Kalsarp yog or rahu ketu
कालसर्प योग और राहु केतुः-
काल और सर्प शब्द के मिलने से जो योग ज्योतिष शास्त्र में बनता है, वह कालसर्पयोग कहलाता है। जो कि किसी की भी कुंडली में सर्वाधिक चर्चित बिन्दुओं में एक है। स्वाभाविक है कि ज्योतिषशास्त्र के आरंभ से आजतक कालसर्पयोग विभिन्न रूपों से व्यक्ति को उद्विग्न करता आ रहा है। इस परिदृश्य में सत्य और असत्य, पाखण्ड आदि भी सम्मिलित है।
राहु केतु को छायाग्रह माना गया है। जो कि कालसर्पयोग के दो ध्रुव हैं। इसलिये सबसे पहले इनका प्रारंभिक ज्ञान आवश्यक है। जब समस्त ग्रह राहु और केतु की धुरी के एक ओर हों तथा शेष भाग ग्रह से रिक्त हो तो कालसर्पयोग का निर्माण होता है। राहु और केतु हमेशा एक दूसरे से सात राशि की दूरी पर रहते है। इनमें 180 अंश का अन्तर होता है। राशि चक्र 360 अंश का होता है। यदि सभी ग्रह 180 अंश के क्षेत्र, अर्थात् राहु एवं केतु की धुरी के एक तरफ हों, तो दूसरा 180 अंश का क्षेत्र खाली होगा। कुंडली में इस ग्रह स्थिति को ही कालसर्पयोग कहते है। इस ग्रहयोग के निर्माता राहु एवं केतु का संक्षिप्त परिचय भी देना आवश्यक है-
राहु-केतु का परिचयः-
यह मान्यता है कि राहु-केतु ग्रह नहीं, छायाग्रह हैं। किसी भी दूरदर्शी यन्त्र से इन्हें देखना असम्भव है। जनमानस के मस्तिष्क में इनके विषय में अनेक प्रश्न हैं। इन छायाग्रहों के मूल ग्रह कौन हैं? ग्रहछाया का अस्तित्व किस रूप में है, जिसे राहु अथवा केतु कहा गया है ? इनके उत्तर भी बहुत ही चिन्तनीय है। सूर्य के मार्ग को जिन दो बिन्दुओं पर चंद्र का मार्ग काटता है उसका उपरिवर्ती बिन्दु राहु तथा निम्नवर्ती बिन्दु केतु कहा जाता है। पृथ्वी 365 दिनों में सूर्य की एक परिक्रमा पूर्ण करती है, चंद्रमा 24 घंटे में पृथ्वी की एक परिक्रमा करता है। आभास यह होता है कि सूर्य एवं चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे हैं। जैसे रेलगाड़ी स्टेशन की दिशा में गतिशील हो अथवा स्टेशन रेलगाड़ी के समीप आने लगे, प्रतीत एक जैसा होगा।
इसी प्रकार पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा अथवा पृथ्वी की सूर्य द्वारा परिक्रमा एक जैसी आभासित होगी। सूर्य एवं चन्द्रमा की कक्षा परस्पर जिस स्थल पर कटती है। अथवा इन प्रकाश पुंज ग्रहों की कक्षाओं का प्रभाव क्षेत्र राहु एवं केतु नाम से विख्यात है।
राहु-केतु छायाग्रहों की मानव जीवन में अत्यन्त प्रभावकारी भूमिका है। जीवन के 25 वर्ष इन छायाग्रहों के आधिपत्य में रहते हैं। 18 वर्ष राहु की महादशा तथा 7 वर्ष केतु की महादशा में व्यतीत होते हैं। साथ ही अन्य सूर्यादि ग्रहों की दशा के मध्य अंतर्दशा व प्रत्यंतर दशा में भी राहु-केतु की दशा आती ही है। यह समय वर्ष 9 माह 15 दिन का है। व्यक्ति के जीवन में कुल 44 वर्ष 9 माह 15 दिन की अवधि राहु केतु के प्रभाव में होती है। इसलिये इन छायाग्रहों की वास्तविक क्षमता और शक्ति की असीमित है। अनेक प्रकार की शुभ अशुभ स्थितियाँ इनकी शक्ति से बनती बिगडती है। इनके द्वारा निर्मित अतिविशिष्ट ग्रह व्यवस्था को कालसर्पयोग संज्ञा देना उचित ही है।