Sunday 10 May 2020

Tisre bhav me shukra ka shubh ashubh samanya fal / तीसरे भाव में शुक्र का शुभ अशुभ सामान्य फल

Posted by Dr.Nishant Pareek

तीसरे भाव में शुक्र का शुभ अशुभ सामान्य फल  


Tisre bhav me shukra ka shubh ashubh samanya fal


 शुभ फल : तृतीयस्थ शुक्र व्यक्ति होने से जातक उत्साह संपन्न, व्यवहार पटु, बहुत नम्र, आनन्दी और उत्साही होता है। जातक पर्यटनशील, मधुरभाषी होता है। कलाओं का ज्ञाता, भाषाशास्त्रज्ञ, कवि, गायक या चित्रकार होता है। तीसरे भाव के शुक्र के प्रभाव से व्यक्ति कलाकार, विद्वान होता है। जातक आक्रामक न होकर भी अपनी रक्ष युक्ति पूर्वक करने वाला होता है। मन के संकल्प सफल होते हैं। पढ़ने की रुचि होती है। तृतीयस्थ शुक्र जातक को भाग्यवान् एवं संपन्न बनाता है। धन-धान्य से युक्त-नीरोग, राजपूजित तथा प्रतापी होता है। संपत्ति का उपभोग करनेवाला होता है। 29 वें वर्ष धनलाभ होता है। भाई बंधुओं से मेल जोल रखनेवाला, सहोदर बंधुओं से घिरा रहता है। सगे भाइयों से युक्त होता है। भाई तीन हो सकते हैं। जातक की बहनें बहुत होती हैं। बहन गौरवर्णा होती है। 

तृतीयभावगत शुक्र से पुत्र संख्या में अधिक हों, ऐसी इच्छा बनी रहती है। पुत्रप्राप्ति तृष्णा जातक को असंतुष्ट रखती है। बंधु, मित्र, पड़ोसी आदि से अच्छी मदद मिलती है। प्रवास सुखपूर्ण होते हैं। और प्रवास करते समय नए परिचय होते हैं। पत्र व्यवहार से मित्रता बढ़ती है। इसी प्रकार विवाह की बातचीत पक्की होती है। तृतीयभावगत शुक्र के प्रभाव से जातक सेनापति होता है । काम में शीघ्र गति होती है। अपने लोगों को बंधन से छुड़ाने वाला माननीय होता है। अच्छे कपड़े पहनता है। जातक भ्रमरवत् कमलनयनियों और शिरीष पुष्पवत् सुकुमार देहवाली स्त्रियों के इर्द-गिर्द ही नितान्त घूमता रहता है। विवाहिता पत्नी की ओर उदासीनता का व्यवहार, और परकीया स्त्रियों की ओर विशेष आकर्षण भी हो सकता है। पुरुषराशि में शुक्र होने से कमलमुखी सुंदरी स्त्रियों में निरंतर अत्यंत प्रेम होता है। पुरुषराशि का शुक्र संतति कम देता है। एक दो पुत्र होते हैं। कन्याएं नहीं होती। भाई-बहिनें कम होती हैं, या होती ही नहीं। 


 अशुभ फल : अकेला शुक्र अशुभ फल देता है। शुक्र के लिए 3-6-8-12 वां स्थान अशुभ है-शेष स्थान शुभ है। अत: तृतीयस्थान का शुक्र अशुभ होता है। तृतीय शुक्र के अशुभफल विवाह के विषय में अनुभव गोचर होते हैं। विवाह में विघ्न, पत्नी से वैमनस्य, एक से अधिक विवाह होना, विजातीय स्त्री का होना, पत्नी से दूर रहना, पुनर्विवाहित स्त्री का होना-विवाह के बाद आर्थिक कष्ट आदि अशुभ फल हैैं। शुक्र के प्रभाव से जातक आयु में अधिक स्त्री को पसंद करते हैं-कामी होते हैं। दिन में भी स्त्रीसंग की इच्छा रहती है। पहिली स्त्री की मृत्यु के बाद दूसरा विवाह शीघ्र नहीं होता है। स्त्रियों को इन पर सदैव संदेह रहता है। इस तरह स्त्रीसुख पूरा नहीं मिलता है।

 तृतीयभावगत शुक्र के प्रभाव से जातक लोभी और आलसी स्वभाव का होता है। कड़वा बोलता है और क्रोध से बोलता है। जातक निर्बलदेह, आतुर, दुराग्रही, शील से रहित, मिथ्याभाषी, झगड़ालू, स्त्रियों के काम करनेवाला, शत्रुओं द्वारा पराजित होनेवाला होता है। विपत्तियों से संघर्ष करना इसके बस की बात नहीं होती । जातक न तो दानशूर होता है और न ही संग्राम शूर होता है। धनदान में कृपणता होती है। युद्ध में कायर-पीठ-दिखाने वाला होता है। धन के सद् उपयोग में जातक कृपण होता है। स्त्री के वशीभूत होता है उत्साह कम होता है। तीसरे और छठे में शुक्र रोगकारक और भयकारी होता है। जातक दुर्बल शरीर, कृपण, दुष्ट-निर्धन, कामुक, सज्जनों का अनिष्ट करने वाला होता है। इसकी चेष्टाएँ बहुत बुरी होती हैं। शत्रु बढ़ते हैं-धन कम होता जाता है। जातक का वेष साधारण होता है। मोह बहुत होता है। आंखों के रोग होते हैं। स्त्री-सुख तथा संपत्ति से बंचित होता है। लोगों को पसंद नहीं होता है। पुत्र से दु:खी रहता है। दुराचारी होता है। इसकी स्त्री बहुत बार प्रसूता नहीं होती है। छोटे भाई नहीं होते। शुक्र अशुभ योग में होने से व्यभिचारी, रंगीला होता है और बहुत नुकसान सहना पड़ता है।
पुरुषराशि में शुक्र होने से जातक अति कामुक होने से अन्य स्त्रियों से अवैध संबंध जोड़ लेता है। मंगल से दूषित शुक्र तृतीय में होने से अनैसर्गिक चेष्टाओं से कामानल शांत की जाती है। इन लोगों के हाथ पर शुक्र वलय य ळपतकसम व टिमदनेद्ध चिन्ह भी दिखता है। इस शुक्र से धन के विषय में स्थिरता नहीं होती। व्यवसाय में हानि लाभ होने से आर्थिक कष्ट बना रहता है। शुक्र के कारकत्व में आए हुए व्यवसाय करने पर भी हानि होती है। पुरुष राशि में शुक्र होने से पत्नी सर्वथा योग्य और आकर्षक, कितु घमंडी होती है। पुरुषराशि में शुक्र हो तो जातक बहुत सी लड़कियां देखता है। अन्त में किसी साधरण लड़की से विवाह करता है। सुन्दर लड़कियों को नापसंद करता है अन्त में पश्चाताप होता है।

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