Barve bhav me rahu ka shubh ashubh samanya fal
बारहवें भाव में राहु का शुभ अशुभ सामान्य फल
शुभ फल : स्त्रीराशि में राहु होने से जातक महत्वाकांक्षी, उदार, उच्च आदर्शवाला, वाड्मयप्रेमी और मिलनसार होता है। यह राहु मनुष्य को पराक्रमी और यशस्वी बनाता है। राहु द्वादशभाव में होने से जातक रूपवान्, परिश्रमी, बहुत सुखी होता है। जातक परोपकारी होता है। अध्यात्मज्ञान के लिए यह शुभ है। वेदान्त की रुचि हो तो साधुवृत्ति होता है। सार्वजनिक संस्थाओं से लाभ होता है। जातक एक जगह स्थिर होकर बैठता है तो इसकी इच्छाएँ पूरी होती हैं। प्रयत्न करने पर भी (आदि में) अनिष्टफल तथा अन्त में शुभफल होता है। राहु शत्रुनाशक होता है। जातक की पहली उमर में स्थिरता नहीं होती, कुटुम्ब छोड़कर दूर उत्तर की ओर जीविका के लिए जाना पड़ता है। यह राहु जन्मभूमि में लाभ नहीं देता, बाहर भाग्योदय होता है। जातक बहुत कमाता है। खर्च भी बहुत करता है।
द्वादशभावस्थराहु से निम्नलिखित बातें सम्भावित होती हैं-12 वें वर्ष में माता वा पिता की मृत्यु, 21-22 वर्ष में जीविका का प्रारम्भ, 16 वें वर्ष में पैतृक धन का लाभ 35 वें वर्ष भाग्योदय, बचपन में पहिला विवाह हुआ हो तो 21 वें वर्ष दूसरा विवाह होता है। अथवा 32 से 36 वें वर्ष तक दूसरे विवाह की सम्भावना होती है। पुरुषराशि में जातक को पुत्र संतान कम होती है। एक या दो ही संतति होती है। राहु उच्च या स्वगृह में होने से शुभ फल देता है। द्वादश स्थान में मिथुन, धनु, या मीन में राहु मुक्तिदायक होता है।
अशुभ फल : राहु द्वादशभाव में होने से जातक विवेकहीन, मतिमन्द, मूर्ख, चिन्ताशील होता है। जातक कलहप्रिय, व्यर्थ की बकवास करने वाला होता है। जातक प्रपंची होता है। प्रपन्च में लगा रहता है। राहु द्वादशभाव में होने से जातक नीचकर्म करनेवाला, पापी विचारों का, छल-कपट करनेवाला, गुप्तरूप से पाप करता है। जातक घर में झगड़ा करता है, और कुल को कलंकित करने वाला होता है। बुरे नखवाला और गन्दे कपड़े पहननेवाला होता है। राहु द्वादशभाव में होने से जातक दुर्बल, अपने बाधवों का वैरी या विरोधी होता है। जातक सज्जन पुरुषों से द्वेष और दुर्जन व्यक्तियों से मित्रता रखता है। दुष्टों का मित्र और सज्जनों का शत्रु होता है। राहु द्वादशभाव में होने से जातक व्यर्थ समय वितानेवाला, कर्जा करने वाला और दरिद्र होता है। जातक बुरे कामों में धन का खर्च करनेवाला, अतिव्ययी होता है। दुष्टजनों के संसर्ग में रहकर दुर्व्यसनों में पैसा खर्च करता है। अतएव आर्थिक चिन्ता से घिरा रहता है। जातक का धन म्लेच्छ और भील लूटते हैं।
राहु की शांति के सरल उपाय
द्वादशभाव में राहु होने से दीन होता है। वैद्यनाथ ने "धनप्राप्ति"
तो शेष लेखकों ने दारिद्र्य फल बतलाया है। स्त्री से दूर रहनेवाला, और स्त्री को कष्ट होता है। राहु द्वादशभाव में
होने से जातक कामुक होता है। बारहवें भाव में राहु की स्थिति नेत्ररोग, आंखों में बीमारी या मन्द दृष्टि संभव है।
पैरों में चोट या पाँव पर जख्म होते हैं। पार्श्व या पसली में और हृदय में वातजन्य
शूल होता है। राहु द्वादशभाव में होने से जलोदार रोग से पीडि़त होता है। द्वादशभाव
में राहु होने से -गिर पड़ता है। व्यंग से युक्त होता है। बारहवें स्थान में राहु
जीवन में असफलता अधिक देता है। चाहे जितना उद्योग किया जावे काम में सफलता नहीं
मिलती-उलटे काम विगड़ता है। इधर-उधर घूमता फिरता है किन्तु धन प्राप्त नहीं होता
प्रत्युत काम विगड़ जाते हैं। राजा से पीड़ा होती है। मामा की मृत्यु होती है। दो
विवाह होते हैं। पुरुषराशि में राहु
होने से नेत्ररोग सम्भव हैं। आचार्यों
ने प्राय: द्वादश राहु के अशुभफल ही बतलाए हैं- अशुभफल पुरुषराशियों में अनुभव में
आते हैं।