Sunday 2 February 2020

kala sarpa dosh kaise banta hai kundli me, kitne prakar ka hota hai / कालसर्प दोष कैसे बनता है कुंडली में, जानिए इस लेख में.......

Posted by Dr.Nishant Pareek
कालसर्प दोष कैसे बनता है कुंडली में।  कितने प्रकार का होता है।  जानिए इस लेख में.......








ज्योतिष शास्त्र की प्राचीन परंपरा में कालसर्प दोष का उल्लेख कहीं भी प्राप्त नहीं होता। लेकिन आज के समय में कुछ नवीन ज्योतिषी इस दोष की चर्चा बडे जोर शोर से कर रहें है। और इसे शांत करने के भी नित नवीन उपाय खोज रहे है। जो लोग स्वयं को इससे प्रभावित मानते है। उनके लिये यह लेख लिखा जा रहा है-
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राहु केतु को छाया ग्रह माना गया है। इसलिये इनका प्रभाव अप्रत्यक्ष रूप से पडता है। राहु का स्वभाव-प्रभाव शनि के समान माना गया है तथा केतु का स्वभाव-प्रभाव मंगल के समान माना गया है। ये दोनों ग्रह एक ही देह के दो भाग है। राहु को सिर तथा केतु को धड की संज्ञा दी गई है। इस तरह से राहु नामक सिर में विचार करने की शक्ति तो है परंतु वह उसे क्रियाशील करने में असमर्थ है। यह जिस भाव में बैठता है उसके स्वामी, उस भाव में बैठे ग्रह अथवा जहां उसकी दृष्टि होती है उस राशि, ग्रह तथा भाव को अपनी वैचारिक शक्ति से प्रभावित करता है। इसलिये राहु की दशा में व्यक्ति उल्टे काम ज्यादा करके दर दर की ठोकरे खाता रहता है। क्योंकि राहु का प्रभाव उसकी विचार शक्ति को प्रभावित करता है।
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केतु जिस भाव में बैैठता है उस राशि, राशि स्वामी, उसे देखने वाले ग्रहों के प्रभाव में आकर कार्य करता है। केतु का स्वभाव प्रभाव मंगल के समान माना गया है तो उस हिसाब से मंगल की तरह ही इसका प्रभाव भी आक्रामक और विस्फोटक होता है। इसकी दशा में व्यक्ति भ्रमित होकर कार्य करता है।

सारांश है कि राहु जिस ग्रह के साथ बैठता है, उसके माध्यम से अपने कार्य करवाता है। और केतु जिस ग्रह के साथ बैठता है, उसके अनुसार कार्य करता है। राहु जिस ग्रह के साथ बैठा हो या संपर्क में हो यदि उस ग्रह के अंश राहु से कम हुये तो राहु का प्रभाव अधिक होगा। यदि उस ग्रह के अंश राहु से अधिक हुए तो उस ग्रह का प्रभाव अधिक होगा। राहु का प्रभाव न्यून हो जायेगा। और कालसर्प दोष का प्रभाव भी कम हो जायेगा।
कालसर्प दोष राहु से केतु और केतु से राहु की ओर बनता है।
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इसमें विशेष बात यह है कि राहु से केतु की तरफ बनने वाले कालसर्प दोष का ही प्रभाव होता है। केतु से राहु की तरफ बनने वाले दोष का प्रभाव नहीं होता है।

कैसे बनता है कालसर्प दोषः-

                         सैद्धान्तिक रूप से यदि कालसर्प दोष की विवेचना की जाये तो कुंडली में राहु केतु हमेशा आमने सामने बैठे होते है। अन्य सभी ग्रह इनके बीच में अर्थात् प्रभाव क्षेत्र में आ जाते है तो वे अपने प्रभाव से निष्प्रभाव होकर राहु केतु के चुम्बकीय प्रभाव में आ जाते है। राहु केतु हमेशा वक्री चलते हैै। इनमें वाम गोलार्ध तथा दक्षिण गोलार्ध, दो स्थितियां बनती है। राहु का बायाॅ भाग काल कहलाता है। इसलिये राहु से केतु की तरफ बनने वाला योग कालसर्प दोष कहलाता है। इसमें ये भी निश्चित बात है कि कालसर्प दोष पूर्व जन्म के कर्माे के कारण या पितृदोष के कारण बनता है।

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किसी की भी कुंडली में कालसर्प दोष का निर्धारण बहुत सावधानी से करना चाहिये। अन्यथा जातक की दशा बिगडने में समय नहीं लगता। केवल राहु- केतु के बीच में ग्रह होने से ही कालसर्प दोष सिद्ध नहीं हो जाता। इस विषय में अनेक तथ्यों पर विचार करके दोष के होने की घोषणा की जाती है।

इसमें सबसे पहले इस बात का विचार करना चाहिये कि कालसर्प दोष किस भाव से किस भाव तक बन रहा है। ग्रहों की क्या स्थिति है। युति अर्थात एक साथ कौन कौन से ग्रह किस अवस्था में बैठे हुये है। यदि राहु के साथ दूसरा कोई ग्रह बैठा हुआ है तो उसका बल राहु से कम है या अधिक है। यदि राहु का बल कम हुआ तो कालसर्प दोष स्वतः ही भंग हो जायेगा। यदि कोई ग्रह राहु केतु से चक्र से बाहर है तो भी कालसर्प दोष भंग माना जाता है।
एक विशेष बात यह भी है कि कालसर्प दोष सदैव दुखदायी नहीं होता है। कभी कभी ये इतने अनुकूल होते है कि व्यक्ति को संसार के सातों सुख प्रदान करते है। अनेक महापुरूषों की कुंडली में कालसर्प दोष पाया गया है। परंतु एक बात ये भी है कि उनके जीवन में कोई न कोई एक भाग अंधकारमय रह जाता है।

कालसर्प दोष से भयभीत होने की जरूरत नहीं है। कुंडली में कुछ शुभ योग होते है जैसे पंचमहापुरूष योग, गजकेसरी योग, बुधादित्य योग, आदि जो कालसर्प दोष को निष्फल कर देते है।

यदि परिवार के किसी एक व्यक्ति की कुंडली में काल सर्प दोष है तो यह निश्चित बात होती है कि अन्य सदस्यों की कुंडली में भी कालसर्प दोष पाया जाता है। क्योंकि यह पूर्वजों द्वारा दिया गया ऋण है। जो कि अनुबंध की तरह सभी को प्राप्त होेता है। इसलिये इसे पितृदोष भी कहा जाता है।

कभी कभी कालसर्प दोष के नाम पर किसी ज्योतिषी द्वारा इतना डरा दिया जाता है कि जातक की रातों की नींद तक उड जाती है। जबकि कुंडली में कालसर्प दोष होता ही नहीं है अथवा इतना न्यून होता है कि उसका निवारण बहुत आसानी से किया जा सकता है। अतः किसी योग्य ज्योतिषी से इसका निर्धारण करवाकर समाधान करवाना चाहिये।

कालसर्प दोष कुल 288 प्रकार के होते है। लेकिन इनमें भी कुंडली के बारह भावों के आधार पर बारह कालसर्प दोष प्रमुख होते है। जिनका विवरण इस प्रकार है-

1 अनन्त कालसर्प दोषः- कुंडली के पहले भाव से सातवें भाव तक बनने वाले योग को अनन्त कालसर्प दोष कहा जाता है। इसके प्रभाव से जातक को मानसिक अशांति, अस्थिर जीवन, बुद्धि में कुटिलता, सम्मान की हानि, वैवाहिक जीवन में झगडे, आदि प्रभाव देखने को मिलते है। जीवन में उन्नति करने के लिये बहुत संघर्ष करना पडता है। ऐसा व्यक्ति जीवन भर मानसिक पीडा और अशांति से ग्रस्त रहता है।

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2 कुलिक कालसर्प दोषः- कुंडली के दूसरे भाव से आठवें भाव तक बनने वाले योग को कुलिक कालसर्प दोष कहते है। यह योग व्यक्ति की तबीयत को लगभग खराब ही रखता है। जीवन भर पैसे की कमी से जूझता रहता है। बोली कडवी होती है। जिससे सदैव झगडे की स्थिति बनी रहती है। परिवार वाले विरोधी हो जाते है। जगह जगह अपमान होता है। यदि दोष में अधिक प्रबलता हो तो शादी देर से होती है तथा तलाक तक की नौबत आ जाती है।
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3 वासुकि कालसर्प दोषः- तीसरे भाव से नवें भाव तक जो योग बनता है। वह वासुकि कालसर्प दोष कहलाता है। इसके कारण व्यक्ति को परिवार का विरोध, भाई बहनों से शत्रुता, दोस्तों से धोखा, किस्मत का साथ न मिलना, कार्यक्षेत्र में अवरोध, दिमाग में नास्तिक विचार, कानूनी अडचनें आती है। पैसे तो आते है परंतु कोई न कोई लांछन जरूर लगता है। समाज में सम्मान पाने के लिये उसे बहुत संघर्ष करना पडता है।

4 शंखपाल कालसर्प दोषः- चैथे भाव से दसवें भाव तक जो योग बनता है। वह शंखपाल कालसर्प दोष कहलाता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति के कार्यक्षेत्र में अनेक बाधायें आती है। उसका अध्ययन बीच में ही अटक जाता है। अपने साथ काम करने वाले अथवा अपने नीचे काम करने वाले लोगों से परेशानी आती है। व्यापार में घाटा होता है। वाहनों में नुकसान होता है। धन की स्थिति इतनी बिगड जाती है कि भिखारी जैसी हालत हो जाती है।
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5 पद्य कालसर्प दोषः- पांचवें भाव से ग्यारहवें भाव तक राहु केतु के होने से पद्य नामक कालसर्प दोष बनता है। इसके प्रभाव से संतान उत्पत्ति में परेशानी आती है अथवा संतान सुख से वंचित रहना पडता है। संतान दूर रहती है। अथवा अन्य किसी कारण से संतान का सुख नहीं मिल पाता। यौन रोग की पीडा होती है। कुछ असाध्य रोग होने की संभावना रहती है। जिनके इलाज में बहुत अधिक पैसा खर्च होता है। किसी तरह की दुर्घटना होती है तथा हाथों में रोग पीडा होती है। पत्नी तथा दोस्तों से धोखा मिलता है। जुए सटटे में सब कुछ नाश हो जाता है। विद्याध्ययन में परेशानी आती है। पढाई अधूरी भी रह जाती है। जिस व्यक्ति पर सबसे अधिक विश्वास करते है। वही धोखा देता है। सुख की हमेशा कमी रहती है। जीवन संघर्षमय रहता है।

6 महापद्य कालसर्प दोषः- छठे भाव से बारहवें भाव तक बनने वाला दोष महापद्य कालसर्प दोष कहलाता है। इसके प्रभाव से अपने जीवन साथी से विवाद, संबंध विच्छेद, चरित्र की हानि, शत्रुओं से हार, का सामना करना पडता है। निरंतर घुमक्कड प्रवृति बनी रहती है। आत्मबल निर्बल हो जाता है। बहुत कोशिश के बाद भी रोगपीडा से छुटकारा नही मिलता है। छुपे हुये शत्रु हानि करते रहते है।

7 तक्षक कालसर्प दोषः- सातवें भाव से पहले भाव तक बनने वाला यह दोष तक्षक नामक कालसर्प दोष कहलाता है। इसका सबसे अधिक प्रभाव वैवाहिक जीवन पर और स्थाई सम्पत्ति पर पडता है। व्यक्ति के शत्रु हमेशा उसके पीछे पडे रहते है। अनेक असाध्य गुप्त रोग हो जाते है। उन्नति में बाधायें आती है। किसी न किसी तरह से मानसिक अशांति बनी रहती है।

8 कर्काेटक कालसर्प दोषः- आठवें भाव से बारहवें भाव तक बनने वाला योग कर्काेटक कालसर्प दोष कहलाता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति अनेक रोगों और दुर्घटनाओं से घिरा रहता है। उपरी बाधायें प्रभावित रहती है। धनहानि, कार्यक्षेत्र में हानि, अफसरों से मनमुटाव, पद में अवनति, मित्रों से हानि, तथा साझेदारी में धोखा मिलता है। रोग पीडा प्रभावी होती है। शरीर के किसी अंग का आपरेशन होता है। जहर का प्रभाव हो जाता है। तथा अकाल मृत्यु के योग बन जाते है।

9 शंखनाद अथवा शंखचूड कालसर्प दोषः- नवें भाव से तीसरे भाव तक बनने वाला योग शंखनाद अथवा शंखचूड कालसर्प दोष कहलाता है। इसके प्रभाव से भाग्य का नाश होता है। व्यापार में हानि तथा परिवार में मनमुटाव हो जाता है। अधिकारियों से विरोध मिलता है। सरकारी कार्य अटकते है। सुख में कमी रहती है।

10 पातक कालसर्प दोषः-
दसवें भाव से चौथे  भाव तक बनने वाला योग पातक कालसर्प दोष कहलाता है। इसके प्रभाव से व्यापार-नौकरी आदि कार्यक्षेत्र में हानि होती है। संतान को रोग होता है। राहु की दशा में माता पिता अथवा दादा दादी का वियोग झेलना पड सकता है।

11 विषधर अथवा विषाक्त कालसर्प दोषः- ग्यारहवें भाव से पांचवें भाव तक बनने वाला योग विषधर अथवा विषाक्त कालसर्प दोष कहलाता है। इसके प्रभाव से आंखों के रोग, हदय रोग, भाइयों से बैर, अनिद्रा रोग, आदि पीडा होती है। व्यक्ति को अपने जन्म स्थान से दूर रहना पडता है। किसी दीर्घ रोग का सामना करना पडता है।

12 शेषनाग कालसर्प दोषः- बारहवें भाव से छठे भाव तक बनने वाले योग को शेषनाग कालसर्प दोष कहते है। इसके प्रभाव से व्यक्ति को गुप्त शत्रु हानि पहुंचाते है। जीवन में अनेक लांछन लगते है। आंखों का आॅपरेशन होता है। कोर्ट कचहरी के चक्कर लगते है।

इस प्रकार 12 प्रकार के कालसर्प दोषों का विवेचन किया गया है। जिस व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प दोष होता है। उसे अपने जीवन में कुछ लक्षण प्रतीत होते है। जो इस प्रकार है-

कालसर्प दोष के लक्षणः-

जिस व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प दोष होता है उसे अधिकतर अपने सपने में सांप दिखाई देते है। व्यक्ति बहुत परिश्रम करने के बाद भी सफल नहीं होता। किसी न किसी मानसिक तनाव से घिरा रहता है। सही समय पर सही निर्णय नहीं ले पाता। बिना बात ही लोगों से शत्रुता हो जाती है। गुप्त शत्रु सक्रिय होकर काम अटकाते है। पारिवारिक जीवन कलह से परिपूर्ण होता है। विवाह में देरी होती है। वैवाहिक जीवन में तनाव बना रहता है।
कालसर्प दोष का प्रभावी समयः- व्यक्ति के जीवन में कालसर्प दोष का प्रभाव निम्न समयों पर अधिक रूप से प्रभावी होता है-

1 राहु की महादशा, अंतरदशा, प्रत्यंतर में, अथवा सूर्य तथा मंगल की अंतरदशा में।
2 जीवन के मध्यकाल लगभग 40 से 45 वर्ष की उम्र के मध्य।
3 ग्रह गोचर में जब कालसर्प दोष बने।
इन अवस्थाओं में कालसर्प दोष सबसे अधिक प्रभाव दिखाता है। व्यक्ति को इस समय शारीरिक मानसिक पारिवारिक व्यापारिक आर्थिक सामाजिक कष्ट होते है।

इसकी शांति के उपाय विस्तृत रूप से अगले लेख में दिये गए है. 

कालसर्प दोष की उज्जैन में नदी  किनारे विधिविधान से शांति कराने हेतु सम्पर्क करें '

डॉ निशांत पारीक -9829364953
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