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Wednesday, 1 March 2017

दो विवाह अथवा अनेक विवाह योग

Posted by Dr.Nishant Pareek
दो विवाह अथवा अनेक विवाह योग :-


                                              अनेक बार कुंडली देखते समय अनेक विचित्र योग देखने को मिलते है।  बहुत से लोगों की कुंडली में दो विवाह अथवा अनेक विवाह के योग होते है।  विवाह तय करने से पूर्व इस बात पर भी ध्यान देना जरुरी है कि कहीं लड़के या लड़की की कुंडली में दो विवाह या बहु विवाह का योग तो नही है. कुछ ऐसे योगों का विवरण इस प्रकार है :-
         
  • सप्तमेश या दूसरे भाव का स्वामी निर्बल होकर पाप प्रभाव में हो तो व्यक्ति के दो विवाह होते है।  
  • यदि सातवें भाव में पाप ग्रह हो तथा सातवें भाव का स्वामी नीच राशि में हो तो दो विवाह का योग होता है। 
  • यदि सप्तमेश पापी ग्रह के साथ तथा शुक्र शुभ  ग्रह के साथ हो तो व्यक्ति के दो पत्नियां होती है।  
  • सप्तमेश पापी ग्रहों के साथ चर राशि में व उस पर पाप ग्रह की दृष्टि हो तो व्यक्ति के दो पत्नियां होती है।  
  • यदि दूसरे भाव का स्वामी और सातवें भाव का स्वामी , दोनों ही शुभ ग्रहो से युत या दृष्ट हो तो भी दो पत्नियां होती है।  


  • सातवें भाव में मंगल शुक्र अथवा मित्र राशि में चन्द्रमा हो तथा आठवें भाव में लग्नेश हो तो भी दो पत्नियों का योग बनता है।  
  • यदि शुक्र राहु या मंगल से युत अथवा दृष्ट होकर द्विस्वभाव राशि में हो तो व्यक्ति तीन विवाह करता है।  
  • दूसरे और सातवें भाव में पाप ग्रह अधिक संख्या में हो तथा इनके स्वामी भी पापी ग्रह के साथ हो तो तीन विवाह होते है।  
  • लग्न दूसरा व तीसरा भाव में पापी ग्रह हो तथा सप्तमेश नीच राशि में हो तो भी तीन विवाह होते है।  
  • मंगल व राहु के साथ द्विस्वभाव राशि में शुक्र हो तथा उस पर पाप ग्रह की दृष्टि हो तो व्यक्ति के ४ पत्नियां होती है।  
  • यदि ग्यारहवें भाव में स्थित पंचमेश व सप्तमेश पर तृतीयेश की दृष्टि हो तो जातक की पांच पत्नियां होती है। 
  • यदि सातवें भाव का स्वामी अपनी उच्च राशि।, मित्र राशि, अथवा स्वराशि में द्वितीयेश व दशमेश के साथ केंद्र अथवा त्रिकोण में हो तो व्यक्ति एक से अधिक विवाह करता है।  
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Tuesday, 28 February 2017

जानिए किस ग्रह की दशा में विवाह होगा ?

Posted by Dr.Nishant Pareek
जानिए किस ग्रह की दशा में विवाह होगा ?

कुंडली में दशाओं से भी विवाह का समय ज्ञात किया जा सकता है कि किस ग्रह की दशा अन्तर्दशा में विवाह होने की सम्भावना होती है।  

  •  सप्तमेश की दशा अन्तर्दशा में विवाह होता है।  
  • शुक्र की दशा अन्तर्दशा में भी विवाह सम्भव होता है।  
  • दूसरे भाव का स्वामी जिस राशि में हो उसके स्वामी को दशा में विवाह की पूरी सम्भावना होती है।  
  • आठवें या दसवें भाव का स्वामी के स्वामी की दशा में भी विवाह की पूर्ण सम्भावना होती है।  
  • सातवें भाव में स्थित ग्राह की दशा में भी विवाह की पूरी सम्भावना होती है  . 
  • शुक्र जिस राशि में हो यदि उसका स्वामी ६,८,१२, भाव में न हो तो उसकी दशा में विवाह होता है।  
  • लग्नेश व सप्तमेश को स्पष्ट कर इनके राशि अंश व कला आदि के तुल्य राशि पर जब गुरु गोचर क्रम से प्रवेश करे तब विवाह होता है।  


  • चन्द्र व सप्तमेश की स्पष्ट कर इनके राशि व आदि के तुल्य गोचर क्रम में गुरु के प्रवेश करने करने पर विवाह होता है।  
  • शुक्र जितना लग्नेश  के पास होगा उतनी ही जल्दी विवाह होता है  . 
  •   शुक्र, लग्न , और चन्द्रमा , से सप्तम भाव के स्वामी की दशा की संख्या जोड़कर उतनी आयु में विवाह होता है।  
  • शुक्र अथवा चन्द्रमा से ७ वें अथवा त्रिकोण में गोचर में गुरु के जाने के पर भी विवाह होता है।  
  • चन्द्र लग्न से गुरु लग्न , दूसरे , तीसरे पांचवे सातवें नवे  अथवा ग्यारहवें भाव में जाने पर विवाह होता है।  
  • सप्तमेश पंचमेश या एकादशेश की दशा में भी विवाह होता है।  
  • सप्तमेश यदि शुक्र के साथ हो तो उसकी दशा में भी विवाह होता है।
  • लग्न से दूसरे भाव के स्वामी की भुक्ति में भी विवाह होता है।  
  • दशमेश और अष्टमेश की भुक्ति में भी विवाह होता है।  
  • नवम सप्तम व दशम भाव के स्वामी की दशा में भी विवाह होता है।  
  • शुक्र या   चन्द्रमा में से जो बली होता है , उसकी महादशा में विवाह होता है।  
                     इस तरह कुंडली में विवाह के कारक ग्रहों का अध्ययन के बाद विवाह का समय जान कर फिर उस अवस्था में उपरोक्त योग व दशा तथा गोचर में गुरु की स्थिति के आधार  पर विवाह का समय जाना जा सकता है।  कुंडली में योगों के अध्ययन के बाद विवाह की आयु , विवाह कारक योग दशा 
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Monday, 27 February 2017

विवाह में बाधक योग

Posted by Dr.Nishant Pareek
विवाह में बाधक योग :-

                           कुंडली में विवाह योग विद्ध्मान होने के बाद भी कुछ विवाह में बाधा  डालने वाले योग होते है।  जो या तो विवाह में बाधा डालते है अथवा विवाह होने ही नही देते।  कुछ विवाह में बाधक योग इस प्रकार
 है :-

  •  यदि सप्तम भाव का स्वामी पाप प्रभाव में हो तो विवाह में अवश्य बाधा आती है।  
  • यदि सप्तम भाव पर शनि की दृष्टि हो तथा शनि सप्तमेश न हो तो विवाह २८ वर्ष की आयु के बाद होता है। 

  • यदि शनि सप्तम भाव में हो परंतु सप्तमेश न हो तो ३४ वर्ष की आयु में विवाह होता है।  
  • गुरु अथवा सप्तमेश को कोई  पाप ग्रह पीड़ित करता है तो विवाह देरी से होता है।  
  • यदि सप्तमेश  या  गुरु किसी त्रिक भाव में बैठा हो तो विवाह में बाधा आती है।  
  • यदि सप्तम भाव पर  कोई शुभ ग्रह का प्रभाव न हो तथा कोई  पापी ग्रह बैठा हो तो विवाह में देरी होती है।  
  • यदि सप्तमेश या गुरु किसी कोई दो पाप ग्रहों के बीच में हो तो विवाह में देरी होती है।  
  • यदि चन्द्र से सातवें भाव में शुक्र हो व सप्तम का स्वामी ११ वे  भाव में हो तो २७ वर्ष के बाद विवाह होता है।  
  • यदि कुंडली में सप्तम भाव , सप्तमेश , गुरु , व शुक्र , अधिक पाप प्रभाव में हो तथा दूसरे भाव का स्वामी किसी त्रिक भाव में गया हो तो विवाह लगभग असम्भव होता है।  
  • सूर्य , चन्द्र , शुक्र , एक ही नवांश  में होकर त्रिक  भाव में हो तो भी विवाह देर से होता है।  
  • लग्न , दूसरे , व सातवें भाव में यदि पाप ग्रह हो और सूर्य कोई शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो विवाह हो तो जाता है परन्तु आफत ही कटती है। .
  • यदि सप्तमेश  व शुक्र अस्त हो अथवा पाप प्रभाव में हो तथा सप्ततम भाव में राहु अथवा शनि हो तो भी विवाह नही होता परन्तु व्यक्ति के सम्बन्ध जरूर किसी महिला से होते है  . 
  • यदि कुंडली में गुरु व शुक्र निर्बल हो तथा सप्तमेश भी पाप प्रभाव में हो एवम २,५,७,९,११, भाव भी निर्बल हो तो विवाह मुश्किल होता है।  
  • यदि सप्तम भाव में शुक्र व बुध अस्त होकर बैठे हो तो जातक अविवाहित रहता है।  
  • यदि शुक्र , गुरु ,  के साथ सूर्य चन्द्र भी निर्बल हो तथा  सप्तमेश नीचस्थ राशि के साथ पूर्ण बली  शनि की शत्रु दृष्टि सप्तम भाव पर हो तो विवाह नही होता है।  
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Sunday, 26 February 2017

विवाह कारक योग :-

Posted by Dr.Nishant Pareek
विवाह कारक  योग :-


                          किसी भी कुंडली में ज्योतिषी को सबसे पहले यह देखना चाहिए कि विवाह का योग है या नही।  विवाह किस दिशा में होगा।  विवाह में कोई बाधक योग तो नही है।  ज्योतिष शास्त्र के प्राचीन विद्वानों ने स्वरचित ग्रन्थों में विवाह का काल निर्णय योग , दशा , व गोचर के आधार पर किया है।   किसी भी ज्योतिषी को विवाह से सम्बन्धित बात पूछने पर वें  विवाह का समय बताने लग जाते है परंतु उस समय पर भी विवाह न होने पर ज्योतिषी की बात व्यर्थ जाती है।  ज्योतिषियों से निवेदन है कि विवाह का समय बताने से पूर्व विवाह का योग भी देख लेना चाहिए कि जातक के विवाह का योग भी है अथवा नही।  क्योकि दूसरे योग भी तभी क्रियाशील होंगे जब विवाह सम्पन्न होगा।  इसलिए विवाह सम्बन्धित किसी भी निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले पूरी कुंडली का सम्पूर्ण अध्ययन करना चाहिए।  जिससे किसी ज्योतिषी की बात ख़राब न हो तथा ज्योतिष पर प्रश्न चिन्ह न लगे।







  • सप्तम भाव पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो तथा सप्तमेश बली हो तो विवाह जरूर होता है।  
  • सप्तमेश लग्न में हो अथवा किसी शुभ ग्रह के साथ एकादश भाव में बैठा हो तो विवाह सम्पन्न होता है।  
  • सप्तम भाव में जितने ज्यादा संख्या में बलवान ग्रह बैठे होंगे और उनको सप्तमेश देखता हो तो विवाह होता है।  
  • दूसरे भाव का स्वामी और सातवें भाव का स्वामी १ ,४,५,७,९,१०, वें भाव में हो तो विवाह अवश्य होता है।  
  • मंगल और सूर्य के नवांश में बुध और गुरु गए हो अथवा सप्तम भाव में गुरु का नवांश हो तो विवाह अवश्य होता है।  
  • सप्तमेश और गुरु जितने अधिक शुभ होंगे अथवा जितने अधिक शुभ ग्रह से दृष्ट होंगे।, उतनी ही जल्दी विवाह होगा. 
  • सप्तम भाव में कोई शुभ ग्रह हो अथवा सप्तमेश किसी शुभ ग्रह के साथ दूसरे, सातवें , या आठवें  भाव में गया हुआ हो तो विवाह जरूर होता है।  
  • लग्नेश दशम भाव में बली बुध के साथ हो तथा सप्तमेश के साथ बली चन्द्रमा तीसरे भाव में गया हुआ हो तो विवाह निश्चित रूप से होता है।  
  • दूसरे व सातवे भाव पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तथा दोनों के स्वामी शुभ राशि में हो तो विवाह जरूर होता है।



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कुंडली में शिक्षित होने के योग

Posted by Dr.Nishant Pareek
  कुंडली में शिक्षित होने के योग 
    
                                       कुंडली में वर वधू की शिक्षा देखना भी बहुत आवश्यक होता है आज के समय में अशिक्षित व्यक्ति का समाज में कोई  मूल्य नही है.  अशिक्षित लड़के लड़कियों को प्रतिदिन अनेक समस्याओ का समस्याओं का सामना करना पड़ता है।  इसलिए आजकल विवाह सम्बन्ध तय करते समय शैक्षिक योग्यता पर अधिक ध्यान दिया जाता है, ज्योतिष में शिक्षा का विचार मुख्य रूप से पंचम भाव से किया जाता है परंतु व्यावसायिक शिक्षा को दशम भाव से देखा जाता है।  शिक्षा का कारक गुरु और बुध है।  कुंडली में यदि पंचम व दशम भाव के साथ इनके स्वामी तथा गुरु व बुध भी शुभ स्थिति में हो तो शिक्षा का अच्छा योग होता है।

  1.  पंचमेश यदि किसी शुभ भाव का स्वामी व शुभ राशि में हो तो तथा शुभ ग्रह से देखा जाता हो तो व्यक्ति शिक्षित होता है 
  2. दशम भाव तथा इसका स्वामी दोनों ही बलवान  हो तथा किसी शुभ ग्रह के प्रभाव में हो तो व्यक्ति उच्च व्यावसायिक शिक्षा ग्रहण करता है।  
  3. पंचम भाव में बुध हो तथा पंचम भाव का स्वामी बली  होकर केंद्र में हो तो व्यक्ति शिक्षित व बुद्धिमान होता है।  
  4. केंद्र अथवा त्रिकोण में बलवान गुरु होने पर भी व्यक्ति अच्छा शिक्षित होता है।  
  5. पंचम भाव में शुभ ग्रह हो तथा गुरु, बुध , व पंचम भाव के स्वामी पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो जातक शिक्षित होता है।  
  6. पंचम व दशम भाव पर शुभ ग्रह का प्रभाव हो तथा इनके स्वामी त्रिक भाव में नही गए हुए हो तो भी जातक उच्च शिक्षा ग्रहण करता है


  1. पंचम भाव का स्वामी उच्च राशि में अथवा दो शुभ ग्रहों के मध्य हो तो भी व्यक्ति अच्छी  शिक्षा ग्रहण करता है।  
  2. पंचमेश अथवा दशमेश या दोनों केंद्र या त्रिकोण में बली  अथवा एक दूसरे को देखते हो अथवा साथ साथ हो तो जातक उच्च शिक्षा प्राप्त कर राजकीय सेवा में उच्च पद प्राप्त करता है 
  3. चन्द्र बुध व शुक्र तीनों ग्रह कारकांश लग्न अथवा द्वितीय भाव को देखते है तो व्यक्ति चिकित्सक   चिकित्सक होता है।  
  4. धन भाव का स्वामी  बुध अपनी उच्च राशि में हो , गुरु लग्न में हो तथा शनि अष्टम भाव में हो तो व्यक्ति गणितज्ञ होता है।  इसके अतिरिक्त यदि गुरु केंद्र अथवा त्रिकोण में, शुक्र उच्च राशि में तथा बुध धन बहाव में हो तो भी जातक गणितज्ञ होता है।  
  5. दशम भाव का स्वामी पंचम भाव अथवा लग्न में हो तो तथा पंचमेश से सम्बन्ध हो तो व्यक्ति कवि होता है।  
  6. पंचमेश दशम अथवा एकादश भाव में हो तो भी जातक विद्वान् होता है।  '
  7. अष्टमेश पंचमेश अथवा बुध यदि नवम भाव में हो तो व्यक्ति  लेखक होता है।  
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Saturday, 25 February 2017

नाड़ी कूट का सरल एवम विस्तृत विवेचन

Posted by Dr.Nishant Pareek
नाड़ी  कूट का सरल एवम विस्तृत विवेचन 

   अष्टकूट मिलान में सबसे महत्वपूर्ण नाड़ी कूट को माना गया है।  नाड़ी मिलान जन्म नक्षत्र के आधार पर होता है आयुर्वेद के अनुसार मानव शरीर में तीन प्रकार की नाड़ी होती है जो विभिन्न गुणों का प्रतिनिधित्व करती है इनमे पहली नाड़ी आद्य नाड़ी होती है जो वायु प्रधान होती है दूसरी मध्य नाड़ी होती है जो पित्त प्रधान होती है तीसरी अन्त्य नाड़ी होती है जो कफ प्रधान होती है आद्य नाड़ी का चंचल व अस्थिर स्वभाव होता है मध्य नाड़ी का उष्ण स्वभाव होता है अन्त्य नाड़ी का शीतल स्वभाव होता है।  व्यक्ति के शरीर में वात पित्त कफ की संतुलित निश्चित मात्रा होती है जिस व्यक्ति में इन नाड़ियों में से जिस गुण की प्रधानता होती है वही उस व्यक्ति की नाड़ी होती है, स्वस्थ रहने के लिए वातिक जातक को वात प्रधान, पैत्तिक जातक को पित्त प्रधान तथा कफज जातक को कफ प्रधान वस्तुओं का सेवन करना हानिकारक होता है।  यदि देह में नाड़ियों का संतुलन बिगड़ जाये तो रोग पीड़ा उत्पन्न हो जाती है।  इसी तरह ज्योतिष में भी नाड़ियो के आधार पर प्राणी को तीन भागों में विभक्त किया गया है नाड़ी का सम्बन्ध व्यक्ति की शारीरिक धातु से होता है। इसलिए विवाह से पहले वर वधू का नाड़ी मिलान किया जाता है।  क्योकि  दोनों की एक ही नाड़ी होने पर संतान उत्पत्ति में बाधा आती है।


 




नाड़ी दोष विशेष :-   नाड़ी मिलान में मात्र दो ही स्थिति होती है या तो नाड़ी सामान होती है या फिर अलग अलग होती है।  इसलिए इस मिलान में पूर्ण ८ गुण मिलते है अथवा ० गुण मिलते है।  अर्थात वर वधू की अलग अलग नाड़ी हो तो शुद्ध नाड़ी मानी जाती है और यदि   समान नाड़ी हो तो अशुद्ध नाड़ी होती है जो अशुभ होती है. यह महादोष होता है।  ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नाड़ी दोष केवल ब्राह्मणों को लगता है नाड़ी  दोषस्तु विप्राणां  परन्तु अनुभव सिद्ध बात यह है कि यह दोष यदि अन्य जातियों के गुण मिलान में आया है तो उनके संतान उत्पत्ति में अवश्य बाधा आई है। 




नाड़ी दोष परिहार :- ज्योतिष शास्त्र में नाड़ी दोष के निम्न परिहार बताये गए है जो मेरे विचार से तो अत्यावश्यक हो तो ही उपयोग में लेने चाहिए।

यदि वर वधू का जन्म एक ही राशि व नक्षत्र में हो तो नाड़ी दोष का परिहार हो जाता है।  परंतु इसमें नक्षत्र चरण भेद अवश्य होना चाहिए। उसमे वधू के नक्षत्र का चरण वर के नक्षत्र चरण के बाद होना चाहिए।

वर वधू की राशि एक ही हो परंतु नक्षत्र अलग अलग हो परन्तु वधू का जन्म नक्षत्र वर के जन्म नक्षत्र के बाद होना चाहिए

वर वधू की राशि अलग हो परन्तु नक्षत्र एक ही हो किन्तु वधू की राशि वर की राशि के बाद की होनी चाहिए।  इस तरह से भी नाड़ी दोष का परिहार होता है।

यदि वर या कन्या का जन्म नक्षत्र आर्द्रा, रोहिणी , मृगशिरा , ज्येष्ठा , श्रवण , रेवती, या उत्तराभाद्रपद में से कोई है तो भी नाड़ी दोष नही लगता।

यदि वर कन्या के राशि स्वामी गुरु, बुध , अथवा शुक्र में से कोई हो तो भी नाड़ी दोष नही लगता है.
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Gun milan ki vyakhya / गुण मिलान की वैज्ञानिक व्याख्या

Posted by Dr.Nishant Pareek

Gun milan ki vyakhya                                                  



 गुण मिलान की वैज्ञानिक व्याख्या

प्राचीन विद्वानों ने वर वधू के सफल वैवाहिक जीवन के लिया मेलापक को महत्वपूर्ण माना है. मेलापक से वर वधू की शारीरिक व मानसिक स्थिति के साथ दोनों के विचार गुण अवगुण जनन शक्ति स्वास्थ्य शिक्षा व संभावित आर्थिक स्थिति आदि के बारे में जान सकते है, मेलापक का आधार ३६ गुण  है. विवाह के लिए काम से काम १८ गुण मिलने चाहिए. इसके अतिरिक्त और भी कुछ विशेष नियम है जिनके होने पर गुण मिलने के बाद भी विवाह नही होता,
   भारतीय ज्योतिष में शरीर को लग्न व चन्द्रमा को मन माना गया है. ज्योतिष में राशि का प्रमुख आधार चन्द्रमा ही है , इसलिए गुण मिलान के लिए ८ में से ४ को चंद्र अर्थात जन्म राशि को ही आधार बनाया है शेष ४ को जन्म नक्षत्र का आधार बनाया है , नक्षत्र का आधार भी चन्द्रमा ही होता है  लड़के लड़की के गुण का मिलान ८ क्षेत्रों से किया जाता है इन क्षेत्रों को ज्योतिष में अष्टकूट कहते है इस अष्टकूट के आधार पर ही निश्चय किया जाता है कि विवाह शुभ होगा या नही।  अष्टकूट में राशि के आधार पर कुल १५ गुण  प्राप्त होते है तथा नक्षत्र के आधार पर २१ गुण  प्राप्त होते है



  1. वर्ण मिलान :-    वर्ण मिलान राशि के आधार पर होता है वर्ण ४ होते है १२ राशियों में ३ =३ राशियों पर एक वर्ण प्रतिनिधित्व करता है वर्ण मिलान से लड़के लड़की की अहम् भावना देखी जाती है जल तत्त्व राशि का ब्राह्मण वर्ण होता है अग्नि तत्त्व राशि का क्षत्रिय वर्ण होता है पृथ्वी तत्त्व राशि का वैश्य वर्ण होता है तथा वायु तत्त्व राशि का शुद्र वर्ण होता है 





  1. वश्य मिलान :-   वश्य मिलान राशि के आधार पर होता है वश्य मिलान से दोनों के परस्पर लगाव तथा आकर्षण का ज्ञान किया जाता है वश्य  चतुष्पद द्विपद जलचर वनचर तथा कीट संज्ञक होता है 
  2. तारा मिलान :-   तारा मिलान जन्म नक्षत्र के आधार पर होता है इससे होने वाले पति पत्नी के स्वास्थ्य के विषय में ज्ञान किया जाता है प्रत्येक नक्षत्र से  १० वें तथा १९वें नक्षत्र का स्वामी एक ही ग्रह होता है जिस नक्षत्र में जातक  जन्म होता है वह जन्म नक्षत्र, उससे १० वा अनुजन्म नक्षत्र तथा उससे १९ वा त्रि जन्म नक्षत्र कहलाता है 
  3. योनि मिलान :- योनि मिलान जन्म नक्षत्र से होता है योनि मिलान द्वारा भावी वर वधु की परस्पर शारीरिक संतुष्टि देखी जाती है मिलान हेतु १४ योनियों को २७ नक्षत्रों में विभाजित किया गया है जन्म नक्षत्र से यह ज्ञात हो जाता है कि लड़का लड़की किस नक्षत्र के है तथा उन १४ योनियों में ही आपस में दोनों के नक्षत्रों से गणना करके योनि का निर्धारण किया जाता है 
  4. ग्रह मैत्री :- ग्रह मैत्री से वर वधू के परस्पर बौद्धिक व आध्यात्मिक सम्बन्धों का ज्ञान होता है ग्रह मिलान का आधार राशि होता है वर वधू के राशि स्वामी ग्रह की आपसी मित्र सम शत्रुता के आधार पर मैत्री का निर्धारण किया जाता है 
  5. गण मिलान :- गन मिलान का आधार जन्म नक्षत्र होता है।  इससे वर वधू के स्वभाव के बारे में पता लगता है २७ नक्षत्रों को ३ गणों में विभाजित किया गया है ये देवगण, मनुष्य गण , तथा राक्षस गण  के नाम से जाने जाते है ये सतोगुणी तमोगुणी तथा रजोगुणी होते है व्यक्ति का जो गण होता है उसी के अनुरूप उसका स्वभाव होता है।  
  6. भकूट मिलान :-  भकूट मिलान से वर वधू के होने वाले परिवार एवम बच्चों के साथ पारिवारिक मेलजोल के बारे में जाना जाता है इसका आधार जन्म राशि होता है इससे ज्ञात किया जाता है कि वर वधू की राशियाँ आपस में कितनी दूरी पर है भकूट मिलान में यदि दोनों की राशियां आपस में छठी और आठवी में तो दोनों की मृत्यु तक होने की सम्भावना होती है नवम पंचम हो तो  संतान हानि, दूसरी बारहवीं हो तो निर्धनता में जीवन निकलता है इनके आलावा शुभ  होती है 
  7. नाड़ी मिलान :- यह सबसे प्रमुख दोष है इसलिए इसे महादोष की संज्ञा दी गई है जिस प्रकार किसी को रक्त दान करने से पहले दोनो का ग्रुप मिलाया जाता है कि एक का रक्त दूसरे को अनुकूल रहेगा या नही उसी प्रकार नाड़ी दोष से देखा जाता है कि वर वधू के सम्बन्ध बनने के बाद दोनों का स्वास्थ्य कैसा रहेगा संतान सम्बन्धी कोई पीड़ा तो नही रहेगी ना।  इसका आधार जन्म नक्षत्र होता हैइस प्रकार गुण मिलान का संक्षिप्त विवेचन कर यह बताया गया है कि किस प्रकार गुण मिलान प्रक्रिया कार्य करती है, 
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Friday, 24 February 2017

विवाह में ग्रहों का महत्व

Posted by Dr.Nishant Pareek
विवाह में ग्रहों का महत्व
                
                          व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन पर ग्रहों का शुभ अशुभ प्रभाव जरूर पड़ता है तथा विवाह संस्कार पर यह प्रभाव जरूर देखने को मिलता है इसलिए यहाँ सरल भाषा में आप लोगों के लिए स्पष्ट किया जा रहा है कि  विवाह में ग्रह अपना क्या प्रभाव दिखाते है. कुंडली में कौनसा  ग्रह किस भाव में होने पर क्या प्रभाव डालता है।

विवाह में भूमिका निभाने वाले प्रमुख ग्रह :-
  • लग्न व उसका स्वामी 
  • राशि व उसका स्वामी 
  • षष्ठ भाव व उसका स्वामी 
  • सप्तम भाव व उसका स्वामी 
  • मंगल शुक्र तथा गुरु 
  • दूसरा पांचवा चौथा आठवां तथा बारहवां भाव व इनके स्वामी 
  • लग्न :-  बारह राशियों की तरह ही बारह लग्न भी होते है पहला भाव लग्न होता है यह पूर्व दिशा का कारक भी होता है लग्न से ही व्यक्ति के शरीर की बनावट स्वभाव तथा प्रकृति के विषय में ज्ञान होता है यदि इस पर किसी पापी ग्रह की दृष्टि हो या अथवा लग्न में कोई पापी ग्रह  बैठा हो तो लग्न निर्बल होता है जिस व्यक्ति का लग्न निर्बल होता है वह व्यक्ति अधिकतर रोगी रहता है चिड़चिड़े स्वभाव का होता है यदि इसके दोनों और अर्थात दूसरे तथा बारहवे भाव में पाप ग्रह  बैठे हो तो उसकी विद्या भी कमजोर होगी लग्न इतनी शुभ स्थिति में होगा तो वैवाहिक जीवन भी उतना ही सुखी होगा 
  • लग्नेश :-    लग्न भाव के स्वामी को लग्नेश कहते है यह किसी भी प्रकृति का हो व्यक्ति को शुभ फल ही देगा यदि पापी ग्रह भी हो तो उस कुंडली के लिए शुभ ही होगा परंतु इसका भी पाप ग्रह से पूरी तरह मुक्त होना जरुरी है न तो इस पर पाप ग्रह की दृष्टि हो और न ही कोई पाप ग्रह इसके साथ बैठा हो।  यदि ये पाप ग्रह से पीड़ित हुआ तो शुभ फल नही देगा 




  • राशि व उसका स्वामी :-    जातक के जन्म के समय चन्द्रमा जिस राशि में होता है वही उसकी राशि होती है राशि तथा उसके स्वामी से भी व्यक्ति के आचार विचार का ज्ञान होता है प्रत्येक राशि तथा उसके स्वामी का अलग अलग स्वभाव और प्रभाव होता है जिनका व्यक्ति  पर पूर्ण प्रभाव पड़ता है उससे जातक के स्वभाव के विषय में जान सकते है यदि राशि व उसका स्वामी पाप ग्रह से पीड़ित हुआ तो व्यक्ति के आचार विचार भी ख़राब होंगे राशि यदि लग्न में हो तो अधिक प्रभावशाली होती है सुखी दांपत्य जीवन के लिए राशि तथा उसके स्वामी का शुभ होना जरुरी है 
  •  सप्तम भाव :-   पहले भाव के सामने सातवां भाव होता है कुंडली में इससे जीवनसाथी  वैवाहिक सुख यौन संबंधों का कारक माना जाता है इन भाव से ही व्यक्ति के वैवाहिक जीवन के बारे में जाना जाता है इस भाव का नैसर्गिक कारक शुक्र होता है किसी भी तरह से यदि ये भाव पीड़ित होता है तो इसका पूरा प्रभाव व्यक्ति के जीवन साथी पर पड़ता है यदि इस भाव पर शनि का प्रभाव हो तो जातक का विवाह विलम्ब से होता है जीवन में नीरसता होती है जीवनसाथी नपुंसक भी हो सकता है क्योकि शनि एक नपुंसक ग्रह है यदि मंगल का प्रभाव हो तो जीवनसाथी की उम्र कम करता है जीवनसाथी उग्र स्वभाव का होता है राहु के प्रभाव से विवाह के बाद भी अन्य स्त्री से यौन सम्बन्ध बनाने से स्वास्थ्य प्रभावित होता है दो विवाह के योग बनाता है बुध के प्रभाव से भी नपुंसकता आती है शुक्र के प्रभाव से जीवनसाथी सम्भोग का अतिप्रिय होता है गुरु के प्रभाव से जीवनसाथी अच्छे आचार विचार वाला होता है सूर्य के प्रभाव से तलाक की स्थिति बनती है जीवनसाथी उग्र स्वभाव का होता है इसके अलावा यदि इस भाव में कोई शुभ ग्रह हो तो जीवन खुशियो से भरपूर होता है पाप ग्रह के प्रभाव से उसके स्वभाव के अनुसार विचारों में टकराव नोक झोक रोग पीड़ा अलगाव तलाक तथा मृत्यु भी हो जाती है यदि इसके दोनों ओर पाप ग्रह हो तो और भी अशुभ फल होता है 
  • सप्तमेश :-   जिस तरह से सुखी वैवाहिक जीवन के लिये सप्तम भाव शुभ होना जरुरी है उसी तरह से सप्तम भाव के स्वामी का भी शुभ होना जरुरी है यदि सप्तमेश किसी पाप ग्रह से पीड़ित हो तो वैवाहिक जीवन सुखी नही हो सकता यदि सप्तमेश शुभ ग्रह के प्रभाव में होतो जीवन में सदा  सुख बना रहता है 
  •  षष्ठ भाव व षष्ठेश :-  कुंडली में छठा भाव रोग और शत्रु का होता है इसलिए निरोगी रहने के लिए इस भाव का तथा उसके स्वामी का सूक्ष्म अध्ययन करना चाहिए यह भाव सप्तम भाव से बारहवां हो गया है किसी भी भाव के फल के लिए उससे बारहवे भाव को देखना चाहिए इसलिए वैवाहिक जीवन में सुख के लिए इस भाव तथा इसके स्वामी का शुभ होना आवश्यक है 
  •  गुरु:-   सुखी वैवाहिक जीवन के लिए लड़की की कुंडली में गुरु ग्रह का पाप ग्रह से मुक्त होना जरुरी है लड़की की कुंडली में गुरु विवाह संतान तथा पति का कारक होता है लड़के की कुंडली में गुरु विद्या तथा धन का कारक होता है गुरु के पाप पीड़ित होने पर सबसे पहले तो विवाह ही देर से होता है यदि सप्तमेश अथवा अन्य किसी कारण से विवाह समय पर हो गया तो संतान पक्ष बली करने के लिए तथा पति की लम्बी उम्र के लिए गुरु का पाप ग्रह से मुक्त होना जरुरी है 
  • शुक्र :-   गुरु की तरह ही शुक्र का भी सुखी वैवाहिक जीवन के लिए शुभ होना जरुरी है शुक्र को वैवाहिक जीवन तथा यौन संबंधों का मुख्य कारक होता है शुक्र के किसी भी तरह से पाप प्रभाव में होने पर लड़के या लड़की का अवैध संबंधों की तरफ मन होता है यदि शुक्र बली हो तो दाम्पत्य जीवन पूर्ण रूप से सुखी होता है परंतु यदि शुक्र पाप पीड़ित है तो बहुत अशुभ होता है यदि शुक्र के साथ मंगल भी बैठा हो तो व्यक्ति अति कामुक तथा सम्भोग के समय हिंसक होता है राहु या केतु यदि शुक्र के साथ बैठे हो तो अतिरिक्त सम्बन्ध होने की भी सम्भावना होती है यदि शुक्र सूर्य बुध या शनि के साथ बैठा हो तो व्यक्ति की यौन शक्ति कम करता है इसलिए विवाह के समय शुक्र का अच्छे से विचार करना चाहिए 
  • मंगल :-   विवाह हेतु कुंडली मिलान करते समय मंगल पर विशेष विचार किया जाता है मंगल का प्रभाव मांगलिक दोष के रूप में सामने आता है पहले चौथे सातवे आठवे बारहवे भाव में मंगल के होने  पर व्यक्ति मांगलिक होता है उसमे भी आठवे भाव के मंगल का विशेष विचार करना चाहिए  यह भाव जीवन साथी के लिए मारक होता है किसी लड़की की कुंडली में मंगल यदि अष्टम भाव में बैठा हो तो वह उसके लिए घातक होता है शास्त्रों के अनुसार अष्टम भाव का मङ्गल जीवन साथी की आयु कम करता है यदि कुण्डली में और भी अशुभ योग हो तो यह मंगल लड़की को विधवा अवश्य बनाता है इसलिए कुंडली मिलाते समय मंगल का सूक्ष्म विचार करना चाहिए
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Thursday, 23 February 2017

Vivah me gun kaise milaye / विवाह में कुंडली कैसे मिलाये

Posted by Dr.Nishant Pareek

Vivah me gun kaise milaye                                                           






 विवाह में कुंडली कैसे मिलाये
आजकल देखा जाता है की विवाह करने हेतु गुण मिलाने की परिपाटी एक औपचारिकता ही रह गई है बोलते नाम से गुण मिला कर विवाह कर दिया जाता है और विवाह के बाद परेशानी होने पर ज्योतिष को दोष दिया जाता है परंतु व्यक्ति खुद यह नही सोचता कि उसने कुंडली मिलान की प्रक्रिया को पूर्ण रूप से सम्पन्न ही नही किया तो वास्तविक तथ्यों का पता कैसे लगता कि वर वधु के बीच किस प्रकार का विचार सामंजस्य रहेगा।  नाम से गुण  मिलाना एक सामान्य प्रकिया है यदि वास्तविकता ही ज्ञात करनी है तो गुण  के साथ दोनों की कुंडली के ग्रहों का भी सुक्ष्म अध्ययन करना चाहिए जिससे दोनों के संबंधों की वास्तविक स्थिति का ज्ञान हो सके
          
            उपरोक्त विषय में कुंडली मिलाते समय निम्न बातों पर जरूर ध्यान देना चाहिए जिससे दाम्पत्य जीवन में आगे किसी प्रकार की समस्या नही आये :-

  •  नाम से गुण मिलाने के अलावा सोनो की कुंडली में लग्न और चन्द्रमा के परस्पर शुभ संबंध होने पर वर वधु एक दूसरे पर पूरा विश्वास करेंगे
  • कुंडली में बारहवें  के मालिक का भी अध्ययन करना चाहिए क्योकि इससे ही शैय्या सुख का ज्ञान होता है यदि यह पापी अवस्था में है तो व्यक्ति को अनेक प्रकार से शैय्या सुख प्राप्त होता है इसलिए यदि गुण मिलान के अलावा ये भी देखा जाये तो अच्छा जीवन व्यतीत हो सकता है 
  • दोनों की कुंडली में सप्तम भाव तथा उसके स्वामी को पूर्ण रूप से पाप मुक्त होना चाहिए तथा दोनों की कुंडली में इस भाव व उसके मालिक का परस्पर जितना अच्छा सम्बन्ध होगा दाम्पत्य जीवन उतना ही अच्छा होता है 


  • दोनों की कुंडली में आठवां भाव तथा उसके मालिक पर भी नजर डालनी चाहिए यह भाव अनेक तरह से प्रमुख होता है इस भाव से जीवन साथी की आयु देखी जाती है साथ ही इस भाव तथा बारहवें भाव से विदेश यात्रा भी देखी जाती है 




  • दोनों की कुंडली में लग्न भाव व उसके स्वामी तथा रोग अर्थात छठे भाव व उसके स्वामी का भी विशेष अध्ययन करना चाहिए इन भावों के स्वामी व भाव किसी भी पाप ग्रह के प्रभाव में नही होना चाहिए अथवा दोनों को किसी गंभीर बीमारी होने की सम्भावना तो नही है. कोई भी ज्योतिषी इस बात पर ध्यान नही देता है।  
  • लड़के लड़की की कुंडली में पंचम तथा नवम भाव तथा इनके स्वामी का भी विचार करना चाहिए यदि ये दोनों पाप ग्रह से पीड़ित हो तो संतान सम्बन्धी बाधा  के साथ भाग्य में भी रूकावट आती है 
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Tuesday, 21 February 2017

विवाह का सार्थक होना

Posted by Dr.Nishant Pareek

विवाह का सार्थक होना
विवाह के बिना कभी भी परिवार या समाज की कल्पना भी नही कर सकते. विवाह संस्कार के बाद ही परिवार तथा परिवार से समाज बनता है. लड़की शादी करके वंश की वृद्धि करती है,  उससे परिवार अनेक पीढियों तक चलता रहता है. यह सब विवाह पर ही आधारित है. विवाह को अनेक रूपों में देखा जाता है. विवाह के द्वारा लड़की  किसी लड़के को पत्नी के रूप में प्राप्त होती है. वो लड़का उस लड़की के साथ मिलकर परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाता है. लड़की को भी जीवन भर सुरक्षा का भरोसा मिल जाता है. विवाह के बाद जो परिवार बनता है . वही बच्चों का पहला विद्यालय होता है. परिवार में रह कर ही बच्चा अच्छे संस्कार प्राप्त करता है. इस तरह विवाह को अनेक रूपों में देखा जाता है,  समाज में विवाह के इतने महत्वपूर्ण होने पर ही मान्यता प्रदान की गई है.
विचार किया जाये तो क्या विवाह इसी तरह सार्थक होता है ?  परिवार बनाना,  बच्चे पैदा करना, से ही विवाह सार्थक नही होता. विवाह के बाद व्यक्ति पर अनेक जिम्मेदारियां आ जाती है. उन सभी जिम्मेदारियों की अच्छे से पूर्ति करने पर ही विवाह सार्थक होता है. विवाह के बाद व्यक्ति का आकलन इसी बात से किया जाता है कि उसने अपनी जिम्मेदारियों की पूर्ति किस प्रकार ईमानदारी से की है. ये जिम्मेदारियां माता पिता भाई बहन पत्नी बच्चों आदि से जुडी होती है. विवाह के साथ ही वैवाहिक जीवन भी आरम्भ हो जाता है  ये वैवाहिक जीवन व्यक्ति के विचार,  कार्यप्रणाली,  तथा व्यवहार को बहुत मात्रा में प्रभावित करता है. इसलिए विवाह को जीवन का महायज्ञ भी कहा है. इसमें व्यक्ति अपने सभी व्यक्तिगत स्वार्थ तथा विचारों की आहुति देता है. हिन्दू समाज में अग्नि के समक्ष फेरों का यही महत्व है. अग्नि में ऐसी शक्ति होती है जिससे सभी दोष जल के नष्ट हो जाते है. विवाह के बाद वैवाहिक जीवन में किसी भी तरह का दोष नही जाये इसलिए अग्नि द्वारा दोनों की शुद्धि की जाती है. ब्राह्मण द्वारा जो मंत्रों का उच्चारण किया जाता है उससे सभी दोषों का नाश होता है. दोनों से अनेक वचन लिए जाते है. इस प्रकार विवाह की सार्थकता होती है
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Sunday, 19 February 2017

विवाह की आयु

Posted by Dr.Nishant Pareek


विवाह किस आयु में करना चाहिए , यह बहुत ही सामान्य सा परंतु महत्वपूर्ण प्रश्न है. क्योकि इस बात पर सभी के विचार अलग अलग है.  हमारे समाज में विवाह की निश्चित आयु कभी एक नहीं रही. इसलिए बाल विवाह से लेकर आज 25 से 35 या उसे अधिक उम्र में भी विवाह करने के उदाहरण मिल जाते है. सरकार द्वारा भी समय के अनुसार विवाह की आयु परिवर्तित की जाती रही है. विवाह की आयु समय तथा समाज की परंपरा के अनुसार निश्चित की जानी चाहिए. किसी समय में बाल विवाह को ठीक समझा जाता था. लेकिन आज इसे एक कुरीति माना जाता है. आज के समय में व्यक्ति को जो समय ठीक लगता है उसी में विवाह कर लेता है यहाँ हम विवाह की आयु के विषय में विचार करते है की विभिन्न आयु में विवाह करने का क्या औचित्य हुआ करता है.
बचपन में किया गया विवाह बाल विवाह कहलाता है. आज यह कुरीति माना जाता है तथा क़ानूनी अपराध भी है. इसके बाद भी कभी कभी बाल विवाह देखने को मिल जाते है. ये विवाह 2-3 वर्ष की अवस्था में भी होता है. दूल्हा भी छोटी आयु का होता है. दोनों विवाह का मतलब भी नही समझते है. मुगल काल में लड़की का जन्म होते ही उसे या तो मार दी जाती थी या उसका बाल विवाह कर दिया जाता था. उस समय मजबूरी में यह विवाह किया जाता था. मुग़ल राजा अपनी जनसँख्या बढ़ाने के लिए ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करते थे. कुछ लोग मुगलों से अपनी बहन बेटी को बचाने के लिए भी उसका बाल विवाह करके उसकी सुरक्षा से मुक्त हो जाते थे. इस तरीके को सम्पूर्ण भारत में अपनाया जाने लगा. यह कुरीति मुगलों के बाद ब्रिटिश शासन में भी चलती रही. बाद में बाल विवाह के दुष्परिणामों को देख कर इन पर क़ानूनी रोक लगा दी गई. आज क़ानूनी रूप से तो बाल विवाह बंद है, परंतु फिर भी बहुत संख्या में बाल विवाह होते रहते है. कानून बनने के बाद विवाह की क़ानूनी आयु लड़की के लिए 16 तथा लड़के के लिए 18 वर्ष की आयु निश्चित की गई. कही पर इसे लड़की की 18 तथा लड़के की 21 वर्ष आयु को उचित माना गया. दोनों की उम्र में 2-3 साल का अंतर तो हमेशा देखा भी गया है. यह उम्र विवाह हेतु तर्कसंगत भी है. प्राचीन काल में ऋषि मुनि बालक को 25 वर्ष की आयु के बाद ही गृहस्थाश्रम में प्रवेश की आज्ञा दी जाती थी. कालांतर में 16 व 18 एवं इसके बाद 18 व 21 वर्ष की आयु को विवाह के लिए उचित माना गया. समय के साथ जो परिवर्तन आया वो परिस्थति के कारण ही आया होगा. विवाह के बाद पुरुष को परिवार चलाने का दायित्व निभाना पड़ता है. इसलिए ही उसकी आयु को लड़की की आयु से अधिक रखा गया है. लड़की की ये आयु भी गर्भधारण हेतु उचित मानी गई है. शरीर विज्ञानियों के अनुसार ये आयउ प्रजनन हेतु उत्तम है. आगे बड़ी उम्र में संतान उत्पत्ति में परेशानी आती है.
बेटा हो या बेटी, विवाह की आयु होने पर ही विवाह का प्रयास करें. प्रत्येक चीज की उपयोगिता उसके समय पर सिध्द होती है. समय पर विवाह करने पर योग्य जीवनसाथी प्राप्त होता है. अच्छा जीवनसाथी मिलने से दाम्पत्य जीवन में किसी तरह की समस्या नही आती और जीवन सुखद व आनंददायक होता है.
अधिक आयु होने पर कभी भी अच्छा जीवनसाथी नही मिलता. जब उम्र अधिक हो जाती है तो बाल भी पकने लग जाते है. तब किया हुआ विवाह ख़ुशी से नही होता अपितु समझौता होता है. मन को मार कर कर विवाह किया जाता है. अधिक उम्र में इसी बात पर जोर दिया जाता है कि किसी तरह से विवाह हो जाये। इस परिस्थिति में अधिकतर सम्बन्ध सामान्य नही रह पाते. अक्सर उनमे तनाव बना रहता है. अब न तो अलग हो सकते है और न ही आनंद से रह सकते है.
किसी मजबूरी में भी बाल विवाह नही करें. यह पाप और अपराध दोनों है. क्योकि बालपन में लड़के लड़की का तन और मन विवाह योग्य नही होता। उस समय उनका विवाह करने पर वो बंधन में तो बंध जाते है. परंतु विवाहित जीवन का महत्व न समझने के कारण उसे अच्छे से निर्वाह नहीं कर पाते।
        विवाह संबंध तय करते समय यह देख लेना चाहिए कि लड़के लड़की की उम्र में 3-4 वर्ष से अधिक का अंतर नही होना चाहिए , यदि अंतर अधिक होता है तो विचार नही मिलते है. और आजकल सम्बन्ध टूटने का यही सबसे बड़ा कारण है की हमारे विचार नही मिलते इसलिए हम साथ नही रह सकते. यदि साथ भी रहते है तो भी अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
लड़की का विवाह ३० वर्ष की आयु तक हो जाना चाहिए।  इससे अधिक उम्र में विवाह होने पर अनेक समस्याओ का सामना करना पड़ता है. इसमें सर्वप्रथम उत्तम वर की प्राप्ति नही होती, कई बार मन मार कर अधिक आयु अथवा सामान्य रूप रंग वाले लड़के से विवाह करके समझौता करना पड़ता है. जब मन मिले बिना शादी होती है तो दाम्पत्य सुख में बाधा अवश्य आती है. संतान उत्पत्ति में भी अनेक परेशानियां आती है. बहुत इलाज और दवाओं से संतान की प्राप्ति होती है, इनसब समस्याओं से बचने के लिए सही उम्र में शादी करनी चाहिए।
 

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