Saturday 13 June 2020

Pachve bhav me rahu ka shubh ashubh samanya fal / पांचवें भाव में राहु का शुभ अशुभ सामान्य फल

Posted by Dr.Nishant Pareek

Pachve bhav me rahu ka shubh ashubh samanya fal 


पांचवें भाव में राहु का शुभ अशुभ सामान्य फल

शुभ फल : पंचमभाव में राहु होने से जातक की बुद्धि तीक्ष्ण होती है। जातक शास्त्रों को जानने वाला, दयालु, भाग्यवान् और कर्मठ होता है। संतति न होने का कारण प्राय: सर्प संबंधी शाप होता है। संतानाभाव पूर्वजन्म के सर्प संबंधी शाप का परिणाम होता है-भृगसूत्र के अनुसार नागदेव-पूजन शापोद्धारक हो सकता है। पंचम के राहु से पहली संतति बहुधा कन्या होती है। जिस मनुष्य के जन्मसमय में राहु पंचमभाव में हो उसे पुत्रलाभ होता है।  

पाश्चात्यमत से जातक कम्पनी के व्यवसाय में सफल होता है। पंचमस्थ राहु पुरुषराशि में होने से शिक्षा पक्ष में गलतियाँ दृष्टिगोचर होती हैं-नैसर्गिक योग्यता के अनुसार शिक्षा नहीं होती है। जैसे जातक वकील बनने की नैसर्गिक योग्यता रखता है किन्तु शिक्षा इंजनीयरी की होती है, अत: सफलता नहीं मिलती। पंचमस्थ राहु पुरुषराशि में होने से स्त्रीसुख तथा पुत्रसुख अच्छा नहीं मिलता है। स्त्री रुग्णा रहती है मासिक धर्म ठीक नहीं होता अथवा किसी और कारण से पुत्रोत्पत्ति नहीं होती। अत: दूसरा विवाह करना होता है। पंचमस्थ राहु पुरुषराशि में होने से जातक बुद्धिमान् और कीर्तिमान किन्तु अभिमानी होते हैं। राहु चन्द्रमा के साथ नहीं होने से एक पुत्र होता है और वह भी गंदा और गंदे वस्त्र पहननेवाला होता है।   

अशुभ फल : जातक की बुद्धि अतीव मंद होती है। जातक की संतान की मृत्यु कृमि, वायु, पत्थर, लकड़ी, पानी वा पर्वत संबंधी किसी वस्तु से होती है। पंचमभाव में राहु होने से जातक धनहीन, कुलधननाशक, निर्धन होता है। जातक के शरीर का रंग अच्छा नहीं होता। राहु मतिभ्रम उत्पन्न करता है। जातक डरपोक और कुमार्गगामी होता है। कठोरहृदय होता है। चिन्ता और सन्ताप की अधिक वृद्धि होती है। पंचमभावस्थ राहु प्रभावान्वित जातक प्राय: अभागा होता है। पंचमभाव में राहु होने से जातक नाक से बोलता है। जातक गन्दा रहता है। जातक की विद्या में अरुचि रहती है। अन्य लेखकों ने पुत्राभाव, पुत्रों का रोगी होना-पुत्रनाश आदि अशुभफल बतलाए हैं। पांचवें भाव में स्थित राहु के कारण जातक को पुत्र का सुख नहीं मिलता है। जातक को चिरकाल तक चित्त को संतप्त रखनेवाली पुत्रविषयिणी चिन्ता रहती है। सर्प के शाप से पुत्र नष्ट होता है। नागदेव की पूजा करने से पुत्र प्राप्ति होती है। पहली सन्तान में देर या कुछ वाधा होती है। पंचम में राहु होने से जातक का पुत्र दीन व मलीन होता है। जातक बहुतेरा पुरुषार्थ करता है तो भी धन प्राप्ति नहीं होती है। आनन्द और विलास में रुकावटें आती हैं। पाँचवें भाव में राहु होने से जातक उदररोगी, पेट से संबंधित बीमारियों से पीडि़त हुआ रहता है। पेट में शूल, गैस आदि के रोग, मन्दाग्नि रोग होता है। जातक के हृदय (कलेजे) में पीड़ा होती है। चित्त विभ्रम हुआ रहता है ।

राहु की शांति के सरल उपाय

 पांचवे स्थान में राहु के रहने से जातक को स्त्री पक्ष से कष्ट मिलता है। कोपना स्त्री की चिन्ता से मन मे सन्ताप रहता है। मित्रों से भी विरोधभाव रहता है। पंचमभाव में राहु हाने से सुख नहीं मिलता, मित्र थोड़े होते हैं। राजकोपसे राजदण्ड मिलता है। जातक नीचों की संगति में रहता है। जातक का निवास किसी नीच गांव में होता है। राहु की दशा में जातक की मानहानि होती है। पंचमभाव में राहु के अशुभफल पुरुषराशि में अनुभव गोचर होते हैं। राहु प्रबल अशुभ योग में होने से विवाह नहीं होता, अवैध स्त्री संबंध होता है। इस राहु के जातक स्त्री-पुत्रसुख के अभाव में संशोधन आदि कामों में मग्न रहते हैं-इनकी संतान ग्रन्थ ही होते हैं इन्हीं से ये यशस्वी और प्रसिद्ध होते हैं। राहु पीडि़त होने से गर्भपात, सन्तान सुख का नाश होता है। राहु चन्द्रमा के साथ नहीं होने से एक पुत्र होता है और वह भी गंदा और गंदे वस्त्र पहनने वाला होता है।


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