Pachve bhav me ketu ka shubh ashubh samanya fal
पांचवें भाव में
केतुु का शुभ अशुभ सामान्य फल
शुभ फल : पाँचवे स्थान में केतु होने से जातक वीर्यवान् अर्थात् बलवान् होता है। अल्प-सन्तति होता है-एक या दो पुत्र होते हैं। पुत्र थोड़े और कन्याएँ अधिक होती हैं। जातक की सन्तति जातक के बान्धवों को प्यारी होती है। गायें आदि पशुओं का लाभ होता है अर्थात् इसे पशुधन प्राप्त रहता है। तीर्थयात्रा या विदेश में रहने की प्रवृत्ति होती है। जातक बड़ा पराक्रमी होकर भी दूसरों का नौकर बनकर रहता है। नौकरों से युक्त होता है। कपट से लाभ होता है। बन्धु सुखी होते हैं। जातक के उपदेश प्रभावी होते हैं। विदेश जाने का इच्छुक होता है। सिंह, धनु, मीन या वृश्चिक में यह केतु अच्छा सुख या ऐश्वर्य देता है। उच्च या स्वगृह में स्वतन्त्र और बलवान् केतु होने से राजयोग या मठाधीश होने का योग होता है। केतु शुभराशि में, स्वगृह में या उच्चराशि में होने से शुभफल मिलता है।
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अशुभ फल : पंचम में केतु होने से जातक शठ, कपटी, मत्सरी, दुर्बल, डरपोक और धैर्यहीन होता है। पंचमभाव में केतु से जातक खलप्रकृति, कुचाली और दुर्बुद्धि होता है। जातक मूर्खता भरे कार्य करता है और पछताता है।
जातक की बुद्धि दूषित होती है इससे मानसिक व्यथा या शरीरिक कष्ट होता है। अपने ही
भ्रमात्मक ज्ञान से-अपनी ही गलती से शरीर में क्लेश होता है। अत्याधिक पीड़ा भी
होती है। सदैव दु:खी और पानी से डरने वाला होता है। जातक विद्या और ज्ञान से वंचित
रहता है। पाँचवें स्थान में केतु होने से जातक के सगे भाइयों को शस्त्र से अथवा
वायुरोग से कष्ट होता है। पंचमभाव में केतु होने से सहोदरों में झगड़ा और
वाद-विवाद से कष्ट होता है। भाई-बन्धुओं से पीडि़त जातक मंत्र-तंत्र से भाइयों का
घात करता है। पंचम भाव में केतु से सन्ततिहानि होती है अर्थात् या तो सन्तति होती
नहीं और यदि होती है तो नष्ट हो जाती है। निरन्तर पुत्र के साथ कलह होने के कारण
पुत्रसुख नहीं होता है। पंचम में केतु होने से पुत्र नष्ट होते हैं। वात रोगों से
पीडि़त रहता है। जिसके पंचमभाव में केतु हाने से अपने शरीर (पेट आदि) पर शस्त्रघात
से अथवा ऊँचे स्थान पर से गिर पड़ने के कारण कष्ट होता है। पंचम में केतु होने से
जातक के पेट में वातरोग से कष्ट होता है। पेट में रोग तथा विशाच से पीड़ा होती है।