Tuesday, 2 June 2020

Athve bhav me shani ka shubh ashubh samanya fal/ आठवें भाव में शनि का शुभ अशुभ सामान्य फल

Posted by Dr.Nishant Pareek

Athve bhav me shani ka shubh ashubh samanya fal 


आठवें भाव में शनि का शुभ अशुभ सामान्य फल  

शुभ फल:  शनि अष्टमस्थान में होने से स्थूलशरीरी एवं शूरवीर होता है।जातक विद्वान्, पटु, दयालु, निर्भय, अत्यन्त चतुर, उदार प्रकृति होता है। अष्टमभावस्थ शनि मकर, कुंभ या तुला में शुभ संबंधित होने से विवाह से आर्थिक लाभ होता है। वारिस के रूप में जमीन आदि इस्टेट प्राप्त होती है। उसकी देखभाल भी अच्छी करते हैं। शनि के अष्टमभाव में होने से जातक की आयु 75 वर्ष की होती है। गूढ़शास्त्रों का अभ्यास करता है। नौकरी करनेवाला होता है। शनि अष्टमभाव में होने से जातक के पुत्र अल्पसंख्या में होते हैं। अष्टमस्थ शनि शुरु की उमर में कष्टकारक, किन्तु बाद की उमर में सुख देता है। इससे विपरीत फल भी होता है अर्थात् पहिले दुरूख तो पीछे सुख और पहिले सुख तो बुढ़ापें में कष्ट होता है। भाग्योदय 36 वें वर्ष के बाद होता है।

 शनि अष्टम में होने से जातक मृत्यु के समय भी स्वस्थ चित्त रहता है। मृत्यु होने वाली है-ऐसा आभास मृत्यु से कुछ समय पूर्व हो जाता है। अष्टम में बलवान शनि दीर्घायु देता है। नौसर्गिक वृद्धत्व से ही मृत्यु होती है।  उच्च में या स्वक्षेत्र में शनि के होने से जातक दीर्घायु होता है।  मेष, सिंह, तुला, वृश्चिक या मकर में शनि होने से अधिकार या संपति अथवा संतति इन तीनों में से किसी एक के विषय में कष्ट होता है। संतति और संपत्ति दोनों एक साथ नहीं मिल पाते।  शनि मेष, मिथुन, कर्क, सिंह, धनु या मकर में होने से स्वतंत्र व्यवसाय से आजीविका चलती है।अन्य राशियों मे शनि नौकरी के लिए ठीक होता है।  मेष, सिंह, कर्क, वृश्चिक, मकर तथा तुला में शनि होने से आयु दीर्घ होती है। विवाह के बाद स्थिति में परिवर्तन होता है। 

  अशुभ फल:  अष्टमभाव में शनि होने से जातक का शरीर दुर्बल और पतला होता है। आठवें स्थान का शनि जातक को आलसी और चालाक बनाता है। जातक कपटी, वाचाल, डरपोक, क्रोधी, दगाबाज, कृपण, असंतुष्ट, धूर्त तथा उत्साहहीन होता है। जातक निठुर बोलनेवाला, क्षुद्र अर्थात् तुच्छप्रकृति तथा हंसी मजाक में शामिल न होनेवाला होता है। दूसरों के दोष निकालता रहता है, अर्थात् परदोषान्वेषण करता है, इस तरह उदारचेता न होकर, क्षुद्रहृदय तथा संकुचित हृदय होता है। सर्वदा बुद्धि कुटिल रहती है। जातक स्वयं धूर्तराट् वंचकचूडामणि होता है। अतरू कोई दूसरा मनुष्य ठग नहीं सकता है। जातक निंदनीय मार्ग का अवलम्बन करनेवाला होता है। कलंकी होता है। जातक रोगी रहता है। धातु की कमी से कष्ट पाता है। जातक को कोढ़ या कुष्टरोग होता है। शरीर में ददु्र (दाद और खुजली -एक चर्मरोग) और फोड़े-फुन्सियाँ निकलते हैं जिनसे पीड़ा होती है। आँखे क्षीण होती हैं अर्थात् जातक की दृष्टि कमजोर होती है। 
अष्टमभाव में शनि होने से-ववासीर, भंगदर आदि रोगों से पीडि़त होता है। हृदय के रोग से, खाँसी, कालरा आदि नानाविध रोगों के कारण जातक की मौत होती है। शस्त्रों के प्रहार से पीड़ा होती है। पूर्वार्जित धन नहीं मिलता। जीवन में हमेशा निराशा होती है। अष्टमस्थ शनि के प्रभाव में आए हुए जातक के धन का विनाश होता है। दरिद्री, और निर्धन होता है। जातक के पुत्र धूर्त होते हैं। विदेश में या समीप के किसी हीनस्थान में जातक की मृत्यु होती है। शूद्र स्त्री से सम्पर्क रखनेवाला होता है। अष्टमभाव में शनि होने से जातक परदेश में रहता है और वहाँ पर भी दुरूखित रहता है। चोरी करने के अपराध में दण्डित होकर नीच के हाथ से मृत्यु होती है। मित्र से अवहेलना मिलती है। अकारण ही आत्मीयजनों, सत्संगी ज्ञानी मनुष्यों का वियोग होता है। सत्य परब्रह्म के साथ संग करनेवाले मनुष्यों का सत्संग नहीं मिलता है। दुष्टप्रकृति के लोगों की संगति में रहता है। अष्टमस्थ शनि 54 वें वर्ष के बाद अशुभ फल का द्योतक है। छठे वर्ष में माता-पिता की मृत्यु या पिता को आर्थिक संकट इस प्रकार का नुकसान होता है। 32 वां वर्ष भी आपत्तिकारक होता है।

शनिकृत कष्टों के निवारण हेतु सरल उपाय

 ज्योतिष श्यामसंग्रह के अनुसार लग्न से शनि अष्टमभाव में होने से जातक की मृत्यु निम्नलिखित कारणों से होती हैरू-भूख से, लंघन से, अधिक तथा आकण्ठ भोजन करने से, संग्रहणी से, पाण्ड्डु रोग से, प्रमेह से, सन्निपात से, काँटों से, व्रणों से, हाथी के पाँव की चोट से, घोड़े तथा गधे से मृत्यु होती है।  मकर में घोड़े की रांग (लात) से मृत्यु होती है।

Powered by Blogger.