Barah bhavo me ketu ka shubh ashubh samanya fal or upay
बारह भावों में केतु का शुभ अशुभ सामान्य फल और उपाय
केतु एक रूप में
स्वरभानु नामक असुर के सिर का धड़ है। यह सिर समुद्र मन्थन के समय मोहिनी अवतार
रूपी भगवान विष्णु ने काट दिया था। यह एक छाया ग्रह है। माना जाता है कि
इसका मानव जीवन एवं पूरी सृष्टि पर अत्यधिक प्रभाव रहता है। कुछ मनुष्यों के लिये
ये ग्रह ख्याति पाने का अत्यंत सहायक रहता है। केतु को प्रायः सिर पर कोई रत्न या तारा लिये
हुए दिखाया जाता है, जिससे रहस्यमयी
प्रकाश निकल रहा होता है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार राहु और केतु, सूर्य एवं चंद्र के परिक्रमा पथों के आपस में
काटने के दो बिन्दुओं के द्योतक हैं जो पृथ्वी के सापेक्ष एक दुसरे के उलटी दिशा में (१८०
डिग्री पर) स्थित रहते हैं। चुकी ये ग्रह कोई खगोलीय पिंड नहीं हैं, इन्हें छाया ग्रह कहा जाता है। सूर्य और चंद्र
के ब्रह्मांड में अपने-अपने पथ पर चलने के कारण ही राहु और केतु की स्थिति भी साथ-साथ
बदलती रहती है। तभी, पूर्णिमा के समय
यदि चाँद केतु (अथवा राहू) बिंदु पर भी रहे तो पृथ्वी की छाया परने से चंद्र ग्रहण लगता है,
क्योंकि पूर्णिमा के समय चंद्रमा और सूर्य एक
दुसरे के उलटी दिशा में होते हैं। ये तथ्य इस कथा का जन्मदाता बना कि "वक्र
चंद्रमा ग्रसे ना राहू"। अंग्रेज़ी या यूरोपीय विज्ञान में राहू एवं केतु को
क्रमशः उत्तरी एवं दक्षिणी लूनर नोड कहते हैं
हिन्दू ज्योतिष
में केतु अच्छी व बुरी आध्यात्मिकता एवं पराप्राकृतिक प्रभावों का कार्मिक संग्रह
का द्योतक है। केतु विष्णु के
मत्स्य अवतार से संबंधित है। केतु भावना भौतिकीकरण के शोधन के आध्यात्मिक प्रक्रिया का प्रतीक है और
हानिकर और लाभदायक, दोनों ही ओर माना
जाता है, क्योंकि ये जहां एक ओर
दुःख एवं हानि देता है, वहीं दूसरी ओर एक व्यक्ति को देवता तक बना
सकता है। यह व्यक्ति को आध्यात्मिकता की ओर मोड़ने के लिये भौतिक हानि तक करा सकता
है। यह ग्रह तर्क, बुद्धि, ज्ञान, वैराग्य, कल्पना, अंतर्दृष्टि, मर्मज्ञता, विक्षोभ और अन्य
मानसिक गुणों का कारक है। माना जाता है कि केतु भक्त के परिवार को समृद्धि दिलाता
है, सर्पदंश या अन्य रोगों के
प्रभाव से हुए विष के प्रभाव से मुक्ति दिलाता है। ये अपने भक्तों को अच्छा स्वास्थ्य, धन-संपदा व पशु-संपदा दिलाता है। मनुष्य के
शरीर में केतु अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। ज्योतिष गणनाओं के लिए केतु को कुछ
ज्योतिषी तटस्थ अथवा नपुंसक ग्रह मानते हैं जबकि कुछ अन्य इसे नर ग्रह मानते हैं।
केतु स्वभाव से मंगल की भांति ही एक क्रूर ग्रह हैं तथा मंगल के प्रतिनिधित्व में आने वाले कई
क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व केतु भी करता है। यह ग्रह तीन नक्षत्रों का स्वामी है:
अश्विनी, मघा एवं मूल नक्षत्र। यही
केतु जन्म कुण्डली में
राहु के साथ मिलकर कालसर्प योग की स्थिति बनाता है।
केतु के अधीन आने
वाले जातक जीवन में अच्छी ऊंचाइयों पर पहुंचते हैं, जिनमें से अधिकांश आध्यात्मिक ऊंचाईयों पर होते हैं। केतु
की पत्नी सिंहिका और विप्रचित्ति में से एक के एक सौ एक पुत्र हुए जिनमें से राहू
ज्येष्ठतम है एवं अन्य केतु ही कहलाते हैं। केतु की पृथ्वी से दूरी, व्यास, गति, चक्रत्व सभी कुछ राहु के समान ही है एवं राहु
के ठीक सामने होता है फल राहु से भिन्न
होता है किंतु दुर्घटना, जलघात का प्रमुख
कारक ग्रह होता है इसका पैरों के
तलवों पर विशेषाधिकार होता है यह मेष राशि का
स्वामी है एवं अत्यंत बली तथा मोक्षप्रद माना गया है इसके अपने नक्षत्र अश्विनी, मघा तथा मूल हैं यह नपुंसकलिंग और तामस स्वभाव वाला है केतु की मित्र राशियां मिथुन, कन्या, धनु, मकर और मीन हैं यह गुरु के साथ सात्विक तथा चंद्र एवं सूर्य के साथ शत्रु व्यवहार करता है अपने स्थान से सप्तम स्थान को यह पूर्ण दृष्टि
से देखता है इसकी विंशोत्तरी महादशा काल 7 वर्ष की होती है
यह भी क्रूर ग्रह तथा
कृष्ण वर्ण का माना गया है चर्म रोग,
हाथ-पांव के रोगों का अध्ययन इस ग्रह के माध्यम से
होता है केतु के अशुभ प्रभाव से
गुप्त बीमारियों, गुप्त चिंताओं का
भय रहता है बिच्छू अथवा
सर्पदंश की संभावना भी रहती है आग लगने एवं
हड्डी टूटने का अंदेशा रहता है इसका प्रभाव मंगल
जैसा ही होता है फर्क इतना होता
है कि मंगल का स्पष्ट और सामने होता है जबकि केतु गुप्त रूप से आक्रमण करता है केतु द्वारा उत्पन्न हुई बीमारी तो कभी-कभी
सालों बाद पकड़ने में आती हैं जैसे कैंसर अथवा अल्सर जिस व्यक्ति की कुंडली में केतु अरिष्ट हो उसे सतर्क रहना चाहिए