Monday, 11 May 2020

Chothe bhav me shukra ka shubh ashubh samanya fal/ चौथे भाव में शुक्र का शुभ अशुभ सामान्य फल

Posted by Dr.Nishant Pareek

Chothe bhav me shukra ka shubh ashubh samanya fal


चौथे भाव में शुक्र का शुभ अशुभ सामान्य फल


         शुभ फल : प्राय: सभी शास्त्रकारों ने चतुर्थभावस्थ शुक्र के फल शुभ बतलाए हैं। इनका अनुभव पुरुषराशियों में मिलता है। चतुर्थभावस्थ शुक्र होने से जातक शरीर से सुन्दर, स्वभाव से परोपकारी होता है। व्यवहारदक्ष, प्रसन्न, वाचाल और पराक्रमी होता है। मन से उदार और दूसरे का हित चाहने वाला होता है। धर्म-कार्य के प्रति आस्था रहती है। चित्त पूजा तथा उत्सव के कार्यों में बहुत लगता है। देवताओं का भक्त तथा पूजक होता है। सदैव आनन्द में रहनेवाला होता है। सदा एक समान ही रहता है। किसी की प्रसन्नता से जातक का चित्त हर्षोल्लास से प्रफुल्लित नहीं होता है। और किसी को रुष्टता या अप्रसन्नता से जातक का चित विकृत या खिन्न नहीं होता है। बुद्धि तथा विद्या प्राप्त होती हैं। 

चौथे स्थान में शुक्र होने से जातक लोगों द्वारा अधिक सम्मान पाता है। महान् पूजनीय होता है। योगिजन वृत्ति का जातक बड़े महत्व देने वाले कार्य करता है, जिस कारण लोग जातक का अधिक से अधिक आदर-मान करते हैं। लोग आदर मान करके अपने को धन्य मानते हैं। चतुर्थ स्थान में शुक्र की स्थिति से जातक राज परिवार में सम्मानित, राजपूज्य होता है। जन्म समय से ही जातक को मातृसुख विशेषत: प्राप्त होता है। और मातृभक्त तथा मातृसेवक होता है। शुक्र के चतुर्थभाव में होने से जातक को सभी प्रकार के भौतिक सुख प्राप्त होते हैं। लम्बी उम्र के जीवन में किसी भी प्रकार की कमी नहीं रहती है। उत्तम बाहन-मोटर आदि की सवारी का सुख प्राप्त होता हैं। सुखभाव में भृगुपुत्र के होने से जातक को अच्छा घर, अच्छा वाहन, अच्छे आभूषण, वस्त्र तथा अच्छे सुगंधित पदार्थ प्राप्त होते हैं। जातक का घर देव घर से भी अधिक सुन्दर होता है। फूलों के हार, वस्त्र आदि से जातक का घर सुंदर लगता है। चांदी के रूप में जातक के घर बहुत धन रहता है। विपुल धान्य और दूध-दही घरमें होता है। पैतृक सम्पत्ति मिलती है। स्थावर स्टेट मिलती है। चौथे भाव में पड़ा शुक्र जातक को उन्नति के अवसर प्रदान करता है तथा उनमें सफलता भी दिलाता है।

 बन्धुभावगत शुक्र के होने से जातक उत्तम स्त्री तथा परिवार से युक्त होता है। जातक स्त्री के वशवर्ती होता है। स्त्री के आश्रय से सुख मिलता है। एक से अधिक स्त्रियों का उपभोग करता है। विलासी होता है। भाइयों का सुख अच्छा मिलता है। मित्रों और बांधवों से प्रेम करने वाला होता है। मित्र सुख, क्षेत्र (भूमि) सुख, ग्राम सुख से युक्त होता है। आयु का उत्रार्ध उत्तम होता है। मृत्यु अच्छी स्थिति में होती है। जातक को पैतृकसम्पत्ति की प्राप्ति होती है। किन्तु ऐश-आराम में अथवा बड़े व्यवसायों में भारी खर्च करने से सम्पत्ति नष्ट हो जाती है। तदनन्तर अपने परिश्रम से धन प्राप्ति होती है। स्त्रियों से मदद अच्छी मिलती है। चतुर्थभावस्थ शुक्र के जातक नौकरी भी करते हैं साथ ही और कार्य भी करते रहते हैं। मीठा बोलकर अपना काम बना लेता है। अपना स्वार्थ सिद्ध होता हो तो दूसरों की मदद भी करता है। 32 वर्ष तक अस्थिर रहता है। कुछ समय नौकरी, कुछ समय कोई और व्यवसाय करता है-अन्त में व्यापार में स्थिर हो जाता है और कीर्तिलाभ करता है। पुरुषराशि का चतुर्थभावस्थ शुक्र होने से जातक की पत्नी सुन्दर और आकर्षक होती है। 

चतुर्थ स्थान के शुक्र का साधारण फल यह है कि विवाह के बाद भाग्योदय होता है। अपना घरबार होता है। आयु का अन्तिम भाग अच्छा बीतता है। किन्तु यह समय स्त्री के वश में रहने का होता है। बड़े लोगों से स्नेह होता है। उनसे सहायता मिलती है। प्रथम पुत्रसन्तति होती है। चतुर्थभाव का शुक्र हमेशा आर्थिक चिन्ता करवाता है। आयु के 24-26 और 36 वें वर्ष में शरीरिक कष्ट बहुत होता है। तीसरे वा छठे वर्ष में घर में किसी ज्येष्ठ व्यक्ति की मृत्यु होती है। माता या पिता में से किसी एक की मृत्यु जल्दी होती है। जीवित रहे तो सुख 45 वें वर्ष तक मिलता है। शुक्र पीडि़त न हो तो जीवन भर अच्छा सुख मिलता है। चतुर्थेश बलवान् होने से घोड़े-पालकी सोने के आसन आदि वैभव प्राप्त होता है। शुक्र पुरुषराशियों में होने से मातृसुख पूर्ण नहीं मिलता है। यदि माता जीवित रहे तो सदैव रोगाग्रस्ता रहती है। 
 अशुभ फल  : जातक जन्म से ही निर्धन, कफ रोग तथा नेत्र रोग से पीडि़त होता है। जातक विक्षिप्त स्वभाव का होता है। शुक्र पापग्रह युक्त, अथवा पापग्रह की राशि में, शत्रुराशि में, या नीच में दुर्बल होने से खेती, वाहन आदि नहीं होते। माता को कष्ट होता है। घर में ही अधिक रहनेवाला होता है।


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