Chothe bhav me rahu ka shubh ashubh samanya fal
चौथे भाव में राहु का शुभ अशुभ सामान्य फल
शुभ फल : जातक राजा का प्रेमपात्र होता है। राजाओं के द्वारा हित होता है। जातक को माता का सुख होता है और चित्त की स्थिरता होती है। जातक साहसी होता है। चतुर्थभाव में राहु के होने से जातक के पास बहुत अलंकार होते हैं। जातक परदेश में रहनेवाला, प्रवासी होता है। घुमक्कड़ होता है। सदा घूमनेवाला होता है। चतुर्थ राहु विशेष उन्नतिदायक नहीं होता है-नौकरी से जीवनसुख पूर्वक कटता है। प्रवास बहुत होता है। साझीदारी या नौकरी में सफलता हो सकती है। यह योग दत्तक लिए जाने का हो सकता है। विविध चमत्कार देखने में आते हैं। जातक की दो स्त्रियाँ होती हैं। एक पुत्रवाला होता है। नौकर होते हैं अथवा स्वयं नौकरी करता है। राजयोग में 36 से 56 वें वर्ष तक बहुत भाग्योदय होता है।
चतुर्थ भाव का राहु मेष, वृष, मिथुन, कर्क या कन्या में होने से शुभफल होते हैं। राहु मेष, वृष, मिथुन, कर्क या कन्या राशि का होकर चतुर्थभाव में होने से उत्तम राजयोग होता है। मिथुन, सिंह और कुंभ में सम्पत्ति तो मिलती है किन्तु सन्तति नहीं होती-जिसके लिए दूसरा विवाह करना पड़ता है।
अशुभ फल : सभी लेखकों ने चतुर्थभावस्थ राहु के फल अशुभ बतलाये हैं। चौथे भाव मे राहु होने से जातक दारुण कर्म करने वाला, असन्तोषी, दुखी, क्रूर, कपटी, मिथ्याचारी, मूर्ख, झगड़ालू एवं अल्पभाषी होता है। जातक अपने ही लोगों का शत्रु, अति कामुक, आलसी उद्दण्ड और उद्धत होता है। जातक को मानसिक चिन्ता रहती है। अन्दर (अन्तष्करण में) सदा सन्ताप रहता है। राहु चतुर्थ में होने से जातक के माता-पिता को कष्ट होता है। जातक की माता रुग्णा रहती है। चतुर्थ में राहु होने से जातक की माता को वातरोग होता है। अथवा लकड़ी या पत्थर के आघात से मृत्यु होती है। जातक मातृक्लेशयुक्त, और मातृहन्ता (मां की मृत्यु का कारण) बनता है। जातक के मामा के घर में विष या शस्त्र से मृत्यु होती है। चतुर्थभाव का राहु दो विवाह और सौतेली माँ का योग करता है। जातक उदरव्याधियुक्त, पेट का रोगी होता है। जातक के चौपाए पशु नष्ट होते हैं।
चतुर्थभाव का राहु मित्रों और स्वजनों से विरोध भाव उत्पन्न करता है।
जातक अपने लोगों से झगड़नेवाला होता है। मित्र और पुत्र का सुख प्राप्त नहीं होता
है। कृश स्त्री का पति होता है। राहु चतुर्थ में बन्धुओं को कष्ट देता है। माता-पिता
में से एक की मृत्यु जल्दी या अकस्मात् होती है। पाश्चात्यमत से-राहु चतुर्थ में
और केतु दशम में होने से अवैध सम्बन्ध से सन्तति होती है। राहु के साथ शुभग्रह हो अथवा शुभग्रह की
दृष्टि हो तो उपर दिये दुष्टफल नहीं होते। राहु अशुभ सम्बन्ध में होने से कभी भी जातक सुखी नहीं होता है। चिन्तित,
दु:खी रहता है। पुरुषराशि में चतुर्थभावस्थ राहु होने से
द्विभार्या या द्विमाता योग संभव है। चतुर्थ राहु रवि-चन्द्र अथवा मंगल से दूषित हाने से, अथवा चतुर्थेश के साथ राहु हाने से या केन्द्र
में शनि-राहु की युति हाने से दारिद्र्य योग होता है। ये सब योग पुरुषराशि में
विशेषरूप से अनुभवगोचर होते हैं। चतुर्थ राहु पुरुषराशि में होने से जन्मसमय से ही पिता को सर्वप्रकार से
आर्थिक कष्ट देता है-दीवाला होना-नौकरी छूटना आदि बुरे फल प्राप्त होते हैं।