Pahle bhav me ketu ka shubh ashubh samanya fal
पहले भाव में केतु का
शुभ अशुभ सामान्य फल
शुभ फल : जातक परिश्रमी, धनी, सुखी होता है। भाई-बन्धु का सुख मिलता है।
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अशुभ फल : आचार्यों ने प्राय: लग्नभाव में केतु के अशुभफल ही बतलाए हैं। लग्न में केतु होने से जातक चंचल, भीरु, डरपोक और पलानयवादी होता है। जातक भय से व्याकुल, व्यग्र, चिन्तातुर और उद्विग्न होता है। केतु चित्त में घबराहट भी करता है। सर्वदा चिप्त में भ्रम और मानसिक चिन्ता की अधिकता रहती है। लग्नभाव में केतु होने से जातक दुराचारी, मूर्ख, कृतघ्न, दु:खी, दुष्ट, निस्तेज, झूठ बोलने वाला होता है। विद्या से कोई लगाव नहीं होता, अगर जैसे तैसे पढ़ता भी है तो उससे विवेकशील नहीं बनता और मूर्ख ही रहता है, इसलिये बाद में पछताने जैसे कार्य करता रहता है। भाई-बन्धु जातक को कष्ट देते हैं और जातक सहन करता रहता है। केतु लग्न में होने से जातक को अपने बंधुजनों से निरंतर महान् क्लेश होता है।
लग्न में केतु होने से बांधवों को कष्ट होता है। केतु
लग्न में होने से स्त्री को कष्ट, स्त्री-पुत्र आदि की चिन्ता से युक्त रहता है। लग्न में केतु होने से जातक की
पत्नी की मृत्यु हो सकती है। दुर्जनों से सदा भय होता है। बुरी संगति से युक्त
होता है। मामा को कष्ट होता है। प्रथम भाव में केतु होने से जातक शरीर में अनेक
प्रकार से वातरोग की पीड़ा होती है। पेट में दर्द आदि पीड़ा अधिक होती है। शरीर
में विकलता और पेट में दर्द आदि पीड़ा अधिक होती है। बाहु का रोग होता है। केतु
लग्न में केतु होने से जातक के शरीर का अवयव टूटता है। रोग बढ़ता है और अपघात होता
है।