Tisre bhav me rahu ka shubh ashubh samanya fal
तीसरे भाव में राहु का शुभ अशुभ सामान्य फल
शुभ फल : तीसरे स्थान का राहु अरिष्टनाशक, और दु:खनाशक माना गया है।तीसरे स्थान के राहु से व्यक्ति दृढ़ शरीर नीरोग, बलवान् होता है। बाहुबल बहुत होता है। जातक पराक्रमी, साहसी, उद्योगी, प्रतापी, दृढ़विवेकी, प्रवासी, विद्वान् एवं भाग्यवान होता है। तृतीयभावगत राहु प्रभावान्वित जातक त्वरितबुद्धि और चपल होता है। संसार में कीर्तिमान होता है। यशस्वी, प्रतिष्ठित और दानी होता है। सर्वदा सब से मैत्री और सभी के साथ समभाव से आदर पूर्ण व्यवहार करता है। किसी से भेदभाव नहीं करता और शुद्ध अंतस्करण से व्यवहार करता है। भाग्योदय द्वारा द्रव्य लाभ सहज ही होता है, और यत्न करने की विशेष आवश्यकता नहीं रहती है।
जातक लक्षाधीश, सुखी और चिरकाल तक धन पाने वाला होता है। जातक का उत्तम भाग्य होता है। वह भाइयों को सहयोग प्रदान करता है। कई प्रकार के सुखों का उपभोग करता है। विलास आदि का सुख प्राप्त होता है। वाहन और नौकर प्राप्त होते हैं। राजबल से युक्त, राजा द्वारा सम्मानित होता है। योगाभ्यासी होता है। शत्रुओं के ऐश्चर्य का नाश करता है। स्वयं शुभ मार्ग पर चलता है। मित्रसुख सम्पन्न होता है। जातक परदेश में जाता है। जातक के घर में तिल, निष्पाव, मूंग, कोदव आदि धान्य होते हैं। निष्पाव एक प्रकार की दाल है। राहु बलवान होने से शत्रुओं का नाशक, शत्रुभय रहित होता है। राहु की शांति के सरल उपाय
अशुभ फल : तृतीयभाव में राहु
होने से शरीर में व्यंग रहता है। जातक अभिमानी, भीरु, संशयी वृत्ति का, आलसी होता है। भाइयों का विरोध करने वाला होता है। जातक के
भाइयों की मृत्यु होती है। इस स्थान के राहु से किसी भाई का संसार नहीं चलेगा,
किसी की अपघात से मृत्यु
होगी। कोई लापता होगा। किसी से अदालत में मुकदमें लड़ने पड़ेंगे। इस तरह
तृतीयभावस्थ राहु भ्रातृ सुख का बाधक है। इस स्थान का राहु पहले पुत्र का भी मारक
है। इस स्थान के राहु से दो भाई एक स्थान पर नहीं रह सकते। पशुओं की मृत्यु होती
है। पशुधन नष्ट होता है। जातक मानसिक रोगों से युक्त होता है। बहुत स्वप्न आते
हैं। तृतीयस्थ पुरुषराशि का राहु
भ्रातृ मारक है-या तो भाई होंगे नहीं और यदि हुए तो ये निरुद्यमी और पुत्रहीन
होंगे।