Chathe bhav me shani ka shubh ashubh samanya fal / छठे भाव में शनि का शुभ अशुभ सामान्य फल
Posted by
Dr.Nishant Pareek
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Chathe bhav me shani ka shubh ashubh samanya fal
छठे भाव में शनि का शुभ अशुभ सामान्य फल
शुभ फल : षष्ठभावस्थित शनि के फल सभी प्राचीन ग्रन्थकारों ने प्राय: शुभ ही दिए हैं। षष्ठस्थान दु:ष्टस्थान है। इसमें बैठा हुआ पापग्रह शनि शुभफल दाता होता है। छठेभाव में शनि होने से जातक का शरीर सुन्दर, पुष्ट-नीरोग, तथा शक्तिशाली होता है। जातक की जठराग्नि प्रबल होती है, भूख बहुत तीव्र होती है और बहुत खानेवाला होता है। षष्ठ में शनि से आहार के बारे में रुचि बहुत तीव्र होती है। शरीर से बलिष्ठ होने के कारण किसी की परवाह नहीं करता है। जातक प्रगल्भ वक्ता तथा तर्ककुशल होता है। अतरू प्रतिवादियों के लिए अतीव भयंकर होता है। षष्ठभाव में शनि होने से जातक दानियों में श्रेष्ठ, गुणों की कद्र करनेवाला, पण्डितों की आज्ञा का पालन करनेवाला होता है। गुणों का परीक्षक, श्रेष्ठ कर्मों को जाननेवाला, अनेकों को आश्रय देनेवाला होता है। बन्धु-बान्धवों से युक्त, अपने बंधु-वांधवों का पालक होता है। बहुत से नौकर-चाकर, पृष्टपोषक तथा अनुयाइयों से युक्त होता है।
षष्ठस्थ शनि प्रभावान्वित जातक महाबली होता है। अतरू जातक के शत्रु भयाक्रांत रहते हैं। अपने शत्रुओं का मान मद्रन करता है, शत्रु पराजित होते हैं। जातक शत्रुहन्ता, संपूर्ण शत्रुगण को जीतनेवाला होता है। शनि शत्रुभाव में होने से जातक शत्रुओं से भी सम्मानित होता है। जातक को पशुओं चैपाए जानवर भैंस-गाय-घोड़ हाथी आदि से प्रेम रहता है। महिषी आदि का सुख मिलता है। जातक के घर में दूध देने वाले भैंस आदि चैपाए जानवर रहते हैं। षष्ठभावस्थ शनि प्रभावान्वित लोग जातक पालकर लाभ उठा सकते हैं। जातक कुकर्म-कर्ता नहीं होता है। न्यायवृत्ति से जीवन निर्वाह करता है। अतरू राजा, राजकुल से कोई दंडभय नहीं होता है। जातक को चैरभय भी नहीं होता है। सर्वदा चतुर्दिशाओं में फैलनेवाली अतुलकीर्ति का लाभ होता है। जातक यशस्वी होता है। नौकरों द्वारा अनुशासन कायम रखकर अच्छा काम कराने की योग्यता प्राप्त होती है। जातक भाग्यवान, भोगों, भूषणों तथा वाहनों से सम्पन्न, सुशिक्षित, धनी, सुखी होता है। जातक पर राजा की कृपा रहती है।राजा जैसा धनधान्य समृद्ध किन्तु किसी दुरूख से पीडि़त होता है। स्त्री-पुत्रों से सुख मिलता है। कई एक काव्यों का रचयिता भी होता है।
शनि के साथ मंगल भी हो तो जातक विदेशों में घूमता फिरता है। जातक को परिस्थिति से लड़ना होता है, बाद में संसार में अग्रसर होते तथा प्रगति करते हैं। जातक को एक साथ कीर्ति, सम्पत्ति या अधिकार नहीं मिल पाते हैं यदि कीर्ति है तो सम्पत्ति नहीं है और यदि सम्पत्ति है तो अधिकार नहीं है। विवाह से पहली आयु में स्वास्थ्य अच्छा नहीं होता-विवाह के अनन्तर अच्छा हो जाता है। स्वगृह में शनि होने से जातक शत्रु रहित होता है। षष्ठभाव में बलवान्, शुभ सम्बन्ध में शनि यशस्वी अधिकारी के गुण देता है।
अशुभ फल: छठे स्थान पर विद्यमान शनि के प्रभाव से जातक ढ़ीठ, अभिमानी, विषयासक्त, स्वच्छन्द प्रकृति का दुराचारी होता है। षष्ठ स्थान का शनि पूर्व आयु में बहुत कष्ट देता है। काम में रुकावटें आती हैं-किसी भी तरफ से सहायता नहीं मिलती, एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ता है-इस तरह भारी कष्ट से प्रगति करनी पड़ती है। वृद्धावस्था में जातक को भारी आर्थिक कष्ट होता है-यदि नौकरी में हों तो असामयिक अवकाश प्राप्त करना पड़ता है। और इसका कारण शरीरिक व्यंग होता है। जातक को देशान्तर में भी सुख नहीं मिलता। स्थानान्तर में भी प्रगति नहीं होती। प्रकृति सदा रोगी और अशक्त रहती है। दीर्घकाल चलनेवाले कठिन रोगों से शरीर त्रस्त होता है। अन्न वस्त्र की कमी से अस्वस्थता रहती है।
छठे स्थान में शनि होने से कटिप्रदेश में पीड़ा होती है। षष्ठ स्थान में शनि होने से कण्ठरोगी, श्वासरोगी होता है। प्रमेह तथा गुप्तरोग होता है। नारायण भट्ट ने के अनुसार श्मामा का नाशश् होता है। जातक के मामा की मृत्यु होती है या मामा से वैमनस्य भी मामा से प्राप्त होनेवाले सुख का वाधक हो सकता है। मामा, मौसियों के लिए षष्ठस्थान का शनि बहुत अशुभ है-यह बात तो निरूसंदिग्ध है। मामा, मौसियों का गृहस्थ ठीक-ठीक नहीं चलता, सन्तति या तो होती नहीं अथवा होकर मृत्युमुख में जाती है। चरराशियों में शनि होने से पेट, छाती, सन्धिवात आदि के रोग होता है। वृष, कन्या, मकर, तुला, कुंभ में अशुभफल का अनुभव होता है। वृष, कन्या मकर में शनि होने से हृदयविकार होता है।