Barah bhavo me rahu ka shubh ashubh samanya fal or upay
बारह भावों में राहु का शुभ अशुभ सामान्य फल व उपाय
पौराणिक कथाओं के अनुसार राहु ग्रह असुर स्वरभानु का कटा हुआ सिर है, जो ग्रहण के समय सूर्य और चंद्रमा का ग्रहण करता है। इसे कलात्मक रूप में बिना धड़ वाले सर्प के रूप में दिखाया जाता है, जो रथ पर आरूढ़ है और रथ आठ श्याम वर्णी कुत्तों द्वारा खींचा जा रहा है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार राहु को नवग्रह में एक स्थान दिया गया है। दिन में राहुकाल नामक मुहूर्त (२४ मिनट) की अवधि होती है जो अशुभ मानी जाती है।
समुद्र मंथन के समय स्वरभानु नामक एक असुर ने धोखे से दिव्य अमृत की कुछ बूंदें पी ली थीं। सूर्य और चंद्र ने उसे पहचान लिया और मोहिनी अवतार में भगवान विष्णु को बता दिया। इससे पहले कि अमृत उसके गले से नीचे उतरता, विष्णु जी ने उसका गला सुदर्शन चक्र से काट कर अलग कर दिया। परंतु तब तक उसका सिर अमर हो चुका था। यही सिर राहु और धड़ केतु ग्रह बना और सूर्य- चंद्रमा से इसी कारण द्वेष रखता है। इसी द्वेष के चलते वह सूर्य और चंद्र को ग्रहण करने का प्रयास करता है। ग्रहण करने के पश्चात सूर्य राहु से और चंद्र केतु से,उसके कटे गले से निकल आते हैं और मुक्त हो जाते हैं।
भारतीय ज्योतिष के अनुसार राहु और केतु सूर्य एवं चंद्र के परिक्रमा पथों के आपस में काटने के दो बिन्दुओं के द्योतक हैं जो पृथ्वी के सापेक्ष एक दुसरे के उल्टी दिशा में (१८० डिग्री पर) स्थित रहते हैं। चुकी ये ग्रह कोई खगोलीय पिंड नहीं हैं, इन्हें छाया ग्रह कहा जाता है। सूर्य और चंद्र के ब्रह्मांड में अपने-अपने पथ पर चलने के अनुसार ही राहु और केतु की स्थिति भी बदलती रहती है। तभी, पूर्णिमा के समय यदि चाँद राहू (अथवा केतु) बिंदु पर भी रहे तो पृथ्वी की छाया पड़ने से चंद्र ग्रहण लगता है, क्योंकि पूर्णिमा के समय चंद्रमा और सूर्य एक दुसरे के उलटी दिशा में होते हैं। ये तथ्य इस कथा का जन्मदाता बना कि "वक्र चंद्रमा ग्रसे ना राहू"। अंग्रेज़ी या यूरोपीय विज्ञान में राहू एवं केतु को को क्रमशः उत्तरी एवं दक्षिणी लूनर नोड कहते हैं।
राहु पौराणिक संदर्भों से धोखेबाजों, सुखार्थियों, विदेशी भूमि में संपदा विक्रेताओं, ड्रग विक्रेताओं, विष व्यापारियों, निष्ठाहीन और अनैतिक कृत्यों, आदि का प्रतीक रहा है। यह अधार्मिक व्यक्ति, निर्वासित, कठोर भाषणकर्त्ताओं, झूठी बातें करने वाले, मलिन लोगों का द्योतक भी रहा है। इसके द्वारा पेट में अल्सर, हड्डियों और स्थानांतरगमन की समस्याएं आती हैं। राहु व्यक्ति के शक्तिवर्धन, शत्रुओं को मित्र बनाने में महत्वपूर्ण रूप से सहायक रहता है। बौद्ध धर्म के अनुसार राहु क्रोधदेवताएं में से एक है।
भारतीय ज्योतिष शास्त्रों में राहु और केतु को अन्य ग्रहों के समान महत्व दिया गया है, पाराशर ने राहु को तमों अर्थात अंधकार युक्त ग्रह कहा है, उनके अनुसार धूम्र वर्णी जैसा नीलवर्णी राहु वनचर भयंकर वात प्रकृति प्रधान तथा बुद्धिमान होता है, नीलकंठ ने राहु का स्वरूप शनि जैसा निरूपित किया है.
सामान्यतः: राहु और केतु को राशियों पर आधिपत्य प्रदान नही किया गया है, हां उनके लिये नक्षत्र अवश्य निर्धारित हैं. तथापि कुछ आचार्यों ने कन्या राशि को राहु के अधीन माना है, उनके अनुसार राहु मिथुन राशि में उच्च तथा धनु राशि में नीच होता है. मतान्तर से वृष के 20 अंश पर राहु परमोच्च तथा मिथुन में 0 से 20 अंश तक मूलत्रिकोण में होता है. गुरु शुक्र व शनि को राहु के मित्र, मंगल बुद्ध सम तथा सूर्य चंद्र को शत्रु माना गया है. राहु वृष में उच्च, मिथुन में मूलत्रिकोण राशि तथा कन्या में स्वराशि होता है.
राहु के नक्षत्र आर्द्रा स्वाति और शतभिषा है, इन नक्षत्रों में सूर्य और चन्द्र के आने पर या जन्म राशि में ग्रह के होने पर राहु का असर शामिल हो जाता है.
ऋषियों के अनुसार राहु का वर्ण नीलमेघ के समान है, यह सूर्य से १९००० योजन से नीचे की ओर स्थित है, तथा सूर्य के चारों ओर नक्षत्र की भांति घूमता रहता है. शरीर में इसे पिट और पिण्डलियों में स्थान मिला है, जब जातक के विपरीत कर्म बन जाते है, तो उसे शुद्ध करने के लिये अनिद्रा पेट के रोग मस्तिष्क के रोग पागलपन आदि भयंकर रोग देता है, जिस प्रकार अपने निन्दनीय कर्मों से दूसरों को पीडा पहुंचाई थी उसी प्रकार भयंकर कष्ट देता है, और पागल तक बना देता है, यदि जातक के कर्म शुभ हों तो ऐसे कर्मों के भुगतान कराने के लिये अतुलित धन संपत्ति भी देता है, इसलिये इन कर्मों के भुगतान स्वरूप उपजी विपत्ति से बचने के लिये जातक को राहु की शरण में जाना चाहिये, तथा पूजा पाठ जप दान आदि से प्रसन्न करना चाहिये. गोमेद इसकी मणिरत्न है, तथा पूर्णिमा इसका दिन है. अभ्रक इसकी धातु है.