, किन्तु उनके मुख पर एक बाल सुलभ मुस्कान खेलती रहती है।
कुम्भ राशि कालपुरुष की पिंडलियों तथा एडियों और रक्त-संचार का प्रतिनिधित्व करती है । रक्त-संचार धीमा होने पर हाथ-पांव ठंडे रह जाते हैं। रक्त-दोष से अधिक गम्भीर परेशानी पैदा हो सकती है । उससे सावधान रहना चाहिए और स्वच्छ वायु का अधिक-से-अधिक सेवन करना चाहिए। दांत, हृदय और गला भी इसके प्रभाव क्षेत्र में आते है। दांतों और टांसिल के रोग हो सकते हैं । गठिया से भी सावधान रहना चाहिए। सबसे अधिक खतरा इन्हें इम्फैक्शन से रहता है । यदि स्वास्थ्य ठीक न हो अथवा थोड़े से ही श्रम से थकान आ जाती हो, अथवा अनिद्रा का रोग हो, तो डाक्टर से परामर्श लेना चाहिए । सादा और पुष्टिकारक भोजन करना भी अच्छा रहेगा। पांव गरम रखने चाहिएं । चोट-फेट या रक्त दोष की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए । मलेरिया वाले वातावरण में भी नहीं रहना चाहिए।
कुम्भ जातकों के नसों, आमाशय, जिगर और पित्ताशय के रोगों से भी ग्रस्त होने की सम्भावना रहती है। डाक्टरों के लिए उनका निदान और उपचार कठिन है। वे विज्ञापन वाली बाजारी दवाएं खरीदते दिखाई देते हैं। मित्रों की हर बीमारी के लिए उनके पास कोई-न-कोई गोली या बलवर्धक दवा मिल जाएगी। बुढ़ापे में रक्त-संचार में गड़बड़ी और रक्त की कमी, सिर और पीठ में दर्द, दिल की धड़कन में तेजी और कमजोरी, पांव में अजीब दुर्घटनाओं, एड़ियों में मोच या हड्डी टूटने जैसी परेशानियों के शिकार हो सकते हैं।
द्रेष्काण, नक्षत्र, त्रिशांशः-
लग्न प्रथम द्रेष्काण में होने पर जातक दुहरे शनि के प्रभाव में रहता है और उसमें कुम्भ राशि के लक्षण अधिक प्रखरता से उभरते हैं । दूसरे द्रेष्काण में लग्न होने से उसके मानसिक पक्ष तथा तीसरे द्रेष्काण में होने से उसके कलात्मक तथा भावनात्मक पक्ष का अधिक विकास होता है।
चन्द्र या नामाक्षर धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण में होने पर जातक में आत्म-विश्वास में वृद्धि होती है। चैथे चरण में होने पर उनके रहस्यमय स्वभाव को समझना और कठिन हो जाता है। शतभिषा के प्रथम चरण में होने पर वह अधिक बहिर्मुखी और द्वितीय चरण में होने पर अंतर्मुखी होकर जन कल्याण की योजनाएं बनाता है। तृतीय चरण में होने पर वह प्रायः किसी आंदोलन का नेतृत्व करता मिलता है। चतुर्थ चरण में होने पर वह बीच-बीच में लम्बे समय तक अतर्मुखी हो जाता है। पूर्वा भाद्रपद के प्रथम चरण में होने पर उसमें नेतृत्व की प्रतिभा का विकास होता है। द्वितीय चरण में होने पर वह अपना धन परोपकारी कार्यों में खर्च करता है। तृतीय चरण में होने पर यह अपनी लेखनी और विचारों से नए युग के बीज बोता है।
कुम्भ जातिका की लग्न यदि मंगल के त्रिंशांश (0-5) में हो तो वह अनेक प्रकार से शोकग्रस्त होती है। यदि शनि के त्रिशांश (5-10) में हो तो वह सौभाग्य से हीन होती है और पति के साथ उसकी कलह रहती है । यदि गुरु के त्रिंशांश (10-18) में हो तो अपने कुल की परम्पराओं का पालन करने वाली होती है। यदि बुध के त्रिशांश (18-25) में हो तो उसे विविध विषयों का सुख होता है और उसकी प्रवृत्तियां घर के बाहर अधिक रहती हैं। यदि शुक्र के त्रिशांश (25-30) में हो तो उसे सन्तान-सुख नहीं होता।
अन्य ज्ञातव्य बातेंः-
भारतीय आचार्यों ने कुम्भ राशि का वर्ण वभ्र (नेवले के सदृश रंग) कहा है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार इसके स्वामी शनि का वर्ण श्याम या काला है। शनि का रत्न नीलम है जिसे लोहे में धारण किया जाना चाहिए । पश्चिमी ज्योतिष के अनुसार इसका स्वामी यूरेनस है। उसे सूर्य से संयुक्त किया गया है और उसकी धातु यूरेनियम है।
कुम्भ राशि पश्चिम दिशा की द्योतक है। वारों में कुम्भ राशि शनिवार का प्रतिनिधित्व करती है। इसके भारतीय स्वामी शनि का मूलांक 8 और पश्चिमी स्वामी यूरेनस का मूलांक 4 है। ये दोनों अंक भाग्यवादी हैं। कुम्भ राशि के जातकों के जीवन में ये दोनों अंक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और उसके भाग्य में आकस्मिक उतार-चढ़ाव लाते हैं।
कुम्भ राशि निम्न वस्तुओं, स्थानों तथा व्यक्तियों की संकेतक हैः-
रक्षा-विभाग, उद्योग, थोक व्यापार, मोटरगाड़ी, ऊन, रेशम, सन, बिजली के साधन, नौका, पुल, जल-विद्युत, पीढ़ी आदि। पहाड़ी तथा ऊबड़-खाबड़ स्थान, स्रोतों के निकट के स्थान, गुफाए, छज्ज, खान, हाल में खोदी हुई भूमि, खंदकें, सुरंगें, खिड़कियां, बिजली का सामान रखने के स्थान, मन्दिर। धातु-व्यापारी, शल्य-चिकित्सक, दानी, धनी तथा समाज सेवी, मछलीविक्रेता, शिकारी, धोबी, शराब खींचने वाले, चिड़ीमार, चोर-डाकू, गड़रिए, हत्यारे, निम्न लोग, धर्म तथा परम्परा के विरोधी लोग, वकील, जन्म-मृत्यु पंजीयक, व्याख्याता आदि।