Kark rashi ka sampurn parichaya
कर्क राशि का संपूर्ण परिचय
कर्क राशि के अंतर्गत आने वाले नामाक्षर निम्न हैः- ही, हू, हे, हो, डा., डी, डू, डे, डो।
राशि चक्र में चैथी राशि कर्क राशि है। इसके अलावा इसे कीट, कूर्म, चांद्र, कर्कट, कुलीर, षोडशांघ्रि, अपत्यशत्रु, जम्बालनीड, षोडशपाद, सलिलचर, शशांकभ आदि भी कहते है। अंग्रेजी में इसे कैंसर कहते है।
इस राशि का प्रतीक चिन्ह केकडा है। यह चर राशि है। इसका विस्तार राशिचक्र के 90 अंश से 120 अंश तक है। इसका स्वामी चंद्रमा है। जल तत्व है। इसके तीन द्रेष्काणों के स्वामी क्रमशः चंद्र, मंगल व गुरू है। इसके अन्तर्गत पुनर्वसु नक्षत्र का अन्तिम चरण, पुष्य नक्षत्र के चारों चरण तथा आश्लेषा नक्षत्र के चारों चरण आते है। इन चरणों के स्वामी क्रमशः इस प्रकार है- पुनर्वसु चैथा चरण - गुरू चंद्र, पुष्य पहला चरण - शनि सूर्य, दूसरा चरण- शनि बुध, तीसरा चरण - शनि शुक्र, चैथा चरण- शनि मंगल, आश्लेषा पहला चरण- बुध गुरू, दूसरा चरण - बुध शनि, तीसरा चरण- बुध शनि, चैथा चरण- बुध गुरू। इन चार चरणों के नामाक्षर इस प्रकार है- ही, हू, हे, हो, डा., डी, डू, डे, डो।
त्रिशांश विभाजन में 0- 5 अंश शुक्र के, 5 - 12 अंश बुध के, 12- 20 अंश गुरू के, 20 - 25 अंश शनि के, तथा 25 - 30 अंश मंगल के है।
जिन व्यक्तियों के जन्म के समय निरयण चंद्रमा कर्क राशि में भ्रमण कर रहा हो, उनकी जन्म राशि कर्क होती है। उन्हें गोचर में अपने फलादेश इसी राशि के अनुसार देखने चाहिये। जन्म के समय लग्न कर्क राशि में होने से भी यह अपना प्रभाव दिखाती है। सायन सूर्य 22 जून से 22 जुलाई तक कर्क राशि में रहता है। यही अवधि शक् संवत के आषाढ मास की होती है। ज्योतिष के अनुसार इन तिथियों में दो एक दिन का अंतर अवश्य आ सकता है। जिन व्यक्तियों की जन्म तिथि इस अवधि के बीच में है, वे पश्चिमी ज्योतिष पर आधारित फलादेशों के लिये कर्क राशि देख सकते है। निरयण सूर्य लगभग 17 जुलाई से 17 अगस्त तक कर्क राशि में रहता है।
जिनकी जन्म कुंडली नहीं है या जन्म विवरण ज्ञात नहीं है, वे लोग अपने प्रसिद्ध नाम के पहले अक्षर के अनुसार अपनी राशि स्थिर कर सकते है। इस तरह कर्क जातकों को भी चार भागों में बांट सकते है- चंद्र कर्क, लग्न कर्क, सूर्य कर्क तथा नाम कर्क। इन चारों वर्गों में कर्क राशि की कुछ न कुछ प्रवृतियां जरूर होती है। ग्रहमैत्री चक्र के अनुसार कर्क राशि सूर्य, मंगल, तथा गुरू के लिये मित्र राशि, और बुध, शुक्र, तथा शनि के लिये शत्रु राशि है। इस राशि में गुरू अपनी उच्च तथा मंगल नीच अवस्था में होता है। शनि के लिये यह अस्त राशि है।
प्रकृति और स्वभावः-
कर्क जल त्रिकोण की पहली राशि है। प्राचीन विद्वानों के अनुसार इस समय सूर्य केकडे की तरह आकाश में आगे बढता है और पीछे हटता हुआ दिखाई देता है। कर्क का यह गुण बहुत कुछ इस अवधि में उत्पन्न लोगों में भी दिखाई देता है। वे अपने काम में आगे पीछे होते हुए दिखाई देते है। यह प्रवृति उनके भाग्य में भी दिखाई देती है। जीवन में उतार चढाव आते रहते है। उनका यह स्वभाव कर्क राशि के स्वामी चंद्र के स्वभाव से भी समझा जा सकता है। जो कि माह में पंद्रह दिन बढता है और पंद्रह दिन घटता है।
कर्क जातकों की प्रवृति और स्वभाव समझने के लिये हमें कर्क के एक और विशेष गुण पर ध्यान देना चाहिये। कर्क जब किसी वस्तु को अपने पंजों में जकड लेता है तो फिर वह उसे किसी भी दशा में नहीं छोडता। भले ही उसे अपना पंजा गंवाना पडे। कर्क जातको में अपने पे्रम पात्रों तथा विचारों से चिपके रहने की प्रबल भावना होती है। यह भावना उन्हें ग्रहणशीलता, एकाग्रता व धैर्य के गुण प्रदान करती है।
स्वभाव के अनुसार कर्क जातक बहुत ही संवेदनशील होते है। दूसरों की कही जरा सी बात की भी वो गहरी प्रतिक्रिया करते है। घंटों तक उसी बात के बारे में सोचते रहते है। उनकी सोच बदलने में समय नहीं लगता। उनमें असीम कल्पना शक्ति होती है। वे कुछ भी, किसी भी हद तक सोच सकते है। अपनी कल्पना के बल पर वे छोटी छोटी बातों को भी बडा बना सकते है अपितु दूसरों को भी दिखा सकते है। इनकी याद्दाश्त बहुत तेज होती है। जो कि इनके लिये अनेक बार घातक भी होती है।
कर्क जातकों को अपने परिवार के, विशेषकर पत्नी तथा पुत्र के प्रति प्रबल मोह होता है। इनके बिना उनका जीवन अधूरा रहता है। वे दोस्ती को भी जीवनभर निभाने में विश्वास रखते है। वे अपनी इच्छा के स्वामी होते है और उपर से किसी प्रकार का अनुशासन थोपा जाना पसंद नहीं करते है।
कर्क जातक दब्बू ओर एकान्त प्रिय होते है। इससे उनमें तीव्र परिवर्तनों के लिये पहल करने की भावना पर अंकुश लगता है। जीवन में यदि कोई असामान्य या परंपरा से अलग बात अपनानी हो तो वे रूढिवादी रंग ढंग को ही पसंद करेंगे, किन्तु अपने मानसिक तथा दैनिक दृष्टिकोणों और मान्यताओं के प्रति वे असाधारण साहस का परिचय दे सकते है। उनमें संकटग्रस्त लोगों के प्रति भी भारी सहानुभूति पाई जाती है। चिन्ता करना उनकी पैदायशी आदत होती है और चिन्ता ही उनकी सबसे बडी शत्रु होती है। ये जातक प्रायः उच्च पदों पर पहुंचते है या बहुत प्रसिद्धि प्राप्त करते है। एक बार उंचाई पर पहुंचने के बाद ये लोग अपने हाथ से उस पद या सम्मान को जाने नहीं देते। प्रचार की चकाचैंध से बच पाना इनके लिये कठिन होता हैै। ये उच्च कोेटि के कलाकार, लेखक, संगीतज्ञ या नाटककार बनते है। कुछ व्यापारी या अच्छे मनोवैज्ञानिक भी बनते है। इसके अलावा गुप्त विद्याओं में, धर्म या किसी असाधारण जीवन दर्शन में गहरी रूचि लेते है।
आमतौर पर वे बडी बडी योजनाओं का सपना देखते है। दूसरो के भले के लिये बडे बडे आदर्श कायम करते है। किन्तु विरोध या आलोचना से उनके मन को भारी ठेस पहंुचती है। उस समय वे अपने को स्वयं में ही सीमित कर लेते है। इन जातको में कुरीतियों का विकास होने पर वे अपनी इच्छा के वश में हो जाते है। भावनाओं में बहकर अन्तः विरोधों को जन्म देते है। स्वयं को अत्यधिक महत्व देकर वे दूसरों की सहानुभूति तथा मैत्री खो देते है। दूसरों को आकर्षित करने के लिये वे प्रायः रोगपीडा का बहाना भी बनाते है। उनकी संभोग इच्छाओं पर भी उनकी कुप्रवृतियों का प्रभाव पडता है।
कर्क स्त्रियों में पुरूषों के समान ही गुण होने के साथ साथ मातृत्व की विशेष प्रवृति होती है। इसमें भी असफल रहने पर वे अपने घेरे में सिमट जाती है और परिवार पर बोझ बन जाती है। कर्क राशि का स्वामी चंद्रमा होने से हर कर्क जातक में कुछ न कुछ स्त्रियों के गुण अवश्य होेते है तथा आत्मपीडन की आदत जरूर होती है। कर्क राशि का स्वामी चंद्रमा प्रकाश ग्रह है किन्तु वह उधार के प्रकाश से ही चमकता है। यदि उसके प्रकाश स्त्रोत से उसका संबंध काट दिया जाये तो उसका चमकना बंद हो जायेगा।
आर्थिक क्षेत्रः-
कर्क जातक परिश्रमी और उद्यमी होते है। लेकिन प्रायः उनमें सट्टेबाजी की प्रवृति पाई जाती है। शेयरों में हानि उठाने से जमे जमाए व्यापार को चैपट कर बैठते है। उनके जीवन में आर्थिक क्षेत्र में अप्रत्याक्षित क्षेत्र में अप्रत्याक्षित परिवर्तनों की आशंका बनी रहती है। अतः कम पूंजी पर बडी आय का प्रलोभन देने वाली संस्थाओं से उन्हें सावधान रहना चाहिये। बिना सोचे समझे चाहे जिस कागज, करार या समझौते पर हस्ताक्षर करने से भी बचना चाहिये।
कर्क जातकों को प्रायः अप्रत्याशित सूत्रों या विचित्र साधनों से और अजनबियों के सम्पर्क में आने से आर्थिक लाभ होता है। उन्हें तेल शोधन, कोयला, जहाजरानी, रेडियम, बिजली, पुरातन वस्तुओं आदि में पैसा लगाने से सफलता मिलती है। जन उपयोगी की बडी बडी कम्पनियों में पैसा लगाना भी उनके लिये लाभदायक रहता है। कुछ अन्य आर्थिक क्षेत्र, जिनमें वे सफल रह सकते है, वो है- दवाओं व द्रव्यों का आयात, अन्वेषण तथा खोज, भूमि तथा खानों का विकास, रेस्तरां, पानी से प्राप्त होने वाली वस्तुओं दुग्ध पदार्थ आदि। राशिचक्र की चैथी राशि में जन्म लेने के कारण कर्क जातक वैदिक साहित्य तथा प्राचीन वाड्मय के अनुशीलन का कार्य भी कर सकते हैै। पानी के निकट रहने पर विशेष आनन्द का अनुभव होता है।
मैत्री व प्रेम संबंधः-
कर्क जातक अच्छे मित्र साबित होते है और आजीवन दोस्ती निभाने का प्रयास करते है। प्रेम के संबंध में वे अत्यंत भावुक और संवेदनशील होते है। उनके मस्तिष्क में वर्षों पुरानी छोटी छोटी यादें भी जमा रहती है। उनके उनके स्वभाव बहुत स्नेह भरे होते है। वे उनका बहुत कम दिखावा करते है। इससे प्रायः उन्हें क्रूर और भावनाहीन की उपाधि भी मिल जाती है। अपने परिवार के प्रति वे पूरी तरह समर्पित होते है।
यह सही है कि कर्क जातक से अधिक भावुक और कल्पनाशील प्रेमी दूसरा कोई नहीं हो सकता। लेकिन वे स्वभाव से शर्मीले होते है। और अवज्ञा या अपमान सहन नहीं कर सकते। इससे अनेक गलतफहमियां भी पैदा हो सकती है। किन्तु अंततः वे सभी रूकावटों को दूर करने में सफल होते है और एक स्थायी तथा संतुष्टिदायक संबंध की नींव पड जाती है।
स्वास्थ्य और खानपानः-
कर्क जातक बचपन में लगभग दुबले पतले ही होते है। किन्तु आयु के साथ साथ उनके शरीर का भी विकास होता जाता है। उनका चेहरे का आकार बडा होता है और उसमें हड्डियां उभरी रहती है। हाथ पांव पतले और शरीर के अनुपात में लंबे होते है। कपाल बडा होता है। निचला जबडा आगे को उभरा रहता है। मुंह चैडा और नाक उपर को उठी रहती है। बाल भूरे होते है और दोनों आंखों के बीच बडा अन्तर रहता है। बौने आमतौर से इसी राशि में पैदा होते है।
कर्क राशि कालपुरूष के वक्षस्थल और पेट का प्रतिनिधित्व करती है। अतः कर्क जातकों के भोजन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। वे बहुभोजी हो सकते है। जिससे उनका पेट बडा और आगे निकला हो सकता है। निराशा की स्थिति में अथवा मित्र मंडली में बैठकर उनमें मद्यपान की प्रवृति भी पाई जाती है। चिन्ता उनकी सबसे बडी शत्रु होती हे। इससे उनकी पाचन शक्ति बिगड सकती है और इसका प्रभाव रक्त संचार पर पडता है। अधिक कल्पना शक्ति के कारण कर्क जातक प्रायः सपनों के जाल बुनते रहते है। जिसका उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है।
जिन रोगों से विशेष रूप से पीडित होने की संभावना रहती है, वो इस प्रकार है-
फेफडों के रोग, फलू, खांसी, दमा, श्वास रोग, प्लूरिसी, क्षय, उदर रोग, बेरी बेरी, स्नायविक दुर्बलता, भय भावना, मिर्गी, पीलिया, पित्ताशय में अवरोध, आंतों में कीडें, छाती में फोडे फुंसी, जलोदर, कैन्सर, गठिया आदि। इन लोगों के अधिकांश रोग अधिक भावुकता के कारण अनियंत्रित भावनाओं तथा उदासी के दौरों से होते है। उन्हें भविष्य की चिन्ता और भय की भावना से बचना चाहिये।
द्रेष्काण , नक्षत्र तथा त्रिशांशः-
कर्क लग्न के प्रथम द्रेष्काण में जन्म होने पर जातक पर दुहरे चंद्रमा का प्रभाव होता है और उसमें कर्क राशि की प्रवृतियां अधिक प्रमुखता से दिखाई देती है। यदि लग्न दूसरे द्रेष्काण में हो तो जातक को अधिक आवेगी और जिद्दी बनाता है। तीसरे द्रेष्काण में लग्न हो तो उस पर चंद्रमा के साथ गुरू का भी प्रभाव रहता है। इससे उसमें कुछ संतुलन तो आता है किन्तु वह अधिक मूडी भी हो जाता है। उसके मन में प्रायः दो विरोधी विचारों का द्वन्द्व चलता रहता है।
कर्क राशि के अन्तर्गत पुनर्वसु का अन्तिम चरण, पुष्य के चारों चरण तथा आश्लेषा के चारों चरण आते है। पुनर्वसु का चैथा चरण जातक को अधिक अस्थिर करता है। उसमें अहम् की मात्रा बढ जाती है। दूसरे चरण में उसकी भावनात्मकता कम होकर उसका स्थान कुछ गंभीरता व बौद्धिकता ले लेती है। तीसरा चरण उसे संतुलित बनाता है तथा चैथे चरण में उसमें पुनः आवेग के लक्षण बढ जाते है। आश्लेषा नक्षत्र का पहला चरण उसे साहित्यिक खोज की ओर प्रवृत कर सकता है। दूसरे चरण से उसमें महत्वकांक्षा में वृद्धि होती है। तीसरे चरण में चंद्र होने से उसमें जन कल्याण के भावों का उदय होता है। जबकि चैथे चरण में जन्म उसे देशाटन और नई खोजों की प्रवृति प्रदान करता है।
कर्क जातिका के लिये शुक्र का त्रिशांश 0-5 डिग्री उसे अधिक संभोग प्रिय बनायेगा। बुध का त्रिशांश 5- 12 डिग्री उसमें शिल्प और कला के प्रति अभिरूचि पैदा करेगा। गुरू का त्रिशांश 12 - 20 डिग्री आयु तथा पुत्रों को सीमित करता है। शनि का त्रिशांश 25 - 30 डिग्री हो और चंद्रमा को पापग्रह देखते हो तो ऐसी स्त्री अपने पति के नियंत्रण में नहीं रहती।
विशेषः-
भारतीय ज्योतिषियों ने कर्क राशि का वर्ण पाटल या श्मामलता लिये ललाई माना है। इसके स्वामी चंद्रमा का श्वेत वर्ण वाले है। चंद्रमा का रत्न मोती है। जिसे चांदी में बनवाकर पहना जाता है। कर्क राशि उत्तर दिशा की द्योतक है। कर्क राशि के स्वामी चंद्रमा का मूलांक 2 है। यह अंक द्वैध का प्रतीक है। मूलांक 7 के साथ इसका विशेष संबंध है। कर्क जातक के जीवन में ये दोनों अंक प्रमुख भूमिका निभाते है। यह राशि सोमवार का प्रतिनिधित्व करती है।
कर्क राशि निम्न वस्तुओं की द्योतक है-
दूध तथा दूध से बने पदार्थ, चांदी, चाय, पैटोल, सभी द्रव पदार्थ, फल, जिनमें केला विशेष, रबड, गोभी, मशरूम आदि। नहर, नदी - नाले, समुद्र, कुएं, झरने, खाइयां, दलदल, मत्स्यशाला, डेयरीफार्म, गाडियों के अड्डे, नालियां, समुद्रवर्ती खेत आदि। जहाज - कर्मचारी, व्यापारी, रेस्तरां तथा चायघरों के मालिक, नर्स, मैट्रन, इतिहासकार, शिक्षक, उपदेशक, वक्ता आदि।