Mithun rashi ka sampurn parichay
मिथुन राशि का संपूर्ण परिचय
मिथुन राशि के अंतर्गत आने वाले नामाक्षर निम्न हैः- का, की, कू, घ, ड., के, को, हा।
मिथुन राशिचक्र की तीसरी राशि है। इस राशि का प्रतीक स्त्री पुरूष का जोडा है। अतः यह द्विस्वभाव वाली राशि है। इसका विस्तार राशिचक्र के 60 अंश से 90 अंश तक है। इसका स्वामी बुध है। वायु तत्व वाली राशि है। इसके तीन द्रेष्काणों के स्वामी क्रमशः बुध - बुध, बुध - शुक्र, और बुध - शनि है। इसके अंतर्गत मृगशिरा के अन्तिम दो चरण, आद्र्रा के चारों चरण तथा पुनर्वसु के तीन चरण आते है। इन चरणों के स्वामी इस प्रकार है- मृगशिरा तृतीय चरणः मंगल- शुक्र। चतुर्थ चरणः मंगल- मंगल। आद्र्रा प्रथम चरणः राहु- गुरू। द्वितीय चरणः राहु- शनि। तृतीय चरणः राहु - शनि। चतुर्थ चरणः राहु- गुरू। पुनर्वसु प्रथम चरणः गुरू- मंगल। द्वितीय चरणः गुरू- शुक्र। तृतीय चरणः गुरू - बुध। इन चरणों के नामाक्षर क्रमशः इस प्रकार है- का, की, कू, घ, ड., के, को, हा।
त्रिशांश विभाजन में 0 से 5 अंश तक मंगल मेष के, 5 से 10 अंश तक शनि कुंभ के, 10 से 18 अंश तक गुरू धनु के, 18 से 25 तक बुध मिथुन के, तथा 25 से 30 अंश तक शुक्र तुला के है।
जिन व्यक्तियों के जन्म समय निरयण चंद्र मिथुन राशि में संचरण कर रहा होता है, उनकी जन्म राशि मिथुन होती है। उन्हें गोचर में अपने फल इसी के अनुसार देखने चाहिये। जन्म के समय लग्न में मिथुन राशि होने से भी यह अपना प्रभाव दिखाती है। सायन सूर्य 22 मई से 21 जून तक मिथुन राशि में रहता है। यही अवधि शक संवत् के ज्येष्ठ मास की है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इन तिथियों में एक दो दिन का हेर फेर भी हो सकता है। जिन व्यक्तियों की जन्म तिथि इस समय के बीच में है, वे पश्चिमी ज्योतिष पर आधारित फलादेशों को मिथुन राशि के अनुसार देख सकते है। निरयण सूर्य लगभग 16 जून से 16 जुलाई तक मिथुन में रहता है।
ग्रह मैत्री के अनुसार मिथुन राशि चंद्र, शुक्र, व शनि के लिये मित्र राशि, सूर्य के लिये सम राशि तथा मंगल और गुरू के लिये शत्रु राशि है। इस राशि में कोई ग्रह अपनी उच्च या नीच स्थिति में नहीं होता। गुरू के लिये यह अस्त राशि है।
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प्रकृति और स्वभावः-
सभी राशियों के जातकों में मिथुन जातकों को सबसे अधिक दुर्बोध माना जाता है। इस राशि को समझने के लिये इसके प्रतीक चिन्ह पर विशेष ध्यान देना चाहिये। मिथुन का प्रतीक स्त्री व पुरूष का जोडा है। जब व्यक्ति का एक ही मस्तिष्क आश्चर्यचकित करने में सक्षम होता है तो दो मस्तिष्क मिल जाये तो, और वो भी एक पुरूष और दूसरा स्त्री का, तो कहना ही क्या। स्त्री और पुरूष के संबंधों में जो भी रहस्य संभव है, वे सभी मिथुन व्यक्ति के मस्तिष्क में मिल सकते है।
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मिथुन राशि चक्र की पहली वायु तत्व वाली राशि है। उसका स्वामी बुध देवकुल का पक्षधारी दूत है। उसके पास ऐसी पादुकाएं है, जिनके द्वारा वह पलभर में ही कहीं से भी कहीं पहुंच सकता है। यह पहली द्विस्वभाव राशि है। बुध शरीर में मस्तिष्क का प्रतिनिधित्व करता है। इस पृष्ठभूमि में मिथुन व्यक्ति को समझने का प्रयास किया जा सकता है। यह जातक मस्तिष्क प्रधान होता है। उसके एक मस्तिष्क में दो मस्तिष्क कार्य करते है - एक स्त्री का तथा दूसरा पुरूष का। वह बहुत कल्पनाशील होता है। कल्पना के पखों पर सवार होकर कहीं भी घूम आता है। उसके स्वभाव में विरोधाभास होता है। हमेशा दोराहे पर सवार रहता है। एक क्षण में गंभीर हो जाता है तो दूसरे ही क्षण मजाक करने लग जाता है। यह स्वभाव उसके यौन व्यवहार में भी दिखाई देता है। और उसमें भी उभयलिंगी अथवा समलिंगी प्रवृति मिल सकती है। मिथुन व्यक्ति का जीवन बैरोमीटर के पारे की तरह उतरता चढता रहता है। उसके लिये हर पल का एक अलग अस्तित्व होता है। उसके विचार पल पल में बदलते रहते है। इसलिये वह अपनी कही हुई बात से तुरंत पलट जाता है।
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मिथुन राशि का स्वामी बुध, व्यक्ति को अनेक गुण प्रदान करता है- अनेक विषयों में रूचि, नीति में कुशल, दूसरे के मन की बात को जानना, दूरदृष्टि, बहुमुखी प्रतिभा आदि। उससे अधिक शीघ्रता से, उससे अधिक शालीनता से, उससे अधिक सफलता से काम करने वाला दूसरा कोई नहीं मिल सकता। शर्त एक ही है कि वह उस काम को करने का संकल्प ले। इसके जीवन की सबसे बडी कमी यही है कि एक ही काम पर वह ज्यादा दिन नहीं टिकता। मिथुन जातक बोलने में बहुत होशियार होता है। अपनी वाणी से वह सामने वाले का मन जीत लेता है। यदि इच्छा हो तो दूसरे की बात भी सुनता है और अपनी ज्यादा कहता है। वह खुद किसी की भी बात से सहमत नहीं होता। अपने किये गये वादे से भी मुकर जाता है। एक जगह टिक कर नहीं बैठता। जहां पैसा पास में हो और घूमने की सुविधा हो तो तुरंत उठकर चल देते है। उसे गति या चंचलता से प्यार है। यात्रा पसंद करता है।
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काम पूरा होने के बाद भी वह उससे संतुष्ट नहीं होता। अपना ही सबसे बडा आलोचक होता है। परिणामस्वरूप वह एक नई चुनौती को पूरा करने का बोझ उठा लेता है। मिथुन व्यक्ति जीवन के मूल उद्देश्य अपने और दूसरों के जीवन को अधिक सरस, अधिक सुंदर बनाने का होता है। इसके लिये वह उन्हें मानसिक भोजन प्रदान करता है। बौ़िद्धक संतोष उसकी प्रेरक शक्ति है। कोई भी नई समस्या उठ खडी होने पर वह उसे तब तक जूझता रहेगा, जब तक उसकी जड तक नहीं पहुंच जाता। अपनी अभिव्यक्ति के लिये उसे साथियों और मित्रों की जरूरत होती है।
मिथुन स्त्री, पुरूष से भिन्न नहीं होती। वह अपनी बुद्धि और चतुराई से वह पुरूषों को आकर्षित करने में सफल होती है। कभी कभी उसके बातूनी स्वभाव से कुछ परेशानियां भी हो जाती है।
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मिथुन व्यक्ति को उन अवगुणों से भी विशेष सावधान रहना चाहिये जो यह द्विस्वभाव राशि उसके अंदर पैदा करती है। सबसे बडा अवगुण अहम् का है। विविधता की लालसा उसे चंचल और बेचैन बनाए रखती है। ऐसा व्यक्ति रोजाना के कामों को बिल्कुल भी पसंद नहीं करता। यदि करना भी पडे तो ऐसा दिखाता है कि मानों किसी जानवर को पिंजरे में कैद करके रखा हो। वह नाम वाले हर काम में आगे रहना चाहता है और पीछे बैठाने पर सोचता है कि उसका सही उपयोग नहीं किया जा रहा है। मिथुन जातक के लिये सबसे अधिक आवश्यक अपनी शक्तियों को विभिन्न दिशाओं में बिखरने न देना है।
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आर्थिक क्षेत्रः-
आर्थिक क्षेत्र में भी मिथुन जातक लगभग हमेशा दो नावों पर सवार रहता है। वह ऐसे काम करना पसंद करते है, जिनमें वे रातों रात की करोडपति बन जाये। जैसे सट्टा, शेयर, कम्पनी प्रोमोटर आदि। इनमें नये खोजों से लाभ उठाते है। लेकिन इसमें उन्हें कितनी ही सफलता मिले, वे संतुष्ट नहीं हो पाते। परिणामस्वरूप अधिक पैसा कमाने के चक्कर में अपनी सीमा से बाहर कार्य करने लगते है और नुकसान उठाते है। इससे उनके आर्थिक जीवन में उतार चढान आता रहता है।
बुध दिमाग पर नियंत्रण रखता है। इसलिये मिथुन जातक ऐसे कामों में अधिक सफल होते है, जिनमें बुद्धि की जरूरत ज्यादा हो। वाक्पटु होने के कारण वे कुशल कूटनीतिज्ञ और राजनीतिक सलाहकार भी बन सकते है। अपनी जिज्ञासु और अन्वेषण स्वभाव के कारण वे हर प्रकार के अनुसंधान कार्य में सफल हो सकते है। वे अच्छे पत्रकार, लेखक, भाषाविज्ञ, योजनाकार, आदि बन सकते है। यात्रा प्रिय होने के कारण वे व्यावसायिक एजेंट की भूमिका कुशलता से निभा सकते है। ये अच्छे वकील, उपदेशक, व्याख्याता, बन सकते है। निरंतर अभिव्यक्ति की खोज में रहने के कारण संगीत, चित्रकला, नृत्य आदि को भी अपनी आजीविका का माध्यम बनाते है।
मिथुन जातक निम्न व्यवसाय करते हुये पाये जाते है-
लेखाकार, क्लर्क, व्यावसायिक एजेंट, पत्रकार, शिक्षक, व्याख्याता, वकील, डाक कर्मचारी, कलाकार, गाइड, फोटोग्राफर, परिवहन कर्मचारी, सचिव, निजी सहायक, खजांची, अनुवादक, साइकिल स्कूटर विक्रेता, स्टेशनरी विके्रता, इंजीनियरिंग ठेकेदार, संदेशवाहक, दूतावास अधिकारी, मंच वक्ता, शेयर बाजार के दलाल, कम्पनी प्रोमोटर आदि। प्रेम
मैत्री, प्रेम , विवाह आदिः-
मिथुन जातक दोस्तों के बिना नहीं रह सकते। अपने संपर्क में आने वाले किसी भी अजनबी को वे अपनी वाणी से तुरंत अपना मित्र बना लेते है। वे अपने दोस्तों का सत्कार भी खूब करते है। उनके प्रति दया और उदारता रखते है। लेकिन यह सब तभी तक होता है जब तक वे लोग आंखों के सामने हो। नजरों से दूर होते ही वे उनके दिमाग से भी गायब हो जाते है। प्रेम प्रसंगों में भी मिथुन जातक एक पहेली ही रहते है। एक पल में वे कसकर प्यार करते है तो दूसरे ही पल में वे छोड देते है। अनेक मिथुन व्यक्तियों के दो परिवार भी पाये जाते है। अपनी व्यवहार कुशलता से वे दोनों परिवारों को एक साथ निभाने में सफल भी होते है। मिथुन प्रेमी अपने प्रेम में शायद ही कभी गंभीर होता हे। गहरा प्रेम होने पर भी कोई अन्य बडी मुसीबत उसे भटका सकती है। वह दिल से नहीं, मस्तिष्क से प्रेम करता है और उसका प्रेम भी प्रायः सुविचारित होता है।
मिथुन पति हरजाई होते है और पत्नी के अलावा भी उनकी प्रेमिका होती है। इसका उनके वैवाहिक जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है। मिथुन पत्नियां भी परपुरूष के प्रभाव से शायद ही बच पाती है। भले ही वह दिल से अपने पति के प्रति निष्ठावान हो। उनके संबंध स्थायी नहीं रह पाते। तलाक के बहुत से मामले में केंद्र बिंदु मिथुन पत्नियां ही होती है। मिथुन जातक को ऐसे जीवनसाथी की आवश्यकता होती है, जो उसकी बौद्धिक रूचियों में उसका साथ दे सके। जो घर से बंधी न हो और पति का मुख खुलते ही उठकर चल दे। उसे अपनी रूचियां पति की रूचियों के अनुरूप बनानी होगीं और पति के हरजाईपन को अधिक गंभीरता से नहीं लेना चाहिये। जहां उसका हित होगा, वह स्वयं धरती पर आ जायेगा और वैवाहिक जीवन में संकट पैदा करने वाले अपने प्रेम प्रसंगों को समाप्त करने में एक क्षण भी नहीं लगायेगा। उसे शांति से समझाया जाना चाहिये। लगातार कुरेदने और उस पर दबाव डालने से प्रतिकूल परिणाम सामने आ सकते है। इससे परेशान होकर वह घर छोड सकता है। मिथुन माता पिता अपने बच्चों से प्यार करते हुये भी उनसे बंधकर नहीं रहना चाहते तथा उनको अपने उपर बोझ समझते है।
स्वास्थ्य और खानपान:-
मिथुन जातक मस्तिष्क प्रधान होता है। अतः जहां स्वास्थ्य की बात आती है, वह मन के प्रभाव से नियंत्रित होता है। इस राशि के व्यक्ति शरीर से प्रायः पुष्ट नहीं होते। किन्तु उनके अंग अंग में चंचलता भरी होती है। उनकी आंखें बहुधा भूरी या नीली होती है। रंग गोरा या काला, दोनों ही हो सकते है। उनका कद लंबा और सीधा होता है। हाथ भी प्रायः लंबे होते है। नाक भी लंबी और तीखी होती है। टांगे पतली होती है और उनकी नसें दिखाई देती है।
मिथुन व्यक्तियों को अधिकांश रोग दिमागी या मन से उत्पन्न होते है। मन प्रसन्न होता है तो वे रोग पीडा को भी चकमा दे देते है। यदि नहीं, तो हर प्रकार के स्नायु रोगों के शिकार हो सकते है। अत्यधिक परिश्रम से वे स्नायविक थकान महसूस करते है। तब उन्हें दवाओं से अधिक नींद, स्वच्छ हवा और उचित भोजन की आवश्यकता होती है। लेकिन अपने स्वभाव के अनुसार वे इस प्रकार की सलाह मानने से इंकार कर सकते है। इन्हें होने वाले प्रमुख रोगों में हकलाना, जिव्हा रोग, प्लूरिसी, निमोनिया जैसे फेफडे के रोग तथा सर्दी, जुकाम, ब्रोंकाइटिस आइसीनोफीलिया, जैसे श्वास रोग हो सकते है। मिथुन से छठा भाव वृश्चिक होने के कारण वे गुप्त रोगों से पीडित भी हो सकते है।
दे्रष्काण, नक्षत्र, तथा त्रिशांश:-
पहले द्रेष्काण में लग्न होने पर उस पर बुध का दुहरा प्रभाव रहता है। ऐसा जातक सदा हवा के घोडों पर सवार रहता है। यदि लग्न द्वितीय द्रेष्काण में हो तो जातक पर बुध के साथ साथ शुक्र का भी प्रभाव रहता है। बुध मस्तिष्क का ग्रह है और शुक्र कला तथा सौन्दर्य का प्रतीक है। ऐसे जातक में एक अच्छा कलाकार बनने की संभावना रहती है। तीसरे द्रेष्काण में लग्न होने पर उस पर बुध के साथ शनि का प्रभाव भी रहता है। शनि जन साधारण का प्रतीक है। ऐसा जातक प्रायः किसी ऐसे आंदोलन से जुड जाता है, जिसका संबंध आम जनता से हो। वह किसी शोध कार्य में प्रवृत हो सकता है।
मिथुन राशि के अंतर्गत मृगशिरा के दो चरण, आद्र्रा के चारों चरण और पुनर्वसु के तीन चरण आते है। चंद्र या नामाक्षर मृगशिरा के तृतीय चरण में होने पर जातक में आवेग तथा परंपरा से विद्रोह की मात्रा में वृद्धि होती है। चैथे चरण में मंगल के साथ मंगल उस आवेग को और बढा देता है। जातक में स्वच्छंदता की प्रवृति बढ जाती है। आद्र्रा का पहला चरण जातक को कुछ बहिर्मुखी बनाता है। जबकि दूसरा चरण गंभीरता और तीसरा चरण उसमें नवीन खोज की या आंदोलन की प्रवृत्ति प्रदान करता है। आद्र्रा के चैथे चरण में गुरू बौद्धिकता को कम करके भावनात्मकता में वृद्धि करता है। पुनर्वसु का पहला चरण स्वच्छंदता और तीसरा चरण जातक को कलात्मक प्रवृतियों की ओर उन्मुख करता है। पुनर्वसु का तीसरा चरण उसे बौद्धिकता की तरफ ले जाता है।
मंगल का त्रिशांश 0 - 5 अंश जातिका को पुत्रवती बनाता है। शनि का त्रिशांश 5- 10 अंश उसके लिये सर्वथा अनिष्ट कहा गया है। गुरू का त्रिशांश 10 - 18 अंश तक उसे पति में अनुरक्त बनाएगा। बुध का त्रिशांश 18 - 25 अंश जातिका को तेजस्विनी बनाता है। शुक्र का त्रिशांश 25 - 30 अंश उसे धन संपत्ति से सम्पन्न करेगा।
विशेष:-
मिथुन राशि का रंग तोते के समान हरा माना गया है। इसके स्वामी बुध का रंग दूर्वा श्याम या दूब की भांति हरा है। बुध का रत्न पन्ना है। मिथुन राशि पश्चिम दिशा की संकेतक है। इसका मूलांक 5 है। यह विविधता वाला अंक है। व्यक्ति के जीवन में प्रमुख भूमिका निभाता है। वारों में बुधवार इसका प्रतिनिधित्व करता है।
मिथुन राशि निम्न वस्तुओं स्थानों तथा व्यक्तियों की संकेतक है-
दीवारें, संदूक, सूटकेस, रेल, ट्राम, बस, कार, टैक्सी, विमान, पैराशूट, समाचार पत्र प्रकाशन, अखबारी कागज, रज्जुमार्ग, सूक्ष्मदर्शक तथा दूरदर्शक, कपास, हरा चना, तथा सभी हरी वस्तुएं। खलिहान, पहाडियां, पर्वत, खेलघर, भोजनकक्ष, विद्यालय, शिशुशालाएं आदि। प्रचारक, पर्यटक, दूत, पत्रकार, वकील, राजनयिक, शिक्षक, कलाकार, आदि।