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Saturday, 25 February 2017

नाड़ी कूट का सरल एवम विस्तृत विवेचन

Posted by Dr.Nishant Pareek
नाड़ी  कूट का सरल एवम विस्तृत विवेचन 

   अष्टकूट मिलान में सबसे महत्वपूर्ण नाड़ी कूट को माना गया है।  नाड़ी मिलान जन्म नक्षत्र के आधार पर होता है आयुर्वेद के अनुसार मानव शरीर में तीन प्रकार की नाड़ी होती है जो विभिन्न गुणों का प्रतिनिधित्व करती है इनमे पहली नाड़ी आद्य नाड़ी होती है जो वायु प्रधान होती है दूसरी मध्य नाड़ी होती है जो पित्त प्रधान होती है तीसरी अन्त्य नाड़ी होती है जो कफ प्रधान होती है आद्य नाड़ी का चंचल व अस्थिर स्वभाव होता है मध्य नाड़ी का उष्ण स्वभाव होता है अन्त्य नाड़ी का शीतल स्वभाव होता है।  व्यक्ति के शरीर में वात पित्त कफ की संतुलित निश्चित मात्रा होती है जिस व्यक्ति में इन नाड़ियों में से जिस गुण की प्रधानता होती है वही उस व्यक्ति की नाड़ी होती है, स्वस्थ रहने के लिए वातिक जातक को वात प्रधान, पैत्तिक जातक को पित्त प्रधान तथा कफज जातक को कफ प्रधान वस्तुओं का सेवन करना हानिकारक होता है।  यदि देह में नाड़ियों का संतुलन बिगड़ जाये तो रोग पीड़ा उत्पन्न हो जाती है।  इसी तरह ज्योतिष में भी नाड़ियो के आधार पर प्राणी को तीन भागों में विभक्त किया गया है नाड़ी का सम्बन्ध व्यक्ति की शारीरिक धातु से होता है। इसलिए विवाह से पहले वर वधू का नाड़ी मिलान किया जाता है।  क्योकि  दोनों की एक ही नाड़ी होने पर संतान उत्पत्ति में बाधा आती है।


 




नाड़ी दोष विशेष :-   नाड़ी मिलान में मात्र दो ही स्थिति होती है या तो नाड़ी सामान होती है या फिर अलग अलग होती है।  इसलिए इस मिलान में पूर्ण ८ गुण मिलते है अथवा ० गुण मिलते है।  अर्थात वर वधू की अलग अलग नाड़ी हो तो शुद्ध नाड़ी मानी जाती है और यदि   समान नाड़ी हो तो अशुद्ध नाड़ी होती है जो अशुभ होती है. यह महादोष होता है।  ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नाड़ी दोष केवल ब्राह्मणों को लगता है नाड़ी  दोषस्तु विप्राणां  परन्तु अनुभव सिद्ध बात यह है कि यह दोष यदि अन्य जातियों के गुण मिलान में आया है तो उनके संतान उत्पत्ति में अवश्य बाधा आई है। 




नाड़ी दोष परिहार :- ज्योतिष शास्त्र में नाड़ी दोष के निम्न परिहार बताये गए है जो मेरे विचार से तो अत्यावश्यक हो तो ही उपयोग में लेने चाहिए।

यदि वर वधू का जन्म एक ही राशि व नक्षत्र में हो तो नाड़ी दोष का परिहार हो जाता है।  परंतु इसमें नक्षत्र चरण भेद अवश्य होना चाहिए। उसमे वधू के नक्षत्र का चरण वर के नक्षत्र चरण के बाद होना चाहिए।

वर वधू की राशि एक ही हो परंतु नक्षत्र अलग अलग हो परन्तु वधू का जन्म नक्षत्र वर के जन्म नक्षत्र के बाद होना चाहिए

वर वधू की राशि अलग हो परन्तु नक्षत्र एक ही हो किन्तु वधू की राशि वर की राशि के बाद की होनी चाहिए।  इस तरह से भी नाड़ी दोष का परिहार होता है।

यदि वर या कन्या का जन्म नक्षत्र आर्द्रा, रोहिणी , मृगशिरा , ज्येष्ठा , श्रवण , रेवती, या उत्तराभाद्रपद में से कोई है तो भी नाड़ी दोष नही लगता।

यदि वर कन्या के राशि स्वामी गुरु, बुध , अथवा शुक्र में से कोई हो तो भी नाड़ी दोष नही लगता है.
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Gun milan ki vyakhya / गुण मिलान की वैज्ञानिक व्याख्या

Posted by Dr.Nishant Pareek

Gun milan ki vyakhya                                                  



 गुण मिलान की वैज्ञानिक व्याख्या

प्राचीन विद्वानों ने वर वधू के सफल वैवाहिक जीवन के लिया मेलापक को महत्वपूर्ण माना है. मेलापक से वर वधू की शारीरिक व मानसिक स्थिति के साथ दोनों के विचार गुण अवगुण जनन शक्ति स्वास्थ्य शिक्षा व संभावित आर्थिक स्थिति आदि के बारे में जान सकते है, मेलापक का आधार ३६ गुण  है. विवाह के लिए काम से काम १८ गुण मिलने चाहिए. इसके अतिरिक्त और भी कुछ विशेष नियम है जिनके होने पर गुण मिलने के बाद भी विवाह नही होता,
   भारतीय ज्योतिष में शरीर को लग्न व चन्द्रमा को मन माना गया है. ज्योतिष में राशि का प्रमुख आधार चन्द्रमा ही है , इसलिए गुण मिलान के लिए ८ में से ४ को चंद्र अर्थात जन्म राशि को ही आधार बनाया है शेष ४ को जन्म नक्षत्र का आधार बनाया है , नक्षत्र का आधार भी चन्द्रमा ही होता है  लड़के लड़की के गुण का मिलान ८ क्षेत्रों से किया जाता है इन क्षेत्रों को ज्योतिष में अष्टकूट कहते है इस अष्टकूट के आधार पर ही निश्चय किया जाता है कि विवाह शुभ होगा या नही।  अष्टकूट में राशि के आधार पर कुल १५ गुण  प्राप्त होते है तथा नक्षत्र के आधार पर २१ गुण  प्राप्त होते है



  1. वर्ण मिलान :-    वर्ण मिलान राशि के आधार पर होता है वर्ण ४ होते है १२ राशियों में ३ =३ राशियों पर एक वर्ण प्रतिनिधित्व करता है वर्ण मिलान से लड़के लड़की की अहम् भावना देखी जाती है जल तत्त्व राशि का ब्राह्मण वर्ण होता है अग्नि तत्त्व राशि का क्षत्रिय वर्ण होता है पृथ्वी तत्त्व राशि का वैश्य वर्ण होता है तथा वायु तत्त्व राशि का शुद्र वर्ण होता है 





  1. वश्य मिलान :-   वश्य मिलान राशि के आधार पर होता है वश्य मिलान से दोनों के परस्पर लगाव तथा आकर्षण का ज्ञान किया जाता है वश्य  चतुष्पद द्विपद जलचर वनचर तथा कीट संज्ञक होता है 
  2. तारा मिलान :-   तारा मिलान जन्म नक्षत्र के आधार पर होता है इससे होने वाले पति पत्नी के स्वास्थ्य के विषय में ज्ञान किया जाता है प्रत्येक नक्षत्र से  १० वें तथा १९वें नक्षत्र का स्वामी एक ही ग्रह होता है जिस नक्षत्र में जातक  जन्म होता है वह जन्म नक्षत्र, उससे १० वा अनुजन्म नक्षत्र तथा उससे १९ वा त्रि जन्म नक्षत्र कहलाता है 
  3. योनि मिलान :- योनि मिलान जन्म नक्षत्र से होता है योनि मिलान द्वारा भावी वर वधु की परस्पर शारीरिक संतुष्टि देखी जाती है मिलान हेतु १४ योनियों को २७ नक्षत्रों में विभाजित किया गया है जन्म नक्षत्र से यह ज्ञात हो जाता है कि लड़का लड़की किस नक्षत्र के है तथा उन १४ योनियों में ही आपस में दोनों के नक्षत्रों से गणना करके योनि का निर्धारण किया जाता है 
  4. ग्रह मैत्री :- ग्रह मैत्री से वर वधू के परस्पर बौद्धिक व आध्यात्मिक सम्बन्धों का ज्ञान होता है ग्रह मिलान का आधार राशि होता है वर वधू के राशि स्वामी ग्रह की आपसी मित्र सम शत्रुता के आधार पर मैत्री का निर्धारण किया जाता है 
  5. गण मिलान :- गन मिलान का आधार जन्म नक्षत्र होता है।  इससे वर वधू के स्वभाव के बारे में पता लगता है २७ नक्षत्रों को ३ गणों में विभाजित किया गया है ये देवगण, मनुष्य गण , तथा राक्षस गण  के नाम से जाने जाते है ये सतोगुणी तमोगुणी तथा रजोगुणी होते है व्यक्ति का जो गण होता है उसी के अनुरूप उसका स्वभाव होता है।  
  6. भकूट मिलान :-  भकूट मिलान से वर वधू के होने वाले परिवार एवम बच्चों के साथ पारिवारिक मेलजोल के बारे में जाना जाता है इसका आधार जन्म राशि होता है इससे ज्ञात किया जाता है कि वर वधू की राशियाँ आपस में कितनी दूरी पर है भकूट मिलान में यदि दोनों की राशियां आपस में छठी और आठवी में तो दोनों की मृत्यु तक होने की सम्भावना होती है नवम पंचम हो तो  संतान हानि, दूसरी बारहवीं हो तो निर्धनता में जीवन निकलता है इनके आलावा शुभ  होती है 
  7. नाड़ी मिलान :- यह सबसे प्रमुख दोष है इसलिए इसे महादोष की संज्ञा दी गई है जिस प्रकार किसी को रक्त दान करने से पहले दोनो का ग्रुप मिलाया जाता है कि एक का रक्त दूसरे को अनुकूल रहेगा या नही उसी प्रकार नाड़ी दोष से देखा जाता है कि वर वधू के सम्बन्ध बनने के बाद दोनों का स्वास्थ्य कैसा रहेगा संतान सम्बन्धी कोई पीड़ा तो नही रहेगी ना।  इसका आधार जन्म नक्षत्र होता हैइस प्रकार गुण मिलान का संक्षिप्त विवेचन कर यह बताया गया है कि किस प्रकार गुण मिलान प्रक्रिया कार्य करती है, 
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