Dusre bhav me rahu ka shubh ashubh samanya fal
दूसरे भाव में राहु का शुभ अशुभ सामान्य फल
शुभ फल : मंत्रेश्वर के अनुसार द्वितीयभावस्थ राहु अशुभ-शुभ दोनों प्रकार के फल देने वाला ग्रह है। राहु मिथुन कन्या या कुंभ में होने से शुभ फल देता है। द्वितीयभाव में राहु होने से जातक पुष्ट (सुदृढ़) शरीर, निर्भय(निर्भीक) होता है। राहु शुभ होने से नासिका बड़ी होती है, ठोड़ी पर चिन्ह (दाग) होता है। गौरव और आदर प्राप्त होता है। जातक व्यवहार में व्यवस्थित, लोगों का विश्वासपात्र होता है। दूसरे स्थान में स्थित राहु के कारण जातक धनवान होता है। राजा से धन प्राप्ति होती है और जातक सुखी होता है। विदेश में धन प्राप्त करता है।
धनभाव का राहु जातक को धन-उपार्जन करने में परदेश में सहायक होता है। राहु शत्रुओं का विनाश करता है। जातक शत्रु हन्ता होता है। जातक पर्यटन करनेवाला, शौक से देश विदेश भ्रमण करनेवाला, घुमक्कड़ होता है। जातक जब भी कोई काम करने को उद्यत होता है, रास्ते में भारी रुकावटें आती हैं और सफल होने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ता है। गाय-भैंस पालन से तथा गाय-भैस सम्बन्धी व्यापार से लाभ होता है। गोधन प्राप्त होता है। अल्प सन्तति युक्त होता है। राहु स्वगृही, मित्र गृही या वृष राशि का होने से पैतृक सम्पत्ति का स्वामी बनाता है।
अशुभ फल : राहु धनभाव में राहु होने से जातक के दांत ऊंचे-नीचे, टेढ़े-मेढ़े होते हैं । राहु द्वितीय भाव में होने से जातक स्वकार्य छोड़ने वाला, स्वार्थी, कठोर स्वभाव का तथा अविवेकी होता है। जातक पराधीन, अभिमानी, हिंसक, चोरी में आसक्त होता है। जातक असत्यभाषी, झूठ बोलनेवाला, अप्रिय भाषणकर्ता, कठोर वाणी बोलनेवाला, बातूनी या मुंहजोर होता है। बहुत बोलना, अप्रिय बोलना, कर्णकटुभाषण, मिथ्याभाषण, वितंडावाद, व्यर्थ बकबक लगा रखना-द्वितीयस्थान का राहु इन सब दोषों का कारकग्रह है। जातक अस्पष्ट भाषणकर्ता होता है-अर्थात् अपने भाव को साफ तौर पर समझा नहीं सकता है। द्वितीय भाव का राहु धन नाशक होता है-जातक दरिद्र अर्थात् निर्धन होता है। राहु धनभाव में होने से चोरी से धनहानि होती है, और अतीव दु:खी होता है। धन भवन में राहु की स्थिति से जातक पैतृक सम्पदा का विनाश करता है। जातक सम्पन्न घर में जन्म लेकर भी विपन्न हो जाता है, और दर-दर की ठोकरें खाता फिरता है। कुवेर के समान धनी होने पर भी निर्धन होता है।
द्वितीय भाव में राहु होने से जातक का कुटुम्ब नष्ट होता है। अपने बांधवों का नाश देखता है। जातक को अस्त्र-शस्त्र से भय होता है। इससे मृत्यु की संभावना भी उत्पन्न करता है। दुर्जनों के कारण कठिन राजदण्ड भी पाता है। धनभाव में राहु होने से मत्स्य (मछली) के व्यापार से धनवान् हो सकता है। नख और चमड़ा बेचकर आजीविका चलाता है। चोरी के कामों से धन प्राप्त करता है। द्वितीयस्थ राहु के होने से जातक को दाँत के रोग होते हैं। मुख में और आँखों में रोग होते है। पुत्र की मृत्यु से दु:खी होता है। पिता की मृत्यु के बाद भाग्योदय होता है। द्विभार्यायोग होता है। दो स्त्रियाँ हो सकती है।हाथ में पैसा आता है किन्तु खर्च हो जाता है। धनप्राप्ति के समय विघ्न आते हैं। लोगों के रुपए का उपयोग करने से अपवाद फैलता है। जातक अपनी जन्मभूमि में बेकार (वृत्तिहीन) और दु:खी रहता है। किन्तु यदि परदेश जाता है तो धनी होता है। जातक नीच जनों के घर में रहनेवाला होता है। जातक दुष्ट लोगों के वश में अवश्य रहता है। जातक मित्रों की बात न माननेवाला होता है। जातक का बहुत विरोध होता है।
धनभाव का राहु अशुभ सम्बन्ध में पुरुष राशि में होने से जातक की पूर्वजों द्वारा इकट्ठी की हुई संपत्ति नहीं होती-यदि होतो विवादग्रस्त होती है। अथवा अपने ही हाथ से नष्ट होती है। अकस्मात् अन्यायोपार्जित संपत्ति मिलती है और स्थिर भी होती है। किन्तु इसके दुष्परिणाम आनेवाली संतति को-पुत्र-पौत्रों को भोगने होते हैं। यदि इस भाव के राहु के साथ दु:ष्टग्रह भी होतो मनुष्य के कुटुम्ब का नाश होता है। राहु के साथ पापग्रह होने से जातक के तीन विवाह होते हैं।