पहले भाव में शुक्र का शुभ अशुभ सामान्य फल
Pahle bhav me shukra ka shubh ashubh samanya fal
शुक्र के शुभ फल : लग्नस्थान में शुभ शुक्र होने से रूप
सुन्दर होता है। शरीर, मुख और आंखें सुन्दर होती
हैं। कांतिमान् अर्थात् तेजस्वी होता है। लग्न में शुक्र होने से या दृष्टि होने
से जातक का रंग गोरा होता है। कमर, पीठ, उदर वा गुह्यस्थान में कोई व्रण चिन्ह या तिल होता है। शुक्र लग्न में होने से
जातक के 12 वें वर्ष मस्तक पर कोई चिन्ह प्रकट होता है।
शरीर स्वस्थ और निरोग रहता है। दीर्घायु होता है। जातक साफ सुथरा रहने वाला, भूषणों से सुशोभित, अच्छे वस्त्रों का शौकीन
होता है। शिल्पकला में निपुण, सुशील, विनम्र, काव्यशास्त्र परिशीलन में आनन्द लेने वाला और
धर्मात्मा होता है। शुभवचन बोलनेवाला, दूसरों को उपदेश देनेवाला, आनन्दी स्नेहयुक्त होता है। गायन-वादन-चित्रकला आदि का शौक होता है। मधुरवाणी
और आदरपूर्वक व्यवहार से लोग जातक का आदर करते हैं।
शुक्र से जातक स्थिरस्वभाव का होता है -'कवि: स्थिर प्रकृतिदायक:।' जातक की भाषण शैली मोहक, बरताव मृदुतापूर्ण और स्वभाव प्रसन्न तथा आकर्षक होता है। जातक अनेक कलाओं में कुशल, सब कामों में चतुर, विद्वान्, गणितज्ञ, सर्वप्रिय होता है। राजा जैसा प्रतापी, कुलभूषण और पराक्रमी होता है। नाना प्रकार के भूषण, वस्त्र अलंकार प्राप्त होते हैं। जातक सुन्दर मृगनयिनी स्त्रियों से रतिक्रीड़ा करता है। वह कामक्रीड़ा में निपुण होता है। स्त्रियों को वश करना सहजसाध्य होता है। बहुत शक्ति सम्पन्न तथा वीर्यवान् होने से बहुत स्त्रियों का उपभोग करता है। जातक कामी, विलासी, और भौतिक विचारों से युक्त होता है।
प्रथम भाव में शुक्र के होने से जातक को सुखों की कमी नहीं रहती। समृद्धिमान्, सुख-साधनों से संपन्न, धनवान् और राजप्रिय होता है। राज्य में सम्मान प्राप्त करता है। सत्पुरुषों का संग और उत्तम कर्म करने वाला होता है। प्रबल शत्रुओं का सहसा नाश होता है। चित्रकलायुक्त घर में रहनेवाला, कौतुकी, भाग्य भरोसे रहनेवाला होता है। भोजन में नमकीन और खट्टे पदार्थ प्रिय होते हैं। जातक सुन्दर स्त्री-पुत्रों से युक्त होता है। केन्द्र स्थान में शुक्र होने से जातक का पुत्र दीर्घायु होता है। नाटक मण्डली या जिसमें लोकसमुदाय से सम्बन्ध आता हो-ऐसे अन्य व्यवसाय में सफलता मिलती है-ऐसा राफ़ेल आदि ने कहा है। लग्न में शुक्र होने से जातक कवि-नाटककार, उपन्यास लेखक, गायक, चित्रकार आदि होते हैं और यश भी प्राप्त करते हैं। शुभग्रह के साथ होने से गजांत वैभव होता है। सब सुख मिलते हैं।
तनुभाव में मेष, सिंह या धनु में शुक्र होने से विवाह विलम्ब से होता है। स्त्री अच्छी, पति-पत्नी में प्रेम अच्छा होता है। तनुभाव में मेष, सिंह या धनु में शुक्र होने से व्यक्ति प्रभावी होता है। धनुराशि में शुक्र होने से 36 वर्ष की आयु हो जाने पर विवाह होता है। अथवा दिल चाहता है कि विवाह किया ही न जाए। शुक्र द्विभर्यायोग भी करता है। नौकरी या धन्धा-ठीक चलता हैं। भाग्योदय के लिए कष्ट उठाना पड़ता है। सन्तान थोड़ी होती है।
शुक्र के शुभ फल प्राप्त करें इन सरल उपायों से
शुक्र के अशुभ फल :-जातक बहुत बोलने वाला
होता है। जातक का स्वभाव वातपित्तप्रधान होता है अर्थात् वात और पित्त के रोग होते
हैं। कुत्ते से, सीगोंवाले पशुओं से कष्ट
और भय होता है। जातक कृतघ्न होता है। शुक्र लग्न में होने से चक्षु: नाशक होता है।
नेत्ररोगवान् होता है। पापग्रह से
युक्त या दृष्ट या नीचराशि में या अस्तंगत होने से जातक चोर-ठग और वातरोगादि से
पीडि़त होता है। लग्नेश राहु के साथ होने से वृहद्वीज होता है। मेष, वृश्चिक, कन्या और मकर लग्न में शुक्र शुभ नहीं होता ।