Nave bhav me rahu ka shubh ashubh samanya fal
नवें भाव में राहु का शुभ अशुभ सामान्य फल
शुभ फल : नवें स्थान पर स्थित राहु के प्रभाव से जातक परिश्रमशील, आस्तिक, कृपालु, परिवार को स्नेह करने वाला गुणवान बनता है। जातक प्रवासी, तीर्थाटनशील, धर्मात्मा, दयालु, सभ्य और सहृदय होता है। नवमस्थ राहु का जातक विद्वान् होता है, अपने गुणों से लोगों में पूज्य, मान्य और आदरपात्र होता है। अपने चातु्यर्य आदि गुणों से सभा को भी प्रकाशित अर्थात् चमत्कृत करनेवाला होता है। जातक देवताओं और तीर्थों से श्रद्धा और विश्वास तथा भक्ति रखनेवाला होता है। जातक किये हुए उपकार को भूलता नहीं है, अर्थात् कृतघ्न नहीं प्रत्युत कृतज्ञतागुणसम्पन्न होता है। जातक सर्वदा कुटुम्ब का पालन करता है। जातक धन का दान देनेवाला, पुण्य करनेवाला, अपने परिजनों के मार्ग पर चलनेवाला और निर्मल कीर्तिवाला होता है। राहु नवमभाव में होने से जातक प्रारम्भ किए हुए काम को अधूरा नहीं छोड़ता है। अर्थात् अपने हाथ में लिए हुए काम को सफल बनाने के लिए उस समय तक उद्यमशील रहता है जब तक काम फलोन्मुखन न हो। सुधारवादी विचार, उन्नत आत्मशक्ति, जगत के कल्याण के लिये प्रयत्नशील होता हैं। कई प्रकार की कलाओं में निपुण बनता है। राज परिवार से संपर्क होते हैं।
नवमभाव में राहु होने से जातक विबिधरत्न, जरीदार वस्त्रों से युक्त-बहुतों का स्वामी और सुखी होता है। जातक के घर पर नौकर चाकर रहते हैं। सेवक बहुत होते हैं। धनी, सुखी, भाग्यवान होता है। सभा में विजयी होता है। स्त्री की इच्छा का पालन करता है। बन्धुओं में स्नेह करता है। स्वदेशीय उद्योग में लाभ होता है। जातक गाँव या नगरप्रमुख होता है। भाइयों की एकत्र प्रगति में नवमभाव का राहु बाधक होता है। यदि विभाजन हो और एकत्र स्थिति न हो तो दोनों भाई प्रगति कर पाते हैं। राहु स्वगृह या उच्च में होने से शुभफल देता है। राहु वृष, मिथुन, कर्क, कन्या या मेष में हो तो उत्तम यश देता है।पुरुषराशि में नवमस्थ राहु होने से जातक बाप का इकलौता बेटा होता है। अथवा सबसे बड़ा या छोटा होता है-इससे बड़ी या छोटी बहनें होती हैं बहनें न हों तो यह राहु भाई को मारक होता है।
अशुभ फल : राहु नवम में होने से जातक धर्महीन, कर्महीन, निर्धन, धूर्त, शूर्तप्रिय, सभी प्रकार के सुखों से हीन तथा अभागा होता है। धर्म पर श्रद्धा कम होती है। धर्म की निन्दा करनेवाला, धर्मभ्रष्ट तथा कर्तव्य रहित होता है। राहु नवमभाव में होने से जातक नीचों के धर्म में आसक्त, सत्यहीन, पवित्राचरणहीन, भाग्यहीन तथा मन्दमति होता है। जातक जाति का अभिमानी, झूठ बोलनेवाला, एवं दुष्टबुद्धि होता है। चुगुल और गन्दे कपड़े पहननेवाला होता है। नवमभाव का राहु होने से जातक का धर्म नष्ट होता है। अशुभ काम करनेवाला होता है। पापाचरण करनेवाला होता है। सुख कम मिलता है। नवमभाव में राहु होने से जातक भाग्योदय से रहित और धनहीन होता है। जातक घुमक्कड़ होता है। अपने जाति के लोगों के आमोद-प्रमोद में कोई उत्साह नहीं होता है। भाई बांधवों से विरोध होता है। बाँधवों से सुख कम मिलता है। शत्रुओं से भय होता है। धर्महीन, पापी तथा दुष्टों की संगति में रहता है। युद्ध में जातक का पैर जख्मी होता है। राहु के नवमभाव में होने से जातक प्रतिकूल वाणी बोलनेवाला है। शुद्रास्त्री का उपभोग करता है।
नवमस्थ राहु का जातक पुत्रहीन होता है। जातक
वातरोगी होता है। शरीर में पीड़ा रहती है। धर्म द्वेष्टा तथा पिता से द्वेष
रखनेवाला होता है। लोकनिन्दा और कष्ट प्राप्त होता है। नौकरी करनेवाला होता है। धन
की इच्छा से विदेश से व्यापार करे तो नुकसान होता है। विदेशी बैंकों में धन डूबता
है। 16 वें वर्ष से भाग्योदय, 9 वें वर्ष में बन्धुकष्ट-बहन की मृत्यु, 22 वें वर्ष में बड़े भाई की मृत्यु, ये फल नवमस्थ राहु के हैं। मिथुन, तुला और कुम्भ
राशि मे राहु होने से विवाह सम्बन्ध में जातक जाति या वर्ग का ख्याल नहीं
रखता। विजातीय विवाह भी करता है उम्र
में अधिक स्त्री या विधवा से विवाह भी अनुकूल माना जाता है। मिथुन, तुला, कुम्भ में राहु होने से जातक की स्त्री पर स्वामित्व की
भावना रहती है। पुत्र संतति या तो होती नहीं-हो तो मृत होती है। संतान के लिए
द्वितीय विवाह की आवश्यकता होती है। इस भाव के राहु विदेशगमन, विदेशीय स्त्री से विवाह का योग होता है। 5वें वर्ष में भ्रातृमृत्यु 36 वें वर्ष में
भाग्योदय होता है। अशुभ फलों का अनुभव
पुरुषराशिें में आता है।