Dasve bhav me shukra ka shubh ashubh samanya fal
दसवे भाव में शुक्र का शुभ अशुभ सामान्य फल
शुभ फल : कर्मभावस्थित शुक्र होने
से जातक शरीर से सुन्दर तथा आकर्षक होता है। स्वभाव शांत और मिलनसार होता है।
झगड़े नितांत नापसन्द होते हैं। नैतिक आचरण अच्छा होता है। शुद्ध हृदय तथा सद्
विचार रखने वाला होता है। जातक धर्म में श्रद्धालु होता है। मन स्नान, पूजन तथा ध्यान में मग्न रहता है। दशमभावगत शुक्र होने से जातक कई एक यज्ञ
करता है। ज्योतिषी, विजयी, गुणवान् एवं दयालु।
यज्ञ-दान आदि करने से प्रशंसा का पात्र होता है। अपनी चतुर्मुखी बुद्धि से विख्यात
होता है। यश सर्वत्र फैला रहता है। अनेक शास्त्रों का ज्ञाता, विद्वान और विचारशील होता है। लोग जातक को आदरणीय और माननीय मानते हैं।
दशमभाव में शुक्र होता है वह जातक बहुत प्रतापी होता है। यह बहुत बोलने वाला और अच्छा वक्ता होता है। दशमस्थ शुक्र का जातक विभु अर्थात् धनाढ़्य होता है। जातक के पास रत्न, और चाँदी आदि बहुमूल्य वस्तुएँ रहती हैं। सोने-चाँदी के व्यवहार में धन प्राप्त करता है। जातक को किसानों से, स्त्रियों से, धनप्राप्त होता है। सम्पत्ति का कष्ट सहसा नहीं होता है। जातक के पास धन संचित रहता है। जातक के दशमस्थान में शुक्र होने से कर्मण्य होता है, शुभकर्म करनेवाला होता है। जातक को संकल्पसिद्धि प्राप्त होती है अर्थात् जातक के संकल्प पूर्ण होते हैं। राज्य की नौकरी मिलती है- राजदरबार में अधिकार पद प्राप्त होते हैं। अफसर खजाना होता है। जातक व्यवसाय में सफल तथा प्रभावशाली होता है। गायन, वादन, साहित्यरचना, चित्रकारी आदि ललित कलाओं में रुचि होती है। इन कलाओं से सम्बन्ध रखनेवाला व्यवसाय करता है। स्त्रियाँ प्रेम दृष्टि से देखती हैं। प्रसिद्ध वा श्रीमानकुल की तरुणी से विवाह होता है। जातक की स्त्री धनी तथा सच्चरित्रा होती है। स्त्री से अच्छा लाभ और सम्मान प्राप्त होता है।
कर्मभावगत शुक्र के होने से जातक को पुत्र तथा स्त्री का सुख मिलता है। अपनी स्त्री तथा पुत्र पर बहुत प्रेम करता है। विवाह से भाग्योदय और धनलाभ होता है। स्वभाव से कामी अवश्य होता है पर स्त्रियों पर पैसे खर्च नहीं करता है। सभी प्रकार के वाहन-घोड़ा-गाड़ी-हाथी-मोटर का सुख सदैव प्राप्त रहता है। यह राजमान्य होता है-राजकुल में पूजित करता है। यह सदैव उत्सवों में भाग लेने वाला होता है। कर्मभावगत शुक्र का जातक सज्जनों से युक्त, मित्रों से युक्त, नीतिमान् और विजयी होता है। जातक अपने पौरुष से और विवाद से नौकरी-व्यवसाय, सुख, रति, मान, धन और कीर्ति को प्राप्त करता है। भाइयों से युक्त होता है। जातक मनुष्यों में श्रेष्ठ, प्रभावशाली, बहुत भाग्यशाली होता है। जातक भोगी होता है। जंगल में भी राजा जैसे भोगविलास प्राप्त होते है। काव्यरचना में कुशल होता है। जीवन सुखी होता है। दूर-दूर के देशों में प्रवास करता है। जातक किसी की शरण जाना स्वीकार नहीं करता है। अभिजित नक्षत्र जिस प्रकार सर्वविजय बतलाता है वैसे ही दशमस्थ शुक्र सर्वोन्नति कराता है। शुक्र शुभ सम्बन्ध में होने से सब तरह से ऐश्वर्य देता है।
दशमभाव में शुक्र होता है वह जातक बहुत प्रतापी होता है। यह बहुत बोलने वाला और अच्छा वक्ता होता है। दशमस्थ शुक्र का जातक विभु अर्थात् धनाढ़्य होता है। जातक के पास रत्न, और चाँदी आदि बहुमूल्य वस्तुएँ रहती हैं। सोने-चाँदी के व्यवहार में धन प्राप्त करता है। जातक को किसानों से, स्त्रियों से, धनप्राप्त होता है। सम्पत्ति का कष्ट सहसा नहीं होता है। जातक के पास धन संचित रहता है। जातक के दशमस्थान में शुक्र होने से कर्मण्य होता है, शुभकर्म करनेवाला होता है। जातक को संकल्पसिद्धि प्राप्त होती है अर्थात् जातक के संकल्प पूर्ण होते हैं। राज्य की नौकरी मिलती है- राजदरबार में अधिकार पद प्राप्त होते हैं। अफसर खजाना होता है। जातक व्यवसाय में सफल तथा प्रभावशाली होता है। गायन, वादन, साहित्यरचना, चित्रकारी आदि ललित कलाओं में रुचि होती है। इन कलाओं से सम्बन्ध रखनेवाला व्यवसाय करता है। स्त्रियाँ प्रेम दृष्टि से देखती हैं। प्रसिद्ध वा श्रीमानकुल की तरुणी से विवाह होता है। जातक की स्त्री धनी तथा सच्चरित्रा होती है। स्त्री से अच्छा लाभ और सम्मान प्राप्त होता है।
कर्मभावगत शुक्र के होने से जातक को पुत्र तथा स्त्री का सुख मिलता है। अपनी स्त्री तथा पुत्र पर बहुत प्रेम करता है। विवाह से भाग्योदय और धनलाभ होता है। स्वभाव से कामी अवश्य होता है पर स्त्रियों पर पैसे खर्च नहीं करता है। सभी प्रकार के वाहन-घोड़ा-गाड़ी-हाथी-मोटर का सुख सदैव प्राप्त रहता है। यह राजमान्य होता है-राजकुल में पूजित करता है। यह सदैव उत्सवों में भाग लेने वाला होता है। कर्मभावगत शुक्र का जातक सज्जनों से युक्त, मित्रों से युक्त, नीतिमान् और विजयी होता है। जातक अपने पौरुष से और विवाद से नौकरी-व्यवसाय, सुख, रति, मान, धन और कीर्ति को प्राप्त करता है। भाइयों से युक्त होता है। जातक मनुष्यों में श्रेष्ठ, प्रभावशाली, बहुत भाग्यशाली होता है। जातक भोगी होता है। जंगल में भी राजा जैसे भोगविलास प्राप्त होते है। काव्यरचना में कुशल होता है। जीवन सुखी होता है। दूर-दूर के देशों में प्रवास करता है। जातक किसी की शरण जाना स्वीकार नहीं करता है। अभिजित नक्षत्र जिस प्रकार सर्वविजय बतलाता है वैसे ही दशमस्थ शुक्र सर्वोन्नति कराता है। शुक्र शुभ सम्बन्ध में होने से सब तरह से ऐश्वर्य देता है।
अशुभ फल : दसवें स्थान पर विद्यमान
शुक्र के प्रभाव से जातक कृपण स्वभाव, लोभी, अविश्वासी होता है। जातक अपने बारे में बहुत आडम्बर बतलाता है। जातक लोगों से
हमेशा विवाद करता है। भ्रमवश धन नष्ट होता रहता है। अपने दरवाजे पर से बा्रह्मणों
को अपमानित कर लौटाने से तथा शत्रुओं के साथ विवाद करने से अत्याधिक धन नष्ट होता
है। शुक्र दशमभाव में होने से कुल का नाश होता है। शुक्र पुत्र सन्तति के होने में
विघ्न उत्पनन्न करता है। सन्तान-सुख किंचित रूप में ही मिल पाता है
दशमभाव में शुक्र होने से जातक वधिर होता है। अथवा जातक का भाई वधिर होता है। दशमस्थ शुक्र का नारायणभट्ट ने पुत्र संतति का प्रतिबन्धक होना रूपी अशुभफल बतलाया है। इसका अनुभव पुरुषराशियों में, कभी-कभी मीन में अनुभव में आता है। शुभफल अन्य राशियों में अनुभव गोचर होते हैं । दशमस्थ शुक्र पीडि़त या अशुभ सम्बन्ध में होने से व्यभिचारी वृत्ति से अपमान होता है।
दशमभाव में शुक्र होने से जातक वधिर होता है। अथवा जातक का भाई वधिर होता है। दशमस्थ शुक्र का नारायणभट्ट ने पुत्र संतति का प्रतिबन्धक होना रूपी अशुभफल बतलाया है। इसका अनुभव पुरुषराशियों में, कभी-कभी मीन में अनुभव में आता है। शुभफल अन्य राशियों में अनुभव गोचर होते हैं । दशमस्थ शुक्र पीडि़त या अशुभ सम्बन्ध में होने से व्यभिचारी वृत्ति से अपमान होता है।