Wednesday 19 June 2019

Ek gotra me shadi kyo nahi karni chahiye.| एक गोत्र में शादी क्यूँ नहीं करनी चाहिए। जानिए वैज्ञानिक कारण..!

Posted by Dr.Nishant Pareek
एक गोत्र में शादी क्यूँ नहीं  करनी चाहिए।  जानिए वैज्ञानिक कारण..!

 आपने अपने जीवन में जरूर सुना होगा कि समान गोत्र में शादी नहीं करनी चाहिए। आज की जनरेशन समझती  हैं कि ये बात  मर्यादा को कायम रखने के लिए कर रहे हैं। जबकि वास्तविकता कुछ और ही है।  कई चीजें हमारे समाज में ऐसी होती हैं जिनका कोई ठोस वैज्ञानिक कारण नहीं होता है। लेकिन वो होती जरूर।   ऐसी  ही एक  परम्परा  है समान गोत्र में शादी ना करना।






 गोत्र क्या होता है:-

गौत्र शब्द का अर्थ होता है वंश या कुल। गौत्र  का प्रमुख  उद्देश्य किसी व्यक्ति को उसके मूल आधारभूत प्रथम   व्यक्ति से जोड़ना है। विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप- इन सप्तऋषियों और आठवें ऋषि अगस्ति की वंश परम्परा 'गौत्र' कहलाती है। ब्राह्मणों के विवाह में गौत्र का बड़ा महत्व है।


अलग होना चाहिए तीन पीढ़ियों का गोत्र:-

हिंदू धर्म में प्राचीनकाल से यह परम्परा है कि विवाह के समय  लड़का और लड़की का गोत्र एक दूसरे के साथ और माता पिता के गोत्र के साथ तो मिलना ही नहीं चाहिए। साथ ही लड़के-लड़की का गोत्र नानी और दादी के गोत्र से भी नहीं मिलना चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि शादी के लिए तीन पीढ़ियों का गोत्र अलग होना चाहिए। जब ऐसा होता है तभी शादी की जाती है। गोत्र मिलने पर दो लोग भाई-बहन के रिश्ते के बंध जाते हैं। अगर देखा जाए तो जाति का महत्व गोत्र के सामने कुछ नहीं है। यानि कि अगर लड़का और लड़की का गोत्र अलग है और जाति समान है तो भी वो विवाह कर  सकते हैं। किसी तरह की कोई परेशानी नहीं आती।

 इस विषय में विज्ञान क्या कहता है:-

हमारी भारतीय संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एक ही गौत्र या एक ही कुल में विवाह करना पूरी तरह वर्जित  है। विज्ञान कहता है कि एक ही गोत्र में शादी करने का सीधा असर संतान पर पड़ता है। एक ही गौत्र या कुल में विवाह होने पर संतान वंशानुगत रोग या दोष के साथ उत्पन्न होती है। ऐसे दंपत्तियों की संतान में एक सी विचारधारा, पसंद, व्यवहार आदि में कोई नयापन नहीं होता। साथ ही ऐसे बच्चों में रचनात्मकता का अभाव होता है। कई शोध में यह भी ज्ञात हुआ है कि एक ही गोत्र में शादी करने पर अधिकांश दंपत्तियों की संतान मानसिक रूप से विकलांग, नकरात्मक सोच वाले, अपंगता और अन्य गंभीर रोगों के साथ जन्म लेती है। इसलिए एक ही गोत्र में शादी नहीं करनी चाहिए।

   एक दिन डिस्कवरी नामक चैनल पर वंशानुगत रोगों  से सम्बन्धित एक ज्ञानवर्धक कार्यक्रम था। उस प्रोग्राम में एक अमेरिकी वैज्ञानिक ने कहा की वंशानुगत  बीमारी न हो  इसका एक ही उपाय  है  और वो है "सेपरेशन ऑफ़ जींस" मतलब  गुणसूत्रों का विभाजन। अपने नजदीकी रिश्तेदारो में  विवाह नही करना चाहिए क्योकि नजदीकी रिश्तेदारों में जींस सेपरेट गुणसूत्रों का विभाजन नही हो पाता और जींस लिंकेज्ड बीमारियाँ जैसे हिमोफिलिया, कलर ब्लाईंडनेस, और एल्बोनिज्म होने की शत प्रतिशत सम्भावना होती है ..
फिर बहुत ख़ुशी हुई जब उसी कार्यक्रम में ये दिखाया गया की आखिर "हिन्दूधर्म" में  हजारों-हजारों सालों पहले जींस और डीएनए के बारे में कैसे लिखा गया है ?  हिंदुत्व में गोत्र होते है और एक गोत्र के लोग
आपस में शादी नही कर सकते ताकि जींस सेपरेट (विभाजित) रहे.. उस वैज्ञानिक ने कहा की आज पूरे विश्व को मानना पड़ेगा की "हिन्दूधर्म ही" विश्व का एकमात्र ऐसा धर्म है जो "विज्ञान पर आधारित" है और आज का विज्ञान प्राचीन हिन्दू धर्म  सिद्धांतों पर चलता है।
  

स्वस्थ संतान के लिए गोत्र से दूर विवाह करे:-

आधुनिक विज्ञान कहता है कि स्त्री-पुरुष के गोत्र में जितनी अधिक दूरी होगी उसकी संतान उतनी ही स्वस्थ, प्रतिभाशाली और गुणी पैदा होगी। उनमें आनुवंशिक रोग होने की संभावनाएं कम से कम होती हैं। उनके गुणसूत्र बहुत मजबूत होते हैं और वे जीवन-संघर्ष में सपरिस्थितियों का दृढ़ता के साथ मुकाबला करते हैं। इन कारणों से शास्‍त्रों में एक ही गोत्र में विवाह करने की मनाही है। कहा जाता है कि वर और कन्‍या के एक ही गोत्र में विवाह करने से उनकी संतान स्‍वस्‍थ नहीं होती है एवं उसे कोई ना कोई कष्‍ट झेलना ही पड़ता है। किसी न किसी पारिवारिक रोग से पीड़ा जरूर होती है।
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