Barve bhav me shani ka shubh ashubh samanya fal
बारहवें भाव में शनि का शुभ अशुभ सामान्य फल
शुभ फल: बारहवें स्थान में शनि होने से जातक की प्रवृत्ति एकांतप्रिय, संन्यासी जैसी होती है। दयालु होता है। भिक्षागृह, कारागृह, दान संस्था आदि से सम्बन्ध रहता है। जातक गुप्तरीति से धन संचय करता है। गुप्त नौकरी, हलके काम आदि से लाभ होता है। शत्रुहंता और कुबेर के समान यज्ञ करने वाला होता है। शनि व्ययभाव में होने से जातक जनसमूह का नेता होता है। वृष, कन्या, तुला, मकर और कुम्भ में भी वकील, वैरिस्टर आदि होता है। व्यवसाय के लिए भी यह योग अच्छा है। शनि शुभ सम्न्ध में होने से जिन व्यवसायों में लोगों से विशेष सम्बन्ध नहीं आता, उनसे लाभ होता है। शनि लग्नेश होकर व्ययस्थान में होने से जातक शत्रुओं का नाश करता है और यज्ञ द्वारा संपत्तिमान् होता है। शनि लग्नेश होकर व्ययस्थान में होने से जातक परदेश जाकर प्रसन्न रहता है। शुभग्रह साथ होने से सुखी होता है और आँखें अच्छी होती हैं। मृत्यु के बाद शुभगति मिलती है। शुभग्रह साथ होने से यह शनि राजयोग करता है।
अशुभ फल: व्यक्ति कातर, निर्लज्ज तथा शुभ कार्य में कठोर बुद्धि होता है। मूर्ख, निर्धन तथा वंचक (ठग) होता है। जातक पापी, हीनांग, तथा भोगों में लालसा रखता है। जातक की रुचि कू्रर कामों में होती है। किसी अवयव में व्यंगयुक्त या किसी अंग के टूटने से सदा दुरूखी रहता है। बारहवें स्थान में बैठा शनि व्यक्ति को सन्देहशील और दुष्ट स्वभाव का बनाता है। जातक मांस-मदिरा का सेवन करने वाला, म्लेच्छों के साथ संगति करनेवाला, पापकर्म में आसक्त, पतित होता है। वह कृतघ्न, व्यसनी, कटुभाषी, अविश्वासी, एवं आलसी होता है। शनि द्वादश होने से जातक व्याकुल रहता है।
बारहवें भाव में शनि होने से जातक नेत्ररोग या मन्द दृष्टि अथवा छोटी आँखों वाला होता है। बारहवें भाव में हो तो अपस्मार, उन्माद का रोगी, रक्तविकारी होता है। जातक पसलियों में व्यथा वाला होता है। जांघ में व्रण होता है। फिजूलखर्च, व्यर्थ व्यय करनेवाला, खर्च से दुरूखित होता है। शनि द्वादशभाव में होने से जातक बुरे कामों में धन खर्च करता है। अपने बांधवों से बैर करने वाला होता है। जातक के स्वजनों का नाश होता है। गुप्त शत्रुओं के कारण प्रगति में बारबार रुकावटें आती हैं। किसी पशु के कारण अपघात होता है। अपने हाथ से ही अपना नुकसान करता है। अज्ञातवास, कारावास, विषप्रयोग, झूठे इलजामों से कैद आदि से कष्ट होता है। शनि से साधारणतरू उदास और शोकपूर्ण प्रवृत्ति होती है। जातक लोगों से अपमानित होता है। शत्रुद्वारा पराजित होता है। शनि के द्वादशस्थ होने से जातक दयाहीन, धनहीन, स्वकर्महीन, सुखहीन तथा अंगहीन होता है।